शादी (Marriage) दो लोगों के लिए जन्म-जन्म का रिश्ता माना जाता है. जिसमें दो लोग एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा करते हैं या वचन लेते हैं. शादी आपसी प्रेम, समझदारी और विश्वास पर टीका होता है. कई लोग अपने पसंद से शादी करते हैं तो कई लोग घरवालों की मर्जी से. कुल मिलाकर जिंदगी भर साथ रहने का एक विश्वास जो एहसासों पर टिका होता है.
लेकिन उस शादी का क्या जो सिर्फ समझौता बनकर रहे. जिसमें कोई फीलिंग ही ना हो, बस एक शो ऑफ हो, दिखावा हो. ऐसी शादियों में पत्नी के गुण, व्यवहार नहीं बल्कि सिर्फ उसकी खूबसूरती देखी जाती है. ज्यादातर ऐसा विदेशों में होता है लेकिन अब भारत में भी इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. इस शब्द को ‘ट्रॉफी वाइफ’ (trophy wife) कहा जाता है. भारत में लोग इस शब्द का इस्तेमाल उन महिलाओं को ताना मारने के लिए करते हैं जिनकी उम्र उनके पति से काफी छोटी होती है. ना उम्र की सीमा हो ना जन्म को हो बंधन...ये लाइनें भले सबने सुनी हों लेकिन जब बात फिल्मी दुनिया से हटकर हकीकत की दुनिया में होती है तो इसके मायने बदल जाते हैं.
खैर, आज बात हम ट्रॉफी वाइफ की करते हैं. जो विदेशों में नॉर्मल सी बात है. इस शब्द का इस्तेमाल उस जोड़े के लिए किया जाता है जिसमें पति की उम्र पत्नी की उम्र से कहीं ज्यादा होती है. यानी पत्नी यंग होती है और पति उम्रदराज. साथ ही उस महिला को सिर्फ उसके आकर्षण की वजह से पत्नी बनाया गया होता है. ऐसी महिलाओं को लेकर लोगों की यह राय होती है कि उसके पास खूबसूरती के अवाला और कोई क्वालिटी है ही नहीं. यानी बिना सुंदरता के उनका कोई महत्व नहीं है.
ट्रॉफी की तरह शो ऑफ
ट्रॉफी वाइफ ज्यादातर दूसरी या तीसरी पत्नी होती है. जिसे उस पुरूष ने सिर्फ इसलिए...
शादी (Marriage) दो लोगों के लिए जन्म-जन्म का रिश्ता माना जाता है. जिसमें दो लोग एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा करते हैं या वचन लेते हैं. शादी आपसी प्रेम, समझदारी और विश्वास पर टीका होता है. कई लोग अपने पसंद से शादी करते हैं तो कई लोग घरवालों की मर्जी से. कुल मिलाकर जिंदगी भर साथ रहने का एक विश्वास जो एहसासों पर टिका होता है.
लेकिन उस शादी का क्या जो सिर्फ समझौता बनकर रहे. जिसमें कोई फीलिंग ही ना हो, बस एक शो ऑफ हो, दिखावा हो. ऐसी शादियों में पत्नी के गुण, व्यवहार नहीं बल्कि सिर्फ उसकी खूबसूरती देखी जाती है. ज्यादातर ऐसा विदेशों में होता है लेकिन अब भारत में भी इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. इस शब्द को ‘ट्रॉफी वाइफ’ (trophy wife) कहा जाता है. भारत में लोग इस शब्द का इस्तेमाल उन महिलाओं को ताना मारने के लिए करते हैं जिनकी उम्र उनके पति से काफी छोटी होती है. ना उम्र की सीमा हो ना जन्म को हो बंधन...ये लाइनें भले सबने सुनी हों लेकिन जब बात फिल्मी दुनिया से हटकर हकीकत की दुनिया में होती है तो इसके मायने बदल जाते हैं.
