अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान ने अमेरिकी और नाटो सेना की पूरी तरह वापसी से पहले ही कब्जा कर लिया है. तालिबान (Taliban) के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होते ही लोगों के बीच दहशत का माहौल बना हुआ है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जे के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफगानी महिलाओं के लिए चिंता जाहिर की जा रही है. महिलाओं में तालिबान का खौफ किस कदर भरा हुआ है, इसका अंदाजा काबुल एयरपोर्ट के सामने आए वीडियो से आसानी से समझा जा सकता है. देश छोड़ने की कोशिश करने वाले हजारों-हजार पुरुषों की भीड़ में केवल मुठ्ठीभर महिलाएं ही हैं. और, उन पर भी तालिबान का खौफ नजर आ रहा है. ये सभी महिलाएं पूरी तरह से अफगानी बुर्का और हिजाब में ढंकी नजर आ रही हैं. दरअसल, सुबह एक खबर सामने आई थी कि तालिबानी लड़ाकों ने काबुल एयरपोर्ट पर उन महिलाओं को गोली मार दी, जिन्होंने हिजाब नहीं पहना था. हालांकि, तालिबान ने सत्ता में वापसी से पहले कहा था कि वह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करेगा.
लेकिन, तालिबान के वादों और जमीनी हकीकत में जमीन आसमान का अंतर नजर आ रहा है. कहना गलत नहीं होगा कि तालिबान की वापसी अफगान महिलाओं के लिए 9/11 जैसी ही है. जिस तरह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में आतंकियों के प्लेन क्रैश से किसी को भागने का मौका नहीं मिला था. ठीक उसी तरह अफगान महिलाओं को भी तालिबान कोई मौका नहीं दे रहा है. बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा था कि तालिबानी सरकार में महिलाओं को काम करने और पढ़ाई करने की आज़ादी होगी. सुहैल शाहीन ने भरोसा जताया था कि इस बार के तालिबानी शासन में महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा. इस पूरे इंटरव्यू में जो बात गौर करने लायक थी, वो ये थी कि तालिबान प्रवक्ता की ओर से लगातार इस्लामिक कानून और शरियत के अनुसार काम करने की बातों को दोहराया गया. लेकिन, काबुल एयरपोर्ट पर जो हुआ है. उसके बाद अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है कि भविष्य में अफगान महिलाओं की स्थिति क्या होने वाली है?
अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान ने अमेरिकी और नाटो सेना की पूरी तरह वापसी से पहले ही कब्जा कर लिया है. तालिबान (Taliban) के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होते ही लोगों के बीच दहशत का माहौल बना हुआ है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जे के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफगानी महिलाओं के लिए चिंता जाहिर की जा रही है. महिलाओं में तालिबान का खौफ किस कदर भरा हुआ है, इसका अंदाजा काबुल एयरपोर्ट के सामने आए वीडियो से आसानी से समझा जा सकता है. देश छोड़ने की कोशिश करने वाले हजारों-हजार पुरुषों की भीड़ में केवल मुठ्ठीभर महिलाएं ही हैं. और, उन पर भी तालिबान का खौफ नजर आ रहा है. ये सभी महिलाएं पूरी तरह से अफगानी बुर्का और हिजाब में ढंकी नजर आ रही हैं. दरअसल, सुबह एक खबर सामने आई थी कि तालिबानी लड़ाकों ने काबुल एयरपोर्ट पर उन महिलाओं को गोली मार दी, जिन्होंने हिजाब नहीं पहना था. हालांकि, तालिबान ने सत्ता में वापसी से पहले कहा था कि वह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करेगा.
लेकिन, तालिबान के वादों और जमीनी हकीकत में जमीन आसमान का अंतर नजर आ रहा है. कहना गलत नहीं होगा कि तालिबान की वापसी अफगान महिलाओं के लिए 9/11 जैसी ही है. जिस तरह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में आतंकियों के प्लेन क्रैश से किसी को भागने का मौका नहीं मिला था. ठीक उसी तरह अफगान महिलाओं को भी तालिबान कोई मौका नहीं दे रहा है. बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा था कि तालिबानी सरकार में महिलाओं को काम करने और पढ़ाई करने की आज़ादी होगी. सुहैल शाहीन ने भरोसा जताया था कि इस बार के तालिबानी शासन में महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा. इस पूरे इंटरव्यू में जो बात गौर करने लायक थी, वो ये थी कि तालिबान प्रवक्ता की ओर से लगातार इस्लामिक कानून और शरियत के अनुसार काम करने की बातों को दोहराया गया. लेकिन, काबुल एयरपोर्ट पर जो हुआ है. उसके बाद अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है कि भविष्य में अफगान महिलाओं की स्थिति क्या होने वाली है?
