हमें वो जमाना याद है जब दांत साफ करने के लिए दातुन का इस्तेमाल किया जाता था. समय के साथ दातुन की जगह मंजन ने ले ली. वही जिसे हथेली पर रखकर उंगली से दांत साफ किए जाते थे. कुछ समय बाद टूथब्रश आ गए, जिसे लोगों ने खुले दिल से अपनाया. फिर चल पड़ी टूथपेस्ट की दुकान. प्लास्टिक की ट्यूब में अलग अलग रंगों के टूथपेस्ट लोगों को लुभाने के लिए बाजारों में बिकने लगे. अलग-अलग फ्लेवर, रंगों के अलावा टूथपेस्ट मजबूती, सुरक्षा के भी दावे करने लगे. कुछ में तो नमक और चारकोल भी है. अब टूथपेस्ट को लेकर इतनी बात इसलिए की जा रही है क्योंकि शायद ये टूथपेस्ट हमारे साथ कुछ ही समय के मेहमान रह गए है. जी हां, जल्दी ही ये टूथपेस्ट गायब होने वाले हैं, और इनकी जगह लेने वाले हैं 'टूथपेस्ट पॉड्स'.
जल्दी ही टूथपेस्ट की जगह ले लेंगे ये पॉड्स |
इन 'टूथपेस्ट पॉड्स' को बनाया है फ्लोरिडा की एक स्टार्टअप कंपनी ने, और इन्हें 'पॉपिट्स' नाम से बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही है. ये नर्म जेल के छोटे छोटे पैकेट्स हैं जो बायोडिग्रेडेबल हैं. इन्हें या तो टूथब्रश पर रख सकते हैं, या फिर सीधे मुंह में डाल सकते हैं. मुंह में जाने के पांच सेकंड बाद ही ये घुल जाते हैं और जेल बाहर आ जाता है. एक पॉड में उतना ही जेल होता है जितना एक बार दांत साफ करने के लिए जरूरी है. मतलब, टूथब्रश पर पेस्ट लगाने की झिकझिक ही नहीं. बाकी टूथपेस्ट की तरह पॉपिट्स भी अलग अलग फ्लेवर में उपलब्ध है.
लेकिन क्यों बनाए गए पॉपिट्स-
हर साल कचरे में करीब 130 करोड़ टूथपेस्ट ट्यूब जमा हो जाते हैं, जाहिर सी बात है कि प्लास्टिक के बने ये ट्यूब्स डिकम्पोज़ नहीं होते. हमारा...
हमें वो जमाना याद है जब दांत साफ करने के लिए दातुन का इस्तेमाल किया जाता था. समय के साथ दातुन की जगह मंजन ने ले ली. वही जिसे हथेली पर रखकर उंगली से दांत साफ किए जाते थे. कुछ समय बाद टूथब्रश आ गए, जिसे लोगों ने खुले दिल से अपनाया. फिर चल पड़ी टूथपेस्ट की दुकान. प्लास्टिक की ट्यूब में अलग अलग रंगों के टूथपेस्ट लोगों को लुभाने के लिए बाजारों में बिकने लगे. अलग-अलग फ्लेवर, रंगों के अलावा टूथपेस्ट मजबूती, सुरक्षा के भी दावे करने लगे. कुछ में तो नमक और चारकोल भी है. अब टूथपेस्ट को लेकर इतनी बात इसलिए की जा रही है क्योंकि शायद ये टूथपेस्ट हमारे साथ कुछ ही समय के मेहमान रह गए है. जी हां, जल्दी ही ये टूथपेस्ट गायब होने वाले हैं, और इनकी जगह लेने वाले हैं 'टूथपेस्ट पॉड्स'.
जल्दी ही टूथपेस्ट की जगह ले लेंगे ये पॉड्स |
इन 'टूथपेस्ट पॉड्स' को बनाया है फ्लोरिडा की एक स्टार्टअप कंपनी ने, और इन्हें 'पॉपिट्स' नाम से बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही है. ये नर्म जेल के छोटे छोटे पैकेट्स हैं जो बायोडिग्रेडेबल हैं. इन्हें या तो टूथब्रश पर रख सकते हैं, या फिर सीधे मुंह में डाल सकते हैं. मुंह में जाने के पांच सेकंड बाद ही ये घुल जाते हैं और जेल बाहर आ जाता है. एक पॉड में उतना ही जेल होता है जितना एक बार दांत साफ करने के लिए जरूरी है. मतलब, टूथब्रश पर पेस्ट लगाने की झिकझिक ही नहीं. बाकी टूथपेस्ट की तरह पॉपिट्स भी अलग अलग फ्लेवर में उपलब्ध है.
लेकिन क्यों बनाए गए पॉपिट्स-
हर साल कचरे में करीब 130 करोड़ टूथपेस्ट ट्यूब जमा हो जाते हैं, जाहिर सी बात है कि प्लास्टिक के बने ये ट्यूब्स डिकम्पोज़ नहीं होते. हमारा ध्यान ही नहीं जाता कि इस कचरे से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाता है. लेकिन इसी बात पर गंभीरता से विचार करने पर इस कंपनी ने सोचा कि टूथपेस्ट को ट्यूब के बगैर किस तरह लोगों तक पहुंचाया जाए, और डिजाइन किए टूथपेस्ट के ऐसे पॉड्स जो न सिर्फ बायोडिग्रे़डेबल हैं बल्कि फ्लोराइड फ्री भी हैं.
प्लास्टिक के बने ये ट्यूब्स डिकम्पोज़ नहीं होते. |
पॉपिट्स का दावा है कि उनके जेल में सभी प्राकृतिक तत्वों का इस्तेमाल किया गया है. पॉड की बाहरी परत सेल्यूलोज से बनी है, जो मुह में जाते ही घुल जाती है. पॉपिट्स का कहना है कि इसका डब्बा तक रिसाइकिल मैटीरियल से बना है जो दो से 12 हफ्तों में डिकम्पोज हो जाता है. इनका कहना है कि- हम पूरी दुनिया में घर-घर में पॉपिट्स लाना चाहते हैं, जिससे प्लास्टिक का प्रदूषण कम होगा. इसके लिए इस कंपनी ने एक किकस्टार्टर अभियान भी शुरू कर दिया है. इसी साल अक्टूबर में ये प्रोडक्ट मार्केट में दिखाई देने लगेगा.
टूथब्रश और टूथपेस्ट के जमाने में भी, हमारे देश में कई जगह आज भी दातुन का ही इस्तेमाल होता है, फिर चाहे पॉवडर आए, पेस्ट आए, या फिर पॉड्स ही क्यों न आ जाएं, उन्हें फर्क नहीं पड़ता. पॉड्स मार्केट पर भले ही कब्जा कर ले, लेकिन ट्यूब इस्तेमाल करने वाले हमारे देश के लोग किफायत में ही जीते हैं, उन्हें जो खुशी ट्यूब खत्म होने पर उसकी आखिरी बूंद भी निकाल लेने में आती है, वो खुशी भला इन पॉड्स में कहां. लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो ये एक शानदार खोज है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.