खैर, आज बात हम ट्रॉफी वाइफ की करते हैं. जो विदेशों में नॉर्मल सी बात है. इस शब्द का इस्तेमाल उस जोड़े के लिए किया जाता है जिसमें पति की उम्र पत्नी की उम्र से कहीं ज्यादा होती है. यानी पत्नी यंग होती है और पति उम्रदराज. साथ ही उस महिला को सिर्फ उसके आकर्षण की वजह से पत्नी बनाया गया होता है. ऐसी महिलाओं को लेकर लोगों की यह राय होती है कि उसके पास खूबसूरती के अवाला और कोई क्वालिटी है ही नहीं. यानी बिना सुंदरता के उनका कोई महत्व नहीं है.
ट्रॉफी की तरह शो ऑफ
ट्रॉफी वाइफ ज्यादातर दूसरी या तीसरी पत्नी होती है. जिसे उस पुरूष ने सिर्फ इसलिए अपना जीवन साथी चुना होता है ताकि वह लोगों को दिखा सके कि उसकी वाइफ कितनी सुंदर है. वह पुरुष यह भी सोच रखता है कि मैं तो इस उम्र में भी आकर्षित दिखता हूं. साथ ही इसे वह अपने सेक्सुअल पावर से भी जोड़कर देखता है. ऐसे रिश्ते में पुरुष अपनी पत्नी को लोगों के सामने एक ट्रॉफी की तरह पेश करते हैं. उनकी नुमाइश करते हैं, जैसे उनकी पत्नी का काम सिर्फ सुंदर बनकर उनके साथ खड़े रहना है. इनका कोई इमोशनली कलेक्शन नहीं होता बल्कि पत्नी के रूप में उनको बस पति को संतुष्ट करना होता है.
एक तरह से यह रिश्ता सिर्फ दिखावे पर ही टिका होता है ना कि भावनाओं पर. ऐसे मामलों में ज्यादातर पति उम्रदराज लेकिन पैसे वाले होते हैं. इस रिश्ते को बनाए रखने के लिए पत्नी को अपना आकर्षण बनाए रखना होता है वरना रिश्ता टूट सकता है. लुक्स बनाए रखने के लिए जो खर्चा आता है वह पति उठाते हैं. ट्रॉफी वाइफ को लेकर लोगों की राय है कि ऐसी शादी बस पैसा देखकर ही होती है.
ऐसी पत्नियों को लेकर समाज के लोगों की राय अच्छी नहीं रहती. उन्हें एक पत्नी ना समझ कर कोई सामान समझा जाता है. एक तरह से यह एक बहुत ही शर्मिंदगी वाली बात मानी जाती है. ऐसी महिलाओं को अपमान का भी सामना करना पड़ता है. समाज में ऐसी महिलाओं को शून्य माना जाता है जैसे उनकी कोई इज्जत कोई वैल्यू नहीं. जिन्हें सिर्फ शो ऑफ करने के लिए खरीदा गया हो. ऐसी पत्नियों का कोई सेल्फ रिस्पेक्ट नहीं होता. इसलिए महिलाएं इमोशनली और मेंटली कमजोर महसूस करती हैं और इन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
हमारे देश में भी जिन महिलाओं की उम्र कम होती है उन्हें इस नाम से ताना दिया जाता है. भले ही वह कोई आम महिला हो या सेलिब्रिटी. जबकि जो पुरुष ऐसा करते हैं उन्हें उन्हें तो मर्दानगी की मिसाल दी जाती है. क्यों उन्हें कोई ट्रॉफी हसबेंड नहीं कहता, क्यों उन्हें कोई ताना नहीं मारता, क्यों उऩ्हें कोई अपमानित नहीं करता? दिखावे के लिए शादी तो वो करते हैं, जैसे महिला तो बस कोई चीज है. जिसके साथ खड़े होने से उन्हें ट्रॉफी मिल जाती है?
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