- मेरे एक मित्र ने जब अपनी आधुनिक गर्लफ्रेंड को अपने घरवालों से मिलाने का विचार किया तो उसे समझा कर गए कि सलवार सूट ही पहनना.
- मेरी बहन को जब लड़का देखने आया तब बहन ने कुर्ते के साथ जींस पहनी हुई थी, उसे सिर्फ इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि वो जींस पहनती है, फॉरवर्ड है.
- मेरे भाई को बीयर पीने वाली, आधुनिक लड़कियों से दोस्ती करने या उन्हें गर्लफ्रेंड बनाने से कोई परहेज नहीं लेकिन शादी के लिए उसे घरेलू टाइप की लड़की चाहिए.
ये वो उदाहरण हैं जो आज हर किसी के पास होंगे ये बताने के लिए कि समाज लड़कियों के बारे में किस तरह से सोचता है. वास्तव में अच्छी लड़कियां कैसी होती हैं? शादी मटीरियल लड़कियां कैसी होती हैं? और इन सबसे उलट, आने वाली फिल्म 'वीरे दी वेडिंग' के ट्रेलर में जिस तरह की लड़कियां दिखाई दे रही हैं उन्होंने समाज की इसी सोच पर वार किया है. शुरुआती बातें तो ऐसी हैं कि लोग सुनकर कानों में गंगाजल डाल सकते हैं. ये वो बाते हैं जिन्हें हमारा समाज लड़की के मुंह से तो सुनने की सोच भी नहीं सकता. कायदे से सेंसर्ड होनी चाहिए क्योंकि लड़कियों ने ये बातें बिना किसी शर्मो हया के कह डाली हैं.
देखिए ट्रेलर जिसने इस वक्त बवाल मचा रखा है और ये बहस भी छेड़ दी है कि गंदी और अच्छी लड़कियां होती कैसी हैं-
ये ट्रेलर बहुतों को मजेदार लगा लेकिन कई ऐसे भी थे जिन्होंने इन चारों लड़कियों को चीप और गंदी कहा. वजह आगे बताते हैं पहले इस फिल्म की खास बात समझ लीजिए, जिसके लिए आप ये ट्रेलर दोबारा देखेंगे. फिल्म का नाम है 'वीरे दी वेडिंग' और पूरे ट्रेलर में आपको वीर यानी भाई कहीं नहीं दिखा होगा. फिर वीरे दी वैडिंग कैसी?? तो जवाब ये है कि आज की लड़कियां किसी भी रूप में वीरे यानी भाई से कम नहीं सोचतीं. और इस फिल्म का मकसद भी यही दिखाना है कि आजकल लड़कियां खुद अपनी बॉस हैं, उन्हें अपने खुद के निर्णय लेने का पूरा हक है, चाहे वो शादी हो, या शादी से पहले सेक्स हो.
समाज की नजर में अच्छी लड़कियां-
हमारे समाज ने लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग नियम बनाए हैं, जो उनके आचार-व्यवहार, बातचीत के लहजे, चाल-ढ़ाल, कपड़े पहनने के तरीके, यहां तक कि आत्मविश्वास तक पर अलग अलग प्रभाव डालते हैं.
* लड़कियों को अपनी आवाज धीमी रखनी चाहिए और लड़के दहाड़ भी सकते हैं.
* लड़कियों को शालीनता से बात करनी चाहिए और लड़के मां-बहन की गालियां भी दे सकते हैं.
* लड़कियों को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए और लड़के रात भर भी घर न आएं तो चलता है.
* लड़कियों को पूजा पाठ करना चाहिए, मंदिर जाना चाहिए, व्रत करने चाहिए पर लड़कों के लिए कोई नियम कायदे जरूरी नहीं.
* लड़कियों को घर के सारे काम आने चाहिए, पर लड़कों को करने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि उनके लिए हमेशा मां, बहन और बीवी उपलब्ध होते हैं.
