सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि अगर लड़के की उम्र शादी लायक नहीं हुई है तो वह लिव इन रिलेशनशिप में रह सकता है. इस फैसले से लड़का-लड़की को तो कानूनन राहत मिल गई है, लेकिन क्या समाज के लोग भी इसे ऐसे ही स्वीकार करेंगे? क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कोई गलत इस्तेमाल नहीं हो सकता है? अगर कोई लड़की किसी लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहे और किसी अनबन हो जाने पर लड़के पर रेप का आरोप लगा दे तो उस स्थिति में क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसे कई सवाल खड़े हो गए हैं, जिनका समाधान खुद सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है. क्यों ना कि शादी की तरह ही लिव इन रिलेशनशिप को भी कानूनी बनाते हुए रजिस्टर किया जाए.
शादी जैसा 'लिव इन'
आज के दौर में रेप के कानून बेहद सख्त हो चुके हैं. 12 साल से कम की लड़की से रेप होने पर फांसी की सजा के प्रावधान तक को मंजूरी मिल चुकी है. तो ऐसे में क्यों ना कि लिव इन रिलेशनशिप को शादी की तरह ही औपचारिक बना दिया जाए. जब खुद सुप्रीम कोर्ट इसकी मंजूरी दे चुका है तो फिर इसके लिए किसी लिखा-पढ़ी की व्यवस्था क्यों नहीं होनी चाहिए. जरा सोच कर देखिए, आज कोई लड़का-लड़की बिना लिखा-पढ़ी यानी बिना किसी कागजी कार्रवाई या पंजीकरण के ही लिव इन रिलेशनशिप में रहने लग जाएं और कल को किसी अनबन की स्थिति में लड़की रेप का आरोप लगा दे तो लड़का क्या करेगा?
सुप्रीम कोर्ट को ही देना होगा दखल
जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने एक कपल को लिव इन में रहने का विकल्प दे दिया है, उसी तरह से अन्य कपल्स के लिए भी कोई व्यवस्था करनी चाहिए जो लिव इन में रहना चाहते हैं. ऐसा इसलिए ताकि सुप्रीम कोर्ट की दुहाई देकर अगर कोई लिव इन में रहे तो उसके लिए कुछ कायदे-कानून हों. कुछ नियम हों, कहीं पर पंजीकरण हो, जिससे पता चले कि...
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि अगर लड़के की उम्र शादी लायक नहीं हुई है तो वह लिव इन रिलेशनशिप में रह सकता है. इस फैसले से लड़का-लड़की को तो कानूनन राहत मिल गई है, लेकिन क्या समाज के लोग भी इसे ऐसे ही स्वीकार करेंगे? क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कोई गलत इस्तेमाल नहीं हो सकता है? अगर कोई लड़की किसी लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहे और किसी अनबन हो जाने पर लड़के पर रेप का आरोप लगा दे तो उस स्थिति में क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसे कई सवाल खड़े हो गए हैं, जिनका समाधान खुद सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है. क्यों ना कि शादी की तरह ही लिव इन रिलेशनशिप को भी कानूनी बनाते हुए रजिस्टर किया जाए.
शादी जैसा 'लिव इन'
आज के दौर में रेप के कानून बेहद सख्त हो चुके हैं. 12 साल से कम की लड़की से रेप होने पर फांसी की सजा के प्रावधान तक को मंजूरी मिल चुकी है. तो ऐसे में क्यों ना कि लिव इन रिलेशनशिप को शादी की तरह ही औपचारिक बना दिया जाए. जब खुद सुप्रीम कोर्ट इसकी मंजूरी दे चुका है तो फिर इसके लिए किसी लिखा-पढ़ी की व्यवस्था क्यों नहीं होनी चाहिए. जरा सोच कर देखिए, आज कोई लड़का-लड़की बिना लिखा-पढ़ी यानी बिना किसी कागजी कार्रवाई या पंजीकरण के ही लिव इन रिलेशनशिप में रहने लग जाएं और कल को किसी अनबन की स्थिति में लड़की रेप का आरोप लगा दे तो लड़का क्या करेगा?
सुप्रीम कोर्ट को ही देना होगा दखल
जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने एक कपल को लिव इन में रहने का विकल्प दे दिया है, उसी तरह से अन्य कपल्स के लिए भी कोई व्यवस्था करनी चाहिए जो लिव इन में रहना चाहते हैं. ऐसा इसलिए ताकि सुप्रीम कोर्ट की दुहाई देकर अगर कोई लिव इन में रहे तो उसके लिए कुछ कायदे-कानून हों. कुछ नियम हों, कहीं पर पंजीकरण हो, जिससे पता चले कि लड़का-लड़की लिव इन में रह रहे हैं. इतना ही नहीं, अगर दोनों अलग होना चाहें तो उसकी भी पूरी कागजी कार्रवाई होनी चाहिए. यह सब ठीक वैसे ही जरूरी होना चाहिए जैसा शादी में होता है. जैसे शादी के बाद मैरिज सर्टिफिकेट और अलग होने के लिए तलाक की कानूनी बाध्यताएं होती हैं, कुछ वैसी ही व्यवस्था लिव इन में भी होनी चाहिए.
लड़के के नजरिए से समझें दिक्कत
लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है और लड़के की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल है. यानी लड़की तो बालिग होते ही शादी कर सकती है, लेकिन लड़का बालिग होने के 3 साल बाद शादी के योग्य हो सकता है. ऐसे में कोर्ट ने लिव इन में रहने की जो सहूलियत दी है, वह एक तरह से सिर्फ लड़के के लिए है, क्योंकि आईपीसी की धारा 375 के तहत 18 साल से कम की लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाना रेप की श्रेणी में आता है. अगर लड़के के नजरिए से इसके दूसरे पहलू को देखें तो बिना किसी कागजी कार्रवाई के लिव इन में रहने के बाद अगर लड़की ने रेप का आरोप लगाया तो लड़का अपने बचाव में क्या सबूत देगा? इतना ही नहीं, ऐसी कोई स्थिति आती है तो कोर्ट के फैसले पर भी उंगलियां उठ सकती हैं, उस समय कोर्ट क्या करेगा? ऐसे में अगर लिव इन को शादी की तरह कानूनी बाध्यता से जोड़ दिया जाए तो सारी परेशानियों का हल निकल सकता है.
किस मामले की सुनवाई में दिया ऐसा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने शादी को रद्द करने के केरल हाईकोर्ट के एक फैसले पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया है. दरअसल, अप्रैल 2017 में केरल की एक लड़की तुषारा की उम्र 19 साल थी और लड़के नंदकुमार की उम्र 20 साल थी. यानी लड़की तो शादी के लायक थी, लेकिन लड़का नहीं. दोनों ने शादी कर ली तो लड़की के पिता ने लड़के पर अपहरण का मुकदमा कर दिया. केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में विवाह रद्द करते हुए लड़की को पिता के पास वापस भेज दिया, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट का ही फैसला रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि दोनों ही हिंदू हैं और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत यह विवाह सही है. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगर वर विवाह योग्य नहीं है, लेकिन बालिग है और वधु भी बालिग है तो दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अपना पसंदीदा साथी चुनने का अधिकार न तो कोई कोर्ट कम कर सकता है ना ही कोई व्यक्ति या संस्था. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला तो सुना दिया है, लेकिन इसका कोई दुरुपयोग ना हो, इसके लिए अगर लिव इन को भी शादी की तरह कानूनी बाध्यता से जोड़ दिया जाए तो सारी परेशानियां हल हो सकती हैं.
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