होली (Holi 2021) रंगों और खुशियों का त्योहार है, लेकिन इसके नाम पर कुछ लोग लड़कियों को निशाना बनाते हैं. होली के कुछ दिन पहले जहां घरों में तैयारियां शुरू हो जाती हैं वहीं लड़कियों को बाहर निकलने में डर लगता है. यह डर लड़कों के मन में नहीं होता. ऑफिस जाते वक्त, कॉलेज जाते समय लड़कियों के मन में यह दहशत होती है कि कोई हुड़दंगी पानी से भरा गुब्बारा ना फेंक दे. इसलिए वे चारों तरफ देखती रहती हैं. इससे बचने के लिए कभी रिक्शा तो कभी ऑटो का सहारा लेती हैं.
मुझे ध्यान है मेट्रो से ऑफिस जाने वाली मेरी दोस्त होली से पहले ही कैब से आना-जाना करने लगती थी, ताकि जब उस पर निशाना साधा जाए और उसके कपड़े गीले हो जाएं तो उसे शर्मिंदा ना होना पड़े. अजीब बात है ना गलती करे सामने वाला और शर्मिंदगी का एहससा लड़की को करवाया जाता है.
ऐसे लोग कहीं दूसरे शहर से नहीं आते बल्कि आपके पड़ोसी और मोहल्ले वाले ही होते हैं. लड़कियों को सड़क पर निकलने से डर लगता है कि कोई बुरा ना मानो होली के नाम पर उन्हें जबरदस्ती रंग (Happy holi) ना लगा दे. सड़क पर चलती हुई लड़कियों के शरीर पर निशाना लगाकर ऊपर छत से पानी भरे गुब्बारे फेंकने से ना जाने लोगों को कौन सा रस मिल जाता है. मानो ऐसा करके उन्हें अपनी जीत का एहसास होता है.
होली कभी मिलन समारोह का त्योहार था. बिना भेदभाव के सब लोग मिलकर प्रेम से इस फेस्टिवल को मनाते थे. पकवान बनते थे, लोग आपस में मिलकर ढोल बजाकर लोकगीत गाते थे और रंग लगाते थे. अब तो कीचड़, नाले का पानी, कालिख और ना जाने किन-किन चीजों ने रंगों की जगह ले ली. ये सब सामने वाले के मुंह पर लगाकर मानो जैसे उससे बदला रे रहे हों. पूर्वी यूपी और बिहार में लड़कियों की सुरक्षा के लिहाज...
होली (Holi 2021) रंगों और खुशियों का त्योहार है, लेकिन इसके नाम पर कुछ लोग लड़कियों को निशाना बनाते हैं. होली के कुछ दिन पहले जहां घरों में तैयारियां शुरू हो जाती हैं वहीं लड़कियों को बाहर निकलने में डर लगता है. यह डर लड़कों के मन में नहीं होता. ऑफिस जाते वक्त, कॉलेज जाते समय लड़कियों के मन में यह दहशत होती है कि कोई हुड़दंगी पानी से भरा गुब्बारा ना फेंक दे. इसलिए वे चारों तरफ देखती रहती हैं. इससे बचने के लिए कभी रिक्शा तो कभी ऑटो का सहारा लेती हैं.
मुझे ध्यान है मेट्रो से ऑफिस जाने वाली मेरी दोस्त होली से पहले ही कैब से आना-जाना करने लगती थी, ताकि जब उस पर निशाना साधा जाए और उसके कपड़े गीले हो जाएं तो उसे शर्मिंदा ना होना पड़े. अजीब बात है ना गलती करे सामने वाला और शर्मिंदगी का एहससा लड़की को करवाया जाता है.
ऐसे लोग कहीं दूसरे शहर से नहीं आते बल्कि आपके पड़ोसी और मोहल्ले वाले ही होते हैं. लड़कियों को सड़क पर निकलने से डर लगता है कि कोई बुरा ना मानो होली के नाम पर उन्हें जबरदस्ती रंग (Happy holi) ना लगा दे. सड़क पर चलती हुई लड़कियों के शरीर पर निशाना लगाकर ऊपर छत से पानी भरे गुब्बारे फेंकने से ना जाने लोगों को कौन सा रस मिल जाता है. मानो ऐसा करके उन्हें अपनी जीत का एहसास होता है.
होली कभी मिलन समारोह का त्योहार था. बिना भेदभाव के सब लोग मिलकर प्रेम से इस फेस्टिवल को मनाते थे. पकवान बनते थे, लोग आपस में मिलकर ढोल बजाकर लोकगीत गाते थे और रंग लगाते थे. अब तो कीचड़, नाले का पानी, कालिख और ना जाने किन-किन चीजों ने रंगों की जगह ले ली. ये सब सामने वाले के मुंह पर लगाकर मानो जैसे उससे बदला रे रहे हों. पूर्वी यूपी और बिहार में लड़कियों की सुरक्षा के लिहाज से कई घरों के बाहर ताला जड़ दिया जाता है. एक तरफ लड़के बेफ्रिक होकर घूमते हैं वहीं दूसरी तरफ लड़कियों बाहर निकलने पर मनाही होती है.
