देश पर विपदा की घड़ी है. कहीं भी निकल जाइये. उन तमाम जगहों पर जहां कल तक रौनक थी, आज एक अजीब सी मनहूसियत है. वो सड़कें जो अभी कुछ दिनों पहले तक लोगों की भीड़ से पटी पड़ी थी आज एक बार फिर खाली हैं और इन खाली सड़कों पर चल रही तेज रफ्तार एम्बुलेंस की आवाज़ न केवल डराती/ दिल दहलाती है. बल्कि इसे सुनकर इस बात का भी एहसास हो जाता है कि, साल 2020 में आए कोरोना ने अपनी पकड़ कहीं ज्यादा मजबूत कर ली है. और हम शायद चाहकर भी इससे न बच पाएं. देश के सामने चुनौतियों का पहाड़ है. सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है और लोग मरने को मजबूर हैं. तो वहीं एक वर्ग वो भी है जिसका मानना है कि 'कोरोना फोरोना कुछ नहीं है. ये अमीरों का चोंचला है और जो लोग मर रहे हैं उनकी मौत की वजह उनकी बिगड़ी लाइफ स्टाइल है. हालांकि होने को तो ये बात एक कुतर्क है. इसका खंडन करने के लिए तमाम तरह की दलील दी जा सकती है. मगर ये वो वक़्त नहीं है जब अपनी ऊर्जा को किसी मूर्ख के लिए खर्च किया जाए. हां इसे मूर्खता ही कहा जाएगा कि एक परिवार के एक दो नहीं बल्कि 5 सदस्य न केवल कोरोना की चपेट में आए हों. बल्कि अपनी जान से हाथ धो बैठे हों और परिजन ये कह दें कि कोरोना कुछ नहीं है और उनकी मौत नेचुरल थी. बात भले ही पढ़ने /सुनने में अजीब वो गरीब लग रही हो लेकिन जो खबर यूपी के गोंडा से आ रही है वो हैरान करने वाली है.
गोंडा के चकरौत गांव में अंजनी श्रीवास्तव रहते हैं. मार्च के आखिर तक परिवार में सब कुछ ठीक था. मगर जैसे ही अप्रैल आया परिवार की खुशियों को किसी की नजर लग गई. सिर्फ 5 दिन के अंदर परिवार के 5 लोग परलोक सिधार गए. अंजनी के अनुसार , सबसे पहले 2 अप्रैल को उनके बड़े भाई हनुमान प्रसाद का देहांत हुआ. हनुमान वो 56 साल...
देश पर विपदा की घड़ी है. कहीं भी निकल जाइये. उन तमाम जगहों पर जहां कल तक रौनक थी, आज एक अजीब सी मनहूसियत है. वो सड़कें जो अभी कुछ दिनों पहले तक लोगों की भीड़ से पटी पड़ी थी आज एक बार फिर खाली हैं और इन खाली सड़कों पर चल रही तेज रफ्तार एम्बुलेंस की आवाज़ न केवल डराती/ दिल दहलाती है. बल्कि इसे सुनकर इस बात का भी एहसास हो जाता है कि, साल 2020 में आए कोरोना ने अपनी पकड़ कहीं ज्यादा मजबूत कर ली है. और हम शायद चाहकर भी इससे न बच पाएं. देश के सामने चुनौतियों का पहाड़ है. सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है और लोग मरने को मजबूर हैं. तो वहीं एक वर्ग वो भी है जिसका मानना है कि 'कोरोना फोरोना कुछ नहीं है. ये अमीरों का चोंचला है और जो लोग मर रहे हैं उनकी मौत की वजह उनकी बिगड़ी लाइफ स्टाइल है. हालांकि होने को तो ये बात एक कुतर्क है. इसका खंडन करने के लिए तमाम तरह की दलील दी जा सकती है. मगर ये वो वक़्त नहीं है जब अपनी ऊर्जा को किसी मूर्ख के लिए खर्च किया जाए. हां इसे मूर्खता ही कहा जाएगा कि एक परिवार के एक दो नहीं बल्कि 5 सदस्य न केवल कोरोना की चपेट में आए हों. बल्कि अपनी जान से हाथ धो बैठे हों और परिजन ये कह दें कि कोरोना कुछ नहीं है और उनकी मौत नेचुरल थी. बात भले ही पढ़ने /सुनने में अजीब वो गरीब लग रही हो लेकिन जो खबर यूपी के गोंडा से आ रही है वो हैरान करने वाली है.
गोंडा के चकरौत गांव में अंजनी श्रीवास्तव रहते हैं. मार्च के आखिर तक परिवार में सब कुछ ठीक था. मगर जैसे ही अप्रैल आया परिवार की खुशियों को किसी की नजर लग गई. सिर्फ 5 दिन के अंदर परिवार के 5 लोग परलोक सिधार गए. अंजनी के अनुसार , सबसे पहले 2 अप्रैल को उनके बड़े भाई हनुमान प्रसाद का देहांत हुआ. हनुमान वो 56 साल के थे और उन्हें दिल की बीमारी थी. अप्रैल की शुरुआत में अचानक ही उनकी सास फूली और उनका निधन हो गया. हनुमान की मौत उनकी 75 साल की मां माधुरी देवी बर्दाश्त नहीं कर पाई और 14 अप्रैल को चल बसीं.
