तमिलनाडु की इस मां के संघर्ष को हम कभी महसूस नहीं कर पाएंगे. इसके लिए वह जिगरा चाहिए जो इस मां ने पिछले 36 सालों में सहा है. जिसे अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए औरत का रूप छोड़कर पूरी जिंदगी एक पुरुष की तरह रहना पड़ा.
जिसे साड़ी छोड़कर लुंगी और शर्ट पहनना पड़ा. जिसने अपने लंबे, काले, घने बालों और श्रृंगार का त्याग कर पुरुष का भेष धारण कर लिया. सालों सहे अत्याचार के बाद इस मां का चेहरा एक पिता की तरह लगने लगा है.
जरा सोचिए उसे यह सब करने की जरूरत क्यों पड़ी? एक मां आखिर क्यों अपना हुलिया बदलकर पिता बन गई? क्या वह एक मां बनकर अपनी बच्ची की परवरिश नहीं कर सकती थी? ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसे इस तरह का कदम उठाना पड़ा?
महिला समझ गई है कि अकेली मां को लोग जीने नहीं देंगे
असल में एक महिला होने के नाते उसने इतनी प्रताड़ना झेल ली कि वह समझ गई कि महिला बनकर जीना उसके लिए कितना भारी पड़ेगा. सिंगल मदर के लिए बच्चे की परवरिश अकले करना किसी चुनौती से कम नहीं हैं. वह जिस पुरुष समाज में रहती थी वहां महिला होने का मतलब सिर्फ उपभोग की वस्तु से था. जहां महिलाएं घर का काम तो कर सकती हैं लेकिन पुरुषों के बीच मजदूरी करना उनके लिए संभव नहीं है. काम तो मिल भी जाए लेकिन इंसान रूपी गिद्धों की नजरों से वह खुद को कहब तक बचा पाएगी?
काम करने की जगह पर अकेली मां को प्रताड़ना मिली
हम जिस मां की बात कर रहे हैं उसका नाम एस पेचियाम्मल है जो कटुनायक्कनपट्टी गांव की रहने वाली है. फिलहाल वह तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में 36 सालों से पुरुष का रूप धारण करके जी रही है. 20 साल की पेचियाम्मल अपनी शादी के 15 दिनों बाद ही...
तमिलनाडु की इस मां के संघर्ष को हम कभी महसूस नहीं कर पाएंगे. इसके लिए वह जिगरा चाहिए जो इस मां ने पिछले 36 सालों में सहा है. जिसे अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए औरत का रूप छोड़कर पूरी जिंदगी एक पुरुष की तरह रहना पड़ा.
जिसे साड़ी छोड़कर लुंगी और शर्ट पहनना पड़ा. जिसने अपने लंबे, काले, घने बालों और श्रृंगार का त्याग कर पुरुष का भेष धारण कर लिया. सालों सहे अत्याचार के बाद इस मां का चेहरा एक पिता की तरह लगने लगा है.
जरा सोचिए उसे यह सब करने की जरूरत क्यों पड़ी? एक मां आखिर क्यों अपना हुलिया बदलकर पिता बन गई? क्या वह एक मां बनकर अपनी बच्ची की परवरिश नहीं कर सकती थी? ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसे इस तरह का कदम उठाना पड़ा?
महिला समझ गई है कि अकेली मां को लोग जीने नहीं देंगे
असल में एक महिला होने के नाते उसने इतनी प्रताड़ना झेल ली कि वह समझ गई कि महिला बनकर जीना उसके लिए कितना भारी पड़ेगा. सिंगल मदर के लिए बच्चे की परवरिश अकले करना किसी चुनौती से कम नहीं हैं. वह जिस पुरुष समाज में रहती थी वहां महिला होने का मतलब सिर्फ उपभोग की वस्तु से था. जहां महिलाएं घर का काम तो कर सकती हैं लेकिन पुरुषों के बीच मजदूरी करना उनके लिए संभव नहीं है. काम तो मिल भी जाए लेकिन इंसान रूपी गिद्धों की नजरों से वह खुद को कहब तक बचा पाएगी?
काम करने की जगह पर अकेली मां को प्रताड़ना मिली
हम जिस मां की बात कर रहे हैं उसका नाम एस पेचियाम्मल है जो कटुनायक्कनपट्टी गांव की रहने वाली है. फिलहाल वह तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में 36 सालों से पुरुष का रूप धारण करके जी रही है. 20 साल की पेचियाम्मल अपनी शादी के 15 दिनों बाद ही विधवा हो गई. उसने अपनी बेटी को जन्म दिया. बेटी की परवरिश के लिए उसने काम करना शुरु किया लेकिन उसके गांव के लोगों की सोच पुरुष प्रधान वाली थी.
