आज से करीबन दो हजार साल पहले संस्कृत में लिखी गई तत्पश्चात सदियां बीत जाने पर साल 1883 में अंग्रेजी भाषा में अनुदित होकर प्रकाशित हुई एक ऐसी पुस्तक जिसे कामसूत्र, कामशास्त्र या अंग्रेजी में कहें तो सैक्सोलॉजी कहा गया. आखिरकार सदियां बीत जाने पर भी इस ग्रन्थ की इतनी प्रासंगिकता है कि आज भी यह ग्रन्थ चोरी छुपे ही सही लेकिन हर वर्ग के लोगों द्वारा इसे पढ़ा जाता है. लेकिन वे इस पर बात नहीं करना चाहते. इस ग्रन्थ का मूल विषय जीवन को बेहतर ढंग से जीने की कला, प्रेम की प्रकृति, जीवनसाथी की खोज तथा मानव जीवन के आंनद के पलों को उकेरना है.
हालांकि ऋषि वात्स्यायन ने जो कामसूत्र अथवा कामशास्त्र लिखा वह किस कालखंड में लिखा इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता. लेकिन विद्वान तथा शोधकर्ता मानते हैं कि.महर्षि ने अपने इस विश्वविख्यात ग्रन्थ की रचना सम्भवतः ईसा की तीसरी सदी के मध्य में की. यह एक ऐसी प्राचीनतम कृति है. जिसका विश्व की हर भाषा में अनुवाद हो चुका है. जब 1883 में सर रिचर्ड एफ बर्टन ने ब्रिटेन में इसका अंग्रेजी अनुवाद किया तो साहित्य जगत में तूफान खड़े हुए. और इस अनुदित कृति को कहा जाता है कि उस जमाने में 100 से 150 पौंड तक में खरीदा गया. आज इसकी कीमत देखें तो यह 10 से 15 हजार भारतीय रुपए ठहरती है.
वस्तुतः कामसूत्र के रचयिता महर्षि वात्स्यायन के अनुसार यह शास्त्र पति-पत्नी के बीच धार्मिक-सामाजिक नियमों के शिक्षक का कार्य करेगा. किन्तु अफसोस कि जिस महान कृति में काम (यौन) को लेकर 64 कलाओं अथवा क्रियाओं का जिक्र किया गया उनका रूप, स्वरूप विकृत करके समाज के समक्ष प्रस्तुत किया गया. महर्षि के अनुसार ये 64 तरीके नहीं काम क्रीड़ा को करने के अपितु ये तो स्त्री के विभिन्न रूप हैं. इनमें प्रमुख हैं, गीतम यानी गाना, वाद्यम यानी बाजा बजाना, नृत्यम यानी नाचना, आलेख्यम- चित्रकारी करना, विशेषकच्छेदयम-भोजन के पत्तों को तिलक के आकार में काटना, पुष्पास्तरणम- घर अथवा कमरों को फूलों से सजाना, शसनकचनम्- शैया की रचना. उदकाघात- जल क्रीड़ा करते समय...
आज से करीबन दो हजार साल पहले संस्कृत में लिखी गई तत्पश्चात सदियां बीत जाने पर साल 1883 में अंग्रेजी भाषा में अनुदित होकर प्रकाशित हुई एक ऐसी पुस्तक जिसे कामसूत्र, कामशास्त्र या अंग्रेजी में कहें तो सैक्सोलॉजी कहा गया. आखिरकार सदियां बीत जाने पर भी इस ग्रन्थ की इतनी प्रासंगिकता है कि आज भी यह ग्रन्थ चोरी छुपे ही सही लेकिन हर वर्ग के लोगों द्वारा इसे पढ़ा जाता है. लेकिन वे इस पर बात नहीं करना चाहते. इस ग्रन्थ का मूल विषय जीवन को बेहतर ढंग से जीने की कला, प्रेम की प्रकृति, जीवनसाथी की खोज तथा मानव जीवन के आंनद के पलों को उकेरना है.
