तमिलनाडु का स्टरलाइट प्लांट कौन भूला होगा... जी हां, ये वही प्लांट है, जिसे लेकर तूतीकोरिन में हिंसा तक भड़क गई थी. इस हिंसा का नतीजा ये हुआ था कि पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं, जिसमें 13 लोगों की मौत भी हो गई. हाल में ही इस प्लांट से सल्फ्यूरिक एसिड लीक होने की खबर है. हालांकि, अधिकारियों ने इसे एक मामूली लीक कहा है. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया है कि जल्द ही इस प्लांट से सल्फ्यूरिक एसिड को निकाल कर कहीं और ले जाया जाएगा. भले ही अभी सल्फ्यूरिक एसिड का लीक मामूली था, लेकिन अगर कोई बड़ा हादसा हुआ तो उससे हजारों लोगों की जान जा सकती हैं क्योंकि यह प्लांट किसी कमर्शियल क्षेत्र में नहीं, बल्कि रिहायशी इलाके में है. ये प्लांट वहां है जहां आस-पास के घरों में महिलाएं, बच्चे और बूढ़े सांस ले रहे हैं. अब अगर सल्फ्यूरिक एसिड का कोई बड़ा लीक हुआ तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये दुर्घटना कितनी बड़ी हो सकती है.
भोपाल गैस त्रासदी से भी नहीं लिया सबक
1984 में 2-3 दिसंबर की रात को भोपाल में हुई उस घटना को कोई कैसे भूल सकता है, जिसने करीब 16,000 लोगों की जान ले ली और 40,000 लोगों को घायल किया. मरने वालों में 8000 लोग तो हादसे के दो हफ्तों में ही मर गए थे और बाकी 8000 लोगों की मौत अब तक उसी गैस की वजह से हुई बीमारी की वजह से हो चुकी है. इस हादसे से पहले Dow Chemical और nion Carbide लगातार इस बात से मना करते रहे थे कि Methyl Isocyanate गैस से लोगों की सेहत पर कोई असर पड़ता है. लेकिन जब गैस लीक हुई तो उसने तबाही मचा दी. तंबाकू उद्योग तो दशकों तक लोगों से इस बात के सबूत मांगता रहा कि उनके गले या फेफड़ों के कैंसर का कारण सिगरेट है, जिसका कोई सबूत नहीं दे सका. कुछ इन्हीं सब की तरह सालों से स्टरलाइट भी यही साबित करने की कोशिश कर रहा है कि इस फैक्ट्री की वजह से किसी को कोई नुकसान नहीं होगा.
तमिलनाडु का स्टरलाइट प्लांट कौन भूला होगा... जी हां, ये वही प्लांट है, जिसे लेकर तूतीकोरिन में हिंसा तक भड़क गई थी. इस हिंसा का नतीजा ये हुआ था कि पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं, जिसमें 13 लोगों की मौत भी हो गई. हाल में ही इस प्लांट से सल्फ्यूरिक एसिड लीक होने की खबर है. हालांकि, अधिकारियों ने इसे एक मामूली लीक कहा है. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया है कि जल्द ही इस प्लांट से सल्फ्यूरिक एसिड को निकाल कर कहीं और ले जाया जाएगा. भले ही अभी सल्फ्यूरिक एसिड का लीक मामूली था, लेकिन अगर कोई बड़ा हादसा हुआ तो उससे हजारों लोगों की जान जा सकती हैं क्योंकि यह प्लांट किसी कमर्शियल क्षेत्र में नहीं, बल्कि रिहायशी इलाके में है. ये प्लांट वहां है जहां आस-पास के घरों में महिलाएं, बच्चे और बूढ़े सांस ले रहे हैं. अब अगर सल्फ्यूरिक एसिड का कोई बड़ा लीक हुआ तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये दुर्घटना कितनी बड़ी हो सकती है.
भोपाल गैस त्रासदी से भी नहीं लिया सबक
1984 में 2-3 दिसंबर की रात को भोपाल में हुई उस घटना को कोई कैसे भूल सकता है, जिसने करीब 16,000 लोगों की जान ले ली और 40,000 लोगों को घायल किया. मरने वालों में 8000 लोग तो हादसे के दो हफ्तों में ही मर गए थे और बाकी 8000 लोगों की मौत अब तक उसी गैस की वजह से हुई बीमारी की वजह से हो चुकी है. इस हादसे से पहले Dow Chemical और nion Carbide लगातार इस बात से मना करते रहे थे कि Methyl Isocyanate गैस से लोगों की सेहत पर कोई असर पड़ता है. लेकिन जब गैस लीक हुई तो उसने तबाही मचा दी. तंबाकू उद्योग तो दशकों तक लोगों से इस बात के सबूत मांगता रहा कि उनके गले या फेफड़ों के कैंसर का कारण सिगरेट है, जिसका कोई सबूत नहीं दे सका. कुछ इन्हीं सब की तरह सालों से स्टरलाइट भी यही साबित करने की कोशिश कर रहा है कि इस फैक्ट्री की वजह से किसी को कोई नुकसान नहीं होगा.
