प्रिय शुचि!
ऐसे कई श्रीकांत तिवारी हैं, जो प्यार जता नहीं पाते हैं. कह नहीं पाते हैं. एहसास भी शायद नहीं दिला पाते हैं. लेकिन उनकी छोटी छोटी बहुत सी बातें हैं, जो एहसास के स्तर पर प्यार से भरी होती हैं. लेकिन वक़्त इस क़दर से बदलता जा रहा है कि, जब तक प्यार का कोई बड़ा जश्चर नहीं दिखाया जायेगा, शायद सामने वाले के दिल तक प्यार का एहसास नहीं पहुंचेगा. महानगरों में ये बातें बहुत सामान्य होती जा रही हैं. तिवारी जैसे लोग मदर्स डे, फादर्स डे, डॉटर्स डे में शायद अभी भी यक़ीन न रखते हों, सम्मान लेकिन पूरा करते हैं, रिश्तों का. परंतु ये सब डेज़ मानने का कल्चर सभी महानगरों से शुरू हुआ है और सामान्य शहरों तक भी पहुंचा है तो तमाम तिवारियों को बदलने की अब ज़रूरत तो है.
शुचि, श्रीकांत तिवारी के स्वभाव के बारे में मुझे लगता है तुम्हें सब मालूम तो शादी के पहले से ही रहा होगा और बाक़ी चीज़ें धीरे धीरे बेशक बाद में जानी होंगी तुमने. एक बात मैं कह सकता हूं कि तिवारी तुम्हें प्यार बहुत करता है. क्योंकि देखो न जब वो बहुत निराश हताश होता है, तो वो तुम्हें ही कॉल करता है.
ये हमेशा होता है कि दुःख के पलों में आप सिर्फ़ उसी को सबसे पहले याद करते हैं जिसे आप सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं. इसलिए तिवारी तुमसे बात करता है, रोते रोते ख़ुद को रोक लेता है. इस स्थिति की वजह ये भी हो सकती है कि उसे रोता सुनकर तुम शायद दुःखी हो जाओगी इसलिए वो तुम्हारे लिए, बच्चों के लिए ख़ुद को संभाल लेता है खुल कर नहीं रोता.
अच्छा एक बात और बताओ, जब तिवारी ने रोते रोते कॉल किया उस दिन और उसका कॉल कट गया तो क्या तुमने कॉल बैक करके उससे पूछा कि वो क्यों रोने लगा था? इस बात...
प्रिय शुचि!
ऐसे कई श्रीकांत तिवारी हैं, जो प्यार जता नहीं पाते हैं. कह नहीं पाते हैं. एहसास भी शायद नहीं दिला पाते हैं. लेकिन उनकी छोटी छोटी बहुत सी बातें हैं, जो एहसास के स्तर पर प्यार से भरी होती हैं. लेकिन वक़्त इस क़दर से बदलता जा रहा है कि, जब तक प्यार का कोई बड़ा जश्चर नहीं दिखाया जायेगा, शायद सामने वाले के दिल तक प्यार का एहसास नहीं पहुंचेगा. महानगरों में ये बातें बहुत सामान्य होती जा रही हैं. तिवारी जैसे लोग मदर्स डे, फादर्स डे, डॉटर्स डे में शायद अभी भी यक़ीन न रखते हों, सम्मान लेकिन पूरा करते हैं, रिश्तों का. परंतु ये सब डेज़ मानने का कल्चर सभी महानगरों से शुरू हुआ है और सामान्य शहरों तक भी पहुंचा है तो तमाम तिवारियों को बदलने की अब ज़रूरत तो है.
शुचि, श्रीकांत तिवारी के स्वभाव के बारे में मुझे लगता है तुम्हें सब मालूम तो शादी के पहले से ही रहा होगा और बाक़ी चीज़ें धीरे धीरे बेशक बाद में जानी होंगी तुमने. एक बात मैं कह सकता हूं कि तिवारी तुम्हें प्यार बहुत करता है. क्योंकि देखो न जब वो बहुत निराश हताश होता है, तो वो तुम्हें ही कॉल करता है.