हालांकि ऋषि वात्स्यायन ने जो कामसूत्र अथवा कामशास्त्र लिखा वह किस कालखंड में लिखा इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता. लेकिन विद्वान तथा शोधकर्ता मानते हैं कि.महर्षि ने अपने इस विश्वविख्यात ग्रन्थ की रचना सम्भवतः ईसा की तीसरी सदी के मध्य में की. यह एक ऐसी प्राचीनतम कृति है. जिसका विश्व की हर भाषा में अनुवाद हो चुका है. जब 1883 में सर रिचर्ड एफ बर्टन ने ब्रिटेन में इसका अंग्रेजी अनुवाद किया तो साहित्य जगत में तूफान खड़े हुए. और इस अनुदित कृति को कहा जाता है कि उस जमाने में 100 से 150 पौंड तक में खरीदा गया. आज इसकी कीमत देखें तो यह 10 से 15 हजार भारतीय रुपए ठहरती है.
वस्तुतः कामसूत्र के रचयिता महर्षि वात्स्यायन के अनुसार यह शास्त्र पति-पत्नी के बीच धार्मिक-सामाजिक नियमों के शिक्षक का कार्य करेगा. किन्तु अफसोस कि जिस महान कृति में काम (यौन) को लेकर 64 कलाओं अथवा क्रियाओं का जिक्र किया गया उनका रूप, स्वरूप विकृत करके समाज के समक्ष प्रस्तुत किया गया. महर्षि के अनुसार ये 64 तरीके नहीं काम क्रीड़ा को करने के अपितु ये तो स्त्री के विभिन्न रूप हैं. इनमें प्रमुख हैं, गीतम यानी गाना, वाद्यम यानी बाजा बजाना, नृत्यम यानी नाचना, आलेख्यम- चित्रकारी करना, विशेषकच्छेदयम-भोजन के पत्तों को तिलक के आकार में काटना, पुष्पास्तरणम- घर अथवा कमरों को फूलों से सजाना, शसनकचनम्- शैया की रचना. उदकाघात- जल क्रीड़ा करते समय कलात्मक ढंग से पानी के छींटे मारना.
इसके अलावा भी कामशास्त्र में विभिन्न तरीके दिए गए हैं. मसलन शंख तथा हाथी दांत से विभिन्न प्रकार के आभूषणों को बनाना, हाथों की सफाई, जाली बुनना, पिरोना और उसे सिलना, वीणा, डमरू आदि बजाना, ऐसे श्लोक कहना जिनके उच्चारण और अर्थ कठिन हो. किताबें पढ़ने की कला, शब्दकोश की जानकारी, पासा खेलना, व्यायाम की जानकारी आदि होना. क्या ये सभी किसी भी नजरिये से कामक्रीड़ा या आधुनिक भाषा में कहें तो सेक्स करने के तरीके हैं! ये लोगों की कुत्सित सोच का परिणाम है कि अर्थशास्त्र में चाणक्य के बराबर बल्कि आम जीवन में उससे अधिक महत्ता रखने वाले महर्षि के इस ग्रन्थ को गलत तरीके से प्रचारित, प्रसारित किया गया.
हालांकि यह भी सच नहीं है कि यह ग्रन्थ कामशास्त्र की व्याख्या नहीं करता लेकिन काम के 64 तरीके यह ग्रन्थ नहीं बतलाता यह सच है. करीबन आज से 6-7 साल पहले इस ग्रन्थ को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में पढ़ा था. उस समय केरल की एक महिला इंदिरा ने स्त्रैण कामसूत्र की रचना करते हुए यह कहा था कि वात्स्यायन का कामसूत्र पुरुषों के द्वारा पुरुषों को, पुरुषों के लिए चरम सुख की प्राप्ति कराने के तरीके बतलाता है. जबकि आज नारीवादी युग में स्त्रियां जब खुलकर अपने लिए चरम सुख ढूंढ़ने चलती हैं या निकलती हैं तो उन्हें स्त्रैण कामसूत्र की भी जानकारी होनी चाहिए. स्त्रैण कामसूत्र महिला द्वारा, महिला के लिए, महिला रचित ग्रन्थ है.
