एक औरत जब पहली बार मां बनती है तो वो अनुभव उसके लिए बहुत अनोखा होता है. डर और अथाह दर्द सहने के बाद जो खुशी मिलती है, वो जीवन के किसी भी सुख से कहीं ज्यादा होती है. लेकिन जब वही औरत पांचवीं या छठवीं बार मां बने तो क्या उसका डर खत्म हो जाना चाहिए? चूंकि उसने पांच बच्चे पैदा कर लिए तो क्या छठवें के लिए उसे निश्चिंत हो जाना चाहिए और जन्म से जुड़ी सारी गंभीरता को दरकिनार कर देना चाहिए?
ये सवाल बहुत सारी महिलाओं के जेहन में आता है. जब वो एक गर्भवती महिला को देखती हैं कि उसने अपने छठवें बच्चे को दुनिया में लाने के लिए किसी अस्पताल को नहीं बल्कि अपने घर के ही बगीचे को चुना.
घर के बगीचे में बच्चे को जन्म दिया
फ्रांस में 36 साल की एक जर्मन महिला साराह शिमिड ने अपने छठे बच्चे को अपने ही बगीचे में डिलिवर किया, नग्न, वो भी अकेले बिना किसी की मेडिकल हेल्प के. उस दौरान उनके पति और बच्चे भी साथ थे. डिलिवरी की इस पूरी प्रक्रीया को रिकॉर्ड किया गया और उसे यूट्यूब पर अपलोड भी किया गया. ये वाकया सितंबर 2016 का है लेकिन इस वीडियो को पिछले महीने रिलीज़ किया गया. एक अमेरिकी चैनल पर इस महिला ने ऐसा करने की वजह बताई. जिससे बहुत सी महिलाएं इत्तेफाक नहीं रखतीं और इसीलिए इस महिला को आलोचनाएं झेलनी पड़ रही हैं.
ऐसा नहीं है कि बच्चे सिर्फ अस्पताल में ही पैदा किए जाते हैं. कुछ समय पीछे जाएं तो डिलिवरी दायी की मदद से घर पर ही की जाती थीं. और गांव देहात में तो आज भी यही होता है. लेकिन इस महिला ने घर के किसी कमरे को न चुनकर बाहर खुले में यानी अपने गार्डन में डिलिवरी करना बेहतर समझा. और तो और उसे फिल्माया जिसे लाखों लोगों ने ऑनलाइन देखा.
क्यों? सुनिए-
खुले में प्रसव सशक्तिकरण कैसे?
साराह का कहना है- 'महिलाएं उस सच्चाई को देख नहीं पातीं कि बच्चा कैसे पैदा होता है क्योंकि इसे टीवी या फिल्मों में नहीं दिखाया जाता. हम शायद ही बच्चा पैदा होते देख पाते हैं, खासकर अपना. अगर टीवी पर दिखाई भी देता है तो सिर्फ 'पुश-पुश-पुश', प्रसव की प्रक्रीया होते हुए दिखती है और लोग ये बताते हुए दिखते हैं कि ऐसा करो-वैसा करो. आप कभी ये देख नहीं पाते कि प्राकृतिक तौर पर क्या होता है. और मुझे लगता है कि यह महिलाओं को अपने शरीर पर भरोसा करने की शक्ति देता है.'
साराह का कहना है कि अगर उनके केस में कोई परेशानी होती तो वो अस्पताल जातीं, लेकिन वो मानती हैं कि महिलाएं खुद को प्राकृतिक जन्म के लिए तैयार करने में सक्षम हैं. साराह कहती हैं- 'जन्म को प्राकृतिक ही होता है ये कोई बीमारी नहीं है इसलिए सामान्य रूप से आपको डॉक्टर की जरूरत नहीं है लेकिन अगर आपको डॉक्टर की जरूरत है तो मैं ये कभी नहीं कहुंगी कि मुझे मदद नहीं चाहिए.'