दादी के निधन पर इलाहाबाद में पढ़ाई कर रहा जॉन्डिस से पीड़ित 21 वर्षीय सौरभ जब घर आया तो इसकी भी तबीयत बिगड़ गयी और गोंडा के एक नर्सिंग होम में 15-16 अप्रैल को सौरभ की भी मौत हो गयी. अंजनी के मुताबिक बेटे की मौत ने सौरभ के मां-बाप को भी अंदर से तोड़ दिया जिससे उनकी तबीयत बिगड़ गई. आनन फानन में उनकी कोरोना जांच कराई जिसमें रिपोर्ट निगेटिव आई और फौरन ही गोंडा के एक नर्सिंग होम में एडमिट करवाया गया.
दोनों ऑक्सीजन पर थे. जहां पहले बुखार से पीड़ित सौरभ की मां उषा श्रीवास्तव का 22 अप्रैल और 24 अप्रैल को सौरभ के पिता अश्वनी श्रीवास्तव का निधन हुआ. एक ही परिवार के 5 लोग अब इस दुनिया में भले ही न हों लेकिन वो हठधर्मिता, वो ज़िद हमारे बीच है जो कह रही है कि किसी को कोरोना नहीं हुआ जो मरे अपनी मौत मरे. मृतक परिवार के एक व्यक्ति इस बात को मानने से गुरेज कर रहे हैं कि उनके परिवार में किसी को कोरोना था.
ध्यान रहे कि गोंडा के सांसद ने इस पूरे मामले को अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा था और बताया था कि इस परिवार के पांच सदस्यों की मौत कुछ ही दिनों के भीतर हो चुकी है. इस पर प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए. सांसद के फेसबुक पोस्ट ने सो रहे 'सिस्टम' को जगाया और फोन किया. परिजन मुकर गए और कहा कि मौत का कारण कोरोना नहीं बल्कि अन्य बीमारियां हैं.
गौरतलब है कि कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत भारत में हो चुकी है और वो बात जो डर का पर्याय है वो ये कि अब बीमारी शहरों तक सीमित नहीं है और इसने गांवों में भी अपने पैर पसार लिए हैं. ऐसे में गांवों के हालात इसलिए भी बद से बदतर हैं. क्योंकि वहां कोरोना मरीज को किसी अछूत की तरह देखा जा रहा है. हाल फिलहाल में हम कई ऐसे मामलों के भी साक्षी बन चुके हैं जहां गांव में किसी के कोरोना पॉजिटिव होने के बाद उसका हुक्का पानी तक बंद कर दिया जा रहा है.
यानी समाज से बॉयकॉट होने का खौफ़ भी वो अहम वजह है, जिसके चलते लोग अपनी बीमारी को छिपा रहे हैं और गोंडा के इस परिवार की तरह कोरोना से हुई मौत को 'प्रकृतिक' मौत की संज्ञा दे रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो स्थिति चिंता जनक है. कहीं अस्पताल के बाहर अपने अपने मरीज को लिए रोए बिलखते परिजन हैं तो कहीं लाशों का ढेर लगा है. ऐसे में वो 'बुद्धिजीवी' या ये कहें कि ज्ञानवीर जो कोरोना को फर्जी बता रहे हैं.
इसे संघ, भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साजिश , राहुल गांधी और कांग्रेस का प्रोपोगेंडा बता रहे हैं उन्हें इस बात को समझ लेना चाहिए कि कोरोना है और आगे आने वाले कम से कम 5 सालों तक हमारे बीच रहेगा. बाकी जैसा कि कोरोना की पहली लहर के दौरान कहा गया था कि कोरोना वायरस से बच वही पाएगा जिसकी इम्युनिटी मजबूत होगी. लेकिन जब हम कोविड की इस दूसरी लहर को देखते हैं. साथ ही जब हम ये देखते हैं कि इस बार पूर्व के मुकाबले मृत्यु दर अधिक है और जवान भी इस वायरस के आगे घुटने टेक रहे हैं और मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं तो 'मजबूत इम्युनिटी' की बातें निराधार लगती हैं.
बहरहाल उपरोक्त पंक्तियों में जिक्र गोंडा के श्रीवास्तव परिवार का हुआ है तो बस हम ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि परिवार के कुछ लोगों ने अपना एंटीजन टेस्ट करवाया था जोकि नेगेटिव आया और उसके बाद भले ही परिवार में एक के बाद एक मौतें हुईं लेकिन परिवार उसी बात पर अड़ा रहा कि नहीं कोरोना हमारे परिवार में तो दस्तक दे ही नहीं सकता.
चाहे गोंडा का ये श्रीवास्तव परिवार हो या देश का और कोई भी परिवार हम इस बात का जिक्र करना अपना कर्तव्य समझते हैं कि मौजूदा वक़्त में कोरोना किसी भी व्यक्ति चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो, उसे हो सकता है. वायरस आपके दरवाजे पर अमीर, गरीब, हिंदू, मुसलमान, ठाकुर, ब्राह्मण, दलित देखकर दस्तक नहीं दे रहा. बचेंगे तभी जब घर पर रहेंगे और बेवजह इधर उधर नहीं निकलेंगे. वैसे कोरोना से जुड़े हर विज्ञापन में बार बार इसी बात को दोहराया जा रहा है कि जानकारी ही बचाव है.
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