भारतीय संस्कृति ऐसी है जहां पति को परमेश्वर का दर्जा दिया जाता है. यानी कहा जाता है कि पति को ईश्वर की ही तरह पूजा जाना चाहिए. महिलाएं पूजती भी हैं. पतियों की आरती उतारी जाती है, उनके लिए व्रत किए जाते हैं. और चूंकि पति भगवान है तो फिर पति की हर बात मानना, उन्हें खुश रखना पत्नी का कर्तव्य होता है. अपने भगवान को खुश रखने के लिए पत्नियां न चाहते हुए भी बहुत कुछ करती हैं.
सिर्फ उन्हें खुश करने के लिए नहीं बल्कि डर से भी पत्नियां अपने मान सम्मान को किनारे रख पति की हर जायज और नाजायज मांग पूरी करती हैं. भारतीय पत्नियों का डर यानी विवाद से बचना पति के साथ संबंध ठीक रहना, पति नाराज न हो जाए, वगैरह वगैरह. जबकि वो नहीं जानतीं कि मन न होने पर भी हर बार 'हां' कह देने से वो असल में अपने संबंधों को खोखला कर रही होती हैं. और जो कभी 'न' कह भी दे तो वो अपने साथ अपराध बोध भी लेकर चलती हैं.
महिलाओं को समझना होगा कि अगर पति देवता है तो वो उसकी दासी नहीं, देवी है. इसलिए ऐसी कई परिस्थितियां हैं जहां पर उन्हें बिना झिझक के पति को 'ना' बोल देना चाहिए.
1. संबंध बनाने का मन नहीं है तो पति को 'ना' कहें
बिस्तर पर पति का इंतजार और पत्नी का मन न होना. वो 'न' कहेगी तो पति नाराज होगा इसलिए मन न होते हुए भी वो खुद को समर्पित कर देती है. लेकिन कोई भी किसी को सेक्स के लिए मजबूर नहीं कर सकता. पति भी नहीं. सेक्स के लिए सहमति जरूरी है, और बिना सहमति से किया गया सेक्स बलात्कार होता है. शादी के बाद भी अगर पत्नी की मर्जी से संबंध बनाए जाते हैं तो उसे मेरिटल रेप कहा जाता है. पति अगर आग्रह भी करे तो भी पत्नी को न कहने का पूरा आधिकार है. पत्नी के शरीर पर पति का अधिकार तो है लेकिन उसे जबरदस्ती...
भारतीय संस्कृति ऐसी है जहां पति को परमेश्वर का दर्जा दिया जाता है. यानी कहा जाता है कि पति को ईश्वर की ही तरह पूजा जाना चाहिए. महिलाएं पूजती भी हैं. पतियों की आरती उतारी जाती है, उनके लिए व्रत किए जाते हैं. और चूंकि पति भगवान है तो फिर पति की हर बात मानना, उन्हें खुश रखना पत्नी का कर्तव्य होता है. अपने भगवान को खुश रखने के लिए पत्नियां न चाहते हुए भी बहुत कुछ करती हैं.
सिर्फ उन्हें खुश करने के लिए नहीं बल्कि डर से भी पत्नियां अपने मान सम्मान को किनारे रख पति की हर जायज और नाजायज मांग पूरी करती हैं. भारतीय पत्नियों का डर यानी विवाद से बचना पति के साथ संबंध ठीक रहना, पति नाराज न हो जाए, वगैरह वगैरह. जबकि वो नहीं जानतीं कि मन न होने पर भी हर बार 'हां' कह देने से वो असल में अपने संबंधों को खोखला कर रही होती हैं. और जो कभी 'न' कह भी दे तो वो अपने साथ अपराध बोध भी लेकर चलती हैं.
महिलाओं को समझना होगा कि अगर पति देवता है तो वो उसकी दासी नहीं, देवी है. इसलिए ऐसी कई परिस्थितियां हैं जहां पर उन्हें बिना झिझक के पति को 'ना' बोल देना चाहिए.
1. संबंध बनाने का मन नहीं है तो पति को 'ना' कहें
बिस्तर पर पति का इंतजार और पत्नी का मन न होना. वो 'न' कहेगी तो पति नाराज होगा इसलिए मन न होते हुए भी वो खुद को समर्पित कर देती है. लेकिन कोई भी किसी को सेक्स के लिए मजबूर नहीं कर सकता. पति भी नहीं. सेक्स के लिए सहमति जरूरी है, और बिना सहमति से किया गया सेक्स बलात्कार होता है. शादी के बाद भी अगर पत्नी की मर्जी से संबंध बनाए जाते हैं तो उसे मेरिटल रेप कहा जाता है. पति अगर आग्रह भी करे तो भी पत्नी को न कहने का पूरा आधिकार है. पत्नी के शरीर पर पति का अधिकार तो है लेकिन उसे जबरदस्ती करने का अधिकार किसी ने नहीं दिया.
