1527 में जब भारत पर बाबर का आक्रमण हुआ तो उसका सीना तानकर विरोध करने वाला कोई और नहीं इब्राहिम लोधी था. इब्राहिम लोधी के खिलाफ राजपूत राजा संग्राम सिंह यानी राणा सांगा बाबर से मिल गए थे. इतिहासकारों का कहना है कि राणा सांगा की मदद के बगैर बाबर भारत में घुस ही नहीं पाता. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि बाबर को राणा सांगा ने ही बुलाया था.
बाबर का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि बाबरी मस्जिद के कारण बाबर की छवि हिंदू विरोधी शासक के तौर पर पेश की जाती रही है. ये बातें यहां इस लिए लिख रहा हूं कि लोग समझ सकें कि प्राचीन भारत में हिंदू और मुसलमान जैसे आधार राजनीति में थे ही नहीं. इस्लाम और हिंदू धर्म लोगों के निजी विश्वास से ज्यादा कुछ नहीं थे. सब मिलकर रहते थे. 1857 में मेरठ का सैनिक विद्रोह भी संयुक्त रूप से था. हिंदू मुसलमान की सोच यहां तक थी ही नहीं.
हिंदू मुसलमान का भेद अंग्रेजों ने पैदा किया. 'फूट डालो' ही राज करने का उनके पास एक रास्ता बचा था. ये सिलसिला बढ़ता रहा. उन्होंने ही कई हिंदूवादी और कट्टर इस्लामी शक्तियों को भारत में पैदा किया और बढ़ावा दिया.
पिछले दिनों यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोस्वामी तुलसी दास ने अकबर को राजा मानने से इनकार कर दिया था वो सिर्फ भगवान राम को राजा मानते थे. इस बारे में भी विद्वानों का कुछ अलग मत है.
इतिहासकारों का बड़ा तबका या कहें कि अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि ब्राह्मणों को गोस्वामी तुलसीदास का रामचरित मानस लिखना बेहद नागवार गुजरा था. उनका तर्क था कि देव साहित्य सिर्फ संस्कृत में होना चाहिए. वो लगातार तुलसीदास जी को प्रताड़ित करते रहे. उन्होंने हर संभव कोशिश की कि रामचरित मानस को न लिखा जाए. तुलसी दास जी को इस ' पाप' और 'अधर्म' के काम से रोकने के लिए मारा पीटा भी गया था. कुछ विद्वानों ने यहां तक...
1527 में जब भारत पर बाबर का आक्रमण हुआ तो उसका सीना तानकर विरोध करने वाला कोई और नहीं इब्राहिम लोधी था. इब्राहिम लोधी के खिलाफ राजपूत राजा संग्राम सिंह यानी राणा सांगा बाबर से मिल गए थे. इतिहासकारों का कहना है कि राणा सांगा की मदद के बगैर बाबर भारत में घुस ही नहीं पाता. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि बाबर को राणा सांगा ने ही बुलाया था.
बाबर का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि बाबरी मस्जिद के कारण बाबर की छवि हिंदू विरोधी शासक के तौर पर पेश की जाती रही है. ये बातें यहां इस लिए लिख रहा हूं कि लोग समझ सकें कि प्राचीन भारत में हिंदू और मुसलमान जैसे आधार राजनीति में थे ही नहीं. इस्लाम और हिंदू धर्म लोगों के निजी विश्वास से ज्यादा कुछ नहीं थे. सब मिलकर रहते थे. 1857 में मेरठ का सैनिक विद्रोह भी संयुक्त रूप से था. हिंदू मुसलमान की सोच यहां तक थी ही नहीं.
हिंदू मुसलमान का भेद अंग्रेजों ने पैदा किया. 'फूट डालो' ही राज करने का उनके पास एक रास्ता बचा था. ये सिलसिला बढ़ता रहा. उन्होंने ही कई हिंदूवादी और कट्टर इस्लामी शक्तियों को भारत में पैदा किया और बढ़ावा दिया.
पिछले दिनों यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोस्वामी तुलसी दास ने अकबर को राजा मानने से इनकार कर दिया था वो सिर्फ भगवान राम को राजा मानते थे. इस बारे में भी विद्वानों का कुछ अलग मत है.
इतिहासकारों का बड़ा तबका या कहें कि अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि ब्राह्मणों को गोस्वामी तुलसीदास का रामचरित मानस लिखना बेहद नागवार गुजरा था. उनका तर्क था कि देव साहित्य सिर्फ संस्कृत में होना चाहिए. वो लगातार तुलसीदास जी को प्रताड़ित करते रहे. उन्होंने हर संभव कोशिश की कि रामचरित मानस को न लिखा जाए. तुलसी दास जी को इस ' पाप' और 'अधर्म' के काम से रोकने के लिए मारा पीटा भी गया था. कुछ विद्वानों ने यहां तक लिखा है कि तुलसीदास जी को जो अपवित्र करने के लिए उन्हें गंदगी से नहलाया गया. इन विद्वानों का मानना है कि प्रताड़ना से तंग आकर गोस्वामी तुलसीदास मस्जिद में जा छिपे थे और वहां अपना बाकी का लेखन पूरा किया.
कुल मिलाकर भारत में धर्म के नाम पर आपसी झगड़े और बंटवारे की कोई मिसाल इस दौर में देखने को नहीं मिलती. बाबरी मसजिद लगभग उसी समय बनाई गई जब गोस्वामी जी रामचरित मानस रच रहे थे. हम सब हमेशा साथ रहे हैं. साथ ही रहना चाहिए. जिन विद्वानों को कुछ अलग तथ्य दिखते हैं वो मुझे ठीक कर सकते हैं न तो मैं इतिहास का विद्वान हूं न अच्छा विद्यार्थी.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.