महिलाओं से बदला लेने का एक बहुत ही क्रूर साधन है- एसिड अटैक. उसे ऐसा कर देना कि वो दूसरों के सामने तो क्या, खुद भी अपना चेहरा देखने से डर जाएं. एक औरत को हर तरफ से तोड़ डालता है ये ऐसिड अटैक. और ये मानसिकता सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि एसिड अटैक के मामले में ब्रिटेन का हाल तो भारत से भी ज्यादा खतरनाक है.
क्यों खौफनाक हैं ब्रिटेन के एसिड अटैक
मिरर में छपी एक खबर के मुताबिक ब्रिटेन में हर हफ्ते 15 एसिड अटैक की घटनाएं सामने आती हैं. और यहां ये मामले ज्यादा खतरनाक इसलिए साबित हो रहे हैं क्योंकि इन हमलों में कई बच्चे भी शामिल हैं- विक्टिम और हमलावर दोनों के रूप में. यानी एसिड अटैक यहां सिर्फ महिलाओं पर नहीं बल्कि बच्चों पर भी होते हैं और हमला करने वाले भी सिर्फ पुरुष नहीं बल्कि बच्चे भी हैं.
जनवरी 2015 से मई 2018 तक इस, तरह के 2602 मामले सामने आए हैं. यानी एक सप्ताह में करीब 15. जबकि 2007 से 2011 तक एसिड अटैक के केवल 100 मामले ही दर्ज किए गए थे.
भारत की ही तरह ब्रिटेन में भी एसिड के बेचे जाने पर बैन लगाए जाने की मांग हो रही है. इसी मांग को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन सेलर्स अमेजन और ईबे दोनों ने 91% सल्फ्यूरिक एसिड क्लीनर को अपनी सेल से हटा लिया है.
बच्चों पर एसिड अटैक की बढ़ती घटनाओं ने इस समस्या को और भी चिंताजनक बना दिया है. मेनचेस्टर में 14 और 15 साल के किशोरों ने एक 6 साल के बच्चे पर ब्लीच से हमला कर दिया. वहीं 11 साल के दो बच्चों ने किशोरों पर हमला किया, 12 साल के कुछ बच्चों ने अपने ही साथियों पर एसिड से हमला किया. इन घटनाओं को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि एसिड वो हथियार बन चुका है जिसका इस्तेमाल बच्चे भी आसानी से कर रहे हैं.
हमले के...
महिलाओं से बदला लेने का एक बहुत ही क्रूर साधन है- एसिड अटैक. उसे ऐसा कर देना कि वो दूसरों के सामने तो क्या, खुद भी अपना चेहरा देखने से डर जाएं. एक औरत को हर तरफ से तोड़ डालता है ये ऐसिड अटैक. और ये मानसिकता सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि एसिड अटैक के मामले में ब्रिटेन का हाल तो भारत से भी ज्यादा खतरनाक है.
क्यों खौफनाक हैं ब्रिटेन के एसिड अटैक
मिरर में छपी एक खबर के मुताबिक ब्रिटेन में हर हफ्ते 15 एसिड अटैक की घटनाएं सामने आती हैं. और यहां ये मामले ज्यादा खतरनाक इसलिए साबित हो रहे हैं क्योंकि इन हमलों में कई बच्चे भी शामिल हैं- विक्टिम और हमलावर दोनों के रूप में. यानी एसिड अटैक यहां सिर्फ महिलाओं पर नहीं बल्कि बच्चों पर भी होते हैं और हमला करने वाले भी सिर्फ पुरुष नहीं बल्कि बच्चे भी हैं.
जनवरी 2015 से मई 2018 तक इस, तरह के 2602 मामले सामने आए हैं. यानी एक सप्ताह में करीब 15. जबकि 2007 से 2011 तक एसिड अटैक के केवल 100 मामले ही दर्ज किए गए थे.
भारत की ही तरह ब्रिटेन में भी एसिड के बेचे जाने पर बैन लगाए जाने की मांग हो रही है. इसी मांग को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन सेलर्स अमेजन और ईबे दोनों ने 91% सल्फ्यूरिक एसिड क्लीनर को अपनी सेल से हटा लिया है.
बच्चों पर एसिड अटैक की बढ़ती घटनाओं ने इस समस्या को और भी चिंताजनक बना दिया है. मेनचेस्टर में 14 और 15 साल के किशोरों ने एक 6 साल के बच्चे पर ब्लीच से हमला कर दिया. वहीं 11 साल के दो बच्चों ने किशोरों पर हमला किया, 12 साल के कुछ बच्चों ने अपने ही साथियों पर एसिड से हमला किया. इन घटनाओं को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि एसिड वो हथियार बन चुका है जिसका इस्तेमाल बच्चे भी आसानी से कर रहे हैं.
हमले के तीन चौथाई मामले यानी 73% केवल लंदन में ही हुए हैं. हमले में ब्लीच, पेंट स्ट्रिपर और कास्टिक सोडा का इस्तेमाल किया गया.
अब अगर भारत की तरफ रुख करें तो-
2012 में एसिड अटैक के 85 मामले प्रकाश में आए जबकि 2015 में ये संख्या बढ़कर 140 हो गई. ncrb के मुताबिक 2016 में 283 मामले सामने आए. ये वो मामले हैं जिनकी रिपोर्ट दर्ज की गई जबकि बहुत से मामलों की शिकायतें तो दर्ज भी नहीं कराई जातीं. इन हमलों में मुख्यतः 14 से 35 साल की महिलाओं को ही शिकार बनाया गया.
अब इस लिहाज से अगर देखा जाए तो भारत के सामने ब्रिटेन के हालात ज्यादा खराब दिखते हैं. यहां क्रूरता इस कदर है कि बच्चों तक को बख्शा नहीं जा रहा. और सरकार की अनदेखी इस कदर कि बच्चे भी एसिड को खतरनाक तरह से इस्तेमाल करना जानते हैं. एसिड अटैक के मामले में ब्रिटेन पूरी दुनिया में सबसे आगे है लेकिन इतने गंभीर मामले में सबसे अव्वल होना उसके फेल होने को भी दिखाता है. यहां एसिड अटैक सिर्फ महिलाओं से बदला लेने का साधन नहीं बल्कि एक हथियार है जिसे हर कोई इस्तेमाल कर रहा है और किसी पर भी इस्तेमाल कर रहा है, मासूमों पर भी. जहां के बच्चे एसिड अटैक विक्टिम भी हों और हमलावर भी वहां की सरकार को गंभीर होने के लिए और कितने खतरनाक परिणामों की जरूरत है.
यहां भारत को खुश होने की जरूरत नहीं, बल्कि ब्रिटेन से सीख लेने की जरूरत है. ब्रिटेन वो उदाहरण बनकर दुनिया के सामने खड़ा है जिसने ये समझा दिया है कि घाव को अगर समय पर न भरा जाए तो वो जिस्म को सड़ाने लगता है.
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