मुजफ्फरपुर और देवरिया दो छोटे शहर. बिहार और उत्तरप्रदेश के ये दो छोटे शहर रातोंरात चर्चा का विषय बन चुके हैं. इन दोनों शहरों की तरक्की फर्क की नहीं बल्कि शर्म की बात है. दोनों शहरों के बालिका गृह में बच्चियों के साथ रेप हुआ है, नाबालिग बच्चियों के साथ शोषण होता आया है. लेकिन बात यहीं रुकती नहीं है.
जिस एजेंसी को पूरे भारत के लिए बालिका गृह और अनाथआश्रमों की ऑडिट रिपोर्ट बनाने का काम सौंपा गया था उसने कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ये एजेंसी सभी राज्यों का ऑडिट कर रही थी और इसके अनुसार 9 राज्यों ने इस ऑडिट को करवाने के लिए मना कर दिया.
ये तब हुआ जब नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से इस बारे में सर्कुलर जारी हो चुका था और लिखित में ये बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मनना है.
कौन-कौन से राज्य नहीं चाहते ऑडिट..
देश के 9 राज्य नहीं चाहते कि उनके यहां बाल गृह, बालिका गृह का ऑडिट हो. इनमें दिल्ली, बिहार, उत्तरप्रदेश शामिल हैं. इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश, मनीपुर, मेघालय, केरल और पश्चिम बंगाल शामिल हैं.
इसके पहले ओड़ीसा भी इस लिस्ट में था, लेकिन केंद्र के हस्तक्षेप के बाद ये राज्य ऑडिट के लिए तैयार हो गया. अन्य राज्य खुद अपना ऑडिट करना चाहते हैं. मुजफ्फरपुर की घटना के बाद ये तो साफ हो ही गया है कि खुद अगर सरकारी अधिकारी ऑडिट करते हैं तो इसका क्या असर होता है. न जाने कितने समय से मुजफ्फरपुर बालिका गृह की रिपोर्ट को दबाया जा रहा था.
NCPCR के डेटा के अनुसार 5850 रजिस्टर्ट बाल गृह हैं और अभी तक 1339 रजिस्टर होने बाकी हैं. हालांकि,...
मुजफ्फरपुर और देवरिया दो छोटे शहर. बिहार और उत्तरप्रदेश के ये दो छोटे शहर रातोंरात चर्चा का विषय बन चुके हैं. इन दोनों शहरों की तरक्की फर्क की नहीं बल्कि शर्म की बात है. दोनों शहरों के बालिका गृह में बच्चियों के साथ रेप हुआ है, नाबालिग बच्चियों के साथ शोषण होता आया है. लेकिन बात यहीं रुकती नहीं है.
जिस एजेंसी को पूरे भारत के लिए बालिका गृह और अनाथआश्रमों की ऑडिट रिपोर्ट बनाने का काम सौंपा गया था उसने कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ये एजेंसी सभी राज्यों का ऑडिट कर रही थी और इसके अनुसार 9 राज्यों ने इस ऑडिट को करवाने के लिए मना कर दिया.
ये तब हुआ जब नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से इस बारे में सर्कुलर जारी हो चुका था और लिखित में ये बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मनना है.
कौन-कौन से राज्य नहीं चाहते ऑडिट..
देश के 9 राज्य नहीं चाहते कि उनके यहां बाल गृह, बालिका गृह का ऑडिट हो. इनमें दिल्ली, बिहार, उत्तरप्रदेश शामिल हैं. इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश, मनीपुर, मेघालय, केरल और पश्चिम बंगाल शामिल हैं.
इसके पहले ओड़ीसा भी इस लिस्ट में था, लेकिन केंद्र के हस्तक्षेप के बाद ये राज्य ऑडिट के लिए तैयार हो गया. अन्य राज्य खुद अपना ऑडिट करना चाहते हैं. मुजफ्फरपुर की घटना के बाद ये तो साफ हो ही गया है कि खुद अगर सरकारी अधिकारी ऑडिट करते हैं तो इसका क्या असर होता है. न जाने कितने समय से मुजफ्फरपुर बालिका गृह की रिपोर्ट को दबाया जा रहा था.
NCPCR के डेटा के अनुसार 5850 रजिस्टर्ट बाल गृह हैं और अभी तक 1339 रजिस्टर होने बाकी हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम तारीख 31 दिसंबर 2017 की दी थी, लेकिन अभी भी ये काम पूरा नहीं हो सका है.
ऐसे और कई संस्थान हो सकते हैं जो NCPCR की लिस्ट में शामिल न हों और इसीलिए ऑडिट होना बहुत जरूरी है. बिहार में 71 और यूपी में 231 ऐसे संस्थान हैं.
अभी तक लखनऊ स्थित एकैडमी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज को ऑडिट की जिम्मेदारी दी जा चुकी है और इसलिए 3000 से ज्यादा संस्थानों का ऑडिट हो चुका है. NCPCR अधिकारियों के मुताबिक एजेंसी को मार्च में काम सौंपा गया था और मई में इस बात की जानकारी मिल गई कि 10 राज्य ऑडिट के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं.
अब एक बात बताइए, जहां बालिका गृह को लेकर इतना बवाल चल रहा है. रोज़ाना खबरें आ रही हैं, देश को मुजफ्फरपुर और देवरिया मिल गए हैं वहां क्या ये भी जरूरी नहीं कि अन्य राज्यों में बल्कि उनके अपने राज्यों में बालिका गृहों और बाल गृहों की जांच हो सके?
राज्य सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर मानने को भी तैयार नहीं तो आखिर क्या डराएगा इन्हें. और ऐसी क्या चीज़ है जिससे ये राज्य ऑडिट से डर रहे हैं? अभी तो सिर्फ दो शहरों की बात सामने आई है, लेकिन इस मनाही को देखकर तो लगता है कि न जाने कितने ही शहरों में नन्ही बच्चियों पर क्या बीत रही होगी.
मुजफ्फरपुर में 7 साल की बच्ची का भी शोषण हुआ, यही हाल यूपी के देवरिया में भी रहा. राजनीति हो रही है और बच्चियों को जिन्हें सुरक्षा देने के वादे से लाया गया था उनकी हालत इतनी खराब कर दी गई है. क्या फर्क है कसाई के पास जाती बकरी और बालिका गृह में जाने वाली बच्ची में अगर उन्हें लगभग एक ही जैसा टॉर्चर झेलना है. जरूरी ये है कि इन बच्चियों की देखभाल की जाए और देश में जितने भी बालिका गृह या बाल गृह हैं उनकी जांच की जाए.
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