* लड़कियों को शराब नहीं पीनी चाहिए, और लड़के पीकर उल्टियां करते फिरें तो भी चलता है.
* लड़कियों को सेक्स के बारे में बात नहीं करना चाहिए, क्योंकि वो तो पुरुषों का काम है न.
* लड़कियां गाली कैसे दे सकती हैं, उसपर तो लड़कों का अधिकार है!
और जो लड़कियां इस फ्रेम से हटकर काम करें, तो वो गंदी लड़कियां कहलाती हैं उन्हें कोई पसंद नहीं करता, खासकर बहू बनाकर तो कोई घर नहीं लाना चाहता. उदाहरण के तौर पर समझिए कि जब कठुआ रेप के मामले में स्वरा भास्कर और करीना कपूर ने प्लेकार्ड हाथ में लेकर तस्वीर पोस्ट की तो लोगों ने उनके विरोध को भारत विरोधी समझा और उनका बहिष्कार किया. सीधे शब्दों में कहूं तो, लड़कियों के ऊंचे और बेबाक स्वर किसी को पसंद नहीं.
लोग बेटियों को फॉरवर्ड बनाते हैं, लेकिन बहू घरेलू चाहिए
ऐसा ही होता है ना, हम अपनी बेटियों को अच्छा पढ़ाते-लिखाते हैं, और उनके लिए लड़का भी वैसा ही चुनते हैं जो उसे समझ सके, जो उसे अपना जीवन अपने हिसाब से जीने की आज़ादी दे सके. लेकिन बात जब अपने बेटे के लिए बहू ढूंढने की आती है तो, समाज ऐसी ही लड़कियों से दूर भागता है जो आधुनिक विचार धारा की होती हैं. उन्हें टैटू वाली, शॉर्ट्स पहनने वाली, छोटे बालों वाली, आधुनिक विचारधारा वाली, विरोध करने वाली लड़कियां चाहिए ही नहीं.
लड़की कैसी भी हो घरेलू या कामकाजी उम्मीदें उससे एक ही जैसी की जाती हैं कि वो बाहर का काम करे न करे लेकिन घर के कामों में निपुण हो. खाना तो दो वक्त का बना ही दे और अचार पापड़ बनाना आता हो तो लॉटरी ही लग गई समझो. ससुराल वालों से सोच-समझकर और तोल मोलकर ही बोले, ज्यादा बोले तो- तेज है. बहू को ससुराल में साड़ी ही पहनने का फरमान देने वाली आन्टियां अक्सर अपनी बेटी को ससुराल में जींस नहीं पहनने देने की वजह से परेशान दिखती हैं.
तो नतीजा ये निकलता है कि लड़कियां शादी अपने लिए नहीं बल्कि औरों के लिए करती हैं...या कहें कि करवाई जाती है. इस फिल्म में भले ही बहुत कुछ ज्यादा है, लेकिन एक बात तो सही है कि हमें शादी और शादी से अथाह उम्मीदों के बारे में एक बार सोचने को तो मजबूर करती ही है.
'वीरे दी वेडिंग' को मिलाकर पिछले कुछ समय में इस तरह की कई फिल्में आई जिनमें इन महिलाओं, उनकी इच्छाओं, और उनके वजूद को प्रमुखता से दिखाया गया था. जिनमें 'लिप्स्टिक अंडर माय बुर्का' काफी चर्चित थी. लेकिन लगता नहीं कि ऐसी किसी फिल्म से कोई फर्क पड़ने वाला है, समाज टस से मस होने को राज़ी नहीं है. फिल्मों में हो तो मजा आता है लेकिन असल में हो तो बर्दाश्त नहीं. ये है सोसाइटी का डबल स्टैंडर्ड...एंड वी आर प्राउड आफ इट! यहां एक बात और... ये फिल्म आपको अच्छी ज़रूर लगेगी, क्योंकि इसमें बोल्ड डायलॉग जिन लड़कियों ने बोले हैं वो आपकी बेटियां नहीं हैं.
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