फिट रहना कौन नहीं चाहता, और जैसे ही आप फाइनली ये तय कर लेते हैं कि अब तो वजन कम करके ही रहेंगे तो चाहने वालों के मुफ्त के ज्ञान की बाढ़ आ जाती है. जिम इंस्ट्रक्टर के साथ-साथ वो दोस्त भी जिसे खुद जिम जाते एक हफ्ता ही पूरा हुआ है, मतलब ये की सारी दुनिया आपको तंदरूस्त करने में जोर-शोर से भिड़ जाएगी.
ये सेल्फ-प्रोक्लेम्ड फिटनेस नाजी आपको संतुलित आहार लेने या फिर सिर्फ लिक्विड डायट पर रहने की सलाह देंगे, कार्डिओ एक्सरसाइज करने और हेवी वेट उठाने की सलाह देंगे. लेकिन यकीन मानिए इन सबसे इतना फायदा नहीं होगा. वजन घटाने के लिए शरीर से ज्यादा दिमाग की जरुरत है.
न तो मैं कोई फिटनेस गुरू हूं, न ही किसी की साइड ले रही हूं बल्कि लगातार पांच साल तक डाइटिंग और एक्सरसाइज करने और 35 किलो वजन घटाने के बाद मुझे एक बात तो समझ आ गई कि वजन कम करने की सारी बातें कोरी बकवास हैं.
ग्रे मैटर ही मैटर करता हैं
डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारा दिमाग किसी भी तरह के कैलोरी प्रतिबंध या खाने में बदलाव के खिलाफ रिएक्ट करता है. इससे वजन कम करने का हमारा लक्ष्य पाने में मुश्किल हुई है. हमारा दिमाग ऐसा शरीर के प्राकृतिक वजन को बनाए रखने के लिए करता है. हमारे शरीर का प्राकृतिक वजन हमारे आनुवंशिक इतिहास और जीवन के अनुभवों से निर्धारित होता है. इसलिए अगर आप आलसी, लालची हैं या फिर आप में मोटिवेशन की कमी है, तो वो इसलिए क्योंकि हमारा दिमाग शरीर के प्राकृतिक वजन को बनाकर रखने की मशक्कत में लगा है. और हमारे इस तरह के व्यवहार के पीछे का असली कारण यही है.
लेकिन, व्यायाम बहुत महत्वपूर्ण है
लेकिन रोजना जिम जाना भी संभव नहीं है. एक ही जगह रोज जाने के बोरिंग रूटीन के साथ-साथ भाग-दौड़ वाली जिंदगी के कारण सबसे पहले तिलांजलि जिम रूटीन की ही दी जाती है. कारण चाहे जो भी हो लेकिन ये इंसान होने की पहली पहचान है. बल्कि ये एक दुष्चक्र है: आलसी होना, वजन बढ़ना, व्यायाम ना करने के बहाने खोजना और अधिक वजन बढ़ाना....
फिट रहना कौन नहीं चाहता, और जैसे ही आप फाइनली ये तय कर लेते हैं कि अब तो वजन कम करके ही रहेंगे तो चाहने वालों के मुफ्त के ज्ञान की बाढ़ आ जाती है. जिम इंस्ट्रक्टर के साथ-साथ वो दोस्त भी जिसे खुद जिम जाते एक हफ्ता ही पूरा हुआ है, मतलब ये की सारी दुनिया आपको तंदरूस्त करने में जोर-शोर से भिड़ जाएगी.
ये सेल्फ-प्रोक्लेम्ड फिटनेस नाजी आपको संतुलित आहार लेने या फिर सिर्फ लिक्विड डायट पर रहने की सलाह देंगे, कार्डिओ एक्सरसाइज करने और हेवी वेट उठाने की सलाह देंगे. लेकिन यकीन मानिए इन सबसे इतना फायदा नहीं होगा. वजन घटाने के लिए शरीर से ज्यादा दिमाग की जरुरत है.
न तो मैं कोई फिटनेस गुरू हूं, न ही किसी की साइड ले रही हूं बल्कि लगातार पांच साल तक डाइटिंग और एक्सरसाइज करने और 35 किलो वजन घटाने के बाद मुझे एक बात तो समझ आ गई कि वजन कम करने की सारी बातें कोरी बकवास हैं.
