दिल्लीवासी अभी रेयान इंटरनेशनल स्कूल वसंत कुंज में मैनेजमेंट की लापरवाही से एक मासूम को पानी की टंकी में डुबाकर मारने की यादों को भुला भी नहीं पाए थे. तभी इसी स्कूल के गुरुग्राम शाखा में 7 साल के प्रद्युम्न की बेरहमी से अपने ही स्कूल के वाशरूम में हत्या की खबर आई. इतना ही नहीं इसके तुरंत बाद गाजियाबाद के सिल्वरलाइन पब्लिक स्कूल की 6 साल की सौम्या कश्यप को उसके अपने ही स्कूल बस से कुचल कर मार दिये जाने की खबर से देश स्तब्ध हो गया है. अभी लोग सदमे में ही थे कि आज यह खबर आ गई कि देश की राजधानी दिल्ली में ही एक निजी स्कूल के चौकीदार ने स्कूल की 5 साल की एक मासूम बच्ची का रेप कर दिया!
क्यों हम अपने नौनिहालों को इस बेरहमी से मौत के घाट उतार रहे हैं? कलेजा फटने लगता है यह सोचकर कि उस मनहूस सुबह प्रद्युम्न और सौम्या जब सुबह सोकर उठे होंगे, उनकी मांओं ने बड़े लाड़-प्यार से उन्हें लंच देकर स्कूल भेजा होगा. लेकिन, उन दोनों को ही क्या पता होगा कि आज उनकी अकाल मौत हो जाएगी. उन्हें मार दिया जाएगा. उनकी चीखों और रोने की आवाजों को भी कोई नहीं सुन पायेगा? आज सारा देश शोकाकुल है, शर्मसार है!
प्रद्युम्न और सौम्या के कत्ल बहुत सारे सवाल छोड़ गये हैं. क्या 125 करोड़ की आबादी वाले देश में स्कूलों में जाने वाले हमारे करोड़ों बच्चे अब सुरक्षित नहीं रह गये हैं? हाल की इन घटनाओं से लगता तो यही है. क्या बच्चे स्कूल कैंपस के अंदर भी सुरक्षित नहीं हैं? यह तो बेहद ख़तरनाक स्थिति है? बच्चे जब स्कूल के भीतर होते हैं तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? बच्चों के साथ होने वाले अपराध या हादसे में स्कूल प्रशासन पर किस हद तक जिम्मेदारी बनती है? इनके उत्तर प्रशासन और स्कूल प्रबंधन दोनों को तो देने ही होंगे और अपनी...
दिल्लीवासी अभी रेयान इंटरनेशनल स्कूल वसंत कुंज में मैनेजमेंट की लापरवाही से एक मासूम को पानी की टंकी में डुबाकर मारने की यादों को भुला भी नहीं पाए थे. तभी इसी स्कूल के गुरुग्राम शाखा में 7 साल के प्रद्युम्न की बेरहमी से अपने ही स्कूल के वाशरूम में हत्या की खबर आई. इतना ही नहीं इसके तुरंत बाद गाजियाबाद के सिल्वरलाइन पब्लिक स्कूल की 6 साल की सौम्या कश्यप को उसके अपने ही स्कूल बस से कुचल कर मार दिये जाने की खबर से देश स्तब्ध हो गया है. अभी लोग सदमे में ही थे कि आज यह खबर आ गई कि देश की राजधानी दिल्ली में ही एक निजी स्कूल के चौकीदार ने स्कूल की 5 साल की एक मासूम बच्ची का रेप कर दिया!
क्यों हम अपने नौनिहालों को इस बेरहमी से मौत के घाट उतार रहे हैं? कलेजा फटने लगता है यह सोचकर कि उस मनहूस सुबह प्रद्युम्न और सौम्या जब सुबह सोकर उठे होंगे, उनकी मांओं ने बड़े लाड़-प्यार से उन्हें लंच देकर स्कूल भेजा होगा. लेकिन, उन दोनों को ही क्या पता होगा कि आज उनकी अकाल मौत हो जाएगी. उन्हें मार दिया जाएगा. उनकी चीखों और रोने की आवाजों को भी कोई नहीं सुन पायेगा? आज सारा देश शोकाकुल है, शर्मसार है!
