हरियाणा में सरकारी मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राएं धरने पर बैठे हैं. मामला प्रदेश सरकार की नयी बॉन्ड पॉलिसी के विरोध का है. एक नवम्बर से विद्यार्थियों का धरना प्रदर्शन जारी है. रोहतक, झज्जर, करनाल, मेवात आदि के मेडिकल कॉलेज में विद्यार्थियों ने आन्दोलन शुरू किया है. रोहतक में आन्दोलन तेज है लेकिन आन्दोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है. रोहतक के पीजीआई थाने में भावी डॉक्टरों पर धारा 147, 149, 186, 322, 353, 427 के तहत लगभग 300 विद्यार्थियों पर प्रशासन ने मुकदमा दर्ज करवाया. जिसमें पीजीआई कैंपस में गैरकानूनी तरीके से धरना देने, पुलिस कर्मचारियों के साथ हाथापाई करने, बसों के शीशे तोड़ने आदि के आरोप लगाए गए हैं. रोहतक पीजीआई में 5 नवम्बर को धरना दे रहे एमबीबीएस के विद्यार्थियों पर पुलिस ने वाटर कैनन प्रयोग किया. आन्दोलनकारी विद्यार्थियों को पुलिस ने घेर लिया. बाद में पुलिस ने कुछ एमबीबीएस विद्यार्थियों को हिरासत में लिया. विद्यार्थियों ने पुलिस पर उनके साथ अभद्र व्यवहार करने का आरोप लगाया. हालांकि पुलिस ने हिरासत में लिए गए विद्यार्थियों को बाद में रिहा कर दिया, लेकिन उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर बरकरार है.
क्यों चल रहा है विरोध?
हरियाणा सरकार ने पहले घोषणा की थी कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले एमबीबीएस स्टूडेंट्स को एडमिशन से पहने 10 लाख रुपये जमा कराने होंगे. सर्विस बॉन्ड पॉलिसी के तहत एमबीबीएस विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष 9.20 लाख रुपए और फीस के तौर पर 80 हजार रुपए जमा करवाने होंगे. नई पॉलिसी आने के बाद सभी एमबीबीएस स्टेडेंट्स को 4 साल में कुल 40 लाख रुपए जमा करवाने होंगे. इसके विरोध में ही विद्यार्थियों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है. हालांकि इस विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने एमबीबीएस बॉन्ड पॉलिसी में बदलाव किए हैं. 7 नवम्बर को गैजेट नोटिफिकेशन जारी करते हुए बॉन्ड पॉलिसी में संशोधन किए गए. नई नोटिफिकेशन के तहत एमबीबीएस में प्रवेश के समय किसी भी बॉन्ड राशि का भुगतान नहीं किया जाएगा. अब विद्यार्थियों को उस कॉलेज के साथ बॉन्ड-कम-लोन एग्रीमेंट करना होगा. लेकिन शर्त यह है कि बॉन्ड में दी गई रकम को हरियाणा सरकार तभी चुकाएगी, जब एमबीबीएस पास आउट छात्र या एमडी पासआउट छात्र हरियाणा में कम से कम 7 साल तक सरकारी सेवा में डॉक्टर...
हरियाणा में सरकारी मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राएं धरने पर बैठे हैं. मामला प्रदेश सरकार की नयी बॉन्ड पॉलिसी के विरोध का है. एक नवम्बर से विद्यार्थियों का धरना प्रदर्शन जारी है. रोहतक, झज्जर, करनाल, मेवात आदि के मेडिकल कॉलेज में विद्यार्थियों ने आन्दोलन शुरू किया है. रोहतक में आन्दोलन तेज है लेकिन आन्दोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है. रोहतक के पीजीआई थाने में भावी डॉक्टरों पर धारा 147, 149, 186, 322, 353, 427 के तहत लगभग 300 विद्यार्थियों पर प्रशासन ने मुकदमा दर्ज करवाया. जिसमें पीजीआई कैंपस में गैरकानूनी तरीके से धरना देने, पुलिस कर्मचारियों के साथ हाथापाई करने, बसों के शीशे तोड़ने आदि के आरोप लगाए गए हैं. रोहतक पीजीआई में 5 नवम्बर को धरना दे रहे एमबीबीएस के विद्यार्थियों पर पुलिस ने वाटर कैनन प्रयोग किया. आन्दोलनकारी विद्यार्थियों को पुलिस ने घेर लिया. बाद में पुलिस ने कुछ एमबीबीएस विद्यार्थियों को हिरासत में लिया. विद्यार्थियों ने पुलिस पर उनके साथ अभद्र व्यवहार करने का आरोप लगाया. हालांकि पुलिस ने हिरासत में लिए गए विद्यार्थियों को बाद में रिहा कर दिया, लेकिन उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर बरकरार है.
