क्या कभी आपने सोचा है कि एक वर्किंग वुमन (Working woman) की दिनचर्या क्या होती है? सच कड़वा लग सकता है मगर उसे एक दिन का आराम नहीं मिलता है. वीकऑफ कब आता है और कब चला जाता है उसे पता नहीं चलता. क्योंकि छुट्टी वाले दिन वह घर का काम कर रही होती है. वह घरवालों की फरमाइशें पूरी करने के लिए लिए खुद के साथ कंप्रोमाइज कर रही होती है. कोई नहीं सोचता कि वह घर और बाहर एक साथ कैसे मैनज करती है? कई बार थकान के मारे शरीर टूट रहा होता है फिर भी वह चलती रहती है. घर के काम की वजह से वह ऑफिस में परेशान होती है और ऑफिस के काम की वजह से घर में.
सभी को देखने में लगता होगा कि काम ही क्या है? सुबह-शाम 4 रोटी ही तो बनानी है. घरवाले उसके ऑफिस के काम को तवज्जो नहीं देते हैं, नहीं समझते हैं. उनके लिए उनका काम पूरा होना चाहिए. घर पर रहने वाली महिलाओं को तो फिर भी अपने लिए थोड़ा टाइम मिल जाता है मगर कामकाजी महिला को दिन-रात बस भागना ही पड़ता है. वह इन कामों में इतना रम जाती है कि खुद को भूल ही जाती है. उसकी दुनिया इन्हीं सब में सिमट जाती है. अब जो महिलाएं इस दोहरी जिम्मेदारी को झेल नहीं पाती हैं वे नौकरी छोड़ देती हैं. वे करियर के साथ समझौता कर लेती हैं. वे अपने सपने मार लेती हैं. लिंक्डइन के अप्रैल 2022 में हुए शोध के अनुसार, भारत में 70 प्रतिशत महिलाएं पहले ही नौकरी छोड़ चुकी हैं या नौकरी छोड़ने पर विचार कर रही हैं.
असल में कामकाजी महिलाओं की जिंदगी घरेलू महिला की तरह होती है बस उनका ऑफिस जाना जुड़ जाता है. वैसे भी आजकल शादी के लिए लोग नौकरी पेशा लड़कियों को घरेलू लड़कियों के मुकाबले ज्यादा तवज्जो देते हैं. अब अपनी बहू के रूप में ऐसी लड़की चाहिए जो घर भी संभाल ले और घर...
क्या कभी आपने सोचा है कि एक वर्किंग वुमन (Working woman) की दिनचर्या क्या होती है? सच कड़वा लग सकता है मगर उसे एक दिन का आराम नहीं मिलता है. वीकऑफ कब आता है और कब चला जाता है उसे पता नहीं चलता. क्योंकि छुट्टी वाले दिन वह घर का काम कर रही होती है. वह घरवालों की फरमाइशें पूरी करने के लिए लिए खुद के साथ कंप्रोमाइज कर रही होती है. कोई नहीं सोचता कि वह घर और बाहर एक साथ कैसे मैनज करती है? कई बार थकान के मारे शरीर टूट रहा होता है फिर भी वह चलती रहती है. घर के काम की वजह से वह ऑफिस में परेशान होती है और ऑफिस के काम की वजह से घर में.
सभी को देखने में लगता होगा कि काम ही क्या है? सुबह-शाम 4 रोटी ही तो बनानी है. घरवाले उसके ऑफिस के काम को तवज्जो नहीं देते हैं, नहीं समझते हैं. उनके लिए उनका काम पूरा होना चाहिए. घर पर रहने वाली महिलाओं को तो फिर भी अपने लिए थोड़ा टाइम मिल जाता है मगर कामकाजी महिला को दिन-रात बस भागना ही पड़ता है. वह इन कामों में इतना रम जाती है कि खुद को भूल ही जाती है. उसकी दुनिया इन्हीं सब में सिमट जाती है. अब जो महिलाएं इस दोहरी जिम्मेदारी को झेल नहीं पाती हैं वे नौकरी छोड़ देती हैं. वे करियर के साथ समझौता कर लेती हैं. वे अपने सपने मार लेती हैं. लिंक्डइन के अप्रैल 2022 में हुए शोध के अनुसार, भारत में 70 प्रतिशत महिलाएं पहले ही नौकरी छोड़ चुकी हैं या नौकरी छोड़ने पर विचार कर रही हैं.
