फिल्म 'वीरे दी वेडिंग' जिसमें लड़कियां फैमिनिजिम का झंडा बुलंद किए हुए हैं- वो बताती है कि किस तरह आजकल की लड़कियां अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती हैं और जी रही हैं. शराब पीना, गाली देना, लड़के घुमाना जैसे काम भी जब वो बोबाकी से कर रही हैं तो शादी को कैसे सीरियसली ले सकती हैं. जी हां, उम्मीद सोनम कपूर से भी यही थी कि वो अपने असल जीवन में भी इसी एटिट्यूड के साथ जीती होंगी. लेकिन जब असली शादी करके उन्होंने अपने नाम के साथ अपने पति का सरनेम जोड़ लिया तो उनकी वो फैमिनिस्ट वाली छवि चकनाचूर हो गई.
सोनम कपूर ने अपने नाम के साथ पति का सरनेम जोड़ लिया
शादी को एक दिन भी नहीं बीता था कि सोनम कपूर सोशल मीडिया पर झट से सोनम कपूर आहुजा हो गईं, और ये सवाल सोशल मीडिया में बहस करने के लिए छोड़ गईं कि आखिर उन्होंने अपना नाम क्यों बदल लिया? क्या शादी के बाद पति का नाम अपने नाम के सा जोड़ना गलत है? अगर गलत है तो क्यों? क्या शादी के बाद पत्नी का नाम न बदलना भी गलत है? अगर गलत है तो क्यों?
सवाल तो बहुत से हैं लेकिन जवाब क्या मिलता है ये महत्वपूर्ण है. बहरहाल लोग इस नेम चेंज से बड़े परेशान दिखाई दिए-
सोनम कपूर गलत कैसे?
शादी के बाद तुरंत सरनेम बदलना...इतनी फुर्ती हैरान करने वाली थी. लेकिन इसे शादी के एक्साइटमेंट के रूप में भी देखा जा सकता है, कि सोनम कपूर अपनी शादी से कितनी खुश हैं. एक आम लड़की तरह उन्होंने भी अपने दिमाग में शादी की लिस्ट बनाई होगी कि शादी के बाद ये करना है, वो करना है और नाम चेंज करना भी उसी लिस्ट का हिस्सा रहा होगा. शायद उन्होंने इसे फैमिनिज़्म से जोड़कर भी न देखा हो.
आम लड़की तरह दुल्हन बनीं सोनम
और अगर देखा भी हो तो इसमें गलत क्या है, नाम बदलना या न बदलना उनकी जिंदगी में उतना ही महत्वपूर्ण फैसला हो सकता है जितना कि वो किससे शादी करें, कब करें, या नहीं करें. और जब बात मर्जी की आती है तो गलत या सही मायने नहीं रखता. पर हां उनकी वीरे दी वैडिंग वाली इमेज से कंपेयर करेंगे तो वो गलत ही नजर आएंगी.
कई लोगों काफी सुलझे हुए थे जिनका कहना साफ था किये किसी की मर्जी हो सकती है इसे फैमिनिज़्म के चश्मे से न देखा जाए.
लेकिन ये फैमिनिज्म का चश्मा कुछ ज्यादा देख लेता है, और फिर इस तरह की बातें सामने आती हैं.
सोनम के नम बदलने पर बहस
ये महिला अधिकार ही तो है
बात अगर आज की करें तो महिलाएं बराबरी का हक मांगती हैं. पितृसत्ता से बाहर निकलकर आजादी से जीना चाहती हैं. लेकिन आप उन महिलाओं को देखिए जिनकी शादी के बाद हस्ती ही बदल जाती है. सरनेम तो बहुत छोटी बात है, उनका नाम और पहचान तक उनसे छीन ली जाती है, जिसे सुनसुनकर वो बड़ी हुईं हैं. ऐसे में अगर आज महिलाएं सरनेम बदल रही हैं या अपने सरनेम के साथ पति का सरनेम भी जोड़ रही हैं तो ये उनकी इच्छा है, स्वतंत्रता है. लेकिन बराबरी का मतलब ये तो कतई नहीं कि वो पतियों से कहें कि अब तुम मेरा सरनाम लगाओ. जैसा कि तसलीमा नसरीन का कहना है.
उन्होंने ट्वीट करके कहा ‘आनंद आहूजा से शादी के बाद सोनम कपूर ने अपना नाम सोनम कपूर आहूजा रख लिया. क्या आनंद आहूजा अपना नाम बदलकर आनंद आहूजा कपूर करेंगे. वह लोग मॉडर्न ड्रेस पहनते हैं. फिल्मों में मॉडर्न होने के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन असल जिंदगी में फिल्मी दुनिया से ताल्लुक रखने वाले ज्यादातर लोग ऐसे नहीं होते हैं. वह पुरुष आधिपत्य और अंधविश्वास में विश्वास करते हैं.'
मेरी मर्जी, मेरा अधिकार
मॉर्डन होकर भी पुरानी परंपराओं को अहमियत देना गलत नहीं है, बिलकुल उसी तरह जिसतरह आजकल महिलाएं सिंदूर लगाती हैं और कई नहीं भी लगातीं. करवाचौथ का व्रत अपनी खुशी के लिए करती हैं, कुछ बराबरी की उम्मीद करती हैं कि पति भी करें.
जब मेरी शादी हुई, तो मुझसे भी उम्मीदें की गईं थीं कि मैं भी अपना सरनेम बदल दूंगी. लेकिन अपना नाम बदलना मुझे कुछ जंचा नहीं, शादी मैंने भी सोनम कपूर की तरह अपनी मर्जी से की थी लेकिन पति का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने के लिए मन कभी नहीं माना. मैं फेमिनिस्ट मोर्चे का झंडा भी नहीं उठाती और न ही रीति रिवाज मानने में मुझे कोई एलर्जी है. लेकिन फिर भी नाम न बदलना मेरी अपनी मर्जी थी, क्योंकि मुझे मेरे नाम से प्यार है. मेरे नाम से मेरी पहचान है और ये पहचान मैं कभी खुद से अलग नहीं करना चाहती थी. बहुत सी फैमिनिस्ट मुझे करवाचौथ का व्रत करने के लिए भी ताने देती हैं, कि मैं इतनी फॉर्वर्ड होकर पुरानी परंपराएं क्यों निभा रही हूं, तो मेरा जवाब यही है कि 'मेरी मर्जी'. और रही बात बराबरी की, तो मेरे नाम न बदलने के फैसले को मेरे ससुराल वालों द्वारा स्वीकार करना मेरे आत्मसम्मान को बनाए रखने में उनका पहला कदम ही था. वहीं मेरी बहन ख्यालों से बहुत मॉर्डन है, लेकिन उसे अपने पति का नाम अपने नाम के साथ लगाने में खुशी मिलती है.
तो अगर सोनम अपना नाम बदलती हैं तो उनकी मर्जी को उतनी ही अहमियत मिलनी चाहिए जितनी शबाना आज़मी, विद्या बालन और किरण राव को मिली जिन्होंने शादी के बाद अपना नाम नहीं बदला, क्योंकि वो उनकी मर्जी थी, उनका अधिकार था. अगर करीना कपूर अपने नाम के आगे खान लगाती हैं तो ये उनकी मर्जी इसपर बोलने वाले हम आप कोई नहीं होते.
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