सुनकर अजीब लगेगा, लेकिन बच्चों को तनाव देने वाले पेरेंट्स ही होते हैं. ये वीडियो हर माता-पिता को देखना चाहिए इसमें वो सीख है जो उनके और उनके बच्चों की जिंदगी बदल देगी.
बच्चों के एग्ज़ाम हों तो टैंशन, खत्म हो जाएं तो फिर रिजल्ट आने की टैंशन. पर आपको ऐसा क्यों लगता है कि ये टेंशन सिर्फ आपकी है. यकीन मानिए बच्चे, माता-पिता से ज्यादा टेंशन में होते हैं.
पेरेंट्स के लिए बच्चों के लिए चिंता करना स्वाभाविक है लेकिन बच्चों की चिंताओं की अनदेखी करना कभी कभी पेरेंट्स को काफी महंगा पड़ता है. पेरेंट्स फिर भी यही कहते हैं 'इन्हें काहे की चिंता' या फिर 'अभी से चिंता ??' पर ये भी सच है कि ये तनाव उन्हें देने वाले उनके पेरेंट्स ही तो होते हैं. कभी उनकी तुलना दूसरे बच्चों से करके, कभी उनसे बहुत ज्यादा अपेक्षाएं रखके, कभी कभी तो मार्क्स को अपनी इज्जत का सवाल बनाकर भी.
लेकिन जानते हैं, पेरेंट्स ही हैं जो उन्हें एग्ज़ाम और रिजल्ट के इस तनाव से बाहर निकाल सकते हैं, अपना व्यवहार उनकी तरफ थोड़ा सा बदलकर, उनसे दोस्ताना बातचीत करके, उन्हें सिर्फ 'its okay' ही तो कहना है, ठीक इस पिता की तरह.
कहने को तो ये विज्ञापन है, लेकिन यकीन मानें तो हर पेरेंट्स के लिए सीख, जो उनके और उनके बच्चों के बीच न सिर्फ रिश्तों को मजबूत करेगी बल्कि बच्चों के मन में बस चुके तनाव को उनकी जिंदगी से दूर भी करेगी.
देखिए वीडियो-
वीडियो देखकर भी अगर न समझे हों तो बता दें कि एग्जाम का डर बच्चों में बढ़ रहे डिप्रेशन और आत्महत्या की प्रवृत्ति का सबसे बड़ा कारण होता है. भारत में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा 15 से 29 साल की उम्र के लोगों की है. हाल ही में किए एक सर्वे के अनुसार भारत के 66% छात्रों ने माना कि उनके माता-पिता उनपर अच्छे नंबर लाने के लिए दबाब डालते हैं. और इसी दबाव की वजह से हर रोज 6.23 बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं.
बच्चों के एग्ज़ाम हों तो टैंशन, खत्म हो जाएं तो फिर रिजल्ट आने की टैंशन. पर आपको ऐसा क्यों लगता है कि ये टेंशन सिर्फ आपकी है. यकीन मानिए बच्चे, माता-पिता से ज्यादा टेंशन में होते हैं.
पेरेंट्स के लिए बच्चों के लिए चिंता करना स्वाभाविक है लेकिन बच्चों की चिंताओं की अनदेखी करना कभी कभी पेरेंट्स को काफी महंगा पड़ता है. पेरेंट्स फिर भी यही कहते हैं 'इन्हें काहे की चिंता' या फिर 'अभी से चिंता ??' पर ये भी सच है कि ये तनाव उन्हें देने वाले उनके पेरेंट्स ही तो होते हैं. कभी उनकी तुलना दूसरे बच्चों से करके, कभी उनसे बहुत ज्यादा अपेक्षाएं रखके, कभी कभी तो मार्क्स को अपनी इज्जत का सवाल बनाकर भी.
लेकिन जानते हैं, पेरेंट्स ही हैं जो उन्हें एग्ज़ाम और रिजल्ट के इस तनाव से बाहर निकाल सकते हैं, अपना व्यवहार उनकी तरफ थोड़ा सा बदलकर, उनसे दोस्ताना बातचीत करके, उन्हें सिर्फ 'its okay' ही तो कहना है, ठीक इस पिता की तरह.
कहने को तो ये विज्ञापन है, लेकिन यकीन मानें तो हर पेरेंट्स के लिए सीख, जो उनके और उनके बच्चों के बीच न सिर्फ रिश्तों को मजबूत करेगी बल्कि बच्चों के मन में बस चुके तनाव को उनकी जिंदगी से दूर भी करेगी.
देखिए वीडियो-
वीडियो देखकर भी अगर न समझे हों तो बता दें कि एग्जाम का डर बच्चों में बढ़ रहे डिप्रेशन और आत्महत्या की प्रवृत्ति का सबसे बड़ा कारण होता है. भारत में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा 15 से 29 साल की उम्र के लोगों की है. हाल ही में किए एक सर्वे के अनुसार भारत के 66% छात्रों ने माना कि उनके माता-पिता उनपर अच्छे नंबर लाने के लिए दबाब डालते हैं. और इसी दबाव की वजह से हर रोज 6.23 बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं.
एग्जाम का डर बच्चों में बढ़ रहे डिप्रेशन और आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण होता है
आप ही के बच्चे हैं, और उनकी कीमत आपसे बेहतर कोई नहीं जान सकता, तो सिर्फ सोच बदलनी है. यकीन माने पेरेंट्स और बच्चे दोनों तनाव मुक्त रहेंगे, और इसके लिए सिर्फ 'its okay' ही तो कहना है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.