धर्म, कानून, समाज... आत्महत्या को कोई सही नहीं मानता. तर्क दिया जाता है कि आत्महत्या कायरता की निशानी है. आत्महया पर बात इसलिए क्योंकि आत्महत्या को लेकर दुनिया के 113 देशों में दिलचस्प शोध हुआ है जिसमें भारत भी शामिल है. और भारत में भी यूपी बिहार को लेकर जो बात कही गयी है वो खासी मजेदार हैं. शोध में कहा गया है कि देश के अन्य राज्यों के मुकाबले भले ही यूपी बिहार में हत्याएं ज्यादा हों, लेकिन जब बात आत्महत्या की आती है तो जैसा यूपी बिहार के लोगों का स्वाभाव है, जीवटता का लेवल कुछ ऐसा होता है कि लोग प्रायः इससे दूर रहते हैं.यूपी बिहार के लोग कितने जीवट हैं? इसे समझने के लिए हमें कहीं बहुत दूर नहीं जाना. अप्रैल 2020 का वक़्त शायद ही कोई भूला हो. कोविड-19 पैंडेमिक के चलते देशव्यापी लॉक डाउन लगा था. बीमारी का खौफ ही कुछ ऐसा था कि देश का जो नागरिक जहां था, वहीं रहने को मजबूर था. मुश्किल समय था, ज्यादातर कामधंधे बंद थे. तमाम लोगों की नौकरियां चली गई थीं. जैसे हाल थे भूखों मरने की स्थिति थी. उस वक़्त प्रवासी मजदूरों ने दिल पर पत्थर रख बड़ा फैसला लिया था.
देश उस वक़्त दहल गया जब हमने प्रवासी मजदूरों को कई कई सौ किलोमीटर पैदल चलते देखा. इन पैदल चलने वालों में युवा, बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और लड़कियां सब थे. जिक्र अगर इन प्रवासी मजदूरों का हुआ है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि मुख्यतः ये लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से थे. इन लोगों का भविष्य अंधकारमय था. इनके आगे चुनौतियों का पहाड़ था. इनके सामने एक बड़ा प्रश्न ये भी था कि भले ही आज खाना मिल जाए लेकिन क्या कल उनकी थाली में भोजन होगा?
तमाम बाधाओं को पार करते हुए ये लोग आगे बढ़ रहे थे. कई...
धर्म, कानून, समाज... आत्महत्या को कोई सही नहीं मानता. तर्क दिया जाता है कि आत्महत्या कायरता की निशानी है. आत्महया पर बात इसलिए क्योंकि आत्महत्या को लेकर दुनिया के 113 देशों में दिलचस्प शोध हुआ है जिसमें भारत भी शामिल है. और भारत में भी यूपी बिहार को लेकर जो बात कही गयी है वो खासी मजेदार हैं. शोध में कहा गया है कि देश के अन्य राज्यों के मुकाबले भले ही यूपी बिहार में हत्याएं ज्यादा हों, लेकिन जब बात आत्महत्या की आती है तो जैसा यूपी बिहार के लोगों का स्वाभाव है, जीवटता का लेवल कुछ ऐसा होता है कि लोग प्रायः इससे दूर रहते हैं.यूपी बिहार के लोग कितने जीवट हैं? इसे समझने के लिए हमें कहीं बहुत दूर नहीं जाना. अप्रैल 2020 का वक़्त शायद ही कोई भूला हो. कोविड-19 पैंडेमिक के चलते देशव्यापी लॉक डाउन लगा था. बीमारी का खौफ ही कुछ ऐसा था कि देश का जो नागरिक जहां था, वहीं रहने को मजबूर था. मुश्किल समय था, ज्यादातर कामधंधे बंद थे. तमाम लोगों की नौकरियां चली गई थीं. जैसे हाल थे भूखों मरने की स्थिति थी. उस वक़्त प्रवासी मजदूरों ने दिल पर पत्थर रख बड़ा फैसला लिया था.
देश उस वक़्त दहल गया जब हमने प्रवासी मजदूरों को कई कई सौ किलोमीटर पैदल चलते देखा. इन पैदल चलने वालों में युवा, बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और लड़कियां सब थे. जिक्र अगर इन प्रवासी मजदूरों का हुआ है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि मुख्यतः ये लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से थे. इन लोगों का भविष्य अंधकारमय था. इनके आगे चुनौतियों का पहाड़ था. इनके सामने एक बड़ा प्रश्न ये भी था कि भले ही आज खाना मिल जाए लेकिन क्या कल उनकी थाली में भोजन होगा?
