हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां लोगों को महिलाओं पर सवाल उठाने में मज़ा आता है या यूं कहें कि इसे वो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी मानते हैं कि उन्हें औरतों की दक्षता, क्षमता, चरित्र, चाल-ढाल आदि पर सवाल उठाने ही हैं. साथ ही औरतों को एक अहम काम सौंपा जाता है. लगभग अधेड़ हो चुके एक 'बच्चे' (जिसका नाम पति होता है) को सुधारने का.
"शादी होते ही सुधर जाएगा"
"बीवी आएगी न तो देखना सही हो जाएगा"
"घर की लक्ष्मी भला कैसे घर को बिगड़ने देगी?"
"पत्नी का काम होता है अपने पति को सही रास्ते पर लाना"
"शादी होगी तभी तो जिम्मेदारी का अहसास होगा"
और भी न जाने क्या-क्या. यही सब वो लाइन्स हैं जिन्हें लगभग हर भारतीय घर में बोला जाता है. कहीं न कहीं से किसी न किसी तरह से लड़कियों को ये समझाया जाता है कि उनके आने के बाद उनके पति सुधर जाएंगे या ये उनकी नैतिक जिम्मेदारी है और उनके जीने का मकसद भी कि उन्हें अपने पति को सुधारना है. महिलाएं सुंदर हों, घर में आएं तो घर की लक्ष्मी बनकर, उनके आते ही घर की दिशा और दशा बदल जाए.
इसी समस्या को सामने लाते हुए साइकोलॉजिस्ट और पेरेंटिंग एक्सपर्ट जसीना बैकर ने अपनी फेसबुक पोस्ट में भारत की वो सच्चाई लिखी है जिसे जानते तो सभी हैं, लेकिन उसका कोई इलाज कभी नहीं किया जाता. जसीना अपनी बाई से बात कर रही थीं और तभी उन्हें अहसास हुआ कि भारत में किस कदर औरतों पर प्रेशर डाला जाता है.
जसीना की बाई ने उनसे बात करते हुए कहा...
"मेरा बेटा शराब पीता है, मेरी बहू बिलकुल अच्छी नहीं. वो मेरे बेटे को रोकने या काबू में नहीं कर पाती. सिर्फ वो महिला जो घर आती है, एक अच्छी पत्नी बनती है, उसी का पति सही हो पाता है."
"मेरी बहू 8 साल पहले शादी करके आई थी, मैं सोचती हूं कि वो क्या कर रही है इतने सालों...
हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां लोगों को महिलाओं पर सवाल उठाने में मज़ा आता है या यूं कहें कि इसे वो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी मानते हैं कि उन्हें औरतों की दक्षता, क्षमता, चरित्र, चाल-ढाल आदि पर सवाल उठाने ही हैं. साथ ही औरतों को एक अहम काम सौंपा जाता है. लगभग अधेड़ हो चुके एक 'बच्चे' (जिसका नाम पति होता है) को सुधारने का.
"शादी होते ही सुधर जाएगा"
"बीवी आएगी न तो देखना सही हो जाएगा"
"घर की लक्ष्मी भला कैसे घर को बिगड़ने देगी?"
"पत्नी का काम होता है अपने पति को सही रास्ते पर लाना"
"शादी होगी तभी तो जिम्मेदारी का अहसास होगा"
और भी न जाने क्या-क्या. यही सब वो लाइन्स हैं जिन्हें लगभग हर भारतीय घर में बोला जाता है. कहीं न कहीं से किसी न किसी तरह से लड़कियों को ये समझाया जाता है कि उनके आने के बाद उनके पति सुधर जाएंगे या ये उनकी नैतिक जिम्मेदारी है और उनके जीने का मकसद भी कि उन्हें अपने पति को सुधारना है. महिलाएं सुंदर हों, घर में आएं तो घर की लक्ष्मी बनकर, उनके आते ही घर की दिशा और दशा बदल जाए.
इसी समस्या को सामने लाते हुए साइकोलॉजिस्ट और पेरेंटिंग एक्सपर्ट जसीना बैकर ने अपनी फेसबुक पोस्ट में भारत की वो सच्चाई लिखी है जिसे जानते तो सभी हैं, लेकिन उसका कोई इलाज कभी नहीं किया जाता. जसीना अपनी बाई से बात कर रही थीं और तभी उन्हें अहसास हुआ कि भारत में किस कदर औरतों पर प्रेशर डाला जाता है.
जसीना की बाई ने उनसे बात करते हुए कहा...
"मेरा बेटा शराब पीता है, मेरी बहू बिलकुल अच्छी नहीं. वो मेरे बेटे को रोकने या काबू में नहीं कर पाती. सिर्फ वो महिला जो घर आती है, एक अच्छी पत्नी बनती है, उसी का पति सही हो पाता है."