क्यों चल रहा है विरोध?
हरियाणा सरकार ने पहले घोषणा की थी कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले एमबीबीएस स्टूडेंट्स को एडमिशन से पहने 10 लाख रुपये जमा कराने होंगे. सर्विस बॉन्ड पॉलिसी के तहत एमबीबीएस विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष 9.20 लाख रुपए और फीस के तौर पर 80 हजार रुपए जमा करवाने होंगे. नई पॉलिसी आने के बाद सभी एमबीबीएस स्टेडेंट्स को 4 साल में कुल 40 लाख रुपए जमा करवाने होंगे. इसके विरोध में ही विद्यार्थियों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है. हालांकि इस विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने एमबीबीएस बॉन्ड पॉलिसी में बदलाव किए हैं. 7 नवम्बर को गैजेट नोटिफिकेशन जारी करते हुए बॉन्ड पॉलिसी में संशोधन किए गए. नई नोटिफिकेशन के तहत एमबीबीएस में प्रवेश के समय किसी भी बॉन्ड राशि का भुगतान नहीं किया जाएगा. अब विद्यार्थियों को उस कॉलेज के साथ बॉन्ड-कम-लोन एग्रीमेंट करना होगा. लेकिन शर्त यह है कि बॉन्ड में दी गई रकम को हरियाणा सरकार तभी चुकाएगी, जब एमबीबीएस पास आउट छात्र या एमडी पासआउट छात्र हरियाणा में कम से कम 7 साल तक सरकारी सेवा में डॉक्टर की नौकरी करेगा. लेकिन जो छात्र हरियाणा में सरकारी डॉक्टर की नौकरी नहीं करना चाहते हैं, उन्हें लोन की उस रकम को खुद भरना होगा. ऐसे विद्यार्थियों की संबंधित स्नातक डिग्री उम्मीदवारों द्वारा सभी वित्तीय देनदारी पूरी करने के बाद ही जारी की जाएगी.
साथ ही बॉन्ड पॉलिसी में यह भी जिक्र किया गया है कि अगर सरकारी अस्पताल में छात्र को कोई नौकरी नहीं मिलती है तो यह बॉन्ड उन्हें नहीं भरना है लेकिन नौकरी मिल जाने के 2 साल तक अगर छात्र सरकारी अस्पताल में सेवा देने के विकल्प को नहीं चुनते हैं तो उन्हें ब्याज समेत इस कर्ज को चुकाना होगा.
आईएमए का समर्थन
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एमबीबीएस विद्यार्थियों के आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की. आईएमए ने कहा कि वो आन्दोलनकारी विद्यार्थियों के पुलिस दमन की सख्त निन्दा करती है. आईएमए ने हरियाणा के सीएम मनोहर लाल से आग्रह किया है कि वो इस दिशा में सही कदम उठाएं. विद्यार्थियों को जब सरकार की बॉन्ड पॉलिसी नहीं पसंद है तो सरकार को उसे वापस ले लेना चाहिए. हरियाणा के विद्यार्थियों के आन्दोलन को आरएमएल दिल्ली, एम्स दिल्ली के अलावा रेजीडेंट डॉक्टरों के संगठन, कुछ अन्य डॉक्टरों के संगठन का समर्थन मिल चुका है. साथ ही इन विद्यार्थियों को फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) का भी समर्थन मिला. दक्षिण भारत के डॉक्टरों की संस्था ने भी उनके आन्दोलन का समर्थन किया है.
विपक्ष का समर्थन
वहीं इस मुद्दे पर विपक्षी नेता भी विद्यार्थियों के समर्थन में सामने आ रहे हैं. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि गरीब बच्चों से डॉक्टर बनने के सपने देखने को न छीना जाए. उन्होंने प्रदेश सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि बॉन्ड पॉलिसी को विद्यार्थियों के हित में वापस लिया जाए. वहीं हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष उदयभान ने कहा कि सरकार प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस करने वाले छात्र छात्राओं के साथ अन्याय कर रही है. उन्होंने कहा कि सरकार की मनसा नहीं है कि गरीबों के बच्चे डाक्टर बन सके.
क्या है विद्यार्थियों का पक्ष?
