पिछले दिनों दिल्ली से एक खबर आई थी कि एक परिवार सड़क पर सामान बेचने वाले कुछ बच्चों को लेकर कनॉट प्लेस के एक बड़े रेस्त्रां में गया. परिवार के एक सदस्य का जन्मदिन था जिसे उन्होंने गरीब बच्चों के साथ मनाने का सोचा था. लेकिन रेस्त्रां वालों ने उन बच्चों को बाहर का रस्ता दिखा दिया. क्योंकि उनका पहनावा और रूप-रंग वहां बैठने लायक लोगों जैसा नहीं था.
इस दुनिया के ज्यादातर लोग इसी रेस्त्रां वाले की तरह इंसान को पहनावे और रंग-रूप के आधार आंकते हैं. ये ऐसी सच्चाई है जो बेहद कड़वी है, लेकिन सच यही है कि पहनावे से इंसान की हैसियत का आंकलन किया जता है. और एक बार आपके दिमाग में ये बात आ जाए कि सामने वाला आपके स्तर का नहीं है तो आपकी आंखे उसे खुद बखुद अनदेखा कर देती हैं.
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दुनिया के ज्यादातर लोग इंसान को पहनावे और रंग-रूप के आधार आंकते हैं |
यूनिसेफ ने एक सोशल एक्सपेरिमेंट के जरिए ये जानने की कोशिश की है कि, क्या बच्चे का पहनावा और रंग रूप लोगों की सोच को प्रभावित करता है? इस वीडियो में ये दिखाया गया है कि एक 6 साल की बच्ची जॉर्जिया की सड़कों पर अकेली खड़ी है, छिपे कैमरे ने वहां से गुजरने वाले लोगों की प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड किया जो उस बच्ची के लिए फिक्रमंद थे. फिर कुछ ही समय के बाद उसी बच्ची को एक बेघर और गरीब बच्ची जैसे कपड़े पहनाकर उसी जगह दोबारा खड़ा किया गया. और इस बार कैमरे ने जो रिकॉर्ड किया वो बेहद निराश करने वाला था, क्योंकि जब बच्ची का पहनावा बदला गया तो एक भी व्यक्ति ने उसकी तरफ पलटकर भी नहीं देखा.
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सड़क पर बेघर बच्चे किसी की नजर में नहीं आते |
फिर बच्ची को एक रेस्त्रां में ले जाया गया, और लोगों ने उसे खोया हुआ समझकर उसकी मदद की, उसे प्यार से पुचकारा. लेकिन जब वापस उसी रेस्त्रां में उसे कपड़े बदलकर भेजा गया, तो लोगों की प्रतिक्रियाएं देखकर इस एकस्पेरिमेंट को बीच में ही रोक देना पड़ा. क्योंकि लोगों ने बच्ची के साथ जो सलूक किया, उसे बच्ची बर्दाश्त नही कर पाई और रोते हुए बाहर आ गई.
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सोशल मीडिया पर आते ही ये वीडियो वायरल हो गया. ये वीडियो यूनिसेफ ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया है. जिसे अब तक 80 लाख से भी ज्यादा बार देखा गया है और इसपर करीब डेढ़ लाख से ज्यादा शेयर हैं.
सोचिए ये तो सिर्फ एक सोशल एक्पेरिमेंट था.. असलियत में इस दुनिया में कितने ही ऐसे बच्चे हैं जिन्हें हर रोज ऐसे ही धुतकारा जाता है. इनमें से तो कितने ही ऐसे होते हैं जिन्हें जबरन सड़कों पर मजदूरी करने और भीख मांगने के लिए छोड़ा जाता है. हम रोज सड़कों पर फूल, गुब्बारे बेचने वाले और भीख मांगने वाले बच्चों को देखते हैं, और हर रोज उन्हें अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं. हम अपने आप को कभी खुद नहीं आंकने वाले, लेकिन ऐसे एक्सपेरिमेंट बताते हैं कि हम असल में कितने असंवेदनशील हैं.
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