प्रद्युम्न और सौम्या के कत्ल बहुत सारे सवाल छोड़ गये हैं. क्या 125 करोड़ की आबादी वाले देश में स्कूलों में जाने वाले हमारे करोड़ों बच्चे अब सुरक्षित नहीं रह गये हैं? हाल की इन घटनाओं से लगता तो यही है. क्या बच्चे स्कूल कैंपस के अंदर भी सुरक्षित नहीं हैं? यह तो बेहद ख़तरनाक स्थिति है? बच्चे जब स्कूल के भीतर होते हैं तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? बच्चों के साथ होने वाले अपराध या हादसे में स्कूल प्रशासन पर किस हद तक जिम्मेदारी बनती है? इनके उत्तर प्रशासन और स्कूल प्रबंधन दोनों को तो देने ही होंगे और अपनी आपराधिक लापरवाहियों के लिए कठोर दंड के लिए भी तैयार रहना होगा.
गुरुग्राम के जिस रेयान इंटरनेशनल स्कूल में दूसरी कक्षा के मासूम छात्र प्रद्युम्न की बेरहमी से हत्या हुई है. उसी रेयान स्कूल के वसंतकुंज, दिल्ली स्थित ब्रॉंच में फरवरी 2016 में दिव्यांश नाम के पहली कक्षा में पढ़नेवाले मासूम की लाश भी छत पर स्थित पानी की टंकी में मिली थी. यानी इस स्कूल पर ऐसा लगता है कि किसी प्रभावशाली शख़्स का हाथ है. जो इस विद्यालय के प्रबंधन को संरक्षण प्रदान कर रहा है. तभी शायद इस विद्यालय का प्रबंधन इतना बेख़ौफ़ है कि यहां पर हादसे होते ही रहते हैं और उन्हें रफा-दफा कर दिया जाता है. दिल्ली में हुई घटना को एक हादसा करार दिया गया था. लेकिन, जिस तरह से गुरुग्राम के स्कूल में हुई हत्या के बाद पुलिस जांच में दावा किया जा रहा है कि बस कंडक्टर ने पहले प्रद्युम्न के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने की कोशिश की. लेकिन जब उसने इसका विरोध किया तो कंडक्टर ने चाकू से उसका गला रेत दिया.
क्या वास्तव में प्रद्युम्न का हत्यारा स्कूल बस का कंडक्टर ही है? इस पहलू की तो गहराई से जांच करनी होगी. क्योंकि, बताते हैं कि बच्चे को और उसकी दीदी को उसके पिता ने स्कूल के गेट तक छोड़ा था. वह बस से तो आया ही नहीं था. प्रद्युम्न की मां भी यह मानने को तैयार नहीं है. प्रद्युम्न की मां रोते हुए बार-बार यही कह रही है कि बस के कंडक्टर ने कुछ नहीं किया उसे तो बस बलि का बकरा बनाया जा रहा है. वह बार बार स्कूल के कुछ अन्य कर्मचारियों पर इल्जाम लगा रही हैं.
ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या रेयान इंटरनेशल स्कूल के मैनेजमेंट में ही कोई ऐसा राक्षस तो नहीं छिपा बैठा है. जो बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाता है और फंसने पर बच्चे की हत्या कर देता है. रेयान स्कूल में सुरक्षा का आलम यह है कि इसकी पिछली दीवार से लगभग सटी हुई एक शराब की दूकान है. इसी गेट से यहां की बसों के ड्राइवर 'इंग्लिश वाइन एंड बीयर शॉप' से अपनी शराब का कोटा लेने पहुंचते हैं. अब जरा सोच लीजिए कि शराब पीने के बाद वे किस तरह से स्कूल के बच्चों को घर छोड़ते होंगे. क्या स्कूल मैनेजमेंट ये सब को देख नहीं रहा था?
मुझे गुरुग्राम के मेरे कुछ परिचितों ने बताया कि ये ड्राइवर सात-आठ के समूहों में पिछले गेट से बाहर निकलकर शराब खरीदकर वापस चले आते हैं. अब शराब के नशे में बसें चलाने वालों से आप उम्मीद ही क्या कर सकते हैं? लेकिन, स्कूल मैनेजमेंट को यह नहीं दिखाई दे रहा था. इसी गेट से कोई भी अनाम-अज्ञात शख्स भी आसानी से स्कूल में प्रवेश कर सकता है. हालांकि, स्कूल के सामने की तरफ तो सुरक्षा चाक-चौबंद दिखती है, पर पिछली तरफ की सुरक्षा तो राम-भरोसे छोड़ी हुई है.
प्रद्युम्न और सौम्या के कत्ल का दोषी है कौन? कानून साफतौर पर कहता है कि जिसके पास नाबालिग बच्चे की कस्टडी सौंपी होती है, उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उसी की है. वही इस बात का ज़िम्मेवार है कि उस बच्चे की पूरी हिफाजत करे. बच्चे को जैसे ही मां-बाप द्वारा स्कूल बस में चढ़ा दिया जाता है, वह क़ानूनी तौर पर स्कूल प्रशासन की कस्टडी में आ जाता है. इसके बाद अगर स्कूल प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में बच्चों के साथ कुछ भी गलत होता है और यह बात साबित हो जाती है, तो स्कूल प्रशासन जिम्मेदारी से नहीं बच सकता. यानी प्रद्युम्न के मामले में उसका स्कूल बच ही नहीं सकता. तो क्या रेआन स्कूल इस बार बच सकेगा?
