हम इंडिया से न्यू इंडिया की तरफ बढ़ रहे हैं. तकनीक, विकास और बुलेट ट्रेन की बातें कर रहे हैं. साथ ही हम भारत को सम्पूर्ण विश्व पर राज करते हुए भी देखना चाहते हैं. न्यू इंडिया और बुलेट ट्रेन जैसे इन फसानों को अगर हम नजर उठाकर देखें तो पहली नजर में हमें सब अच्छा ही अच्छा दिखेगा. जब हम थोड़ा रूककर और ठहरकर इसे देखेंगे तो मिलेगा कि हकीकत और फसाने में अंतर होता है. यहां चीजें उतनी अच्छी नहीं हैं जितना ये हमें दूर से अच्छी नजर आ रही हैं.
हो सकता है ये बातें सुनकर आप विचलित हों और ये सोचें कि आखिर हम ऐसा क्यों कह रहे हैं तो इस कथन के पीछे की खबर दिल दुखाने वाली है. खबर आम नागरिकों की मौत से जुड़ी हैं और इन ख़बरों को देखकर कहीं न कहीं इस बात का एहसास होता है कि आम नागरिकों की सुरक्षा के दावे आज भी कहीं न कहीं खोखले हैं और हमारी सरकार को इनमें और अधिक मेहनत करने की जरूरत है.
खबर मुंबई से है. मुंबई में एक आरटीआई में जो बातें निकल कर सामने आई है वो किसी के भी माथे पर चिंता के बल ला देगी. मुंबई के एक आरटीआई एक्टिविस्ट समीर झावेरी ने आरटीआई के जरिये जीआरपी से 2017 में ट्रेन दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों के बारे में पूछा था. इसपर जीआरपी ने जो जवाब दिया वो दिल दहला देने वाला था.
जीआरपी के अनुसार 2017 में मुंबई में तीन हजार से ज्यादा लोग रेल दुर्घटना का शिकार हुए और अपनी जान गंवाई. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. जीआरपी की तरफ से उपलब्ध कराई गयी सूचना के अनुसार पश्चिमी, मध्य और हार्बर उपनगरीय सेवा में रेलवे ट्रैक पर कम से कम 3,014 यात्री मारे गए हैं. अपने आंकड़ों में जीआरपी ने बताया कि मरने वालों में 1,467 पुरूष और 184 महिलाओं सहित कुल 1,651 लोग रेलवे...
हम इंडिया से न्यू इंडिया की तरफ बढ़ रहे हैं. तकनीक, विकास और बुलेट ट्रेन की बातें कर रहे हैं. साथ ही हम भारत को सम्पूर्ण विश्व पर राज करते हुए भी देखना चाहते हैं. न्यू इंडिया और बुलेट ट्रेन जैसे इन फसानों को अगर हम नजर उठाकर देखें तो पहली नजर में हमें सब अच्छा ही अच्छा दिखेगा. जब हम थोड़ा रूककर और ठहरकर इसे देखेंगे तो मिलेगा कि हकीकत और फसाने में अंतर होता है. यहां चीजें उतनी अच्छी नहीं हैं जितना ये हमें दूर से अच्छी नजर आ रही हैं.
हो सकता है ये बातें सुनकर आप विचलित हों और ये सोचें कि आखिर हम ऐसा क्यों कह रहे हैं तो इस कथन के पीछे की खबर दिल दुखाने वाली है. खबर आम नागरिकों की मौत से जुड़ी हैं और इन ख़बरों को देखकर कहीं न कहीं इस बात का एहसास होता है कि आम नागरिकों की सुरक्षा के दावे आज भी कहीं न कहीं खोखले हैं और हमारी सरकार को इनमें और अधिक मेहनत करने की जरूरत है.
खबर मुंबई से है. मुंबई में एक आरटीआई में जो बातें निकल कर सामने आई है वो किसी के भी माथे पर चिंता के बल ला देगी. मुंबई के एक आरटीआई एक्टिविस्ट समीर झावेरी ने आरटीआई के जरिये जीआरपी से 2017 में ट्रेन दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों के बारे में पूछा था. इसपर जीआरपी ने जो जवाब दिया वो दिल दहला देने वाला था.
