हम में से परफेक्ट कोई नहीं है. कमियां हम सब में हैं. लोग हमें हमारी कमियां सिर्फ इसलिए बताते हैं ताकि हम उनमें सुधार लाते हुए कुछ बड़ा और बेहतर कर सकें. अब अगर कोई हमारी कमियां निकाले. या फिर ये कहे कि, किसी विशेष चीज को यदि हम अपने जीवन से हटा दें तो हमारा विकास होगा. इसके बाद अगर हम इस व्यक्ति द्वारा कही गयी बात का बुरा मान जाएं तो ये साफ दर्शा देगा कि हम अभी इतने मैच्योर नहीं हुए हैं कि अपने में सुधार ला सकें.
अब इस बात को रेलवे के सन्दर्भ में समझिये. बीते दिनों सीएजी की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें ऐसे-ऐसे खुलासे हुए थे जिनको सुनकर इस देश के आम आदमी के होश उड़ गए थे. संसद में पेश की गयी, अपनी इस रिपोर्ट में सीएजी द्वारा बताया गया था कि भारतीय रेलवे द्वारा साफ सफाई का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता, यहां का खाना इंसानों के खाने योग्य नहीं है.
साथ ही सीएजी ने एसी कोच में दिए जाने वाले कम्बल, चादरों और तकियों पर भी सवालिया निशान लगाए. सीएजी ने बताया था कि रेलवे में यात्रियों की सुविधा के मद्देनजर दिए जाने वाले ये कम्बल, चादर और तकिया बरसों से धुले नहीं गए हैं.
हम में से परफेक्ट कोई नहीं है. कमियां हम सब में हैं. लोग हमें हमारी कमियां सिर्फ इसलिए बताते हैं ताकि हम उनमें सुधार लाते हुए कुछ बड़ा और बेहतर कर सकें. अब अगर कोई हमारी कमियां निकाले. या फिर ये कहे कि, किसी विशेष चीज को यदि हम अपने जीवन से हटा दें तो हमारा विकास होगा. इसके बाद अगर हम इस व्यक्ति द्वारा कही गयी बात का बुरा मान जाएं तो ये साफ दर्शा देगा कि हम अभी इतने मैच्योर नहीं हुए हैं कि अपने में सुधार ला सकें.
अब इस बात को रेलवे के सन्दर्भ में समझिये. बीते दिनों सीएजी की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें ऐसे-ऐसे खुलासे हुए थे जिनको सुनकर इस देश के आम आदमी के होश उड़ गए थे. संसद में पेश की गयी, अपनी इस रिपोर्ट में सीएजी द्वारा बताया गया था कि भारतीय रेलवे द्वारा साफ सफाई का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता, यहां का खाना इंसानों के खाने योग्य नहीं है.
साथ ही सीएजी ने एसी कोच में दिए जाने वाले कम्बल, चादरों और तकियों पर भी सवालिया निशान लगाए. सीएजी ने बताया था कि रेलवे में यात्रियों की सुविधा के मद्देनजर दिए जाने वाले ये कम्बल, चादर और तकिया बरसों से धुले नहीं गए हैं.
बहरहाल अगर रेलवे ऐसा करता है तो तो निश्चित तौर पर इससे किसी भी भारत वासी की भावना आहत हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व की अपेक्षा आज हम जिस तरह सफर करते हैं उसमें बड़ा फर्क है. शायद आपको याद हो, एक जमाना वो था जब लोग कुछ सौ किलोमीटर वाली दूरी की यात्राओं के लिए ज्यादा से ज्यादा सामान लेकर ट्रैवेल करते थे मगर आज स्थिति कहीं दूसरी है अब लोग हजारों किलोमीटर की भी दूरी महज एक बैग में पार कर देते हैं.
प्रायः ये देखा गया है कि आज हम यही चाहते हैं कि यात्रा के दौरान हमारे पास सामान कम से कम हो. ऐसा इसलिए क्योंकि, न सिर्फ इससे समय की बचत होती है बल्कि ये व्यर्थ के झंझटों से भी बचाता है. मैं औरों का नहीं जानता, यदि रेलवे ये बड़ा फैसला ले लेती है तो व्यक्तिगत रूप से मैं बड़ा व्यथित होऊंगा. कारण ये कि अब हर छोटी बड़ी यात्रा पर बेडरोल धोना, उसे खोलना-बांधना मेरे बस की बात नहीं है.
हो सकता है चादर, कंबलों और तकियों की साफ सफाई रेलवे के लिए आसान न हो. मगर कुछ ऐसे विकल्प जरूर हो सकते हैं जिनके चलते रेलवे एक आम आदमी को वो सुविधाएं दे सकता है जिसपर उसका अधिकार है. अंत में मैं बस यही कहूंगा कि यदि रेलवे कोई ऐसा फैसला ले रही है तो फिर वो इसपर पुनर्विचार करे और अपनी कमियों को दूर कर एक यात्री को वो सुविधा दे जो उसे मिलनी चाहिए.
यदि रेलवे ऐसा कर ले गयी तो एक यात्री के तौर पर मेरे लिए ये बहुत अच्छी बात है, और अगर रेलवे ऐसा नहीं कर पाई तो मैं ये मान लूंगा कि हमारी रेलवे अभी इतनी परिपक्व नहीं हुई कि वो अपनी आलोचना झेल सके.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.