तमाम बाधाओं को पार करते हुए ये लोग आगे बढ़ रहे थे. कई कई दिन पैदल चलने के बाद अंततः ये लोग अपने अपने घरों को पहुंचे. यूपी और बिहार के इन प्रवासी मजदूरों ने जो संघर्ष किये वो कहीं से भी आसान नहीं थे. कह सकते हैं कि इन लोगों को उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल हालात फिर अनुकूल होंगे. चीजें संभलेंगी और ये लोग वापस अपने अपने ठीहों पर जाएंगे.
भले ही कोरोना 1 के उस दौर में इन लोगों के आस पास संघर्षों को फेहरिस्त हो और नाउम्मीदी इनपर हावी हो. लेकिन शायद ही ऐसी कोई खबर आई जहां हमने सुना हो कि कोरोना के उस दौर में गरीबी, भुखमरी या अवसाद के चलते यूपी बिहार के इन प्रवासी मजदूरों ने पंखे से लटककर या जहर खाकर, पटरी पर लेटकर अपनी जीवन लीला समाप्त की हो.
बात आकड़ों की हुई है तो किसी और चीज पर बात करने से पहले इन आंकड़ों का अवलोकन कर लिया जाए. आंकड़े बताते हैं कि यूपी में मर्डर रेट जहां 1.7 प्रतिशत हैं तो वहीं आत्महत्या दर 2.1 है. वहीं यूपी के परिदृश्य में सवाल अगर ये हो कि हत्या की तुलना में कितनी बार अधिक बार आत्महत्या होती है तो ये अनुपात 1.2 है. इन आंकड़ों में जो तथ्य बिहार के संदर्भ में हैं वो और मजेदार हैं बिहार में मर्डर रेट जहां 2.6 है तो वहीं आत्हत्या दर 0.7 है. हत्या की तुलना में कितनी बार आत्महत्या होती है? इस सवाल के तहत जवाब 0.3 है.
यूपी बिहार में जहां लोग आत्महत्या से गुरेज करते हैं तो वहीं जब हम देश के पांच विकसित राज्यों केरल. तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक में कहानी बिलकुल अलग है. जैसा कि हम सभी जानते हैं ये राज्य देश के अन्य राज्यों के मुकाबले क्यों विकसित हैं इसकी एक बड़ी वजह एजुकेशन है बावजूद इसके जिस तरह यहां हत्या के मुकाबले आत्महत्या के मामले बढे हैं साफ़ है कि इन राज्यों के निवासियों के अंदर हालात से लड़ने का जज्बा नहीं है.
केरल के हालत कैसे हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के सबसे पढ़े लिखे राज्यों में शुमार केरल में हत्या की दर जहां 0.9 है तो वहीं जब वर्णन आत्महत्या का होगा तो केरल में आत्महत्या की दर 24 है.
उपरोक्त जिक्र यूपी और बिहार के सन्दर्भ में हुआ है तो आत्महत्या के मामलों के मद्देनजर हमारे लिए इस बात को समझ लेना भी बहुत जरूरी है कि कुछ खो जाने पर उसके बाद क्या होगा? इस सवाल का जवाब अलग अलग राज्यों में अलग अलग है. ऊपर ही हमने कोरोना काल की बात की है तो हमें ये भी समझना होगा कि कोरोना काल में प्रवासी मजदूर पैदल चले इस आस के साथ कि विषम परिस्थितियों को वो संभाल लेंगे वहीं वो लोग जो लॉक डाउन के दौरान अपने अपने घरों में रहे अवसाद में आए और आत्महत्या का मार्ग अपनाया.
विषय बहुत सीधा है. भले ही उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य गरीबी की मार झेल रहे हों लेकिन इन लोगों में लड़ने का जज्बा है. जो अपने में एक बड़ी अमीरी है. इसके अलावा यूपी और बिहार के लोगों के जीवन से जुड़ा संघर्ष किसी से छुपा भी नहीं है. इनमें व्यर्थ के दिखावे का कोई आडंबर नहीं है.
इन सब बातों के अलावा यूपी और बिहार के लोगों में मुश्किल परिस्थितियों के तहत अपना एक सपोर्ट सिस्टम भी है और दिलचस्प ये कि अन्य जगहों की तरह ये उन्हें ताने नहीं कसता. यूपी और बिहार के लोगों का जीवन या ये कहें कि जीवन जीने का तरीका थोड़ा बहुत ऊपर नीचे हो सकता है लेकिन क्योंकि सबकी लाइफ स्टाइल लगभग एक जैसी होती है.
बहरहाल बात यूपी बिहार के लोगों के जिंदगी जीने के तरीके और इनकी जीवटता पर हुई है. तो जैसा स्वाभाव यूपी और बिहार के लोगों का है. जब बहुत ज्यादा ही अति हो जाती है तो ये कोई कठोर कदम उठाते हैं वरना छोटी मोटो चुनौतियों को पार लगाना इनके खून में है.
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