2. अजीब सेक्सुअल मांगों पर 'ना' कहें
खुद को यौन रूप से संतुष्ट करने के लिए अक्सर लोगों की कोई न कोई फैंटसी होती है. वो पत्नियों से वैसा ही चाहते हैं. बहुत से पति तो ये भी चाहते हैं कि पत्नी उनके सामने किसी पोर्न स्टार की तरह आए. वो पत्नियों से अजीब अजीब डिमांड करते हैं. लेकिन अगर पत्नी अगर करने में खुद को जरा भी असहज महसूस करे, तो वो पति को अपने असहज होने का कारण बता सकती है, पति को न कहने का अधिकार रखती है.
3. बैंक या मोबाइल के पासवर्ड बताने पर 'ना' कहें
शादी के बाद कुछ भी पर्सनल नहीं हो, लेकिन एक बात भी सच है कि हरकिसी के पास उसका पर्सनल स्पेस होना हा चाहिए, चाहे वो पति हो या पत्नी. अगर अपने बैंक का पासवर्ड या एटीएम पिन आपने पति को नहीं बताना चाहतीं तो तो इसमें कोई बुराई नहीं है. न चाहें तो फोन का पासवर्ड भी न बताएं. शादी भरोसे और विश्वास पर ही टिकी होती है. लेकिन पति का आपसे पासवर्ड मांगना उसकी इनसिक्योरिटी और अविश्वास को ही दर्शाता है. अगर आप पति को ये डीटेल बताने में सहज हैं तो बहुत अच्छा. लेकिन अगर असहज हैं तो फिर कोई इसके लिए आपको बाध्य नहीं कर सकता.
4. शादी के बाद भी अपने माता-पिता को सपोर्ट न करने के लिए 'ना' कहें
भारतीय परिवारों में एक चीज हर समाज में मानी जाती है कि शादी के बाद लड़की ससुराल की हो जाती है. उनसे उम्मीद भी यही की जाती है कि वो मायके वालों से ज्यादा ससुराल वालों को अहमियत दें. जब सोच ऐसी हो तो फिर लड़की का मायके वालों को आर्थिक रूप से सहायता करना तो बहुत बड़ा अपराध माना जाता है. लेकिन एक बेटी भी बेटे की तरह अपने माता-पिता का ख्याल रख सकती है. खासकर वो बेटियां जिनके भाई ही नहीं हैं वो अपने माता-पिता को किसके भरोसे छोड़ सकती हैं. इसलिए बेटी शादी के बाद भी अपने माता-पिता की आर्थिक रूप से मदद कर सकती है. पति ऐसा न चाहे तो पत्नी अपने विचार उसे बताए और उसे बेहिचक 'ना' कहे.
5. बच्चा होने के बाद नौकरी छोड़ने के लिए 'मना' करें
ये तो हमेशा से ही होता आया है कि शादी को बाद जब बच्चा होता है तो नौकरी लड़की को ही छोड़नी पड़ती है. हालांकि बच्चे के लिए उसकी मां की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन पिता की भी अहमियत मां से कम नहीं होती. लेकिन नौकरी पत्नी को ही छोड़नी होती है भले ही पति से बेहतर जॉब पर हो. लेकिन अगर ऐसा है कि किसी एक को नौकरी छोड़कर घर बैठना हो तो पहले ये विचार विमर्ष करना जरूरी है कि किसकी नौकरी बेहतर है, आर्थिक रूप से किसकी नौकरी ज्यादा अच्छी है और भविष्य में अच्छी संभावनाएं किसके लिए हैं. इसलिए अगर एक महिला को ये लगता है कि उसे नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए तो वो अपने लिए आवाज उठा सकती है और नौकरी छोड़ देने के लिए पति को न कह सकती है.
ये तो एक पत्नी के अधिकार हैं जिनके लिए उसने न बोलना सीखा ही नहीं. दरअसल न कहना सिखाया ही नहीं जाता. लेकिन आज और आने वाले कल के लिए ये जरूरी है कि महिलाएं 'न' की शक्ति को समझें. लेकिन 'न' को तरीके से कहने की कला भी पत्नियों को सीखना होगी.
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