धूम्रपान से कैंसर हो सकता है. ये चेतावनी सिनेमा हॉल से लेकर सिगरेट और गुटखे पैकेट तक लिखे दिखाई पड़ते हैं. यहां तक की लोग भी कहते मिल जाते हैं कि नशे से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और कैंसर होता है. लेकिन फिर जो लोग नशा नहीं करते. सिगरेट नहीं पीते. तंबाकू का सेवन नहीं करते. हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाते हैं. अच्छा खाते हैं. रोजना व्यायाम करते हैं. डॉक्टर से समय-समय पर अपना चेकअप भी कराते रहते हैं. आखिर उन्हें कैंसर कैसे हो जाता है?
विश्व के नामी कैंसर स्पेशलिस्ट कहते हैं कि कैंसर कभी भी और किसी को भी हो सकता है. अगर आप एक हेल्दी लाइफस्टाइल फॉलो करते हैं तो भी. तो फिर आखिर इस रोग की जद में कब और कैसे आ जाते हैं और इससे बचने के उपाय क्या हैं?
मैरीलैंड यूएस के जॉन्स हॉप्किन्स यूनीवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि "दो-तिहाई कैंसर के केस का कारण अव्यवस्थित जीन म्यूटेशन है जिसकी वजह से ट्यूमर बढ़ जाता है." इसपर इंसान का कोई वश नहीं चलता और इससे बचने का कोई उपाय भी नहीं है. हालांकि हम इंसानों द्वारा बनाए गए कारकों की वजह से भी रिस्क में रहते हैं.
आइए जानते हैं उन कारकों के बारे में जो इंसानों द्वारा बनाए गए हैं-
1- जो खाना हम खाते हैं:
Better India में एक कैंसर स्पेशलिस्ट के एक आर्टिकल के मुताबिक भारतीय जो खाना खाते हैं उसमें कई तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं. जैसे- माइकोटॉक्सीन, माइक्रोब का संक्रमण, दवाइयां, हैवी मेटल, अनाधिकृत फूड एडिटीव और पेस्टीसाइड. कई पेस्टीसाइड यानी कीटनाशक में तो कैंसर के कारक केमिकल पाए जाते हैं. जब उन्हें फसलों पर कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तो उसके जरिए वो हमारे खाने की प्लेटों में आ जाते हैं. ये लाभदायक बैक्टेरिया को मार देते हैं और...
धूम्रपान से कैंसर हो सकता है. ये चेतावनी सिनेमा हॉल से लेकर सिगरेट और गुटखे पैकेट तक लिखे दिखाई पड़ते हैं. यहां तक की लोग भी कहते मिल जाते हैं कि नशे से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और कैंसर होता है. लेकिन फिर जो लोग नशा नहीं करते. सिगरेट नहीं पीते. तंबाकू का सेवन नहीं करते. हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाते हैं. अच्छा खाते हैं. रोजना व्यायाम करते हैं. डॉक्टर से समय-समय पर अपना चेकअप भी कराते रहते हैं. आखिर उन्हें कैंसर कैसे हो जाता है?
विश्व के नामी कैंसर स्पेशलिस्ट कहते हैं कि कैंसर कभी भी और किसी को भी हो सकता है. अगर आप एक हेल्दी लाइफस्टाइल फॉलो करते हैं तो भी. तो फिर आखिर इस रोग की जद में कब और कैसे आ जाते हैं और इससे बचने के उपाय क्या हैं?
मैरीलैंड यूएस के जॉन्स हॉप्किन्स यूनीवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि "दो-तिहाई कैंसर के केस का कारण अव्यवस्थित जीन म्यूटेशन है जिसकी वजह से ट्यूमर बढ़ जाता है." इसपर इंसान का कोई वश नहीं चलता और इससे बचने का कोई उपाय भी नहीं है. हालांकि हम इंसानों द्वारा बनाए गए कारकों की वजह से भी रिस्क में रहते हैं.
आइए जानते हैं उन कारकों के बारे में जो इंसानों द्वारा बनाए गए हैं-
1- जो खाना हम खाते हैं:
Better India में एक कैंसर स्पेशलिस्ट के एक आर्टिकल के मुताबिक भारतीय जो खाना खाते हैं उसमें कई तरह के कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं. जैसे- माइकोटॉक्सीन, माइक्रोब का संक्रमण, दवाइयां, हैवी मेटल, अनाधिकृत फूड एडिटीव और पेस्टीसाइड. कई पेस्टीसाइड यानी कीटनाशक में तो कैंसर के कारक केमिकल पाए जाते हैं. जब उन्हें फसलों पर कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है तो उसके जरिए वो हमारे खाने की प्लेटों में आ जाते हैं. ये लाभदायक बैक्टेरिया को मार देते हैं और हमारे इम्यून सिस्टम यानी रोगों से लड़ने की क्षमता को खत्म कर देते हैं.