ये हमेशा होता है कि दुःख के पलों में आप सिर्फ़ उसी को सबसे पहले याद करते हैं जिसे आप सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं. इसलिए तिवारी तुमसे बात करता है, रोते रोते ख़ुद को रोक लेता है. इस स्थिति की वजह ये भी हो सकती है कि उसे रोता सुनकर तुम शायद दुःखी हो जाओगी इसलिए वो तुम्हारे लिए, बच्चों के लिए ख़ुद को संभाल लेता है खुल कर नहीं रोता.
अच्छा एक बात और बताओ, जब तिवारी ने रोते रोते कॉल किया उस दिन और उसका कॉल कट गया तो क्या तुमने कॉल बैक करके उससे पूछा कि वो क्यों रोने लगा था? इस बात की शिकायत तिवारी ने तुमसे नहीं की? अब बताओ क्या ये प्यार नहीं है तिवारी का?
शुचि, मुझे नहीं लगता कि श्रीकांत तिवारी तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी कर पायेगा. वो तुमसे भले नहीं अपना प्यार जता पाता है लेकिन बाहर अपने दोस्तों के बीच तुम्हारा ज़िक्र किसी न किसी बहाने से ले आता है. वो मिस तो करता है तुम्हें.ये भी सच है कि मूर्खता तो तिवारी की ही है कि वो प्यार जताना सीखे, जैसा तुम उससे चाहती हो.
हर इंसान को अपने खोल से बाहर आकर दूसरे को 'क्या' 'कैसे पसंद आएगा' का ख़याल रखना ही चाहिए, तिवारी उस मामले में बहुत कच्चा है. अक्सर अपने काम के जुनून में खोए रहने वाले व्यक्ति अपने इर्द गिर्द के प्यारे और भावुक लोगों को अनजाने में ही इग्नोर कर जाते हैं.
तिवारी से भी हो रहा है, हालांकि वो नौकरी भी बदलता है, कोशिश करता है की जैसा तुम सोचती हो, चाहती हो वो वैसा बन जाये लेकिन उससे हो नहीं पा रहा है. तुम कोशिश कर रही हो उसे समझाने की लेकिन फिर भी कुछ न कुछ उससे छूट नहीं पाता है. तुम्हारी बात मानता है मनोचिकित्सक के पास भी जाता है सुनता भी है वो उसे.
लेकिन बहुत व्यक्तिगत बात शुरू होने पर वो झल्ला जाता है. यही व्यक्तिगत जो है ना वो तिवारी का स्वभाव है. प्लीज़ उसे थोड़ा समय दो, समझेगा वो ज़रूर थोड़ा तुम भी उसे नए सिरे से समझो मैं उससे भी बात करूंगा की वो तुम्हें नए तरीके से समझे. धृति के किडनैप होने पर जब तिवारी के फ़ोन पर तुम्हारे दोस्त का कॉल आता है और उस फ़ोन से तुम बात करती हो और जब तिवारी घर आता है तो वो तुम्हारे दोस्त से हाथ मिलाता है.
मुझे नहीं लगता कि वो चिढ़ा था इस बात को लेकर की तुम्हारा दोस्त घर पर कैसे कब क्यों आया वगैरह वगैरह... और हां वो जो मनोचिकित्सक है न उससे कहीं ज़्यादा अच्छा JK है, वो तुम दोनों का अच्छा दोस्त भी है, वो तुम दोनों को वापस जोड़ देगा और तुम दोनों को उसकी बात माननी चाहिए.
बाक़ी थोड़ा टाइम तुम दोनों बच्चों को ज़रूर दो तुम दोनों के ईगो के चलते बच्चे अपना बचपन नहीं जी पा रहे हैं. तुम अपने ऑफिस में बिज़ी रही और तिवारी बाहर रहा इस बीच धृति को कब कैसे कोई अपने जाल में उलझा ले गया ध्यान नहीं रहा, इसमें तुम दोनों की ग़लती है.