जीआरपी के अनुसार 2017 में मुंबई में तीन हजार से ज्यादा लोग रेल दुर्घटना का शिकार हुए और अपनी जान गंवाई. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. जीआरपी की तरफ से उपलब्ध कराई गयी सूचना के अनुसार पश्चिमी, मध्य और हार्बर उपनगरीय सेवा में रेलवे ट्रैक पर कम से कम 3,014 यात्री मारे गए हैं. अपने आंकड़ों में जीआरपी ने बताया कि मरने वालों में 1,467 पुरूष और 184 महिलाओं सहित कुल 1,651 लोग रेलवे पटरी पार करते समय मरे हैं. जबकि 654 यात्री चलती ट्रेन से गिर कर मरे हैं.
आपको बताते चलें कि पुलिस ने इन मौतों के पीछे तीन प्रमुख कारण बताकर अपना पल्ला झाड़ने का प्रयास किया है. पुलिस ने नागरिकों की मौत के रूप में पहला कारण आत्महत्या को माना है जबकि ट्रैक पार करना और किसी कारणवश ट्रेन से गिर जाना अन्य दो कारण हैं. मौत के इन कारणों पर पुलिस का तर्क है कि हमारा आत्महत्याओं पर नियंत्रण नहीं है मगर दो अन्य कारणों के चलते होने वाली मौतों को रोका जा सकता है.
हो सकता है कि मुंबई की इस खबर को देश का एक आम नागरिक सरसरी निगाह से पढ़कर नकार दे. या फिर ये सोचकर इस खबर से किनाराकशी कर ले कि, ये हमसे जुड़ी नहीं है. तो इन परिस्थितियों में यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि हम इस खबर को एक बड़ा मुद्दा दो कारणों से मान रहे हैं. पहला तकनीक के बड़े बड़े दावों के बीच लोगों की मौत और दूसरा इंडिया से न्यू इंडिया की तरफ बढ़ता हमारा भारत. बात अगर नागरिकों की मौत पर हो तो जो आंकड़े आए हैं वो ये बता रहे हैं कि मुंबई में रोजाना तकरीबन 9 लोग दुर्घटना के शिकार होते हैं और अपनी जान गंवाते हैं. ये बात एक गहरी चिंता का विषय एक ऐसे वक़्त में है जब पूर्व की अपेक्षा वर्तमान में हम तकनीक के लिहाज से कहीं ज्यादा मजबूत हैं.
इसके अलावा बात जब इंडिया से न्यू इंडिया के सन्दर्भ में हो तो हम इस खबर को प्रमुखता इसलिए भी दे रहे हैं क्योंकि वर्तमान में हमारे प्रधानमंत्री पूरे भारत को बुलेट ट्रेन से जोड़ने का सपना अपनी आंखों में संजोए हुए हैं. कहा जा सकता है कि बुलेट ट्रेन को कुछ दिन भूलकर यदि सरकार इस दिशा में काम करे तो इन हादसों को टाला जा सकता है.
गौरतलब है कि अत्यधिक आबादी के कारण मुंबई की इन लोकल ट्रेनों में बहुत ज्यादा भीड़ रहती है और कई बार ये देखा गया ही कि चढ़ने और उतरने की प्रक्रिया में धक्के और भीड़ भाड़ के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. इसके अलावा मुंबई की लोकल ट्रेनों में लोगों के स्टंट भी कई बार उनकी मौत का कारण बनते हैं.
बात खत्म करने से पहले हम आपको 2016 के आंकड़ों से भी अवगत कराना चाहेंगे. 2016 में मुंबई के सेन्ट्रल रेलवे नेटवर्क पर 2,114 दुर्घटना के शिकार हुए थे जबकि वेस्टर्न नेटवर्क पर 1,088 लोगों की मौत हुई थी. बात अगर कारणों पर हो तो इन मौतों में 50% लोग ट्रैक को पार करते हुए मरे थे जबकि 657 लोग ट्रेन से गिरकर, 8 लोग बिजली के खम्बे से टकराकर, 13 लोग प्लेटफार्म गैप में फिसलकर, 34 लोग करंट लगने से मरे थे जबकि 35 लोगों ने आत्महत्या की थी.
अंत में हम ये कहकर अपनी बात खत्म करेंगे कि बेहतर होगा सरकार इस दिशा में काम करे और मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल को इस योग्य बनाए जिसमें यात्रा करने वाले लोग अपने को सुरक्षित महसूस कर सकें. लोगों की आत्महत्या के विषय में हम यही कहेंगे कि रेलवे पुलिस को भी स्टेशन परिसर में निगरानी की व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी ताकि ऐसे मामले कम हों.
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