रेप एक घिनौना अपराध है. इसके बारे में हम हर दिन कहीं न कहीं सुनते रहते हैं. इस पर चर्चा भी करते हैं. ये महिला सुरक्षा का एक अहम मुद्दा भी है. इसमें हर उम्र की महिला चाहें वो 2 साल की बच्ची हो या 80 साल की बुजुर्ग, हवस के शिकारी किसी को भी नहीं छोड़ते. इनदिनों इसी से जुड़ा एक शब्द बहुत ज्यादा सुनने में आ रहा है. इसका नाम डिजिटल रेप है. डिजिटलाइजेशन के इस दौर में आखिर डिजिटल रेप क्या है, आइए इसके बारे में जानते हैं.
हम जब भी डिजिटल शब्द सुनते हैं तो हमारे दिमाग में इंटरनेट की विशाल दुनिया दिखाई देती है. इसके बाद जेहन में आता है कि ये जरूर कुछ टेक्निकल होगा या वर्चुअली किया गया सेक्सुअल असॉल्ट होगा. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. डिजिटल रेप वह अपराध है जिसमें पीड़िता या बिना किसी से मर्जी के उंगलियों से या हाथ-पैर के अंगूठे से जबरदस्ती पेनेट्रेशन किया गया हो. यहां डिजिटल रेप में डिजिट शब्द का अर्थ ऊंगली से लिया जाता है.
साल 2012 हुए निर्भया कांड से पहले इस टर्म को कोई नहीं जानता था. आज जिस अपराध को डिजिटल रेप का नाम दिया गया है, उसे 2012 के पहले छेड़खानी का नाम दिया गया था. लेकिन निर्भया केस के बाद रेप से जुड़े तमाम कानूनों में परिवर्तन किए गए. इसमें इस तरह के अपराध को भी रेप की श्रेणी में रखा गया. हाथ की उंगली या अंगूठे से जबरदस्ती पेनेट्रेशन को यौन अपराध मानते हुए सेक्शन 375 और पॉक्सो एक्ट की श्रेणी में रखा गया है.
ऐसा देखा गया है कि डिजिटल रेप के मामलों 100 में से 70 फीसदी केस में अपराधी महिला का करीबी होता है. इसमें उसका चाचा, मामा या कई बार तो खुद पिता भी शामिल होता है. 29 फीसदी केस में कोई करीबी मित्र या महिला के सामाजिक दायरे में आने वाला कोई अजनबी भी होता है. कानून के नज़रिए में दोनों रेप केस में कोई फर्क नही होता है. निर्भया केस के बाद जब यौन...
रेप एक घिनौना अपराध है. इसके बारे में हम हर दिन कहीं न कहीं सुनते रहते हैं. इस पर चर्चा भी करते हैं. ये महिला सुरक्षा का एक अहम मुद्दा भी है. इसमें हर उम्र की महिला चाहें वो 2 साल की बच्ची हो या 80 साल की बुजुर्ग, हवस के शिकारी किसी को भी नहीं छोड़ते. इनदिनों इसी से जुड़ा एक शब्द बहुत ज्यादा सुनने में आ रहा है. इसका नाम डिजिटल रेप है. डिजिटलाइजेशन के इस दौर में आखिर डिजिटल रेप क्या है, आइए इसके बारे में जानते हैं.
हम जब भी डिजिटल शब्द सुनते हैं तो हमारे दिमाग में इंटरनेट की विशाल दुनिया दिखाई देती है. इसके बाद जेहन में आता है कि ये जरूर कुछ टेक्निकल होगा या वर्चुअली किया गया सेक्सुअल असॉल्ट होगा. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. डिजिटल रेप वह अपराध है जिसमें पीड़िता या बिना किसी से मर्जी के उंगलियों से या हाथ-पैर के अंगूठे से जबरदस्ती पेनेट्रेशन किया गया हो. यहां डिजिटल रेप में डिजिट शब्द का अर्थ ऊंगली से लिया जाता है.
साल 2012 हुए निर्भया कांड से पहले इस टर्म को कोई नहीं जानता था. आज जिस अपराध को डिजिटल रेप का नाम दिया गया है, उसे 2012 के पहले छेड़खानी का नाम दिया गया था. लेकिन निर्भया केस के बाद रेप से जुड़े तमाम कानूनों में परिवर्तन किए गए. इसमें इस तरह के अपराध को भी रेप की श्रेणी में रखा गया. हाथ की उंगली या अंगूठे से जबरदस्ती पेनेट्रेशन को यौन अपराध मानते हुए सेक्शन 375 और पॉक्सो एक्ट की श्रेणी में रखा गया है.
ऐसा देखा गया है कि डिजिटल रेप के मामलों 100 में से 70 फीसदी केस में अपराधी महिला का करीबी होता है. इसमें उसका चाचा, मामा या कई बार तो खुद पिता भी शामिल होता है. 29 फीसदी केस में कोई करीबी मित्र या महिला के सामाजिक दायरे में आने वाला कोई अजनबी भी होता है. कानून के नज़रिए में दोनों रेप केस में कोई फर्क नही होता है. निर्भया केस के बाद जब यौन उत्पीड़न के कानून की समीक्षा की गई तब भारत के पूर्व न्यायाधीश जे एस वर्मा के अध्यक्षता वाली कमिटी ने कुछ सुझाव दिए थे.
इसमें दशको पुराने कानून में बदलाव किए गए और उसी में लिखी गई रेप की परिभाषा को साल 2013 में फ़ोर्स पेनो-वाग्निअल से बढ़या गया और ये कहा गया कि अगर किसी भी महिला के शरीर मे किसी भी चीज़ या शरीकि अंग को जबरदस्ती डाल जाता है, तो इसे रेप माना जाएगा. निर्भया एक्ट के सेक्शन बी में भी इसे लिखा गया है. डिजिटल रेप के मामले में सजा का प्रवधान पॉस्को एक्ट के तहत 5 साल की जेल भी हो सकती है. यदि अगर कोई केस आईपीसी की धारा 376 के तहत आता है तो उस मामले में 10 साल से लेकर उम्र कैद भी हो सकती है. यहां ये सोचने वाली बात जरूर है कि हमारे देश की महिलाएं कहां सुरक्षित हैं?
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