शुचि थोड़ा समय तुम ख़ुद को भी दो, तुम भी झल्लाती हो तिवारी पर ज़्यादा, थोड़ा प्यार से बात करोगी तो सुधरेगा वो. और तिवारी प्लीज़ यार अपनी अकड़ थोड़ी कम करो, होगे तुम बड़े तुर्रमखां, रहते होगे व्यस्त बहुत, होगी दिमाग में देश के प्रति ज़िम्मेदारी लेकिन तिवारी अगर बीवी, बच्चे, घर परिवार सुखी न हुए तो व्यक्तिगत जीवन में क्या हासिल...
थोड़ा उनका भी ख़याल करो, शुचि बुरी नहीं है उसने बच्चों पर बहुत ध्यान दिया है. घर, किचन संभाला है अब थोड़ी उदासी है उसके आस पास तो थोड़ा तुम रोमांटिक क्यों नहीं बनते, पढ़ तो रहे थे वो लाल वाली रोमांटिक किताब जो मनोचिकित्सक ने तुम्हें दी थी, थोड़ा उसके हिसाब से चल लो.
कभी कभी असली रिश्ते बचाने के लिए नकली व्यवहार भी करना पड़ता है. कर लो यार, ये बदलते वक्त की ज़रूरतें हैं. शुचि के लिए तुम अपनी बेहद ख़राब आवाज़ में ही सही गाने वाने सुनाना सीखो, बेतुकी ही सही लेकिन शुचि के लिए कविता और शायरी करके देखो, तुम्हारी इसी बेवकूफ़ी पर देखना शुचि हंस देगी, तिवारी उम्मीद है यार बात बन जायेगी.
शुचि की आंखें भरी भरी सी महसूस होती हैं मुझे, ऐसा लगता है कि तुम थोड़ा पिघल जाओगे तो उसकी आंखों से मन में भरा गुबार निकल जायेगा. तिवारी जैसे भी हो शुचि को संभाल लो यार. और शुचि तुम भी सुनो अब एकदम से ही तिवारी से शाहरुख खान टाइप रोमांटिक हो जाने की उम्मीद न करना, थोडा तुम भी अकड़ कम करो तुम्हारा भी मुंह फूला फूला अच्छा थोड़े ही लगता है, ज़रा तुम भी थोड़ा समझो, बाक़ी तिवारी से मैं भी बात करूंगा.
और प्लीज़ तुम लोग अलग वलग मत हो जाना यार. और हां जितनी फ़िक्र तिवारी की है उतनी ही तुम्हारी भी है शुचि. बाक़ी हम किसी काम आ सकें तो बताओ हमें. शुचि, तिवारी की तरफ़ से थोड़ी बात इसलिए भी की है मैंने क्योंकि थोड़ा बहुत तिवारी मेरे अंदर भी है. और मैं पुरुषों से ज़्यादा समझदार महिलाओं को पाता हूं.
तुम्हारे मामले में बिल्कुल सच है कि तुम श्रीकांत से ज़्यादा समझदार हो. तुम लोगों का सब सही हो जाये यही कामना है मेरी. वैसे तुम लोग अपने बच्चों को श्री के पेरेंट्स के पास या तुम्हारे पैरेंट्स के पास कुछ दिन छोड़ कर कहीं पहाड़ों पर घूमने क्यों नहीं निकल जाते हो, जल्दी प्लान बना लो, तिवारी तो कंजूस है सोचेगा नहीं इस बारे में.
मैं ही तुम लोगों के टिकट होटल और खाने पीने का इंतज़ाम करता हूं. चलो जल्दी मिलते हैं शुचि और श्रीकांत तिवारी, दोनों एक दूसरे का ख़याल रखना.
तुम दोनों का दोस्त
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