कुछ दृश्य चौंकाने वाले होते हैं. वहीं कुछ ऐसे जिन्हें देखकर दिल दहल जाता है. डर लगता है और अंतर्मन से आवाज आती है कि ओह माय गॉड ये क्या हो गया? यार ये तो होना ही नहीं था. डर कैसा होता है? ये हम और आप समझें न समझें. लेकिन स्पाइसजेट की मुंबई- दुर्गापुर फ्लाइट बोईंग 737 में बैठे मुसाफिर जरूर समझ गए होंगे. जिन्हें तब उस वक़्त अफरा तफरी का सामना करना पड़ा जब लैंडिंग के वक़्त प्लेन ने एयर टर्बुलेन्स का सामना किया. ऐसे मैटर पर जो कल्प्रिट होता है वो बेचारा बेजुबान मौसम है इसलिए एक बार फिर ऐसे मामलों पर उस पर दोष मढ़ दिया गया है. कहा जा रहा है कि घटना के चलते केबिन में रखे सामान पैसेंजर्स के ऊपर गिरने लगे. नतीजा ये निकला कि हादसे में 13 यात्रियों को गंभीर चोटें आईं. जिन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
दृश्य: अस्पताल का
हादसा बड़ा था और हवाई जहाज का था तो हवाई जहाज को लेकर जैसा हव्वा हमारे समाज में है महसूस यही हुआ कि जो घायल होंगे उनकी अस्पताल में आव भगत खास या हवाई जहाज वाले अंदाज में ही हो रही होगी. अस्पताल गए तो वहां सीन ही अलग था. ऐसा लगा दिल्ली के करोलबाग़ में कहीं ई रिक्शा पलटा है और उन्हें इलाज के लिए पास के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया है.
नहीं मतलब सच में. घायल सवारियों को थोड़ा तो हवाई जहाज वाला फील देना था. ये क्या कि बीटाडीन या सुफरामाइसीन चुपड़ी हुई सफ़ेद वाली पट्टी रैंडमली बांध दी जाए. देखकर तो लग ही नहीं रहा कि कि ये लोग हवाई जहाज में हुए एयर टर्बुलेन्स के कारण अटैची, लैपटॉप बैग, हैंड बैग की चपेट में आए हैं. अस्पताल का जैसा हाल है और जैसी इन घायलों की हालत है वैसी तो तब भी...
कुछ दृश्य चौंकाने वाले होते हैं. वहीं कुछ ऐसे जिन्हें देखकर दिल दहल जाता है. डर लगता है और अंतर्मन से आवाज आती है कि ओह माय गॉड ये क्या हो गया? यार ये तो होना ही नहीं था. डर कैसा होता है? ये हम और आप समझें न समझें. लेकिन स्पाइसजेट की मुंबई- दुर्गापुर फ्लाइट बोईंग 737 में बैठे मुसाफिर जरूर समझ गए होंगे. जिन्हें तब उस वक़्त अफरा तफरी का सामना करना पड़ा जब लैंडिंग के वक़्त प्लेन ने एयर टर्बुलेन्स का सामना किया. ऐसे मैटर पर जो कल्प्रिट होता है वो बेचारा बेजुबान मौसम है इसलिए एक बार फिर ऐसे मामलों पर उस पर दोष मढ़ दिया गया है. कहा जा रहा है कि घटना के चलते केबिन में रखे सामान पैसेंजर्स के ऊपर गिरने लगे. नतीजा ये निकला कि हादसे में 13 यात्रियों को गंभीर चोटें आईं. जिन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
दृश्य: अस्पताल का
हादसा बड़ा था और हवाई जहाज का था तो हवाई जहाज को लेकर जैसा हव्वा हमारे समाज में है महसूस यही हुआ कि जो घायल होंगे उनकी अस्पताल में आव भगत खास या हवाई जहाज वाले अंदाज में ही हो रही होगी. अस्पताल गए तो वहां सीन ही अलग था. ऐसा लगा दिल्ली के करोलबाग़ में कहीं ई रिक्शा पलटा है और उन्हें इलाज के लिए पास के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया है.
नहीं मतलब सच में. घायल सवारियों को थोड़ा तो हवाई जहाज वाला फील देना था. ये क्या कि बीटाडीन या सुफरामाइसीन चुपड़ी हुई सफ़ेद वाली पट्टी रैंडमली बांध दी जाए. देखकर तो लग ही नहीं रहा कि कि ये लोग हवाई जहाज में हुए एयर टर्बुलेन्स के कारण अटैची, लैपटॉप बैग, हैंड बैग की चपेट में आए हैं. अस्पताल का जैसा हाल है और जैसी इन घायलों की हालत है वैसी तो तब भी नहीं होती जब हमारे यूपी में गन्ने वाले सीजन में शुगर मिल के पास दो ट्रेक्टर ट्रालियों की भिड़ंत होती है.
