भारत और अमेरिका समेत दुनिया के कई इलाकों में इन दिनों कड़ाके की सर्दी पड़ रही है. इसके लिए मोटे तौर पर आर्कटिक ब्लास्ट को जिम्मेदार माना जा रहा है. कई जगहों पर तो पारा ज़ीरो से 50 डिग्री तक नीचे पहुंच गया है. ऐसे मौसम को देखकर अक्सर लोग सोचते हैं कि global warming का कोई खतरा नहीं है, उलटा ये तो ग्लोबल कूलिंग हो रही है. लेकिन यह बात गलत है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ये बेमौसम बर्फबारी भी दरअसल धरती के गर्म होने यानी global warming का ही नतीजा है.
2018 रहा चौथा सबसे गर्म साल
नासा और अमेरिकी एजेंसी नेशनल ओशिनोग्राफिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने इसी महीने एक आंकड़ा जारी किया है जिसके मुताबिक 2018 इस धरती का चौथा सबसे गर्म साल रहा. ये अचानक नहीं हुआ है. बाकी सबसे गर्म साल भी इसी दशक के ही हैं. 2016, 2015 और 2017 बीते साल से भी अधिक गर्म थे. कुल मिलाकर धरती का तापमान लगातार बढ़ ही रहा है. 2014 से अब तक के 5 साल धरती पर अब तक सबसे गर्म रहे हैं. धरती के तापमान का रिकॉर्ड रखने का काम 1880 में शुरू हुआ था. अगर तब से तुलना करें तो आज हम औसतन करीब 0.8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान में रह रहे हैं. इसी का नतीजा है कि ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है. हिमालय के ग्लेशियर खत्म हो रहे हैं. अमेरिका से लेकर भारत तक जंगलों में आग की घटनाएं कई गुना बढ़ चुकी हैं. कहीं बहुत अधिक सर्दी तो कहीं भयानक गर्मी पड़ रही है. अभी ऑस्ट्रेलिया में आई भयानक बाढ़ हो या कुछ समय केरल में हुई तबाही, ये सब सीधे तौर पर धरती पर बढ़ रही गर्मी से जुड़े हुए हैं.
आने वाले पांच साल और भी गर्म!
यूएन के वर्ल्ड...
भारत और अमेरिका समेत दुनिया के कई इलाकों में इन दिनों कड़ाके की सर्दी पड़ रही है. इसके लिए मोटे तौर पर आर्कटिक ब्लास्ट को जिम्मेदार माना जा रहा है. कई जगहों पर तो पारा ज़ीरो से 50 डिग्री तक नीचे पहुंच गया है. ऐसे मौसम को देखकर अक्सर लोग सोचते हैं कि global warming का कोई खतरा नहीं है, उलटा ये तो ग्लोबल कूलिंग हो रही है. लेकिन यह बात गलत है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ये बेमौसम बर्फबारी भी दरअसल धरती के गर्म होने यानी global warming का ही नतीजा है.
2018 रहा चौथा सबसे गर्म साल
नासा और अमेरिकी एजेंसी नेशनल ओशिनोग्राफिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने इसी महीने एक आंकड़ा जारी किया है जिसके मुताबिक 2018 इस धरती का चौथा सबसे गर्म साल रहा. ये अचानक नहीं हुआ है. बाकी सबसे गर्म साल भी इसी दशक के ही हैं. 2016, 2015 और 2017 बीते साल से भी अधिक गर्म थे. कुल मिलाकर धरती का तापमान लगातार बढ़ ही रहा है. 2014 से अब तक के 5 साल धरती पर अब तक सबसे गर्म रहे हैं. धरती के तापमान का रिकॉर्ड रखने का काम 1880 में शुरू हुआ था. अगर तब से तुलना करें तो आज हम औसतन करीब 0.8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान में रह रहे हैं. इसी का नतीजा है कि ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है. हिमालय के ग्लेशियर खत्म हो रहे हैं. अमेरिका से लेकर भारत तक जंगलों में आग की घटनाएं कई गुना बढ़ चुकी हैं. कहीं बहुत अधिक सर्दी तो कहीं भयानक गर्मी पड़ रही है. अभी ऑस्ट्रेलिया में आई भयानक बाढ़ हो या कुछ समय केरल में हुई तबाही, ये सब सीधे तौर पर धरती पर बढ़ रही गर्मी से जुड़े हुए हैं.
आने वाले पांच साल और भी गर्म!
यूएन के वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्लूएमओ) ने हाल ही में एक बयान जारी किया है जिसके मुताबिक- अगर मौजूदा ट्रेंड जारी रहा तो इस सदी के अंत तक धरती का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका होगा. इसी संस्था ने पिछले साल अनुमान जताया था कि साल 2030 से 2050 तक तापमान में ये बढ़ोतरी 1.5 डिग्री तक होगी. ब्रिटिश मौसम विभाग के मुताबिक धरती का तापमान बढ़ने का क्रम अगले पांच साल निश्चित तौर पर जारी रहेगा. इस दौरान 2016 का सबसे गर्म साल का रिकॉर्ड भी टूटना तय है. हो सकता है कि वो साल यही यानी 2019 हो. यानी कम अवधि और लंबी अवधि के आंकड़े एक ही तरफ इशारा कर रहे हैं कि धरती लगातार गर्म हो रही है और खतरे को समय रहते नहीं समझा गया तो हालात बेकाबू हो सकते हैं.