साराह की बातों से ज्यादातर महिलाएं संतुष्ट नहीं हुईं और उन्होंने ट्विटर पर अपनी बात रखी. महिलाओं ने साराह की आलोचना भी की कि उन्होंने बाहर खुले में प्रसव करके अपने बच्चे की सेहत के साथ खिलवाड़ किया है. अगर कोई कॉप्लिकेशन होती तो जिम्मेदार कौन होता. उन्हें ये भी कहा गया कि वो बहुत स्वार्थी हैं कि उन्होंने अपने ही प्रसव का वीडियो बनाया सिर्फ प्रसिद्धि पाने के लिए.
इस दौरान बच्चे भी उनके साथ थे और अपने भाई को पैदा होते देख रहे थे.
साराह एक ट्रेंड डॉक्टर थीं. लेकिन अब वो सिर्फ फुल टाइम मॉम हैं. उन्होंने अस्पताल में डिलिवरी देखी थीं इसलिए उन्होंने 'फ्री बर्थ' अपनाने की सोची. अपनी पहली डिलिवरी के लिए उन्हें दायी की जरूरत पड़ी लेकिन उसके बाद के सभी बच्चे घर पर ही हुए बिना किसी की मदद के. लेकिन छठवीं बार के प्रसव का वीडियो बनाकर उन्होंने इसे काफी सेंसेशनल बना दिया.
ये कॉन्फिडेंस, ओवरकॉन्फिडेंस भी बन जाता है-
दुनिया में बहुत सी महिलाएं हैं जो क्रांतिकारी हैं. उन्हें डर नहीं लगता, जो खुद को महिलावादी कहती हैं, वो बहुत से काम ऐसे करती हैं जो सब नहीं करते. कोई घर में, तो कोई कार में बच्चे डिलिवर करती हैं और वीडियो ऑनलाइन डालती हैं. कुछ रैंप वॉक करते हुए भी ब्रेस्टफीड कराती हैं. इस बात को बल देती हैं कि जन्म प्राकृतिक होता है, ब्रेस्टफीड प्राकृतिक होता है इसलिए सबके सामने होना चाहिए, और खुले में स्तनपान कराने या खुले में बच्चा पैदा करने में उन्हें जरा भी असज नहीं लगता. ऐसा करने से बहुतों को सशक्त महसूस होता है, तो मेरी तरफ से इन सभी को तालियां. लेकिन ये हर महिला की अपनी-अपनी सहजता होती है कि वो क्या करने में सहज हैं.
लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि इस तरह का कंटेट ऑनलाइन देखने से घर पर ही प्रसव कराने के मामले पहले से काफी बढ़े हैं. साथ ही वो मामले भी बढ़े हैं जिसमें ऐसे कदम बच्चे और मां दोनों के लिए भारी पड़े हैं. पिछले ही दिनों तमिलनाडु में एक 28 साल की महिला की मृत्यु इसलिए हो गई क्योंकि उसके पति ने उसकी डिलिवरी यूट्यूब ट्यूटोरियल देखकर करवाने की कोशिश की.
अपने आने वाले बच्चे के लिए कोई इतना सामान्य कैसे हो सकता है. माता-पिता के दिमाग में फिक्र और डर दोनों होना चाहिए क्योंकि यही बच्चे के स्वास्थ के लिए सही है. किसी ने भविष्य नहीं देखा और न ही आने वाली समस्या को तो फिर कैसे किसी नन्हे बच्चे की जान के साथ खिलवाड़ करने की सोच लेते हैं लोग. रही बात उसे फिल्माने की और सशक्तिकरण महसूस करने के लिए पूरी दुनिया को दिखाने की तो वो आपकी मर्जी है, खूब कीजिए, लेकिन बच्चे की जान की कीमत पर नहीं. ये बात अब भी समझ से परे है कि बच्चे की जान रिस्क पर रखकर महिलाएं सशक्त कैसे महसूस कर लेती हैं.
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