Orgasm... बात यह है कि यह मुद्दा बेहद बेहूदा है. एकदम पब्लिसिटी स्टंट है. बस लोगों की नज़र पाने को बात कह दी गई है. ऑर्गेज़म स्त्रियों का आंतरिक मामला है. ठीक? अब भले ही वे सामान की तरह इस्तेमाल की जाएं, उन्हें अपनी सेक्सुअलिटी का ज़िक्र भूल कर भी नहीं करना चाहिए. औरतें सेक्सुअलिटी का ज़िक्र करेंगी तो नर्क के रास्ते खुलेंगे. समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा. मीरा के निष्काम प्रेम के देश में काम-वासना की बात! छि: छि:!
हाय! वो अजंता-एलोरा की चित्रकारियां, वो खजुराहो की मूर्तियां… उन्हें कोई पर्दे में बंद कर देता. क्या फ़र्क़ पड़ता है जो दस में सात औरतों (70% औरतों) को अमूमन संतुष्टि नहीं मिलती. क्या ही बिगड़ जाता है जो कई-कई स्त्रियां उन्माद सरीखी बीमारियों के आग़ोश में चली जाती हैं. बंद दरवाज़ों में रिश्ते दरकते हैं, नैतिकता मुंह छिपाती फिरती है.
बस ऐ लड़की, तुम इसे खुलेआम कुछ मत कहना. तुम जो कहोगी तो पर्दा उठ जाएगा. भेद खुल जाएगा और जो सिटपिटाहट उठेगी वह तुम्हें कोसती फिरेगी. वे जो दिन के उजाले में सफ़ेद हैं और रातों को उससे भी अधिक स्याह. वे कहेंगे- क्या धरा है सेक्स में और सुख में. तुम दिमाग़ से बेहतर बनो. यह मुद्दा तो बस पंद्रह सेकंड का सुख है. वे यह कहेंगे और पंद्रह सेकंड के सुख में अपना हिस्सा पाने को झट एक पोस्ट कर देंगे.
मैं नैतिकता की दुहाई देते, अनैतिकता के प्रश्न से आहत लोगों को देखूंगी और स्वस्थ सेक्स से स्वस्थ दिमाग़ के जुड़े होने का शाश्वत सत्य बयान कर दूंगी. वे फिर तिलमिलाएंगे. उनके तिलमिलाने से क्या शरीर की भूख और तुष्टि से जुड़ा प्रश्न ख़त्म हो जाएगा?
नहीं! आप कितनी भी दलीलें दे दें, अगर आप सेक्सुअल हैं आपकी भूख...
Orgasm... बात यह है कि यह मुद्दा बेहद बेहूदा है. एकदम पब्लिसिटी स्टंट है. बस लोगों की नज़र पाने को बात कह दी गई है. ऑर्गेज़म स्त्रियों का आंतरिक मामला है. ठीक? अब भले ही वे सामान की तरह इस्तेमाल की जाएं, उन्हें अपनी सेक्सुअलिटी का ज़िक्र भूल कर भी नहीं करना चाहिए. औरतें सेक्सुअलिटी का ज़िक्र करेंगी तो नर्क के रास्ते खुलेंगे. समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा. मीरा के निष्काम प्रेम के देश में काम-वासना की बात! छि: छि:!
हाय! वो अजंता-एलोरा की चित्रकारियां, वो खजुराहो की मूर्तियां… उन्हें कोई पर्दे में बंद कर देता. क्या फ़र्क़ पड़ता है जो दस में सात औरतों (70% औरतों) को अमूमन संतुष्टि नहीं मिलती. क्या ही बिगड़ जाता है जो कई-कई स्त्रियां उन्माद सरीखी बीमारियों के आग़ोश में चली जाती हैं. बंद दरवाज़ों में रिश्ते दरकते हैं, नैतिकता मुंह छिपाती फिरती है.
बस ऐ लड़की, तुम इसे खुलेआम कुछ मत कहना. तुम जो कहोगी तो पर्दा उठ जाएगा. भेद खुल जाएगा और जो सिटपिटाहट उठेगी वह तुम्हें कोसती फिरेगी. वे जो दिन के उजाले में सफ़ेद हैं और रातों को उससे भी अधिक स्याह. वे कहेंगे- क्या धरा है सेक्स में और सुख में. तुम दिमाग़ से बेहतर बनो. यह मुद्दा तो बस पंद्रह सेकंड का सुख है. वे यह कहेंगे और पंद्रह सेकंड के सुख में अपना हिस्सा पाने को झट एक पोस्ट कर देंगे.
मैं नैतिकता की दुहाई देते, अनैतिकता के प्रश्न से आहत लोगों को देखूंगी और स्वस्थ सेक्स से स्वस्थ दिमाग़ के जुड़े होने का शाश्वत सत्य बयान कर दूंगी. वे फिर तिलमिलाएंगे. उनके तिलमिलाने से क्या शरीर की भूख और तुष्टि से जुड़ा प्रश्न ख़त्म हो जाएगा?
नहीं! आप कितनी भी दलीलें दे दें, अगर आप सेक्सुअल हैं आपकी भूख ऑर्गेज़म के साथ ही मिटेगी. चाहे आप इसे मस्टरबेशन से हासिल करें, कथित नैतिक तरीक़े से पाएं या अनैतिक तरीक़े. रास्ता कोई भी हो, वह जो आख़िरी तुष्टि है, जिसे ऑर्गेज़म कहते हैं. वही चाहत है. यह अटल सत्य है जिसे आप भी जानते हैं.
एक बात और- सेक्सुअली ऐक्टिव लोगों के लिए सेक्स की चाह पद, क्लास, पढ़ाई, उम्र, पैसा, ज़मीन, जगह और देश नहीं देखती है. मैं उन महान आत्माओं पर केवल हंस सकती हूं जो शारीरिक चरम सुख को किसी भी अन्य ऑर्गेज़म से विस्थापित करने की बात करते हैं. उन्हें सलाह दूंगी, दोस्त एक बार सुख लेने की कोशिश करो. इसके लिए किसी और की ज़रूरत भी नहीं. आत्म-रति यानी सेल्फ़-सेक्स से भी सम्भव है.
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