यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सभी सियासी दलों ने जीत हासिल करने के लिए सियासी समीकरणों को साधने की गुणा-गणित शुरू कर दी है. भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों की घोषणा भी करना शुरू कर दिया है. वैसे, आमतौर पर चुनाव लड़ने वाला कोई भी प्रत्याशी जीत की हसरत लिए ही सियासी रण में उतरता है. और, बात अगर यूपी चुनाव की हो, तो हारने की इच्छा आखिर कौन रखेगा? लेकिन, ऐसा नहीं है कि यूपी चुनाव में हर शख्स जीतने के लिए ही पर्चा भरे. कुछ लोगों में हारने की भी सनक होती है. और, जैसा कि कहा जाता है कि प्रत्यक्षं किम प्रमाणं, तो यूपी की खेरागढ़ तहसील के नगला दूल्हा के निवासी हसनू राम भी उन्ही सूरमाओं में से एक हैं, जो हारने की दुआ के साथ चुनावी मैदान में ताल ठोंकते हैं. और, हारने की इच्छा भी ऐसी कि अब तक 93 बार राष्ट्रपति से लेकर ग्राम प्रधान तक का चुनाव हार चुके हैं. वैसे, चुनाव हारने के पीछे की वजह भी चौंकाने वाली है. हसनू राम को 100 चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना है. आइए जानते हैं हसनू राम की इस सनक के पीछे की कहानी...
वादाखिलाफी से उपजी चुनाव लड़ने की सनक
100 चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाने की हसरत पालने वाले हसनू राम के इतनी बार चुनाव लड़ने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. मीडियो रिपोर्ट्स के अनुसार, हसनू राम का दावा है कि करीब 4 दशक पहले एक बड़ी सियासी पार्टी ने उन्हें चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाने का आश्वासन दिया था. लेकिन, ऐन मौके पर पार्टी अपने वादे से मुकर गई और हसनू राम का टिकट कट गया. वैसे, यूपी विधानसभा चुनाव में टिकट तो भाजपा में भी खूब काटे जा रहे हैं. लेकिन, जिनके टिकट कट रहे हैं वो किसी न किसी जुगाड़...
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सभी सियासी दलों ने जीत हासिल करने के लिए सियासी समीकरणों को साधने की गुणा-गणित शुरू कर दी है. भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों की घोषणा भी करना शुरू कर दिया है. वैसे, आमतौर पर चुनाव लड़ने वाला कोई भी प्रत्याशी जीत की हसरत लिए ही सियासी रण में उतरता है. और, बात अगर यूपी चुनाव की हो, तो हारने की इच्छा आखिर कौन रखेगा? लेकिन, ऐसा नहीं है कि यूपी चुनाव में हर शख्स जीतने के लिए ही पर्चा भरे. कुछ लोगों में हारने की भी सनक होती है. और, जैसा कि कहा जाता है कि प्रत्यक्षं किम प्रमाणं, तो यूपी की खेरागढ़ तहसील के नगला दूल्हा के निवासी हसनू राम भी उन्ही सूरमाओं में से एक हैं, जो हारने की दुआ के साथ चुनावी मैदान में ताल ठोंकते हैं. और, हारने की इच्छा भी ऐसी कि अब तक 93 बार राष्ट्रपति से लेकर ग्राम प्रधान तक का चुनाव हार चुके हैं. वैसे, चुनाव हारने के पीछे की वजह भी चौंकाने वाली है. हसनू राम को 100 चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना है. आइए जानते हैं हसनू राम की इस सनक के पीछे की कहानी...
वादाखिलाफी से उपजी चुनाव लड़ने की सनक
100 चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाने की हसरत पालने वाले हसनू राम के इतनी बार चुनाव लड़ने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. मीडियो रिपोर्ट्स के अनुसार, हसनू राम का दावा है कि करीब 4 दशक पहले एक बड़ी सियासी पार्टी ने उन्हें चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाने का आश्वासन दिया था. लेकिन, ऐन मौके पर पार्टी अपने वादे से मुकर गई और हसनू राम का टिकट कट गया. वैसे, यूपी विधानसभा चुनाव में टिकट तो भाजपा में भी खूब काटे जा रहे हैं. लेकिन, जिनके टिकट कट रहे हैं वो किसी न किसी जुगाड़ से टिकट पाने की कोशिश कर रहे हैं. टिकट के लिए कोई समाजवादी पार्टी में, तो कोई बसपा, तो कोई आरएलडी में शामिल हो रहा है. हालत ऐसी हो गई है कि अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी में बागी विधायकों के लिए 'नो एंट्री' का बोर्ड लगाना पड़ गया. इसके इतर टिकट कटने वाले प्रत्याशियों के पास पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता की तरह चुपचाप सहयोग करने का विकल्प भी बचता है. या फिर आदमी हसनू राम बन जाता है.