बेशक, कोई भी स्कूल कैंपस पूरी तरह से सुरक्षित होना जरूरी है. गार्ड, सीसीटीवी के अलावा इस बात को सुनिश्चित करना जरूरी है कि कोई भी बाहरी व्यक्ति स्कूल कैंपस में नहीं आए. लेकिन, व्यवहार में यह नहीं हो पाता. अब रेआन स्कूल को ही ले लें. इसके पिछले गेट से बाहरी लोग अंदर आते-जाते रहते हैं, जिसपर सुरक्षा का कोई कंट्रोल ही नहीं है.
करीब 20 साल पहले 1998 में राजधानी में नगर निगम के एक स्कूल का एक बच्चा स्कूल कैंपस से बाहर निकलकर पानी लेने गया था. तभी एक वाहन से कुचला गया. उस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने नगर निगम को जिम्मेदार ठहराया था. तब पीड़ित परिवार को 2 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था.
आपको शायद यह भी याद होगा कि दिल्ली में 1997 में यमुना में एक स्कूल बस गिरी थी, जिसमें 28 स्कूली बच्चों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसी साल स्कूली बसों के लिए एक गाइडलाइन जारी की थी. इन गाइडलाइंस में सुरक्षा के तमाम इंतजाम करने के निर्देश दिये गये थे. जैसे कि- स्कूली बस ड्राइवर का अनुभव 5 साल से ज्यादा का होना चाहिए. गाड़ी की स्पीड 40 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. हर गाड़ी में प्राथमिक उपचार के लिए फर्स्ट एड बॉक्स होने चाहिए, वगैरह.
लेकिन, यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा- निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. यह कोई देखने वाला है ही नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का कोई पालन कर रहा है या नहीं और यदि कर रहा है तो कितना? आप पटना से पुणे और मुजफ्फरपुर से मुंबई समेत देश के किसी भी शहर में स्कूल बसों के ड्राइवरों का ड्राइविंग टेस्ट लेकर देख लीजिए. आप पाएंगे कि ज्यादातर ने घूस देकर ही लाइसेंस लिया हुआ होता है. बेशुमार स्कूल बसों के ड्राइवरों को यातायात के नियमों की सामान्य समझ तक भी नहीं होती है. अधिकतर प्राइवेट स्कूलों के मैनेजमेंटों का एक सूत्रिय एजेंडा यही रहता है कि किस तरह अभिभावकों को नोच लिया जाये? उन्हें अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की रत्ती भर भी चिंता रहती है या नहीं यह तो एक बड़ा अनुरत्तरित प्रश्न है! इसीलिए, तो प्रद्युम्न और सौम्या जैसे मासूम आये दिन मार दिये जाते हैं.
अत्यंत ही दु:ख के साथ असहाय भाव से यही कहना पड़ रहा है कि हमारे देश में पता नहीं कबतक और कितने और मासूमों को प्रद्युम्न की तरह मारा जाएगा. प्रद्युम्न. एक फूल जिसे खिलने से पहले ही मसल दिया गया. एक चिराग जिसे हमेशा के लिए बुझा दिया गया. एक उम्मीद जो ख़त्म कर दी गयी. अपनी मां की आंखों का तारा जो कभी लौटकर वापस नही आ पायेगा. अपने बाप के उम्मीदों की किरण जो उन्हें फिर कभी नही दिखेगा.
इस मासूम के क़त्ल को दुनिया में कहीं भी होने वाले किसी ज़ुल्म से किसी भी तरह कम नही आंका जा सकता. यह दुर्लभतम और क्रूरतम अपराध है इसलिए जितना ज़रूरी इसके मुजरिम को सख़्त से सख़्त सज़ा मिलना है. उतना ही ज़रूरी है कि कोई बेक़सूर इसमें न मारा जाये. क्योंकि बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब बाक़ी हैं.
प्रद्युम्न और सौम्या की अकाल मौत के जिम्मेदार समाज को शर्मसार होना चाहिए कि वो अपने नौनिहालों को मार रहा है.
लेकिन, भारत सरकार और राज्य सरकारों की भी यह नैतिक ज़िम्मेदारी तो बनती ही है कि ऐसे सख़्त क़ानून बनाये जायें कि मासूमों के मौत के ज़िम्मेदार किसी भी तरह बच न पायें.
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