इस लॉकडाउन (Lockdown) में तमाम ऐसी चीजें भी देखने सुनने को मिलीं जो शायद ही सामान्य परिस्थितियों में हम देख पाते. आज आप किसी भी सड़क पर निकल जाइये, आपको परिवार के साथ सामान लादे मजदूर और गरीब (Migrant Workers) कराहता हुआ नजर आ जाएगा. और इस परिस्थिति में सबसे ज्यादा अगर संवेदनशील कोई तबका सामने आया है तो वह है आम इंसान. हर जगह इन मजदूरों या गरीबों के खाने पीने, जूते चप्पल या कपड़ों के लिए सबसे ज्यादा आम आदमी ही आगे आया है, खासकर वह आदमी जिसकी आय सीमित है और जिसके पास बहुत ज्यादा बचत भी नहीं है. इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि चूंकि आम आदमी इन सब पीड़ाओं से होकर गुजरता है, इनको रोज महसूस करता है, इसीलिए इस आपदा में मदद करने के लिए सबसे आगे है. इस आपदा में इन मजलूमों के मदद के लिए सरकार कितना आगे आयी है, यह किसी से छुपा नहीं है लेकिन एक बात का ऐलान बराबर किया जा रहा है कि आप लोग अपने घरों में ही रहें, बाहर नहीं निकलें और सरकार का इस आपदा को कंट्रोल करने में मदद करें.
अमूमन लोगों की आदत होती है कि आप उनको जिस चीज के लिए मना करते हो, वह उसी को ज्यादा करना चाहते हैं. सरकार ने इस समय लोगों को घरों से बाहर नहीं निकलने के लिए कहा है तो मानव स्वभाव के अनुसार बहुत से लोग अनावश्यक कार्यों के लिए बाहर निकल रहे हैं. यह बिलकुल गलत है और इस पर रोक लगनी चाहिए.
हां उन मजदूरों और गरीबों के लिए यह बात लागू नहीं होती है क्यूंकि उनको आसन्न मृत्यु दिखाई दे रही है. जिसके चलते वह अपने घर या अपने गांव पहुंच जाना चाहते हैं. लेकिन इस समय में एक वर्ग ऐसा है जिसने सरकार के इस ऐलान का जिस शिद्दत से पालन किया है, उसके लिए अगर उनकी शान में कसीदे पढ़े जाएं या महाग्रंथ लिखे जाएं तो भी कम ही होगा.
इस लॉकडाउन (Lockdown) में तमाम ऐसी चीजें भी देखने सुनने को मिलीं जो शायद ही सामान्य परिस्थितियों में हम देख पाते. आज आप किसी भी सड़क पर निकल जाइये, आपको परिवार के साथ सामान लादे मजदूर और गरीब (Migrant Workers) कराहता हुआ नजर आ जाएगा. और इस परिस्थिति में सबसे ज्यादा अगर संवेदनशील कोई तबका सामने आया है तो वह है आम इंसान. हर जगह इन मजदूरों या गरीबों के खाने पीने, जूते चप्पल या कपड़ों के लिए सबसे ज्यादा आम आदमी ही आगे आया है, खासकर वह आदमी जिसकी आय सीमित है और जिसके पास बहुत ज्यादा बचत भी नहीं है. इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि चूंकि आम आदमी इन सब पीड़ाओं से होकर गुजरता है, इनको रोज महसूस करता है, इसीलिए इस आपदा में मदद करने के लिए सबसे आगे है. इस आपदा में इन मजलूमों के मदद के लिए सरकार कितना आगे आयी है, यह किसी से छुपा नहीं है लेकिन एक बात का ऐलान बराबर किया जा रहा है कि आप लोग अपने घरों में ही रहें, बाहर नहीं निकलें और सरकार का इस आपदा को कंट्रोल करने में मदद करें.
अमूमन लोगों की आदत होती है कि आप उनको जिस चीज के लिए मना करते हो, वह उसी को ज्यादा करना चाहते हैं. सरकार ने इस समय लोगों को घरों से बाहर नहीं निकलने के लिए कहा है तो मानव स्वभाव के अनुसार बहुत से लोग अनावश्यक कार्यों के लिए बाहर निकल रहे हैं. यह बिलकुल गलत है और इस पर रोक लगनी चाहिए.
हां उन मजदूरों और गरीबों के लिए यह बात लागू नहीं होती है क्यूंकि उनको आसन्न मृत्यु दिखाई दे रही है. जिसके चलते वह अपने घर या अपने गांव पहुंच जाना चाहते हैं. लेकिन इस समय में एक वर्ग ऐसा है जिसने सरकार के इस ऐलान का जिस शिद्दत से पालन किया है, उसके लिए अगर उनकी शान में कसीदे पढ़े जाएं या महाग्रंथ लिखे जाएं तो भी कम ही होगा.
आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं किस वर्ग की बात कर रहा हूं तो मैं बता दूं कि वैसे तो यह वर्ग न तो किसी नियम कानून को मानता है और न सार्वजनिक जीवन में किसी भी तरह का आदर्श व्यवहार प्रदर्शित करता है. दरअसल मैं बात कर रहा हूं अपने देश, प्रदेश या जिले के तमा नेताओं की, अपने सांसदों की, अपने विधायकों की, मंत्रियों की या जिला स्तर के तमाम मंत्रियों की.
इन लोगों ने (इनमें से अधिकांश ने) इस आपदा के समय पर इस सरकार की अपील को (भले वे विपक्ष के नेता हों) जिस श्रद्धा से सुना और माना है, वह शहीद ही और कभी देखने को मिला हो. इनमें से अधिकांश लोगों ने सरकार की अपील का अक्षरशः पालन किया है, घर में ही कैद रहे हैं. न तो ये जनता के लिए खुद बाहर आये हैं और न अपने चेलों चपाटियों से कुछ करने के लिए कहा है.
अब सत्ता पक्ष के नेताओं की बात तो समझ में आती है कि उनको सरकार की बात मानना मज़बूरी है लेकिन विपक्ष के नेता? वैसे तो विपक्ष के नेताओं का एकमात्र धर्म होता है कि वर्तमान सरकार की हर नीतियों की बुराई की जाए, चाहे वे कितनी भी अच्छीं हों. लेकिन इस समय विपक्ष भी सरकार के इस आह्वान पर पूरी तरह से साथ है, बिलकुल सड़क पर नहीं आ रहे हैं.
कोरोना महामारी के इस काल में जब चीजें सामान्य होने लगेंगी तो इन नेताओं को इस बात के लिए हमेशा के लिए जनता याद रखेगी. और शायद चुनाव के समय वह इनके आवाहन को उसी तरह से नकार देगी जिस तरह से इन्होने इस समय गरीब और मजबूर जनता के मदद को सिरे से नकार दिया है. समय सबका हिसाब रखता है, अच्छे का भी और बुरे का भी.
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