जब करीब चार दशक पहले हसनू राम का टिकट कटा, तो ये बात उनके दिल को लग गई. और, ऐसी वैसी नहीं लगी. इस कदर लगी कि उन्होंने महाभारत वाली 'भीष्म प्रतिज्ञा' कर ली. इसके बाद से हसनू राम हर चुनाव लड़ते चले आ रहे हैं. अब तक 93 चुनाव लड़ने वाले हसनू राम ने राष्ट्रपति, सांसद, विधायक, ब्लॉक प्रमुख, पार्षद, ग्राम पंचायत सदस्य पद तक का चुनाव लड़ा है. लेकिन, इसमें वह जीतने नहीं बल्कि हारने के लिए खड़े होते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो हसनू राम किसी जमाने में वामसेफ संगठन से जुड़े थे. डॉ. बीआर आंबेडकर को अपना प्रेरणास्त्रोत मानने वाले हसनू राम ने इसी वजह से अपने नाम के आगे आंबेडकरी जोड़ लिया. वैसे, ऐसा कहा जा सकता है कि हसनू राम को टिकट मांगने पर मिला जवाब खल गया होगा. क्योंकि, उनका टिकट काटने के दौरान उनसे कहा गया था कि 'तुम्हें तुम्हारा पड़ोसी भी वोट नहीं देगा, तो चुनाव लड़ कर क्या करोगे?' इसके बाद जो हसनू राम की चुनाव हारने की सनक जगी, वो आज तक जारी है.
सरकारी नौकरी से मनरेगा मजदूर तक का सफर
चुनाव लड़ने और जीतने के लिए लोग क्या-क्या कर गुजरते हैं. ताजा उदाहरण कांग्रेस का टिकट पाने की लालसा रखने वाली रीता यादव का ही देख लीजिए. तो, हसनू राम भी किसी से कम नही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हसनू राम आंबेडकरी फिलहाल मनरेगा के तहत मजदूरी करते हैं. लेकिन, वह पहले मजदूरी नहीं करते थे. हसनू राम बाकायदा राजस्व विभाग में अमीन के पद पर कार्यरत थे. लेकिन, सियासी पार्टी से टिकट मिलने की आस में उन्होंने समाजसेवा करने के लिए नौकरी छोड़ दी. ठीक उसी तरह जैसे कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने समाजसेवा को अपनी नौकरी से ऊपर रखा. तो, समाजसेवा करने हसनू राम ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी थी. लेकिन, नौकरी छोड़ने के बावजूद उन्हें पार्टी का टिकट नहीं मिला. वैसे, इसके बाद से 93 चुनाव लड़ चुके हसनू राम ने समाजसेवा नही छोड़ी. मनरेगा मजदूर होने के बाद भी वह अपनी आधी कमाई समाजसेवा में खर्च करते हैं.
बीते साल हुए पंचायत चुनाव में भी हसनू राम ने पंचायत सदस्य के लिए पर्चा भरा था. उस दौरान हसनू राम ने कहा था कि 'अगर जिंदा रहा, तो यूपी विधानसभा चुनाव 2022 जरूर लड़ूंगा. और, उसके आगे भी 100 की गिनती पूरी होने तक हर चुनाव लड़ता रहूंगा.' तो, ऊपर वाले के आशीर्वाद से अब तक 93 चुनाव हार चुके हसनू राम 94वां चुनाव हारने के लिए कदम बढ़ा चुके हैं. वैसे, हसनू राम का कॉन्फिडेंस लेवल देखकर कोई भी दंग रह जाएगा. वैसे, यह हसनू राम का दिल तोड़ने वाली बात होगी. लेकिन, सबसे ज्यादा चुनाव हारने का रिकॉर्ड तमिलनाडु के सेलम में रहने वाले के पद्मराजन के नाम दर्ज है. पद्मराजन का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है. और, पद्मराजन अब तक 200 चुनाव हार चुके हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो चुनाव हारने के लिए लड़ने की सनक में वो अकेले नही हैं. और, ये रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज नहीं हो पाएगा.
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