क्या हम रिश्वत लेने या देने का गुण अपने बच्चों में बचपन से ही डाल रहे हैं? सवाल अटपटा है. लेकिन जब हम इंटरनेट पर वायरल एक टाइम टेबल और उसमें एक मां बेटे के बीच हुई डील को देखते हैं तो महसूस यही होता है कि उपरोक्त सवाल माकूल है और इसे उठाना समय की जरूरत है. क्योंकि डील में मां ने कुछ चुनिंदा कामों को करने के लिए बच्चे से पैसे की पेशकश की है. तो बताना जरूरी हो जाता है कि मनोविज्ञान इसे Reinforcement Learning कहता है. इस तरह की लर्निंग में प्रयोग चूहों, कुत्तों और गिनी पिग्स पर हुए हैं. Reinforcement Learning पर मनोवैज्ञानिकों का क्या मत है उसपर भी हम इसी लेख में चर्चा करेंगे.
जिस टाइम टेबल की बात हुई है वो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट पर चर्चा का विषय है. वायरल हुए इस टाइम टेबल के साथ जो कैप्शन है वो खासा रोचक है. कैप्शन में लिखा गया है कि मैं और मेरे 6 साल के बच्चे ने आज एक एग्रीमेंट साइन किया है, जोकि उसके डेली शेड्यूल और परफॉर्मेंस लिंक्स बोनस पर आधारित है.' यानी इस टाइम टेबल को बनाने से पहले मां और बच्चा साथ बैठे और आपसी सहमति के बाद अपनी तरह के अनोखे इस टाइम टेबल को डिज़ाइन किया गया है.
टाइम टेबल में बच्चे का खेलना, टीवी देखना, खाना खाना, दूध पीना, सोना और अपनी चीजें करीने से रखना सब शामिल है. टाइम टेबल में अलार्म बजने का समय सुबह 7 बजकर 50 मिनट का है और बच्चे को किसी भी हाल में सुबह 8 बजे अपना बिस्तर छोड़ देना है. सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर उसे ब्रश करके नहा लेना है और नहाने के अगले 30 मिनट में अपना ब्रेकफास्ट ख़त्म कर लेना है.
टाइम टेबल में दिन भर की पूरी दिनचर्या है. इस टाइम...
क्या हम रिश्वत लेने या देने का गुण अपने बच्चों में बचपन से ही डाल रहे हैं? सवाल अटपटा है. लेकिन जब हम इंटरनेट पर वायरल एक टाइम टेबल और उसमें एक मां बेटे के बीच हुई डील को देखते हैं तो महसूस यही होता है कि उपरोक्त सवाल माकूल है और इसे उठाना समय की जरूरत है. क्योंकि डील में मां ने कुछ चुनिंदा कामों को करने के लिए बच्चे से पैसे की पेशकश की है. तो बताना जरूरी हो जाता है कि मनोविज्ञान इसे Reinforcement Learning कहता है. इस तरह की लर्निंग में प्रयोग चूहों, कुत्तों और गिनी पिग्स पर हुए हैं. Reinforcement Learning पर मनोवैज्ञानिकों का क्या मत है उसपर भी हम इसी लेख में चर्चा करेंगे.
जिस टाइम टेबल की बात हुई है वो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट पर चर्चा का विषय है. वायरल हुए इस टाइम टेबल के साथ जो कैप्शन है वो खासा रोचक है. कैप्शन में लिखा गया है कि मैं और मेरे 6 साल के बच्चे ने आज एक एग्रीमेंट साइन किया है, जोकि उसके डेली शेड्यूल और परफॉर्मेंस लिंक्स बोनस पर आधारित है.' यानी इस टाइम टेबल को बनाने से पहले मां और बच्चा साथ बैठे और आपसी सहमति के बाद अपनी तरह के अनोखे इस टाइम टेबल को डिज़ाइन किया गया है.
टाइम टेबल में बच्चे का खेलना, टीवी देखना, खाना खाना, दूध पीना, सोना और अपनी चीजें करीने से रखना सब शामिल है. टाइम टेबल में अलार्म बजने का समय सुबह 7 बजकर 50 मिनट का है और बच्चे को किसी भी हाल में सुबह 8 बजे अपना बिस्तर छोड़ देना है. सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर उसे ब्रश करके नहा लेना है और नहाने के अगले 30 मिनट में अपना ब्रेकफास्ट ख़त्म कर लेना है.