आन्दोलनकारी विद्यार्थियों ने नए नोटिफिकेशन को खारिज करते हुए कहा कि अगर सरकार बॉन्ड नीति को लागू करना चाहती है, तो उसे नौकरी की गारंटी भी देनी होगी और बैंक को विद्यार्थियों द्वारा हस्ताक्षरित बॉन्ड समझौते से बाहर करना होगा. करनाल में धरने पर बैठे एमबीबीएस विद्यार्थियों का कहना है कि सरकार ने उन पर बॉन्ड पॉलिसी के नाम पर आर्थिक बोझ डाल दिया है. जिसके तहत उन्हें चार साल में 40 लाख रुपए देने होंगे. ऐसे में वे पढ़ाई से पहले ही लाखों के कर्ज के नीचे दब जाएंगे तो वे जन सेवा कैसे करेंगे. धरनारत विद्यार्थियों का कहना है कि सरकार मेडिकल कॉलेज के प्राइवेटाइजेशन की तरफ बढ़ रही है. सरकार के पास डॉक्टरों की नौकरियां नहीं है बावजूद इसके एमबीबीएस करने वाले विद्यार्थियों को कर्ज के नीचे दबाया जा रहा है. मेवात में धरना दे रहे विद्यार्थियों का कहना है कि यह नीति लागू होने से कम मेरिट वाले अमीर परिवार के छात्र ही दाखिला ले पाएंगे जबकि कमजोर आर्थिक स्थिति वाले स्टूडेंट अच्छी मेरिट के बावजूद अन्य राज्य के मेडिकल कॉलेजों में ही दाखिला लेने की मजबूरी होगी. विद्यार्थियों का आरोप है कि हमें पर मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जा रहा है. अगर किसी छात्र के साथ कोई अनहोनी घटना घट जाए तो उसका जिम्मेदार कौन होगा.
क्या है सरकार का पक्ष?
राज्य सरकार का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में अभी भी लगभग 28 हजार डॉक्टरों की जरूरत है. ऐसे में अगर कॉलेजों से पढ़कर स्टूडेंट्स बाहर चले जाएंगे और प्राइवेट कॉलेजों में प्रैक्टिस करने लगेंगे तो सरकारी अस्पतालों का भार कम नहीं होगा. इसीलिए सभी मेडिकल स्टूडेंट्स से कम से कम 7 साल के लिए सरकारी अस्पतालों में काम करने का बॉन्ड भरवाया जा रहा है.
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि यह बांड पॉलिसी प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए बनाई गई है. विद्यार्थियों को इससे डरने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि डॉक्टरी का पेशा सेवा का पेशा है मेवा का नहीं, इसलिए सरकारी क्षेत्र में डॉक्टरों को अपनी सेवाएं देकर आम जनता के लिए काम करना चाहिए. लेकिन कुछ लोग लालच में ऐसा नहीं करते हैं, इसीलिए बॉन्ड पॉलिसी बनाई गई है.
सीएम मनोहर लाल ने आगे कहा कि बॉन्ड पॉलिसी सिर्फ़ सरकारी नौकरी में बने रहने के लिए बनाई गई है. ताकि एमबीबीएस में पासआउट हुए छात्र ज्यादा संख्या में सरकारी नौकरियों में आएं यदि वह प्राइवेट नौकरियों में जाते हैं तो उन्हें अच्छा पैसा कमाने के बाद ही सरकार को भुगतान करना होगा इसमें विद्यार्थियों अथवा उनके अभिभावकों को कोई भी भुगतान अपनी जेब से नहीं करना होगा. मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि वह समाज सेवा के लिए काम करते हैं इसलिए पॉलिसी बनाया गया है.
एमबीबीएस विद्यार्थियों की मांगे क्या?
धरने के 15 दिन से ज्यादा समय हो जाने के बाद विद्यार्थियों ने बॉन्ड पॉलिसी में कुछ अहम संशोधन की मांग की है. विद्यार्थियों की मांग है कि बॉन्ड सेवा की अवधि 7 साल से घटाकर अधिकतम 1 वर्ष तक की जाए. साथ ही ग्रेजुएशन के अधिकतम 2 महीने के अंदर सरकार एमबीबीएस ग्रेजुएट को नौकरी की गारंटी दे. इसके साथ ही 40 लाख सेवा बॉन्ड राशि को घटाकर 5 लाख रुपए तक किया जाए.
अब सवाल यह उठता है कि क्या बॉन्ड पॉलिसी से प्रदेश में डॉक्टरों की कमी दूर हो जाएगी? साथ ही इस फैसले का दूरगामी प्रभाव क्या होगा? अब देखना यह है कि विद्यार्थियों का धरना प्रदर्शन इस प्रकार ही जारी रहता है या फिर प्रदेश सरकार इस फैसले में दुबारा कोई संशोधन करती है.
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