पूरे मामले में यूं तो आपत्ति के लिए कई बिन्दु हैं लेकिन जो बिंदु हमें सबसे ज्यादा कचोट रहा है वो है घायलों की बेतरतीबी से हुई पट्टी. कम से कम इन घायलों को देखकर अस्पताल और डॉक्टर साहब का ही दिल पसीज जाता और वो थोड़ा सॉफिस्टिकेटेड हो जाते. खुद सोचिये क्या हाल हुआ होगा उन मीडिया वालों का जो जहाज के घायलों की तस्वीर अपने कैमरा में उतारना चाहते होंगे? आए होंगे बेचारे अस्पताल.
देखा होगा इन मरीजों को और जैसा इनका ट्रीटमेंट और हालत है बेचारे सोच रहे होंगे कि फर्जी में इस पेट्रोल प्राइस हाइक वाले दौर में कार या बाइक से अस्पताल आ गए इससे अच्छा तो ये होता कि किसी पुराने आर्काइव से किसी ट्रैक्टर ट्राली हादसे की ही फोटो निकाल ली होती. बात सीढ़ी और साफ़ है इस मामले में घायलों को चाहिए थी फुलटू इज्जत.
कहां हुआ हादसा?
ऊपर इतनी बातें हो गयीं हैं. ऐसे में हमारे लिए घटना की जगह को समझ लेना अबसे ज्यादा जरूरी है. अब तब जो जानकारी इस पूरे मामले में मिली है यदि उसपर नजर दौड़ाई जाए तो मिलता है कि विमान को पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर स्थित काजी नज़रुल इस्लाम एयरपोर्ट पर लैंड करना था. तभी अचानक मौसम खराब हुआ और इसी ख़राब मौसम के कारण विमान को भारी तूफान का सामना करना पड़ा और उसके बाद ही ये अप्रिय घटना घटी.
तूफान कितना प्रभावशाली था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसने केबिन में रखे सामान को अपनी चपेट में लिया वो गिरा और यात्रियों को गंभीर चोट आईं. भले ही स्पाइसजेट ने इस घटना को बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए खेद व्यक्त किया हो और एयरलाइन की तरफ से घायलों को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा रही हो लेकिन जिस तरह की ये घटना हुई है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि जमीन तो जमीन आसमान भी ट्रेवल करने के लिए सेफ जगह नहीं है.
क्यों होता है Air Turbulence?
अब जबकि इतना बड़ा मामला हमारे सामने आ ही गया है. हमने अस्पताल में ऊ आह आउच करते लोगों को देख ही लिया है. तो जो बड़ा सवाल हमारे सामने है वो ये है कि आखिर ये टर्बुलेंस है किस चिड़िया का नाम? ये होता क्यों है? जवाब जान लीजिये. विमान का पूरा मेकनिज्म हवा पर आधारित है. विमान जब चल रहा होता है और अनियंत्रित होकर जब हवा उसके पंखों से टकराती है तब विमान में एयर टर्बुलेंस उत्पन्न होता है. इससे होता ये है कि विमान ऊपर-नीचे होने लगता है और यात्रियों को झटके लगने शुरू हो जाते हैं.
एयर टर्बुलेंस के मद्देनजर जो एक दिलचस्प बात है वो ये कि उड़ते हुए विमानों को मिनिमम सात तरह के टर्बुलेंस का सामना करना पड़ता है. टर्बुलेंस मौसम से जुड़ा होता है इस स्थिति में आसमान में बिजली कड़कने और भारी बादल होने के समय विमान में टर्बुलेंस पैदा होता है.
ऐसा बिलकुल नहीं होता कि अपने पायलट भाई बंधू टर्बुलेंस से अंजान होते हैं. पायलट्स को बाकायदा इसकी ट्रेनिंग दी जाती है लेकिन बात फिर वही है कि आखिर होनी को कौन टाल सकता है. फ्लाइट के पहले पायलटों को उड़ान वाले रास्ते के मौसम की पूरी रिपोर्ट सौंपी जाती है. पायलट को यदि कहीं पर भी ये शक हुआ कि टर्बुलेंस के परिणाम गंभीर हो सकते हैं तो वो आनन फानन में अपने रूट को डायवर्ट करने की अपील कर सकता है.
इसके अलावा उड़ान के समय भी यदि पायलट को लगता है कि टर्बुलेंस ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है तो वह एटीसी से संपर्क कर विमान को दूसरे रास्ते से जाने का अनुरोध कर सकता है. अच्छा चूंकि उड़ान के दौरान भी एटीसी और पायलटों के बीच रीयल टाइम पर मौसम के बारे में बातचीत होती रहती है तो प्रायः हादसे बचा ही लिए जाते हैं. जाहिर सी बात है मुंबई- दुर्गापुर फ्लाइट बोईंग 737 पर भी पायलट की बात एटीसी से हुई होगी. कहीं ऐसा तो नहीं उस वक़्त उसका ध्यान कहीं और था और वो अपनी ही दुनिया में मग्न रहा हो.
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