लड़के अपने दोस्तों के घर रंग लगाने जाते हैं लेकिन जब तक रंग खेलने का समय होता है लड़कियां अपने दोस्तों से मिलने बाहर नहीं जा सकतीं, अकेली तो बिल्कुल नहीं . होली वाले दिन रिश्तेदार, पड़ोसी ही महिलाओं को जबरदस्ती रंग लगाकर बड़े प्यार से बोलते हैं कि बुरा ना मानो होली है. क्यों ना बुरा माने हम? एक तो जबरदस्ती में रंग ऐसे लगाते हैं जैसे कोई जंग जीतनी है. गलत सोच वाले कुछ लोग इसी बहाने लड़कियों को इधर-उधर छूने की कोशिश करते हैं.
लड़की अगर होली खेलने से मना कर दे तो जैसे बात इनकी इज्जत पर आ जाती है और फिर अपनी पूरी ताकत उसे रंग लाने में झोंक देते हैं. अगर कोई लड़की किसी की भाभी और साली है तब तो मोहल्ले भर के देवर और जीजा जी इकट्ठा हो जाएंगे और घर का दरवाजा बंद हो तो सबसे सिफारिश करके उसे खुलवाने की कोशिश करेंगे. दरवाजा ना खोलने और रंग लगाने से मन करने पर बात रिश्ते के मान रखने तक पहुंच जाती है. बुरा ना मानो होली है बोलकर उस दिन समझेंगे कि हमें सामने वाली महिला को हाथ लगाने का मौका मिल गया है.
होली के नाम पर कोई कुछ बोलता भी नहीं है, लोग समझते हैं कि भाभी या साली के साथ इतना तो चलता है. जबकि महिलाएं और लड़कियां नहीं जाती किसी देवर या जीजा के ऊपर जबरदस्ती रंग लगाने क्योंकि उन्हें पता है कि वे उनसे जीत नहीं पाएंगी. साथ ही घर आए मोहल्ले वाले तबतक दरवाजे पर ही जमे रहेंगे जबतक वो उस घर की महिला को रंग ना लगा दें.
वहीं होली आते ही लड़कियां किचन में मां के साथ पापड़, चिप्स और पकवान बनाने में लग जाती हैं. जबकि लड़के पिचकारी खरीदने में. होली वाले दिन लड़कियां घर की सफाई और घर आए मेहमानों की खातिरदारी में जुट जाती हैं जबकि लड़के दिन भर बाहर होली खेलते हैं, नशा करते हैं और थक गए तो सो जाते हैं. आज भी कई जगहों पर रात में होलिका दहन (holika Dahan 2021 holi) के वक्त लड़कियों का वहां जाना मना होता है. जबकि लड़कों को जाने की छूट होती है.
यह बात सभी को पता है कि लड़के और लड़कियां दोनों ही इस त्योहार के लिए उत्साहित रहते हैं. लड़कियों को होली से कोई प्रॉब्लम नहीं है. अगर कोई प्यार से, इज्जत से बिना जबरदस्ती किए रंग या गुलाल लगाए तो. अगर कोई बस रंग लगाना चाहता और उसके मन में कोई चोर नहीं है तो. अगर कोई किसी बहाने से उन्हें छूना ना चाहे तो.
दिल्ली की एक घटना है, चलती बस में लड़की के उपर वीर्य से भरे गुब्बारे फेंके गए थे. तो हम बुरा क्यों ना माने. लड़कियों के साथ छेड़खानी और बदतमीजी की जाती है जो बेहद शर्मनाक है. ऐसा लड़कों के साथ नहीं होता. समाज के कुंठित लोग लड़कियों को अपना निशाना बनाते हैं और इसे अपनी बहादुरी समझते हैं.
होली जीवन में रंग भरती है लेकिन अफसोस की बात है कि ज्यादातर लड़कियों के साथ होली के नाम पर कभी ना कभी शोषण हुआ है. होली के दिन लड़के नशे में कुछ भी करें तो चलता है लेकिन लड़कियां खुलकर रंग भी नहीं खेल सकतीं. उन्हें पहले से ही 10 तरह की हिदायत दे दी जाती है. शायद मां-बाप के मन में भी इस दिन को लेकर जो डर है यह उसी का प्रमाण है.
साथ ही सोशली मीडिया पर लड़कियों की अश्लील तस्वीरों के जरिए एक-दूसरे को बधाई दी जाती है, लड़कों की तस्वीरें तो नहीं भेजी जातीं. अफसोस, आज भी लड़कियों की बराबरी और हक की बाते सिर्फ बहस के मुद्दे तक ही सीमित है. लड़कियों को भोग की वस्तु ही समझा जाता है. होली के दिन कभी भांग तो कभी शराब के नशे में हुड़दंगियों को उनका शोषण करने का मौका मिल जाता है.
होली तो पहले मनाई जाती थी जब सखियां टोली में निकलती थीं और खुलकर नाचती गाती थीं. उन्हें डर नहीं रहता था लेकिन अब कुछ गलत मानसिकता वाले लोग इस त्योहार को बेरंग करने की कोशिश करते हैं. लड़कियां आराम से होली खेलती हैं लड़कों की तरह कपड़े फाड़ और नाले वाली नहीं. इसलिए अगर कोई लड़की रंग लगाने से मना करती है तो उसके ना को हां समझने की गलती मत करें. 29 मार्च को होली 2021 ऐसे मनाएं कि चेहरे पर हंसी आए ना की आंखों में आंसू.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.