अब एक नजर डालिए इसके बुरे प्रभाव पर
स्टरलाइट के अधिकारी तो लगातार यही कहते रहे हैं कि इस फैक्ट्री से किसी की सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन सच कुछ और ही है. 2008 में तिरुनेलवेल्ली मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट ने एक रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए थे. स्टडी से कुछ बातें सामने आईं जो स्टरलाइट पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है.
- कुमारेड्डियापुरम और थेर्कु वीरप्पनडियापुरम में जमीन के पानी में आयरन की मात्रा सामान्य से अधिक हो चुकी है. यह मात्रा पीने के पानी के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स के द्वारा तय मात्रा से करीब 17 से 20 गुनी अधिक पाई गई.
- फैक्ट्री के आस-पास के लोगों में सांस की बीमारी के 13.9 फीसदी मामले सामने आए, जबकि जिन जगहों पर इंडस्ट्री नहीं हैं, वहां के लोगों में ऐसी कोई दिक्कत देखने को नहीं मिली.
- जो लोग फैक्ट्री के करीब रहते हैं, उनमें से बहुत सारे लोगों में आंख, नाक और गले की बीमारियां या दिक्कतें पाई गईं, जिसकी वजह फैक्ट्री के कारण फैला प्रदूषण है.
- जो महिलाएं फैक्ट्री के आस-पास के इलाकों में रहती हैं, उनके मासिक धर्म में बहुत सारी अनियमितताएं पाई गईं.
अगर स्टरलाइट खतरनाक नहीं, तो 3 राज्यों से ठुकराया क्यों गया?
भले ही कंपनी इस बात की दुहाई देती रहे कि कंपनी की वजह से लोगों की सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन इससे पानी और हवा दोनों ही प्रदूषित हो रहे हैं. अगर इससे कोई नुकसान नहीं होता तो आखिर 3 राज्यों ने स्टरलाइट को ठुकरा क्यों दिया? तमिलनाडु में इस फैक्ट्री के लगने से पहले यह फैक्ट्री गुजरात, गोवा और महाराष्ट्र में अपना प्लांट लगाने की इजाजत मांग चुकी थी, लेकिन इजाजत मिली नहीं. मार्च 2013 में भी प्लांट से गैस लीक हुई थी, जिसकी वजह से सैकड़ों लोग बीमार हो गए थे. इसके बाद 29 मार्च को तमिलनाडु प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने इसे बंद करने का आदेश दे दिया था. हालांकि, कुछ समय बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने कंपनी को हरी झंडी दे दी. आपको बता दें कि मद्रास हाई कोर्ट ने 2010 में ही प्लांट को बंद करने के आदेश दे दिए थे, क्योंकि उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर प्लांट लगाया था. बाद में ऑपरेशन फिर शुरू हो गया. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्लांट पर प्रदूषण करने के लिए 100 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया. इतना ही नहीं, नेशनल ट्रस्ट ऑफ क्लीन एन्वाइरनमेंट, एमडीएमके नेता वाइको और कम्युनिस्ट पार्टियों ने फैक्ट्री के खिलाफ मुकदमे दर्ज करा रखे हैं.
जानिए क्या है स्टरलाइट?
स्टरलाइट वेदांता ग्रुप की एक कंपनी है, जिसका मुख्यालय मुंबई में है. इसके मालिक हैं बिहार के पटना में रहने वाले अनिल अग्रवाल. वेदांता दुनिया की सबसे बड़ी खनन कंपनियों में से एक है, जिसे अनिल अग्रवाल ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर कराया है. फिलहाल इस कंपनी के दो प्लांट हैं, एक तमिलनाडु के तूतीकोरिन में है और दूसरा दादरा नागर हवेली की राजधानी सिलवासा में है. सिर्फ तूतीकोरिन वाले प्लांट से ही हर साल करीब चार लाख टन तांबे का उत्पादन किया जाता है.
इन सबसे एक बात तो साफ हो जाती है कि लोगों ने जो प्रदर्शन किया था वह बेवजह नहीं था, बल्कि जायज था. फिलहाल तो यह प्लांट बंद पड़ा है, लेकिन जैसा हमेशा बंद होने के कुछ समय बाद प्लांट चल पड़ा, वैसे ही यह प्लांट दोबारा चल पड़े तो हैरान होने वाली बात नहीं होगी. बंद प्लांट के अंदर रखा सल्फ्यूरिक एसिड अभी तो मामूली लीक हुआ है, लेकिन हो सकता है कि आने वाले समय में कोई बड़ा हादसा हो जाए. हालांकि, सल्फ्यूरिक एसिड के स्टॉक को हटाने की बात तो कही गई है, लेकिन उस पर कब अमल होगा और यह कारगर होगा भी या नहीं, अभी ये कहा नहीं जा सकता. जिस तरह से लोगों के प्रदर्शन में पुलिस ने गोलीबारी की उसे लेकर भी जांच चल रही है.
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