वात्स्यायन ने संभोग की जिन मुद्राओं का जिक्र किया उनमें से स्त्रियों को केवल चार क्रियाओं के लिए राजी होना चाहिए. ऐसा यह स्त्रैण कामसूत्र बतलाता है. इसमें कहा गया है कि स्त्री के ऊपर पुरुष, पुरुष के ऊपर स्त्री, पुरुष की गोद में स्त्री तथा आमने-सामने खड़े स्त्री-पुरुष ही काम की सही क्रीड़ाएं हैं और इन्हीं क्रीड़ाओं को करके ही एक स्त्री चरम सुख की प्राप्ति कर सकती है. हालांकि स्त्रैण कामसूत्र में यह भी बतलाया गया है कि स्त्रियों को पुरुषों के साथ संभोग तभी करना चाहिए जब वे अपने किसी शत्रु का विनाश करने में उस पुरुष को सहयोगी और उचित माने अपने लिए या जिस पुरुष के साथ संभोग किया जा रहा हो उसकी सम्पत्ति को उसे हड़पना हो या फिर अपने रहस्य छुपाने हो गोया कि बेवफ़ा पति से हिसाब बराबर करना हो. और सेक्स के लिए किस तरह के पुरुष का चुनाव करना चाहिए यह भी स्त्रैण कामसूत्र बतलाता है ठीक वात्स्यायन के कामसूत्र के उलट.
हालांकि महर्षि के कामसूत्र के सूत्रों के मुताबिक 16 से 70 वर्ष तक की उम्र में पुरुष यौन क्रीड़ा में सक्रिय भूमिका निभा सकता है. जबकि स्त्रैण कामसूत्र में स्त्री के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है. अपने स्त्रैण कामसूत्र की रचना करते समय इसकी लेखिका इंदिरा ने एक शोध भी किया जिसमें उन्होंने पाया कि अधिकांश महिलाओं को सम्भोग की पारंपरिक मुद्राएं ही पसंद हैं. इस पर लेखिका लिखती है कि शोध यह बात बतलाती है कि पितृसत्तात्मक समाज बहुत भीतर तक पैठ बना चुका है. और आज पुरुष हर जगह बिस्तर, समाज आदि सभी जगह महिलाओं को नीचे और महिलाएं भी पुरुषों को स्वयं से ऊपर ही रखती हैं. स्वछंद विचार रखने वाली लेखिका इंदिरा स्वछंद यौन सम्बन्ध तथा लिव-इन-रिलेशनशिप का विरोध भी करती है.
सात अधिकरण, छत्तीस अध्याय तथा चौंसठ प्रकरणों में विभाजित महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र संस्कृत के श्लोकों में लिखा गया ग्रन्थ है. कामसूत्र बेहतर जीवन जीने की कला सिखाने वाला ग्रन्थ है. इसमें कहा गया है कि मनुष्य को श्रुति, स्मृति, अर्थविद्या ग्रहण करने के पश्चात कामशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए तथा व्यक्ति को विद्या ग्रहण करने के बाद धनार्जन करना व उसके बाद किसी दूत अथवा दूती यानी स्त्री अथवा पुरुष की मदद से, जो निपुण हो उससे प्रेम सम्बन्ध बनाकर उसी के साथ ग्रहस्थ जीवन व्यतीत करना चाहिए ऐसा करने पर उनका वैवाहिक जीवन सुख, शांति से भरपूर होगा. यानी यह ग्रन्थ आज के मायनों में लव मैरिज को प्रमुखता देता है.
ऋषि वात्स्यायन का जन्म बिहार में हुआ था. इनके द्वारा रचित ग्रन्थ विश्व की प्रथम यौन सहिंता भी कही, मानी जाती है. धर्म, अर्थ, काम पर आधारित इस ग्रन्थ में कामेच्छाओं को पूरा करने के लिए जननेद्रियों के आकार-प्रकार पर भी बात की गई है. इसके अलावा सेक्स में चरम सुख की प्राप्ति के लिए आलिंगन, चुम्बन, हस्तमैथुन, प्रतिभेद करना (रहस्य प्रकट करना), यौन क्रिया संपन्न होने पर पुरुष द्वारा स्त्री के प्रति व्यवहार समान बनाए रखना, मुख मैथुन आदि को भी अहम बताया गया है.
इस सब के अलावा कामसूत्र व्यभिचारी प्रवृति के पुरुष से स्त्रियों की रक्षा की बात भी करता है. लेकिन यह ग्रन्थ इस बात का जिक्र भी करता है कि पुरुष को विश्वस्त स्त्री शिक्षिका के निर्देशों का पालन करना चाहिए. यदि वह कामक्रीड़ाओं के बारे में नहीं जानता है तो. उसमें पहले से सेक्स कर चुकी स्त्री, दासी की पुत्री, सखी-सहेली पुरुष की जिसे बिस्तर पर यौन का अनुभव हो, अपने समान उम्र की मौसी, बड़ी बहन या भिक्षुणी हो सकती है. चरम सुख की प्राप्ति के लिए स्त्री-पुरुष को अपने जोड़े के अनुरूप संभोग क्रिया में समरत होना चाहिए. जननेद्रियों के आकार-प्रकार के बारे में ऋषि वात्स्यायन लिखते हैं कि पुरुष और स्त्री का सही मिलाप या चरम सुख उन्हें तभी प्राप्त हो सकता है जब निम्न प्रकार की जननेद्रियों वाले स्त्री-पुरुष संभोग क्रिया करें. उसमें शश यानी खरगोश पुरुष का मृगी यानी हिरणी स्त्री के साथ, वृष यानी बैल पुरुष का बड़वा यानी घोड़ी स्त्री के साथ तथा अश्व यानी घोड़े पुरुष जा हस्तिनी यानी हाथी स्त्री के साथ.
