आपने ऐसा कोई रेलवे स्टेशन या बस स्टॉप नहीं देखा होगा, जहां पर लोग झुंड बनाए खड़े न दिखें. ट्रेन आई नहीं कि अपनी जान की परवाह किए बगैर उस पर टूट पड़ते हैं. जैसे अर्जुन को निशाना लगाते समय सिर्फ चिड़िया की आंख दिखती थी, वैसे ही लोगों को ट्रेन नहीं, बल्कि उसके अंदर की सीट दिखाई देती है. सीट तक पहुंचने के लिए अगर दरवाजे से जगह नहीं मिलती तो बहुत से लोग तो खिड़कियों से भी चलती ट्रेन में ही कूद पड़ते हैं. ऐसी स्थिति में कहीं पर भी अगर कोई भगदड़ हो जाती है तो उसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराने से कोई नहीं चूकता. लेकिन क्या सिर्फ प्रशासन की ही यह जिम्मेदारी है कि वह भीड़-भाड़ वाली जगहों का सही से प्रबंधन करे या फिर देश के नागरिकों की भी कुछ नैतिक जिम्मेदारियां हैं?
मुंबई लोकल की ये वीडियो सिहरा देगी
कुछ समय पहले ही मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर बने पैदल पुल पर भगदड़ की वजह से ही एक बड़ा हादसा हो गया था. 29 सितंबर को हुए इस हादसे में करीब 22 लोगों की मौत हो गई थी और 30 से भी अधिक लोग घायल हो गए थे. उस दौरान मुंबई लोकल का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा था, जिसमें महिलाएं ट्रेन में चढ़ने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं करतीं. यहां तक कि एक महिला तो ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच की खाली जगह में गिर भी गई. अगर यही महिलाएं लाइन लगाकर खड़ी होतीं और ट्रेन रुकने पर एक-एक कर के चढ़तीं तो वह महिला कभी ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच नहीं गिरती. हालांकि, महिला फिर वापस निकाल ली गई, लेकिन इससे सबक लेने की जरूरत थी.
महिलाओं ने की ये खास पहल
मुंबई की महिलाओं ने 18 दिसंबर को एक ऐसी पहल की, जिसने धक्का-मुक्की और भगदड़ की समस्या को ही हल कर दिया. उन्होंने अंधेरी-विरार की 5 लोकल ट्रेनों के लिए लाइन लगाई, जिसे देखकर पुरुष...
आपने ऐसा कोई रेलवे स्टेशन या बस स्टॉप नहीं देखा होगा, जहां पर लोग झुंड बनाए खड़े न दिखें. ट्रेन आई नहीं कि अपनी जान की परवाह किए बगैर उस पर टूट पड़ते हैं. जैसे अर्जुन को निशाना लगाते समय सिर्फ चिड़िया की आंख दिखती थी, वैसे ही लोगों को ट्रेन नहीं, बल्कि उसके अंदर की सीट दिखाई देती है. सीट तक पहुंचने के लिए अगर दरवाजे से जगह नहीं मिलती तो बहुत से लोग तो खिड़कियों से भी चलती ट्रेन में ही कूद पड़ते हैं. ऐसी स्थिति में कहीं पर भी अगर कोई भगदड़ हो जाती है तो उसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराने से कोई नहीं चूकता. लेकिन क्या सिर्फ प्रशासन की ही यह जिम्मेदारी है कि वह भीड़-भाड़ वाली जगहों का सही से प्रबंधन करे या फिर देश के नागरिकों की भी कुछ नैतिक जिम्मेदारियां हैं?
मुंबई लोकल की ये वीडियो सिहरा देगी
कुछ समय पहले ही मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर बने पैदल पुल पर भगदड़ की वजह से ही एक बड़ा हादसा हो गया था. 29 सितंबर को हुए इस हादसे में करीब 22 लोगों की मौत हो गई थी और 30 से भी अधिक लोग घायल हो गए थे. उस दौरान मुंबई लोकल का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा था, जिसमें महिलाएं ट्रेन में चढ़ने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं करतीं. यहां तक कि एक महिला तो ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच की खाली जगह में गिर भी गई. अगर यही महिलाएं लाइन लगाकर खड़ी होतीं और ट्रेन रुकने पर एक-एक कर के चढ़तीं तो वह महिला कभी ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच नहीं गिरती. हालांकि, महिला फिर वापस निकाल ली गई, लेकिन इससे सबक लेने की जरूरत थी.
महिलाओं ने की ये खास पहल
मुंबई की महिलाओं ने 18 दिसंबर को एक ऐसी पहल की, जिसने धक्का-मुक्की और भगदड़ की समस्या को ही हल कर दिया. उन्होंने अंधेरी-विरार की 5 लोकल ट्रेनों के लिए लाइन लगाई, जिसे देखकर पुरुष यात्री भी लाइन लगाकर खड़े हो गए. दरअसल, इस पहल का श्रेय जाता है पश्चिमी रेलवे की रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ) को. उन्होंने इसके लिए 20 महिला कॉन्स्टेबल को चुना था, जिन्होंने स्टेशन पर महिलाओं से लाइन में खड़े होने की गुजारिश की. बस फिर क्या था, पुरुष यात्री खुद ही लाइन लगाकर खड़े होने लगे और स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ने को लेकर होने वाली धक्का-मुक्की से देखते ही देखते मुक्ति मिल गई.
क्या लोग खुद से करेंगे ऐसा?
महिलाओं की इस पहल से लाइन तो लगी, जिससे धक्का-मुक्की भी बंद हुई, लेकिन क्या उन्होंने खुद से ऐसा किया? जवाब है- 'नहीं'. आरपीएफ की पहल के तहत यह कदम उठाया गया, जिसके बाद पुरुषों ने भी लाइन में लगकर देश के जिम्मेदार नागरिक होने का परिचय दिया. लेकिन क्या आरपीएफ की मौजूदगी के बिना भी लाइन लगेगी? अभी तक की स्थिति के हिसाब से तो इसका जवाब है- 'नहीं'. क्योंकि अगर ऐसा होता तो मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन जैसी घटना होती ही नहीं. यहां भी रेलवे को ही कुछ नियम और दिशा-निर्देश जारी करने होंगे, जिनका सख्ती से अनुसरण भी करवाना होगा, तभी दुर्घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकती है.
ये भी पढ़ें-
ड्राइवरलेस मेट्रो ने दीवार तोड़ी है या प्रधानमंत्री मोदी का सपना !
2017 में हुए थे ये भीषण हादसे, जो 2018 में भी होंगे !
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.