किसी ने मेरे लिखे कहानी संग्रह ‘वो अजीब लड़की’ से 'फिरंगन से मोहब्बत' पढ़कर कहा, 'कॉन्डम' का बहुत इस्तेमाल हुआ है. मैंने कहा ‘इस्तेमाल कहां हुआ, वो तो बटुवे में ही रह गया था!’ अगर सचमुच कंडोम का इतना इस्तेमाल हो तो एबॉर्शन का परसेंटेज जीरो हो जाएगा! असल में वो कहना चाहते थे कि कंडोम शब्द का बहुत इस्तेमाल हुआ है.
कॉन्डम का ज्यादा इस्तेमाल, मतलब एबॉर्शन का परसेंटेज जीरो! |
मैं अपने 6 बर्षों के अफ्रीका प्रवास के दौरान दो साल नाइजीरिया में थी. वहां के एक सुपर मार्केट में (जो कुछ दवाइयां भी रखा करते थे) चेंज के बदले कंडोम देने का रिवाज़ था, ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहां टॉफी पकड़ा दी जाती है. लेकिन यहां भी हम पिछड़ा हुआ तो अफ्रीका को ही कहते हैं.
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फिल्म 'पा' में कंडोम न होने की वजह से अमोल और विद्या को अलग होना पड़ा था और बाद में औरो का जन्म हुआ. भारत में कंडोम देखकर लोग ऐसे रिएक्ट करते है जैसे कोई सांप देख लिया हो. फिल्म 'पीके' के सीन में इसे बहुत अच्छे से फिल्माया गया था. दिल्ली में एक रोड साइड मूंगफली बेचने वाले को एक बार चोरी-छुपे एक कार वाले को मूंगफली के साथ साथ कंडोम देते हुए देखा था, जैसे कंडोम नहीं गुप्त रोग की दावा दे रहा हो.
पुणे में मेरे घर के नजदीकी मेडिकल स्टोर वाली महिला ने कहा- आजकल पढ़े-लिखे तो सब हैं लेकिन तुम...
किसी ने मेरे लिखे कहानी संग्रह ‘वो अजीब लड़की’ से 'फिरंगन से मोहब्बत' पढ़कर कहा, 'कॉन्डम' का बहुत इस्तेमाल हुआ है. मैंने कहा ‘इस्तेमाल कहां हुआ, वो तो बटुवे में ही रह गया था!’ अगर सचमुच कंडोम का इतना इस्तेमाल हो तो एबॉर्शन का परसेंटेज जीरो हो जाएगा! असल में वो कहना चाहते थे कि कंडोम शब्द का बहुत इस्तेमाल हुआ है.
कॉन्डम का ज्यादा इस्तेमाल, मतलब एबॉर्शन का परसेंटेज जीरो! |
मैं अपने 6 बर्षों के अफ्रीका प्रवास के दौरान दो साल नाइजीरिया में थी. वहां के एक सुपर मार्केट में (जो कुछ दवाइयां भी रखा करते थे) चेंज के बदले कंडोम देने का रिवाज़ था, ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहां टॉफी पकड़ा दी जाती है. लेकिन यहां भी हम पिछड़ा हुआ तो अफ्रीका को ही कहते हैं.
ये भी पढ़ें- क्या वाकई असली मर्द कंडोम नहीं पहनते?
फिल्म 'पा' में कंडोम न होने की वजह से अमोल और विद्या को अलग होना पड़ा था और बाद में औरो का जन्म हुआ. भारत में कंडोम देखकर लोग ऐसे रिएक्ट करते है जैसे कोई सांप देख लिया हो. फिल्म 'पीके' के सीन में इसे बहुत अच्छे से फिल्माया गया था. दिल्ली में एक रोड साइड मूंगफली बेचने वाले को एक बार चोरी-छुपे एक कार वाले को मूंगफली के साथ साथ कंडोम देते हुए देखा था, जैसे कंडोम नहीं गुप्त रोग की दावा दे रहा हो.
पुणे में मेरे घर के नजदीकी मेडिकल स्टोर वाली महिला ने कहा- आजकल पढ़े-लिखे तो सब हैं लेकिन तुम पहली महिला हो जो कंडोम खुद लेने आती है. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ. अगर गलती से गलती हो जाती है तो एबॉर्शन तो औरत का होता है. असल में तो ये जरूरत महिला की ही है, लेकिन महिला को ही इसे खरीदने में शर्म आती है.
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चांस की बात है अगली बार जब मैंने उसी मेडिकल स्टोर के स्टाफ से सेनेटरी पैड मांगा तो उसने पहले तो मुझे अजीब नजरों से देखा और फिर पैकेट को पुराने अखबार में लपेटने लगा. मैंने कहा इतना छुपाने की जरुरत नहीं है, ऐसे ही कैरी बैग में दे दो, तभी पीछे से वो स्टोर की मालकिन भी आ गई और उसने कहा- ये इंडिया है, यहां ऐसा ही चलता है.
लेकिन इंडिया में ऐसा क्यों चलता है ?
सेनेटरी पैड को पेपर में लपेट कर काले रंग के पॉली बैग में देने के पीछे के कारण को मैं आज तक नहीं समझ पाई. जबकि अगर आप एंटीबायोटिक भी काले रंग के पॉली बैग में लेकर निकलें तो समझने वाले यही समझेंगे की सैनिटेरी पैड है. फिर काले रंग की प्लास्टिक बैग का क्या अर्थ है? सैनिटेरी पैड? पीरियड्स होना कोई पाप नहीं है. हमको प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है. पीरियड्स होने का संबंध हमारे औरत होने से है और रुक जाने का संबंध प्रजनन क्षमता के रुक जाने से. फिर सेनेटरी पैड को काले रंग के पॉली बैग में देने की वजह क्या हो सकती है?
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कंडोम के विज्ञापन में सनी लियोनी उत्तेजना पैदा करती है या नहीं ये तो मैं नहीं जानती, लेकिन यकीनन विज्ञापन इसके इस्तेमाल की सार्थकता को सिद्ध नहीं करता. क्योंकि उत्तेजना तो वियाग्रा पैदा करता है. जबकि कंडोम अनचाहे गर्भ और यौन रोगों से बचाव करता है. ख़ैर ‘वो अजीब लड़की’ के फिरंगन से मोहब्बत में मैंने जितनी बार कंडोम शब्द का इस्तेमाल किया है इसके लिए तो सरकार को मुझे स्वास्थ्य केन्द्र या फैमिली प्लानिंग का ब्राण्ड एम्बेसडर तो बना ही देना चाहिए!
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