अब यदि इन्हें क्रमशः बदला जाए तो इसके छ: प्रकार निर्धारित किए जा सकते हैं. इसके अलावा ज्यादा बड़े लिंग वाले पुरुष छोटी योनि वाली स्त्री के साथ या मध्यम आकार के लिंग वाले साधारण योनि वाली स्त्री के साथ संभोग करते हैं तो वह उच्चरत क्रिया कहलाती है. इसका उलट होने पर यानी हस्तिनी स्त्री शश पुरुष के साथ संभोग करे तो वह क्रिया नीचरत मानी गई है. इसलिए कुलमिलाकर यह कहा और माना जा सकता है कि ऋषि वात्स्यायन के कामसूत्र के अनुसार कि चरम सुख समान लिंग आकार वाले पुरुष तथा समान योनि की गहराई वाली स्त्री के साथ ही लिया जा सकता है. अब यहां शश, वृष, अश्व पुरुष का अर्थ यह है कि जिनका लिंग इन पशुओं के समान हो. शश पुरुषों के लिंग का आकार ऋषि वात्स्यायन के कामसूत्र के मुताबिक छ: इंच ठहरता है और वर्तमान के शोध के मुताबिक भारत देश में अधिकांश पुरुष शश आकार के लिंग वाले पुरुष ही हैं. इसके अलावा बैल पुरुषों के लिंग का आकार आठ इंच तथा घोड़े पुरुषों के लिंग का आकार बारह इंच माना गया है.
संभोग, सेक्स, कामक्रीड़ा न जाने कितने नाम इसे दिए जाते हैं, को लेकर लेकर भ्रांतियां भी सबसे ज्यादा उसी देश में है जिस देश को विश्ववगुरु कहा जाता रहा है एक समय तक. हमारे भारत देश के महनीय महर्षि वात्स्यायन ने आज से दो हजार साल पहले ही इस विषय पर खुलकर बात की और दुनिया को समझाया. उनके इस विषय पर आज भी शोध जारी हैं और चरम सुख की अनुभूति को लेकर सभी पुरुष, स्त्री की अपनी-अपनी मान्यताएं तथा सोच है. यह बेहद ही अफसोस जनक है विश्ववगुरु भारत देश के लिए और इस विषय की प्रासंगिकता तब तक रहेगी जब तक मनुष्य जाति का अस्तित्व इस धरती पर रहेगा. हालांकि हमारे देश द्वारा दिये गए इस महत्वपूर्ण विषय के ज्ञान को सबसे ज्यादा गम्भीरता से पश्चिमी देशों ने ही लिया है और यही कारण है कि वहां सेक्स जैसी बातें आम हैं.
हमारे देश में भले इस इस विषय पर कोई खुलकर बात न करना चाहें लेकिन इस विषय के बारे में साहित्य, सिनेमा आदि सभी प्रकारों से गलत ज्ञान जो भ्रमित लोगों द्वारा परोसा जा रहा है उस अधपके ज्ञान को हासिल करके भारत देश की युवा पीढ़ी ही नहीं बल्कि यौन की उत्कंठा लिए हर वर्ग के लोग भ्रमित हो रहे हैं. इसका एक उदाहरण यह भी है कि हमारे देश में भले ही सेक्स छुपकर किया जाता हो या देखा जाता हो लेकिन उसे करने की तथा देखे जाने की संख्या विश्व के अन्य देशों के मुकाबले बहुत अधिक है. सबसे ज्यादा दिमाग पर हावी भी यही रहता है जबकि पश्चिमी देशों ने जितना इस पर खुलकर बात की वे इससे उतना ही अधिक विमुक्त होते गए.
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