विधवा महिलाओं और लड़कियों की लिस्ट मांगने वाला तालिबान
बीती 1 मई से अमेरिकी और नाटो सेना ने अफगानिस्तान छोड़ने की ओर कदम बढ़ा दिए थे. इसके कुछ ही दिनों बाद तालिबान का कहर लोगों पर बरसने लगा. तालिबानी लड़ाकों ने सबसे पहले सीमांत इलाकों को अपना निशाना बनाना शुरू किया. द सन की एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के कब्जे वाले इलाकों में तालिबान कल्चरल कमीशन ने इमामों और मौलवियों को 15 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों और 45 साल से कम उम्र की विधवा महिलाओं की लिस्ट बनाकर देने का आदेश दिया था. पत्र में कहा गया था कि इन महिलाओं और लड़कियों की शादी तालिबानी लड़ाकों से कराकर उन्हें पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाया जाएगा. अगर इन लड़कियों और महिलाओं में कोई गैर-मुस्लिम होगी, तो उसका धर्मांतरण कर मुस्लिम बनाया जाएगा. ये लेटर पिछले महीने सामने आया था. जब तालिबान का केवल सीमांत इलाकों पर ही कब्जा कर पाया था. तालिबान की ओर से अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए आतंकवादियों को लड़कियों और महिलाओं से शादी कराने की पेशकश दी जाती रही है. तालिबान की नजर में महिलाओं की क्या जगह है, ये आसानी से समझा जा सकता है.
तालिबान की असली तस्वीर दिखाता महिला फिल्ममेकर का खत
अफगानिस्तान में महिलाओं के साथ किस कदर ज्यादतियां हो रही हैं, इसका भान आपको सहरा करीमी नाम की अफगान फिल्ममेकर के उस ओपन लेटर से हो जाएगा, जिसे बॉलीवुड के फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने शेयर किया है. सहरा करीमी अफगान फिल्म ऑर्गनाइजेशन की पहली महिला चेयरपर्सन हैं. ओपन लेटर में सहरा करीमी ने लिखा कि मैं इसे टूटे दिल के साथ लिख रही हूं और इस गहरी उम्मीद के साथ कि आप मेरे खूबसूरत लोगों को, खासकर फिल्ममेकर्स को तालिबान से बचाने में शामिल होंगे. तालिबान ने कई प्रांतों पर कब्जा कर लिया है. उन्होंने हमारे लोगों का नरसंहार किया, कई बच्चों का अपहरण किया. कई लड़कियों को चाइल्ड ब्राइड के रूप में अपने आदमियों को बेच दिया. तालिबान ने एक महिला की हत्या केवल उसकी पोशाक के लिए कर दी. शायद ही कोई इस बात से इनकार कर सके कि अफगान महिलाओं और उनके परिवारों में ऐसी घटनाओं से दहशत नहीं फैलेगी.
सहरा करीमी का ये लेटर अमेरिका से लेकर संयुक्त राष्ट्र के मुंह पर तमाचे जैसा है, जो केवल अफगान लोगों के अधिकारों को लेकर बयान जारी करने तक सीमित हो चुके हैं. सहरा करीमी लिखती हैं कि हजारों लोग शरणार्थी कैंप में हैं. छोटे बच्चे को दूध नहीं मिल रहा है और वो दम तोड़ रहे हैं. ये एक मानवीय त्रासदी है और फिर भी दुनिया खामोश है. वो लिखती हैं कि तालिबान की सत्ता के दौरान स्कूलों में लड़कियों की संख्या शून्य थी. पिछले कुछ सालों में ये बदला और स्कूलों में 90 लाख से ज्यादा अफगान लड़कियां पहुंचीं. तालिबान द्वारा जीते गए तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात के विश्वविद्यालय में 50% महिलाएं थीं. ये अविश्वसनीय उपलब्धियां हैं, जिन्हें दुनिया नहीं जानती. लेकिन, बीते कुछ हफ्तों में तालिबान ने ये सब तबाह कर दिया. कई स्कूलों बर्बाद कर दिया गया और 20 लाख लड़कियों को फिर से घरों में कैद कर दिया गया.
क्या होगा अफगान महिलाओं का भविष्य
अमेरिका के अफगानिस्तान में कदम रखने से पहले तालिबान शासन में महिलाओं और लड़कियों के हालात बहुत खराब थे. ऐसा लगता था कि उस दौरान अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए मानवाधिकार नाम की कोई चीज मौजूद ही नहीं थी. लड़कियों को शिक्षा और नौकरी के अधिकार नहीं थे. महिलाओं और लड़कियों को बिना बुर्का पहने और पुरुष संरक्षक या महरम के बिना घर से बाहर निकलने पर सरेआम कोड़े मारने की सजा दी जाती थी. हालांकि, अफगानिस्तान में हमेशा ऐसे हालात नहीं थे. 1970 से पहले वहां पर महिलाओं को हर तरह की आजादी थी. शिक्षा, नौकरी और पहनावे जैसी चीजों पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी. लेकिन, इस्लामिक उग्रवादियों, मुजाहिदीन और तालिबान के उदय के साथ वहां धीरे-धीरे महिलाओं के अधिकार खत्म होते चले गए.
इस बार तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों को लेकर अपनी सोच बदलने का दावा किया है. लेकिन, हालिया घटनाओं को देखें, तो स्थिति साफ नजर आती है कि तालिबान के ये तमाम दावे केवल अफगानिस्तान की सत्ता पाने के लिए ढकोसला भर थे. बीती सदी में अफगानी महिलाओं ने तालिबानी सत्ता का जो भयावह और क्रूर चेहरा देखा था, वो लौट आया है. लेकिन, इतना सब होने के बावजूद दुनियाभर की महाशक्तियां चुप्पी साधे बैठी हैं. वहीं, पाकिस्तान, ईरान और चीन जैसे मौकापरस्त देश कह रहे हैं कि अफगानी लोगों ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया है.
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