टाटा और रिलायंस समेत भारत की कुछ बड़ी कंपनियों ने हथियार उद्योग में अरबों रुपये लगा दिए हैं. वे भारतीय सेना के लिए बंदूक, जहाज और टैंक बनाने की तैयारी कर रही हैं. मोदी सरकार भी सेना का आधुनिकीकरण करना चाहती है. विश्लेषकों का अनुमान है कि दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा इम्पोर्टर देश भारत इस उद्योग में अगले 10 साल में 250 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है.
चीन हर साल हथियारों पर 120 अरब डॉलर खर्च करता है. भारत के ज्यादातर हथियार रूसी हैं. लेकिन अब हर देश भारत में हथियार बनाना चाहता है. यानी रक्षा में अब हर देश भारत का सहयोग दे रहा है. अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन और इंडियन कंपनी टाटा ने करार किया है. दोनों कंपनियां मिलकर अब भारत में F16 लड़ाकू विमान बनाएंगी. अमेरिका और रूस ही नहीं और भी कई देश हैं जो भारत के डिफेंस सिस्टम में मदद कर रहा है.
इजराइल
इजराइल भारत को मिसाइल, टैंक, फाइटर प्लेन जैसी चीजें देता है. इंडियन डिफेंस परचेज काउंसिल ने 8,356 इसराइली निर्मित स्पाइक एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) और 321 लॉंचरों को 52.5 करोड़ डॉलर में खरीदा है. जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल बराक-1 965 करोड़ में इजराइल से खरीदा है.
इसके अलावा भारत ने इसराइल से 2680 करोड़ रुपए की 10 हेरॉन टीपी यूएवी (मानवरहित हवाई वाहन) खरीदा है. जिससे भारतीय सेना की निगरानी करने और टोह लेने की क्षमता बढ़ी. यही नहीं भारत के पास फाल्कन एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (हवा में खतरे की चेतावनी और कंट्रोल करने वाला सिस्टम) है. जिससे पाकिस्तान भी घबराता है.
स्वीडन
बंदूक और हथियारों के मामले में भारत स्वीडन के साथ मिलकर काम करता है. स्वीडन भारत को राइफल, तोप जैसी चीजें बनाने में मदद करता है. भारत के पास स्वीडन की आरसीएल एमके 111 राइफल, आरसीएल एमके 11 राइफल हैं. तोपों की बात करें तो भारतीय सेना के पास 200 हॉबिट्स एफएच77/बी तोप हैं और 2 हजार से ज्यादा बोफोर्स गन हैं. जो स्वीडन से बनकर आती हैं.
रूस से लेते हैं सबसे ज्यादा हथियार
एयर डिफेंस के लिए भारत और रूस मिलकर काम करते हैं और कुछ हथियार रूस भारत को बेंचता है. रूस का सबसे खतरनाक एस-400 ‘ट्रायम्फ’ भारत के पास मौजूद है. सबसे ताकतवर माने जाने वाला ब्रमहोस भी रूस और भारत ने मिलकर तैयार किया है. जो भारत के पास 90 हैं.
यहीं नहीं दोनों देशों ने मिलकर बख्तरबंद 'भीश्मा', स्मर्च तोप और कई तोपें साथ मिलकर बनाई हैं और रूस भारत को ओसा, तनगुस्ता जैसी तोपें, कॉरनेट और कॉनकुर्स और शटर्म जैसी खतनाक तोपें बेंचता है. दोनों देशों ने मिलकर एक ऐसा खतरनाक फाइटर प्लेन बनाया है जिसका नाम सुखोई है. जिससे दुश्मन देश भी घबराते हैं.
F16 से बदलेगी भारतीय रक्षा की सूरत
टाटा-लॉकहीड मार्टिन के इस करार से भारतीय रक्षा को जरूर मजबूती मिलेगी. भारत के पास सुखोई, तेजस और मिकोयान जैसे कई खतनाक फाइटर प्लेन है. F16 वैसे तो काफी पुराना वर्जन है. F-16 के बाद इसके कई अपडेट वर्जन (F35, 36, 37) आ चुके हैं. लेकिन हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के पास ज्यादा तादाद में F16 फाइटर प्लेन है. ऐसे में अगर भारतीय वायू सेना के पास भी F16 आ जाता है तो पाकिस्तान हमारी वायु सेना से और पीछे हो जाएगा.
F16 की कमजोरी
भारत अब F19 फाइटर प्लेन का इस्तेमाल करेगा. इसे पाकिस्तान काफी पहले से इस्तेमाल कर रहा है. यही नहीं इसके अपडेट वर्जन F-35 को यूएस, यूके, इटली, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देश इस्तेमाल कर रहे हैं. यानी भारत अभी काफी पीछे है. बरहाल भारत के पास और भी कई खतरनाक फाइटर प्लेन हैं लेकिन नई तकनीक और अपडेशन के मामले में भारत पीछे है. अभी कुछ कहा नहीं जा सकता कि F-35 कब भारत में दस्तक देगा.
भारत-रूस की दोस्ती पर पड़ सकता है असर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पहले ही 'Our Nation First' का नारा दे चुके हैं. यानी पहले अमेरिका खुद के बारे में सोचेगा फिर दूसरों के बारे में. इसलिए ट्रम्प ने अमेरिकियों को ज्यादा से ज्यादा नौकरियां देने पर जोर दिया है.
वहीं मोदी 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा दे रहे हैं यानी दोनों ही देश खुद की ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रहा है और अब मोदी अमेरिका दौरे पर जाने वाले हैं और ट्रम्प से मुलाकात करेंगे. ऐसे में रूस और भारत की दोस्ती पर असर पड़ सकता है क्योंकि भारत अमेरिका के साथ मिलकर अगर घर में ही हथियार तैयार करेगा तो रूस को बिजनेस के लिहाज से काफी नुकसान होगा. अब ये देखना होगा कि हमेशा सरप्राइज देने वाले मोदी का अगला प्लान क्या होगा.
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