सोशल मीडिया आज ज्यादातर लोगों के जीवन में गहरी पैठ बना चुका है. तकरीबन हर व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपने विचार, खुद से जुड़ी तस्वीरें, घूमने-फिरने की जगहों की जानकारियां समेत लगभग हर चीज शेयर करता है. भारत में अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई थी. आजकल तो सोशल मीडिया पर लोग अमूमन कहां जा रहे हैं, कहां खाना खा रहे हैं, क्या कर रहे हैं जैसी सारी चीजें शेयर करते रहते हैं. बिना इस बात को जाने और फिक्र करते हुए की ये सभी चीजें उनकी निजता यानी प्राइवेसी में अप्रत्यक्ष रूप से दखल दे रही हैं.
भारत में लोगों को 'मुफ्त यानी फ्री' की चीजें बहुत पसंद आती हैं. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वाट्सएप, जीमेल जैसी दर्जनों एप हैं, जो 'फ्री' हैं. लेकिन, ये केवल नाम की ही फ्री हैं. अगर कोई प्ले स्टोर से लूडो जैसे गेम का एप भी डाउनलोड कर इंसटॉल करता है, तो उसे दस तरह की परमीशन देनी पड़ती हैं. ये एप इंस्टॉल होने से पहले ही आपके कैमरे, माइक्रोफोन, लोकेशन, कॉनटैक्ट्स, मैसेज, स्टोरेज और मीडिया जैसी तमाम चीजों की परमीशन लेते हैं. असल में इन एप्स के साथ लोग अपनी कई सारी निजी जानकारियां बिना जाने-बूझे ही शेयर कर देते हैं.
थर्ड पार्टी तक चुटकियों में जाता है डेटा
हाल ही में भारत सरकार की सोशल मीडिया के लिए जारी गई गाइडलाइंस को जारी करने की डेडलाइन खत्म हो गई है. जिसे लेकर सोशल मीडिया पर तमाम तरह का हो-हल्ला मचाया जा रहा है. लोगों का कहना है कि ये उनकी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' और 'निजता' पर हमला है. 'फ्री स्पीच' की कथित पैरोकार Twitter जैसी सोशल मीडिया कंपनी इन्हें मानने से इनकार कर रही हैं. लेकिन, वाट्सएप पर धड़ल्ले से फोटो,...
सोशल मीडिया आज ज्यादातर लोगों के जीवन में गहरी पैठ बना चुका है. तकरीबन हर व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपने विचार, खुद से जुड़ी तस्वीरें, घूमने-फिरने की जगहों की जानकारियां समेत लगभग हर चीज शेयर करता है. भारत में अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई थी. आजकल तो सोशल मीडिया पर लोग अमूमन कहां जा रहे हैं, कहां खाना खा रहे हैं, क्या कर रहे हैं जैसी सारी चीजें शेयर करते रहते हैं. बिना इस बात को जाने और फिक्र करते हुए की ये सभी चीजें उनकी निजता यानी प्राइवेसी में अप्रत्यक्ष रूप से दखल दे रही हैं.
भारत में लोगों को 'मुफ्त यानी फ्री' की चीजें बहुत पसंद आती हैं. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वाट्सएप, जीमेल जैसी दर्जनों एप हैं, जो 'फ्री' हैं. लेकिन, ये केवल नाम की ही फ्री हैं. अगर कोई प्ले स्टोर से लूडो जैसे गेम का एप भी डाउनलोड कर इंसटॉल करता है, तो उसे दस तरह की परमीशन देनी पड़ती हैं. ये एप इंस्टॉल होने से पहले ही आपके कैमरे, माइक्रोफोन, लोकेशन, कॉनटैक्ट्स, मैसेज, स्टोरेज और मीडिया जैसी तमाम चीजों की परमीशन लेते हैं. असल में इन एप्स के साथ लोग अपनी कई सारी निजी जानकारियां बिना जाने-बूझे ही शेयर कर देते हैं.