समुद्र के अंदर सबसे बुरा असर
अगर आपको समुद्र के अंदर गोताखोरी यानी स्कूबा डाइविंग के लिए जाने का मौका मिले तो वहां अपने ट्रेनर से एक सवाल पूछिएगा- क्या समुद्र बदल रहा है? अगर वो स्कूबा ट्रेनर 5-10 साल से ये काम कर रहा होगा, तो वो आपको बताएगा कि कैसे समुद्र के अंदर की खूबसूरत रंग-बिरंगी दुनिया तहस-नहस होती जा रही है. पानी के अंदर की चट्टानें यानी कोरल रीफ गायब हो रही हैं. नरम चट्टान जैसी इन आकृतियों को समुद्री जीव ही पैदा करते हैं और बाद में ये दूसरे छोटे जीवों का घर बन जाते है. हजारों-लाखों साल में ऐसी ही कोई चट्टान बड़ी होते-होते एक द्वीप की शक्ल भी ले सकती है. लेकिन तीन चौथाई जल से ढंकी हमारी धरती पर थल यानी जमीन पैदा करने की यह प्रक्रिया बंद हो चुकी है. धरती पर बढ़ रही गर्मी यानी ग्लोबल वॉर्मिंग का ये शायद पहला असर है जिसे हम सीधे तौर पर देख सकते हैं.
दुनिया भर के देश इस बात को लेकर मंथन कर रहे हैं कि धरती का गर्म होना कैसे रोका जाए. कुछ उपायों पर उनमें सहमति बनी भी है और अभी बहुत कुछ होना बाकी है. लेकिन एक सामान्य व्यक्ति के तौर पर हम भी ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने में कोई योगदान दे सकते हैं? क्या अपनी आबोहवा और धरती को बचाने की जिम्मेदारी हम कुछ सरकारों और उनकी एजेंसियों के भरोसे छोड़कर चुपचाप बैठ सकते हैं?
एक आम व्यक्ति क्या कर सकता है?
करीब 750 करोड़ आबादी वाली इस दुनिया को बचाने की जिम्मेदारी निश्चित रूप से पूरे विश्व समुदाय की है, लेकिन हर सामान्य व्यक्ति अगर अपना योगदान कर दे तो भी आश्चर्यजनक नतीजे लाए जा सकते हैं. पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एनआरडीसी ने कुछ समय पहले इसके लिए सुझावों की एक लिस्ट जारी की थी. संस्था का अनुमान है कि अगर दुनिया की 25 फीसदी आबादी ने भी इन सुझावों पर अमल कर लिया तो ग्लोबल वॉर्मिंग की मौजूदा रफ्तार पर रोक लग जाएगी. हमारे किचन से लेकर ड्राइंग रूम तक में ऐसा बहुत कुछ है जिससे हम अपना योगदान दे सकते हैं. उदाहरण के तौर पर:
1. अगर हमारे पास छत या कोई खुली जगह है तो सोलर पैनल लगवाएं. इससे आपका बिजली का बिल कम होगा.
2. मकान गर्म या ठंडा रखने पर सबसे ज्यादा घरेलू बिजली खर्च होती है. इसका इस्तेमाल जितना हो सके कम करें.
3. रेफ्रीजिरेटर, वॉशिंग मशीन और एसी जैसे सामान एनर्जी एफिशिएंट ही लें. इनकी शुरुआती कीमत भले ज्यादा हो, लेकिन बिजली की बचत से आपके पैसे वसूल हो जाते हैं.
4. पानी की बर्बादी रोककर आप सबसे जरूरी योगदान दे सकते हैं. घरों तक पानी पहुंचाने में मोटर इस्तेमाल होती है, जिससे कार्बन प्रदूषण भी होता है.
5. रेडी टु ईट फूड न खाएं. इन्हें बनाने, प्रॉसेसिंग, पैकेजिंग और शिपिंग में जितनी ऊर्जा खपत होती है उसके 10 फीसदी खर्च में आप खाना खुद बना सकते हैं.
6. घरों में रौशनी के लिए एलईडी बल्ब इस्तेमाल करें.
7. स्विचऑफ करने की आदत डालें. घरों में बिजली से चलने वाले कई सामान हम स्टैंडबाई मोड में रखते हैं. बिजली के खर्च की ये एक बड़ी वजह है.
8. हाइब्रिड या इलेक्ट्रिक कार इस्तेमाल करें. अगर तेल से चलने वाली गाड़ी लेना जरूरी हो तो ध्यान रखें कि वो फ्यूल एफिशिएंट हो.
9. 40 सेकेंड से अधिक की रेडलाइट पर अपनी कार का इंजन बंद करें.
10. सबसे बड़ी बात यह कि अपने दोस्तों और परिवारवालों को बताएं कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं. इससे उन्हें भी प्रेरणा मिलेगी और जाने-अनजाने वो इस मुहिम का हिस्सा बन जाएंगे.
ग्लोबल वॉर्मिंग के आंकड़े पढ़कर चौंकने के दिन अब खत्म हो चुके हैं. खतरा अब बेहद करीब है. हममें से कोई भी इससे अछूता नहीं रहने वाला है. भारत जैसा देश जो तीन तरफ से समुद्र से घिरा है उसके लिए ये खतरा उतना ही बड़ा है जितना किसी द्वीप देश के लिए. इसलिए जरूरी है कि एक व्यक्ति के तौर पर हम अपना योगदान आज ही शुरू कर दें. हो सकता है धीरे-धीरे करोड़ों लोग आपकी तरह सोचना शुरू कर दें और वाकई हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक बड़े खतरे से बचा ले जाएं.
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