इंडियन एयरफोर्स को जॉइन करने के चार साल बाद जब अंसारी आफताब ने दाढ़ी रखने की अनुमति मांगी तो उन्हें इंडियन एयरफोर्स के नियमों के मुताबिक उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली. जिसके बाद अंसारी 40 दिन की छुट्टी पर चले गए और ड्यूटी पर दाढ़ी बढ़ाकर वापस लौटे. अंसारी को आईएएफ के नियम न मानने के लिए 2008 में नौकरी से हटा दिया गया.
अंसारी इस फैसले के खिलाफ कोर्ट चले गए और उन्होंने मौलिक अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के आधार पर सेना में मुस्लिमों को दाढ़ी रखने का केस फाइल कर दिया. अंसारी का तर्क था कि जिस तरह सिखों सेना में उनके बाल न कटाने व पगड़ी पहनने का अधिकार है उसी आधार पर मुस्लिमों को भी दाढ़ी रखने का अधिकार दिया जाए. बाद में इसी मुद्दे पर दो और याचिकाएं भी दायर हुईं, जिनमें एक आईएएफ के मोहम्मद जुबैर और दूसरी महाराष्ट्र के पुलिस कर्मचारी मोहम्मद फासी ने दायर की.
सेना में अपनी धार्मिक अस्थाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में विवादों में रहा है. दुनिया के ज्यादातर देशों ने सेना में धार्मिक प्रतीकों की अभिव्यक्ति करने पर रोक लगा रखी है. इसके पीछे तर्क है कि अगर हर किसी को उसकी मान्यताओं को अभिव्यक्ति करने की आजादी दे दी गई तो इससे सेना की एक इकाई के तौर पर सामंजस्य और उसकी सामूहिक पहचान को चोट पहुंचेगी.
इस मामले पर क्या कहा कोर्ट नेः
अंसारी द्वारा दाढ़ी रखने देने के लिए दायर याचिका पर जुलाई 2008 में सुनवाई करते हुए पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था,दाढ़ी रखना मुस्लिमों के लिए 'बाध्यकारी आवश्यकता' नहीं है. कोर्ट ने कहा, 'सेना के हर सदस्य के चेहरे की पहचान महत्वपूर्ण है, खासकर जब वह वर्दी में हो.' यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है और हाल ही में इस मामले की सुनवाई तेज किए जाने की अपील सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है.
भारत में अलग-अलग सेनाओं के लिए अलग-अलग नियमः
यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह सच है. ऐसा नहीं है कि...
इंडियन एयरफोर्स को जॉइन करने के चार साल बाद जब अंसारी आफताब ने दाढ़ी रखने की अनुमति मांगी तो उन्हें इंडियन एयरफोर्स के नियमों के मुताबिक उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली. जिसके बाद अंसारी 40 दिन की छुट्टी पर चले गए और ड्यूटी पर दाढ़ी बढ़ाकर वापस लौटे. अंसारी को आईएएफ के नियम न मानने के लिए 2008 में नौकरी से हटा दिया गया.
अंसारी इस फैसले के खिलाफ कोर्ट चले गए और उन्होंने मौलिक अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के आधार पर सेना में मुस्लिमों को दाढ़ी रखने का केस फाइल कर दिया. अंसारी का तर्क था कि जिस तरह सिखों सेना में उनके बाल न कटाने व पगड़ी पहनने का अधिकार है उसी आधार पर मुस्लिमों को भी दाढ़ी रखने का अधिकार दिया जाए. बाद में इसी मुद्दे पर दो और याचिकाएं भी दायर हुईं, जिनमें एक आईएएफ के मोहम्मद जुबैर और दूसरी महाराष्ट्र के पुलिस कर्मचारी मोहम्मद फासी ने दायर की.
सेना में अपनी धार्मिक अस्थाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में विवादों में रहा है. दुनिया के ज्यादातर देशों ने सेना में धार्मिक प्रतीकों की अभिव्यक्ति करने पर रोक लगा रखी है. इसके पीछे तर्क है कि अगर हर किसी को उसकी मान्यताओं को अभिव्यक्ति करने की आजादी दे दी गई तो इससे सेना की एक इकाई के तौर पर सामंजस्य और उसकी सामूहिक पहचान को चोट पहुंचेगी.