कई पेस्टीसाइड तो जो विश्व में बैन हो गए हैं वो भी हमारे यहां इस्तेमाल किए जा रहे हैं. यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रीयल डेवेलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और यूरोपियन यूनियन से निष्कासित एग्रीफूड का भारत सबसे बड़ा बाजार है. दिसंबर 2016 में सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि सरकार विश्व भर में बैन 67 हानिकारक पेस्टीसाइड में से 51 का इस्तेमाल जारी रखेगी.
भारत में इस्तेमाल की जाने वाली 260 पेस्टीसाइड में 56 कैंसरकारी हैं और उन्हें विश्व में बैन कर दिया गया है. इंडोसल्फान के इस्तेमाल पर रोक लगाने का विरोध करने वाले कुछ देशों में से एक था. इंडोसल्फान को विश्व भर में बैन कर दिया गया है. केरल में ये न्यूरोटॉक्सिसिटी, यौन परिपक्वता में देरी, शारीरिक विकृति, विषाक्तता और कैंसर जैसी चीजों के लिए जिम्मेदार है.
पिछले साल मई में दिल्ली से जमा किए गए आंकड़ों के अनुसार 84 प्रतिशत ब्रेड और बेकरी उत्पादों में पोटाशियम ब्रोमेट, पोटाशियम आईयोडेट या फिर दोनों ही पाए जाते हैं. ये दोनों ही कैंसर के कारक हैं. 2015 में फूड सेफ्टी टेस्ट में मैगी में भारी मात्रा में लीड पाए जाने की वजह से बैन लगा दिया गया था. इसके बाद अभी हाल ही में मैगी फिर से सुर्खियों में आया है. इस बार इसमें भारी मात्रा में ऐश पाया गया है.
पंजाब के मालवा को राज्य का कपास बेल्ट माना जाता है. यहां भारी मात्रा में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल किया जाता है और यही कारण है कि यहां कैंसर के मामले भारी संख्या में पाए जाते हैं.
2- हम जो पानी पीते हैं:
पानी के स्रोतों में औद्योगिक अपशिष्टों का भारी मात्रा में उत्सर्जन करना भी पानी में आर्सेनिक की मात्रा को बढ़ाता है. जिससे हमारे पीने का पानी गंदा और हानिकारक हो जाता है. चावल जैसी फसलें आर्सेनिक को बहुत जल्दी ग्रहण कर लेती हैं और इसका लगातार कई सालों तक सेवन कैंसर को जन्म देता है. एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा डेल्टा के आसपास आर्सेनिक की बहुत ज्यादा मात्रा पाई जाती है जिसमें बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश, असम, मणिपुर और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं.
पटना के महावीर कैंसर संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां रोजाना 60 से 100 कैंसर के मरीज आते हैं. पंजाब में भी कैंसर के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है क्योंकि यहां के किसान खेतों में भारी मात्रा में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करते हैं.
3- जिस हवा में हम सांस लेते हैं:
प्रदूषित हवा हमारे फेफड़े को नुकसान पहुंचाते हैं. लेकिन ये सिर्फ फेफड़े के कैंसर तक ही सीमित नहीं होता. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित हवा में कई तरह के कैंसरकारी और म्यूटेंट पाए जाते हैं. लगातार इस्तेमाल से ये डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं, जो अंतत: मृत्यु का कारण बनता है. रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित हवा से होने वाली मौतों में सिर्फ लंग कैंसर के मरीज नहीं थे. बल्कि किडनी, ब्लाडर जैसे कैंसर भी इनके कारण पाए गए.
दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर दि गार्जियन ने लिखा कि- "हैवी मेटल और अन्य कैंसरकारी तत्व विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय सीमा से 30 गुणा ज्यादा हैं. हालत ये है कि दिल्ली की हवा में सांस लेने वाले रोजाना 50 सिगरेट पीने वालों के बराबर प्रदूषित हवा अपने अंदर ले रहा है." इसी रिपोर्ट में एक डॉक्टर के हवाले से कहा गया है कि- "दिल्ली बदल रही है और अब इस शहर में कैंसर के तत्व पाए जा रहे हैं. पहले 90 प्रतिशत लंग कैंसर के मरीज 50-60 की उम्र के होते थे और सिगरेट पीने के कारण कैंसर से ग्रसित होते थे. लेकिन अब भारी मात्रा में ऐसे लोग आ रहे हैं जो सिगरेट नहीं पीते और उनकी उम्र 40 के करीब होती है. कई मामले तो 30 साल के लोगों के भी आते हैं."
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