थर्ड पार्टी तक चुटकियों में जाता है डेटा
हाल ही में भारत सरकार की सोशल मीडिया के लिए जारी गई गाइडलाइंस को जारी करने की डेडलाइन खत्म हो गई है. जिसे लेकर सोशल मीडिया पर तमाम तरह का हो-हल्ला मचाया जा रहा है. लोगों का कहना है कि ये उनकी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' और 'निजता' पर हमला है. 'फ्री स्पीच' की कथित पैरोकार Twitter जैसी सोशल मीडिया कंपनी इन्हें मानने से इनकार कर रही हैं. लेकिन, वाट्सएप पर धड़ल्ले से फोटो, वीडियो या ऑडियो शेयर करने वाले लोग क्या आप जानते हैं कि वाट्सएप की नई पॉलिसी को एग्री करते ही उनकी प्राइवेसी खत्म हो जाएगी.
WhatsApp की नई प्राइवेसी पॉलिसी में यूजर्स के सेंड और रिसीव किए गए, अपलोड या डाउनलोड किए गए कंटेंट को कंपनी किसी भी थर्ड पार्टी के साथ शेयर कर सकती है. वाट्सएप अपने यूज़र्स का इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस (आईपी एड्रेस) से लेकर लोकेशन तक को इन कंपनियों के साथ साझा कर सकती है. भारत सरकार की नई गाइडलाइंस के खिलाफ वाट्सएप ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है. वाट्सएप के दावे के अनुसार, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड पॉलिसी की वजह से यूजर्स के मैसेज और डेटा उसके पास नहीं रहता है. लेकिन, इस पॉलिसी के बाद ऐसी कोई बाध्यता नहीं रह जाएगी.
भारत में प्राइवेसी से जुड़े कानून ही नहीं
अगर भारत सरकार ये गाइडलाइंस नहीं लाती, तो शायद भारतीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए वाट्सएप लोगों की प्राइवेसी को आसानी से खत्म कर सकता था. भारत इन अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों के लिए सिर्फ एक बड़ा बाजार भर है. फिलहाल जिस तरह के कानून हैं, इन सोशल मीडिया कंपनियों को भारतीयों का निजी डेटा इकट्ठा करने और उसे थर्ड पार्टी को शेयर करने में रोक की संभावना ना के बराबर है. दरअसल, भारत में प्राइवेसी से जुड़े कानूनों का अभाव है. वहीं, अन्य विकसित देशों में जहां प्राइवेसी को लेकर कड़े नियम हैं, वहां पर ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उन कानूनों को मानने के लिए बाध्य हो जाते हैं.
2016 में कैंब्रिज एनालिटिका मामले में यह सामने आया था कि कई ऐसे एप्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोगों के डेटा को इकट्ठा कर उसका इस्तेमाल कर राजनीतिक विचारों तक को बदलने में करते हैं. इस विवाद में फंसने के बाद फेसबुक ने अपने यूजर्स के लिए प्राइवेसी पॉलिसी में कई तरह के बदलाव किए थे. लेकिन, भारत में ये सब बिना कड़े कानूनों के संभव नहीं है. यहां तो भारत सरकार के सोशल मीडिया की गाइडलाइंस जारी करने पर सोशल मीडिया पर ही उसके खिलाफ ट्रेंड चलाया जाने लगता है. भारतीय अपनी प्राइवेसी को लेकर कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा लगाने के लिए इससे अच्छा उदाहरण शायद ही मिलेगा.
भारत में चीन-पाकिस्तान को लेकर डिबेट होती है, धर्म और मजहब के नाम पर लोग लड़ने को उतारू हो जाते हैं, लेकिन यहां लोगों में अपने निजता के मौलिक अधिकार के बारे में जागरुकता 'शून्य' है. 21वीं सदी के डिजिटल इंडिया की बात करने वाले भारत में आज भी अंग्रेजों के शासनकाल से चले आ रहे कानून चल रहे हैं. देश में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 से अभी तक लागू नहीं हो पाया है. भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गांवों में रहता है और उसे डेटा का डी तक नहीं पता है. कहना गलत नहीं होगा कि हर चीज सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से शेयर करने वालों को प्राइवेसी की इतनी चिंता कहां है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.