प्लेब्वाय सिर्फ इंसानों में ही नहीं, बल्कि जानवरों में भी होते हैं. इस बात को हकीकत में बदल कर दिखाया है 100 साल के डिएगो नामक गैलापागोस (Galapagos) कछुए (Diego the tortoise aged 100 years) ने. नाम भले ही डिएगो है, लेकिन उसे लोग कहते प्लेब्वाय हैं, जिसकी वजह है उसकी सेक्स करने की चाह और क्षमता. यह एक कछुआ पूरे कुनबे को बचाने वाला साबित हुआ है. इस कछुए ने अपनी पूरी की पूरी प्रजाति (Species) को ही बचा लिया है. दरअसल, इसे काम भी यही मिला था कि वह अपनी प्रजाति को बचाए और ढेर सारे कछुए पैदा करे. बता दें कि जब उसे गैलापागोस आइलैंड पर लाया गया था, उस समय वहां सिर्फ 2 नर कछुए और 12 मादा कछुए थे. बता दें कि कछुओं की ये प्रजाति वर्तमान में भी 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर' की सूची में संकटग्रस्त प्रजाति के तौर पर शामिल है. अब डिएगो का काम पूरा हो चुका है तो इसी साल मार्च में वह अपने काम से रिटायर हो रहा है और उसे वापस उसके घर भेज दिया जाएगा. आइए जानते हैं इसके बारे में...
क्या किया है डिएगो ने?
अगर गैलापागोस नेशनल पार्क के अनुसार कहें तो डिएगो ने बहुत कुछ किया है. डिएगो जिस प्रोग्राम का हिस्सा बना था, उसके तहत इस प्रजाति के कछुओं की संख्या को 15 से 2000 पहुंचा दिया गया है. इस प्रोग्राम में डिएगो को 1970 में शामिल किया गया था. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेम्स पी गिब्स के अनुसार करीब 40 फीसदी आबादी यानी 800 कछुए अकेले डिएगो ने ही बढ़ा दिए हैं. बाकी की 60 फीसदी आबादी 'ई5' कछुए ने बढ़ाई है, जो डिएगो की तुलना में काफी कम आकर्षक है.
डिएगो को क्या खास बनाता है?
ऐसा नहीं है कि डिएगो सबसे अधिक फर्टाइल कछुआ है, क्योंकि उससे अधिक लगभग 1200...
प्लेब्वाय सिर्फ इंसानों में ही नहीं, बल्कि जानवरों में भी होते हैं. इस बात को हकीकत में बदल कर दिखाया है 100 साल के डिएगो नामक गैलापागोस (Galapagos) कछुए (Diego the tortoise aged 100 years) ने. नाम भले ही डिएगो है, लेकिन उसे लोग कहते प्लेब्वाय हैं, जिसकी वजह है उसकी सेक्स करने की चाह और क्षमता. यह एक कछुआ पूरे कुनबे को बचाने वाला साबित हुआ है. इस कछुए ने अपनी पूरी की पूरी प्रजाति (Species) को ही बचा लिया है. दरअसल, इसे काम भी यही मिला था कि वह अपनी प्रजाति को बचाए और ढेर सारे कछुए पैदा करे. बता दें कि जब उसे गैलापागोस आइलैंड पर लाया गया था, उस समय वहां सिर्फ 2 नर कछुए और 12 मादा कछुए थे. बता दें कि कछुओं की ये प्रजाति वर्तमान में भी 'इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर' की सूची में संकटग्रस्त प्रजाति के तौर पर शामिल है. अब डिएगो का काम पूरा हो चुका है तो इसी साल मार्च में वह अपने काम से रिटायर हो रहा है और उसे वापस उसके घर भेज दिया जाएगा. आइए जानते हैं इसके बारे में...
क्या किया है डिएगो ने?
अगर गैलापागोस नेशनल पार्क के अनुसार कहें तो डिएगो ने बहुत कुछ किया है. डिएगो जिस प्रोग्राम का हिस्सा बना था, उसके तहत इस प्रजाति के कछुओं की संख्या को 15 से 2000 पहुंचा दिया गया है. इस प्रोग्राम में डिएगो को 1970 में शामिल किया गया था. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेम्स पी गिब्स के अनुसार करीब 40 फीसदी आबादी यानी 800 कछुए अकेले डिएगो ने ही बढ़ा दिए हैं. बाकी की 60 फीसदी आबादी 'ई5' कछुए ने बढ़ाई है, जो डिएगो की तुलना में काफी कम आकर्षक है.
डिएगो को क्या खास बनाता है?
ऐसा नहीं है कि डिएगो सबसे अधिक फर्टाइल कछुआ है, क्योंकि उससे अधिक लगभग 1200 कछुए तो 'ई5' कछुए ने पैदा किए हैं. दरअसल, ये डिएगो की पर्सनैलिटी है जो उसे खास बनाती है और इसी वजह से वह ई5 से कहीं ज्यादा फेमस है. डिएगो तेज है, आक्रामक है और अच्छा प्रदर्शन करने वाला है. प्रोफेसर गिब्स के अनुसार कछुए भी रिश्ते बनाते हैं, जिसे हम रिलेशनशिप कहते हैं.
5 फुट लंबा और 176 पाउंड का है डिएगो
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार डिएगो की लंबी गर्दन है, पीलापन लिए हुए चेहरा है और छोटी चमकदार आंखें हैं. वह करीब 5 फुट का है और उसका वजन लगभग 176 पाउंड यानी करीब 80 किलो है. इस प्रजाति के कछुओं को बचाने में उनकी गर्दन काफी मददगार होती है, जिसके जरिए वह ऊपर मुंह उठाकर अपने खाने की चीजों का इंतजाम कर पाते हैं. डिएगो 1928 से 1933 के बीच अमेरिका लाए गए कछुओं में से एक है.
ये प्रजाति खतरे में क्यों थी?
गैलापागोस आइलैंड पर मौजूद कछुए 18वीं शताब्दी में समुद्र से गुजरने वालों के लिए खाने का एक अच्छा स्रोत थे. जहाजों में वह करीब साल भर तक जिंदा रह सकते हैं और इसी वजह से इस आइलैंड से बहुत सारे कछुओं को उठाकर ले जाया गया. भले ही सबको खाया नहीं गया, लेकिन इन कछुओं को अपनी-अपनी जरूरतों कि हिसाब से इस्तेमाल किया गया. इस आइलैंड पर पाई जाने वाली फेरल बकरियां भी इनके लिए खतरे का सबब बन गईं, जिनसे खाने के मामले में इन कछुओं को संघर्ष करना पड़ता था, जो कछुओं के रहने की जगहों को भी बर्बाद कर देती थीं. ब्रीडिंग प्रोग्राम के अलावा वैज्ञानिक इन आइलैंड्स की इकोलॉजी को भी रीस्टोर करने की कोशिश में लगे हैं. ये भी पढ़ें-
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