उसके गांव के लोगों ने उसका जीना हराम कर दिया. वह जहां भी काम करने जाती उसे महिला होने के नाते प्रताड़ित किया जाता. उसने कई बार काम करने की जगह भी बदली लेकिन उसे हर कदम पर पीड़ित किया गया, उसे ताने सुनने को मिले और छला गया.
अकेली महिला खुली तिजोरी की चाबी नहीं है
दरअसल, हमारे समाज में कई लोग महिलाओं को हमेशा कमजोर माना गया है. तभी तो औरतों को लेकर ऐसी मुहावरें प्रचलित हैं कि अकेली महिला तो लोगों के लिए खुली तिजोरी के समान होती है. किसी महिला के साथ कोई पुरुष नहीं है मतलब उसके साथ कुछ भी किया जा सकता है. कई लोगों के मन में यह धारणा है कि जो महिला अपनी सुरक्षा के लिए पुरुषों पर आश्रित रहती है वह भला अकेले अपनी बेटी की रक्षा केसे करेगी? पुरुष भले बुजुर्ग हो, लेकिन अगर वह दरवाजे पर रहता है तो लोग कहते हैं कि वहां की महिलाएं अकेली नहीं हैं.
चरित्रहीन बोलने वाले तैयार बैठे हैं
ऐसा नहीं है कि महिलाएं अकेले जी नहीं सकतीं, बच्चे नहीं पाल सकतीं लेकिन पुरुष समाज की सोच रखने वाले लोगों को लगता है कि अकेली महिला अबला होती है और उसे आसानी या जबरदस्ती से हासिल किया जा सकता है. वहीं समाज के लोग उस पर लांक्षन लगाने के लिए तैयार बैठे रहते हैं. वह भले ही काम करके देर रात घर आए, लेकिन लोग उसे जज करने में जरा भी देरी नहीं करते. उसे किसी से बात करता देखा नहीं कि तुरंत उसके चरित्र पर उंगली उठा देते हैं.
पुरुष प्रधान में महिलाओं के लिए जगह नहीं
पेचियाम्मल समझ गई थी कि इस पुरुष प्रधान समाज में जीना उसके लिए आसान नहीं है. अब तो उसे अपनी बेटी की भी चिंता सताने लगी. उसने देखा कि पुरुष कितनी आजादी से कहीं भी आते-जाते हैं. कहीं भी काम कर लेते हैं. कहीं भी रह लेते हैं. उन्हें कोई छेड़ता नहीं हैं. उनके बच्चे सुरक्षित हैं. इसलिए उसने अपने महिला रूप को त्यागकर पुरुष बनने की ठानी. इस मां ने अपना रूप बदलकर पिता का रूप धारण कर लिया. उसने अपना नया नाम मुथु रख लिया. लोग उसे पुरुष समझकर अन्नाची कहकर बुलाने लगे.
पुरुष बनकर ही मरना चाहती हूं
उसने अपना गांव छोड़ दिया और दूसरी जगह जाकर काम करने लगी. अपनी बेटी के बेहतर भविष्य के लिए उसने कंस्ट्रक्शन साइट्स, होटल और चाय की दुकानों पर जी तोड़ मेहनत की. सिर्फ कुछ खास लोगों को ही पता था कि वह पुरुष नहीं महिला है. उसकी पहचान एक पुरुष बनकर रह गई और इस तरह 30 साल बीत गए. उसने अपनी बेटी की शादी कर दी. उसका कहना है कि उसके पुरुष रूप के वजह से ही वह और उसकी बेटी सुरक्षित रहे इसलिए वह इसी रूप में मरना चाहती है.
क्या एकल मां होना पाप है?
इस महिला की कहानी जानने के बाद आपके दिमाग में क्या आता है? क्या महिला और एक मां होना पाप है. क्या एकल मां होना गुनाह है? कैसी दुनिया है जहां मां की ममता का बखान तो किया जाता है, लेकिन उसकी इज्जत तो तार-तार करने के लिए लोग मौके की तलाश में रहते हैं? काश कि वह पिता बनकर नहीं मां बनकर ही अपनी बच्ची को पालती...तो वह ऐसी सजा से बच जाती. इस महिला ने जो किया है वह सिर्फ एक मां ही कर सकती है, लेकिन उन पापियों का क्या?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.