"मेरी बहू 8 साल पहले शादी करके आई थी, मैं सोचती हूं कि वो क्या कर रही है इतने सालों से."
इसपर जसीना का एक सीधा सा सवाल था "आप 28 सालों से क्या कर रही थीं? आपका बेटा आपके साथ 28 सालों से था तो आपने क्या किया उसे सुधारने के लिए?"
इसपर बाई का सीधा सा जवाब था, वही जवाब जो शायद हिंदुस्तान के हर बिगड़े हुए बेटे की मां देती है.. " मैं एक मां हूं, मेरी कुछ सीमाएं हैं, वो मेरी नहीं सुनेगा. वो पत्नी है उसे ही मेरे बेटे को रोकना चाहिए."
जसीना का फिर एक सीधा सा सवाल था .. "जो आप 28 सालों में नहीं कर पाईं वो आप उससे 8 सालों में करने की उम्मीद कर रही हैं?"
इसपर जवाब भी बहुत सरल था.. "मर्द कच्चे आम जैसे होते हैं. अगर पत्नी अच्छी आएगी तो आम पकेगा और अगर पत्नी खराब आएगी तो आम सड़ जाएगा."
मज़े की बात तो ये है कि जसीना के घर काम करने वाली बाई ने ये भी नहीं बताया था बहू को शादी से पहले कि उसका बेटा शराबी है. उसने सोचा था कि पत्नी आकर उस लड़के को सुधार ही देगी.
यही तो कमी है हमारे समाज में. हम बहुओं को तो गुणी और संस्कारी चाहते हैं, हम उन्हें सर्वगुण सम्पन्न या यूं कहें कि किसी जादूगरनी के समान चाहते हैं और हम लगातार अपने बेटों को एक अच्छा पति बनने से रोकते हैं. उनकी परवरिश वैसे ही की जाती है जैसे हमें ठीक लगे, खास बात ये है कि अगर बच्चा बिगड़ जाए तो मां को दोष दिया जाता है, पिता को नहीं और अगर शादी हो जाए तो वहां भी सारा दोष पत्नी को दे दिया जाता है.
लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार होती हैं ये सोच हमने अपने दिमाग में डाल ली है और इसी के साथ चलते हैं. ऐसा कोई फैक्ट नहीं है और इसलिए पत्नियां पतियों की टीचर या कोच नहीं हो सकती हैं.
भारतीय समाज ने एक मर्दों को तो आज़ाद होना, बिना चिंता के जीना और अपने काम खुद न करना सिखाया है, और औरतों को समर्पण करना और एक अच्छी पत्नी बनना ही सिखाया है. पति जो भी कर रहा है सही है.
अपना पूरा ध्यान इस बात पर लगाने की जगह कि लड़कियों को एक अच्छी पत्नी बनना है कम से कम 50% ध्यान इस बात पर भी लगाना चाहिए कि लड़के अच्छे पति कैसे बने. ये जरूरी है माता-पिता के लिए ताकि आने वाले समय में ये भेदभाव खत्म हो सके.
कोई पिता, दादा, चाचा बेटों से शादी के पहले ये नहीं कहता कि वो एक अच्छा पति कैसे बन सकता है, जब्कि कई महिलाओं को ये सोचने पर मजबूर किया जाता है कि वो अच्छी पत्नी बन सकती हैं या नहीं और अपने पति की इच्छाएं और गलतियां सभी अपना सकती हैं या नहीं.
लड़कियों को इस मामले में फंसना नहीं चाहिए, उनकी ड्यूटी नहीं होती कि वो हर बार अपने पति को सुधारें. आपके पति के पास एक मां है उसे दूसरी नहीं चाहिए. शादी में कुछ भी गड़बड़ हो, चाहें बच्चे बिगड़ जाएं या फिर तलाक हो जाए सब कुछ महिला के ऊपर आ जाता है कि गलती उसकी ही होगी. पर अब समाज थोड़ा बदल रहा है, महिलाएं अब झुकने को तैयार नहीं. ये एक फैक्ट है और इसे अपनाना होगा.
एक बात महिलाओं को समझनी होगी कि पति को ठीक करना आपकी जिम्मेदारी नहीं है.
जसीना की पोस्ट...
तो इस हिसाब से एक औरत को सम्मानजनक होना होगा, अच्छी महिला होना होगा, अच्छी पत्नी बनने की ट्रेनिंग लेनी होगी ताकि एक दिन वो किसी से शादी कर सके और उसके परिवार में जो भी बिगड़ा है वो सही कर सके.
अगर ये सोच नहीं बदलेगी तो किसी भी हालत में समाज नहीं बदल सकता.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.