टाइम टेबल में दिन भर की पूरी दिनचर्या है. इस टाइम टेबल की जो सबसे रोचक बात है वो ये कि यदि बच्चा अपनी दिनचर्या को बिना रोए, बिना चीख पुकार किये, बिना कुछ तोड़े फोड़े अपना दिन बिताता है तो इसके एवज में उसे 10 रुपए दिए जाएंगे. और यही रूटीन पूरे हफ्ते अपनाया जाता है तो वीकेंड में मां की तरफ से 100 रुपए दिए जाएंगे. मां और बेटे में से कोई भी अपनी बात से मुकरे नहीं इसलिए इस टाइम टेबल में दोनों ही पक्षों ने अपनी सिग्नेचर भी की है.
अब जबकि ये टाइमटेबल हमारे सामने हैं तो इसे लेकर तमाम तरह की बातें हो सकती हैं लेकिन जिस बात पर चर्चा हर हाल में होनी चाहिए वो ये कि क्या बच्चे द्वारा किसी भी काम के एवज में रुपए देना ठीक है? हो सकता है इस सवाल के सामने आने के बाद लोग तमाम तरह की बातें करें. तर्क आ सकते हैं कि मां ने जो किया है वो प्रेम स्वरुप और बच्चे में अच्छी आदत डालने के लिए किया है लेकिन बात फिर वही है ऐसा करके मां ने जाने अनजाने एक गलत प्रथा की शुरुआत की है.
जैसा कि हम पहले ही इस बात की पुष्टि कर चुके हैं टाइम टेबल फॉलो करने के एवज में पैसे देना reinforcement Learning की केटेगरी में आता है इसलिए तमाम चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट ऐसे हुए हैं जो इस बात पर बल देते हैं कि इस तरह की लर्निंग एक समय तक तो सही है लेकिन जैसे जैसे समय बीतता है इसके दुष्परिणाम सामने आते हैं. जो मां बाप और बच्चे दोनों के लिए सही नहीं हैं.
चाहे वो Ivan Pavlov हों या फिर BF SKinner और Sigmund Freud इस तमाम मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग में चूहों से लेकर कुत्ते तक का इस्तेमाल किया पाया कि Reinforcement Learning जानवरों को तो बेहतर और आज्ञाकारी बना सकती है लेकिन जब हम इसका प्रयोग इंसानों पर करते हैं तो परिणाम उतने सुखद नहीं होते जितना वो जानवरों के मामले में आए होते हैं. बात रुसी मनोवैज्ञानिक पैवलॉव की हुई है तो उन्होंने अपनी क्लासिकल कंडीशनिंग की थ्योरी में तमाम ऐसे तर्क दिए हैं जो जानवरों पर लागू होते हैं और वो मां बाप जो अपने बच्चों को किसी काम को करने के लिए प्रलोभन देते हैं उन्हें उसे ज़रूर समझना चाहिए.
बहरहाल मां बाप को इस बात को समझना होगा कि प्रलोभन से हम कोई काम करवा तो सकते हैं लेकिन चूंकि बच्चे को इसकी आदत लग जाती है आगे चलकर यही चीज बड़ी सामाजिक कुरीति जैसे रिश्वत की बड़ी वजह बनती है. प्रैक्टिकल स्वरुप क्या होता है? वो तो बाद की बात है. लेकिन थ्योरी यही है कि किसी भी बच्चे का पहला स्कूल उसका घर. पहली टीचर मां होती है. कभी अपने आचरण से, तो कभी अपनी सख्ती से मां ही बच्चे को बताती है कि उसे जीवन में क्या करना है? कैसे एक अच्छा इंसान बनकर बेहतर समाज की रचना करनी है.
यदि हम 10 या 15 साल पीछे जाएं तो प्रायः यही होता था. दौर बदला चीजें बदलीं और पूरी तरह से बदल गयी पेरेंटिंग. पहले जहां बच्चे मां बाप की आंख के इशारे पर ज़िन्दगी गुजर बसर करते थे, आज बात डील पर आ गयी है. यानी ये करो तो ये मिलेगा. हो सकता है उपरोक्त बातों के बाद तर्क ये भी आएं कि हम व्यर्थ में एक छोटी सी बात का बतंगड़ बना रहे हैं तो हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि आज तो हम दुलार में ऐसा कर रहे हैं. लेकिन कल जब ये विकार बनेगा तो क्या इसकी जिम्मेदारी स्वयं मां बाप लेंगे?
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