असल में कामकाजी महिलाओं की जिंदगी घरेलू महिला की तरह होती है बस उनका ऑफिस जाना जुड़ जाता है. वैसे भी आजकल शादी के लिए लोग नौकरी पेशा लड़कियों को घरेलू लड़कियों के मुकाबले ज्यादा तवज्जो देते हैं. अब अपनी बहू के रूप में ऐसी लड़की चाहिए जो घर भी संभाल ले और घर में दो पैसे भी लाए.
कैसी होती है दिनचर्या
कामकाजी महिलाएं सुबह सबसे पहले जग जाती हैं. उठते से ही उनके हाथ में झाड़ू और पोछा की बाल्टी होती है. इसके बाद वे सबके लिए चाय बनाती हैं. जब तक चाय बनती हैं वे आटा गूंथती हैं और सब्जी काटती हैं. फिर नाश्ता बनाती हैं और लंच की तैयारी करती हैं. सबका टिफिन पैक करती हैं. सास-ससुर को चाय, नाश्ता दवाई देती हैं. बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करती हैं. फिर खुद जल्दी-जल्दी तैयार होकर रास्ते में धक्के खाते हुए ऑफिस भागती हैं. इन सब में अक्सर उनका नाश्ता स्किप हो जाता है.
दिन भर वे ऑफिस का काम करती हैं. कई बार ऑफिस में भी उन्हें घर की चिंता सताती रहती है. इसलिए वे बीच-बीच में घर पर फोन लगा देती हैं. उनका दिमाग कभी फ्री नहीं रहता है. दिन भर के बाद रात को घऱ आते ही वे फिर रसोई में घुस जाती हैं. फिर सबके लिए चाय- खाना बनाती हैं. वे रात को ही बर्तन धोकर, घर के दरवाजें, सिलेण्डर और लाइट बंद करके सबसे आखिरी में सोने जाती हैं. उसमें भी पहले वे बच्चों को सुलाती हैं.
काम काजी महिला को वीकऑफ वाले दिन भी आराम नहीं मिलता है. जहां पुरुष आराम से सोकर जगते हैं. वहीं महिलाएं सुबह से ही काम में लग जाती हैं वीकऑफ वाले दिन वे पति, बच्चों की फरमाइश का खाना बनाती हैं. घर में मेहमान आ गए तो उन्हें संभालती हैं. कपड़े धोती हैं. घर में जमी धूल को साफ करती हैं. सामान सेट करती हैं. रसोई साफ करती हैं. बाथरूम साफ करती हैं. घर का सामान देखती हैं कि क्या खत्म है क्या मंगाना है?
इन सब के अलावा कामकाजी महिलाओं को घर और ऑफिस को एक साथ मैनेज करना बहुत मुश्किल होता है. कई बार परिवार के लोग छुट्टी लेने का दबाव बनाते हैं. कई बार वे घर के चक्कर में ऑफिस देरी से पहुंचती हैं. अगर कामकाजी महिला एक मां हो तब तो उसकी जिम्मेदारी औऱ बढ़ जाती है. इस तरह कामकाजी महिलाओं के हिस्से पूरी नींद नहीं होती हैं. उन्हें खुद समझ नहीं आता कि उन्हें इसतरह कबतक भागना है? काश परिवार के लोग कामजाकी महिला को थोड़ा सा समझ जाते तो उसकी दिनचर्या आसान हो जाती...
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