ग्रे मैटर ही मैटर करता हैं
डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारा दिमाग किसी भी तरह के कैलोरी प्रतिबंध या खाने में बदलाव के खिलाफ रिएक्ट करता है. इससे वजन कम करने का हमारा लक्ष्य पाने में मुश्किल हुई है. हमारा दिमाग ऐसा शरीर के प्राकृतिक वजन को बनाए रखने के लिए करता है. हमारे शरीर का प्राकृतिक वजन हमारे आनुवंशिक इतिहास और जीवन के अनुभवों से निर्धारित होता है. इसलिए अगर आप आलसी, लालची हैं या फिर आप में मोटिवेशन की कमी है, तो वो इसलिए क्योंकि हमारा दिमाग शरीर के प्राकृतिक वजन को बनाकर रखने की मशक्कत में लगा है. और हमारे इस तरह के व्यवहार के पीछे का असली कारण यही है.
लेकिन, व्यायाम बहुत महत्वपूर्ण है
लेकिन रोजना जिम जाना भी संभव नहीं है. एक ही जगह रोज जाने के बोरिंग रूटीन के साथ-साथ भाग-दौड़ वाली जिंदगी के कारण सबसे पहले तिलांजलि जिम रूटीन की ही दी जाती है. कारण चाहे जो भी हो लेकिन ये इंसान होने की पहली पहचान है. बल्कि ये एक दुष्चक्र है: आलसी होना, वजन बढ़ना, व्यायाम ना करने के बहाने खोजना और अधिक वजन बढ़ाना. सिराकस विश्वविद्यालय भी इस दावे का समर्थन करता है और बताता है कि आप अपने शरीर से जितने ज्यादा असंतुष्ट रहते हैं कसरत करने की संभावना उतनी ही घट जाती है.
लेकिन इस आलस के चादर को हटाने के लिए सिर्फ पांच मिनट की जरुरत होती. जी हां सिर्फ पांच मिनट. पांच मिनट के लिए आलस के मोड से बाहर निकल जिम तक खुद को धकेलिए, फिर देखिए एक घंटे के एक्सरसाइज के बाद आप कैसे खुशी-खुशी वापस आएंगे. अपने भीतर के आलसी राक्षस को भगाने के लिए यही आखिरी शर्त है. कसरत के प्रभाव के बारे में सोचकर अपने दिमाग को यही वास्तव में आपको अपने भीतर के आलसी राक्षसों से जूझते समय सोचने की ज़रूरत है - अपने कसरत के बाद के प्रभाव असल में, यह आपके बारे में ध्यान केंद्रित करने के लिए अपने दिमाग को प्रशिक्षित करता है।
हमें क्या खाना है ये हम खुद ही तय करते हैं
खाना हमें पोषण के अलावा खुशी भी देता है. अगर हमारा खाना हमें खुशी नहीं देता तो तो समझिए कि खाने का पूरा फायदा हम नहीं उठा पा रहे हैं. लेकिन आखिर खाने को पसंद करना कैसे शुरू करें? तो हर रोज अपने दिल को ये लालच दें कि हफ्ते के अंत में टेस्टी और मनपसंद खाना खाने को मिलेगा. इस तरह धीरे-धीरे आपको तेल, मसाले के बगैर खाना खाने की आदत हो जाएगी और यही खाना पसंद भी आने लगेगा. हमें क्या पसंद है ये खुद हम तय करते हैं.
कभी-कभी, खुद को बेवकूफ बनाना चाहिए
ज्यादा से ज्यादा पानी पिए और खाने में फाइबर का इनटेक बढ़ा दें. भर प्लेट खाने की जगह थोड़ा-थोड़ा खाएं, उबली हुई सब्जियों को बटर चिकन या फिर पनीर पसंदा समझें. चम्मच से खाना खाएं. इस तरह के स्टेप्स पेट को तो भरेंगे ही साथ ही उल्टा-पुल्टा खाने की ललक भी खत्म हो जाएगी.
धैर्य हर मर्ज का इलाज
साइकोसोमेटिक मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जब भी आप अपने वजन के बारे में चिंतित होते हैं तो एडरेनल ग्लैंड से निकलने वाले कोर्टिसोल नाम का स्ट्रेस हॉर्मोन का सिक्रिशन करता है. ये हॉर्मोन पेट के चारों ओर फैट को बढ़ाता है. खैर इतनी मेहनत करने के बाद आपकी चिंताएं बिल्कुल जायज हैं.
हालांकि आपको खुद को बताना होगा हर दिन एक सा नहीं होता. कभी ऐसा भी दिन आएगा जब आप अपने फिटनेस प्लान को पूरी तरह फॉलो कर पाएंगे फिर कुछ दिन ऐसे भी बीतेंगे जब आप बिस्तर में ही पड़े रहेंगे. इसलिए खुद को तैयार करें और फिटनेस मंत्रा को लक्ष्य बना लें.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.