इस मामले पर क्या कहा कोर्ट नेः
अंसारी द्वारा दाढ़ी रखने देने के लिए दायर याचिका पर जुलाई 2008 में सुनवाई करते हुए पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था,दाढ़ी रखना मुस्लिमों के लिए 'बाध्यकारी आवश्यकता' नहीं है. कोर्ट ने कहा, 'सेना के हर सदस्य के चेहरे की पहचान महत्वपूर्ण है, खासकर जब वह वर्दी में हो.' यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है और हाल ही में इस मामले की सुनवाई तेज किए जाने की अपील सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है.
भारत में अलग-अलग सेनाओं के लिए अलग-अलग नियमः
यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह सच है. ऐसा नहीं है कि दाढ़ी न रखने का नियम भारतीय सेना के सभी अंगों पर लागू है. इंडियन नेवी के जवान अपने कमाडिंग ऑफिसर की इजाजत से दाढ़ी रख सकते हैं. दरअसल यह नियम ब्रिटिश रॉयल नेवी से आया है जिसमें नौसैनिकों को दाढ़ी रखने की इजाजत थी. 1971 तक भारतीय नौसैनिकों को दाढ़ी और मूंछ दोनों रखने की या क्लीन शेव रहने की इजाजत थी. लेकिन 1971 में एडमिरल आरके नंदा ने नौसैनिकों को उनकी मर्जी के मुताबिक दाढ़ी, मूंछ रखने या क्लीन शेव रहने की इजाजत दे दी. तब जारी आदेश में कहा गया था कि सिर्फ दाढ़ी या मूंछ या दोनों ही रखी जा सकती है.
इंडियन एयरफोर्स का नियम क्या हैः
मु्स्लिमों के दाढ़ी रखने के बारे में आईएएफ ने पहला निर्देश 1980 में जारी किया था. जिसके मुताबिक, 'दाढ़ी रखने वाली मुस्लिम व्यक्ति के दाढ़ी की लंबाई इतनी ही होनी चाहिए जो कि उसे मुट्ठी में लेने पर उससे बाहर न निकले.'लेकिन इसके लिए उसे इसका कारण बताते हुए कमाडिंग ऑफिसर को आवेदन देना होगा.लेकिन 2003 में आए निर्देश के मुताबिक, 'सिर्फ उन्हीं (मुस्लिमों) को दाढ़ी और मूंछ रखने की इजाजत होगी जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2002 से पहले हुई थी. लेकिन किसी भी हालत में बिना मूंछ के दाढ़ी रखने की इजाजत नहीं दी जाएगी.'
बाकी दुनिया में क्या हैं नियमः
अमेरिका समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में सेना में धार्मिक प्रतीकों को जाहिर न करने का चलन है.हालांकि अमेरिका में इसी साल जून में एक 20 वर्षीय सिख सैनिक इकनूर सिंह को फेडरल कोर्ट ने पगड़ी के साथ ही सेना का ऑफिसर बनने की इजाजत दी थी.अमेरिकी सेना ने पहले विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपने सैनिकों को यह कहकर दाढ़ी न रखने का आदेश दिया था कि इससे उन्हें गैस मास्क पहनने में दिक्कत हो सकती है. हालांकि ब्रिटिश नेवी ने अपने सैनिकों को पूरी दाढ़ी (दाढ़ी-मूंछ) रखने की इजाजत दे दी थी. ब्रिटिश सेना इस मामले में ज्यादा उदार है और वहां सैनिकों को पूरी दाढ़ी रखने की इजाजत है. साथ ही मुस्लिम महिला सैनिकों को पूरी बांह की शर्ट और ट्राउजर के साथ ही कोई खतरा न होने की स्थिति में हिजाब पहनने की भी इजाजत है. सेना क्यों नहीं देती धार्मिक प्रतीकों के अभिव्यक्ति की आजादीः
ऐसा न करने की वजह यह है कि सेना नहीं चाहती कि धार्मिक प्रतीकों की अभिव्यक्ति सेना के अनुशासन, सामंजस्य, समानता की सोच में बाधा उत्पन्न करें. साथ ही इन धार्मिक प्रतीकों से युद्ध के मैदान में सैनिक की जान को खतरा पैदा हो सकता है. इसी को आधार बनाते हुए पाकिस्तान एयर फोर्स ने 2006 में अपने पांच अफसरों का यह कहते हुए नौकरी से हटा दिया था कि उनकी दाढ़ी तय सीमा से ज्यादा बढ़ी है और इससे कॉकपिट में बेहोश हो सकते हैं.
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