ढिठाई या बेशर्मी की हंसी... कई बार इन शब्दों को सुना मगर नजरअंदाज किया. क्यों? क्योंकि जब भी इस हंसी के विषय में सोचता तमाम बॉलीवुडिये जैसे अमरीश पुरी, कुलभूषण खरबंदा, जीवन, रंजीत, अजीत, अमजद, डैनी ही याद आए. चूंकि फ़िल्म के दौरान इन तमाम लोगों की हंसी में एक नकारात्मकता रहती थी. तो न तो कभी इस ढिठाई या बेशमी की हंसी पर उतना ग़ौर ही किया न ही कभी इसकी फिक्र हुई. मगर हर दिन एक समान नहीं होता इसलिए जब आज ट्विटर पर एक बार फिर इस हंसी को देखा तो अपने को रोक नहीं पाया. इंटरनेट पर एक फोटो तैर रही है. फ़ोटो में पहलवान सागर धनखड़ की हत्या के आरोपी ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार है. सुशील को मंडोली जेल से तिहाड़ शिफ्ट किया जा रहा था. इस दौरान पुलिसकर्मी हत्या के आरोपी सुशील कुमार के साथ तस्वीरें लेते हुए नजर आए. वहीं फ़ोटो में सुशील मुस्कुरा रहे थे. इस तस्वीर पर बहुत सी बातें हो सकती हैं. तर्क वितर्क हो सकता है लेकिन हमें उस पहलू पर जाना ही नहीं है. हमारे सामने तस्वीर है और तस्वीर में मुस्कुराते हुए पहलवान सुशील कुमार हैं. चर्चा सिर्फ तस्वीर पर होगी. तस्वीर में झलकती मुस्कान पर होगी.
जैसा कि हम कह चुके हैं. तस्वीर को अगर देखें और इसका अवलोकन या विश्लेषण करें तो होने को तो तमाम तरह की बातें हो सकती हैं लेकिन उन दलीलों में जो सबसे बड़ी दलील है वो ये कि ये हमारे आस पास, हमारे परिवेश में व्याप्त बेशर्मी भरी मुस्कान है. जो न केवल निंदनीय है बल्कि उस ग्लैमर को भी दिखाती है जिसमें कोई आदमी अपराध की दुनिया में शामिल होता है और खुद की नजर में रॉबिन हुड बन जाता है. इस तस्वीर को देखकर जो सबसे पहला विचार हमारे जहन में आया वो ये कि तस्वीर...
ढिठाई या बेशर्मी की हंसी... कई बार इन शब्दों को सुना मगर नजरअंदाज किया. क्यों? क्योंकि जब भी इस हंसी के विषय में सोचता तमाम बॉलीवुडिये जैसे अमरीश पुरी, कुलभूषण खरबंदा, जीवन, रंजीत, अजीत, अमजद, डैनी ही याद आए. चूंकि फ़िल्म के दौरान इन तमाम लोगों की हंसी में एक नकारात्मकता रहती थी. तो न तो कभी इस ढिठाई या बेशमी की हंसी पर उतना ग़ौर ही किया न ही कभी इसकी फिक्र हुई. मगर हर दिन एक समान नहीं होता इसलिए जब आज ट्विटर पर एक बार फिर इस हंसी को देखा तो अपने को रोक नहीं पाया. इंटरनेट पर एक फोटो तैर रही है. फ़ोटो में पहलवान सागर धनखड़ की हत्या के आरोपी ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार है. सुशील को मंडोली जेल से तिहाड़ शिफ्ट किया जा रहा था. इस दौरान पुलिसकर्मी हत्या के आरोपी सुशील कुमार के साथ तस्वीरें लेते हुए नजर आए. वहीं फ़ोटो में सुशील मुस्कुरा रहे थे. इस तस्वीर पर बहुत सी बातें हो सकती हैं. तर्क वितर्क हो सकता है लेकिन हमें उस पहलू पर जाना ही नहीं है. हमारे सामने तस्वीर है और तस्वीर में मुस्कुराते हुए पहलवान सुशील कुमार हैं. चर्चा सिर्फ तस्वीर पर होगी. तस्वीर में झलकती मुस्कान पर होगी.
जैसा कि हम कह चुके हैं. तस्वीर को अगर देखें और इसका अवलोकन या विश्लेषण करें तो होने को तो तमाम तरह की बातें हो सकती हैं लेकिन उन दलीलों में जो सबसे बड़ी दलील है वो ये कि ये हमारे आस पास, हमारे परिवेश में व्याप्त बेशर्मी भरी मुस्कान है. जो न केवल निंदनीय है बल्कि उस ग्लैमर को भी दिखाती है जिसमें कोई आदमी अपराध की दुनिया में शामिल होता है और खुद की नजर में रॉबिन हुड बन जाता है. इस तस्वीर को देखकर जो सबसे पहला विचार हमारे जहन में आया वो ये कि तस्वीर बिल्कुल वैसी ही है जैसी 'बदमाशों' की होती है.
ध्यान रहे हमनें यहां चोर, डाकू या किसी अन्य संज्ञा / विशेषण से सुशील को नहीं नवाजा है. हम सुशील को बदमाश कह रहे हैं. सीधे कह रहे हैं और डंके की चोट पर कह रहे हैं. तस्वीर में सुशील पश्चिम उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान के उस 10 या 20 हजारी क्रिमिनल की तरह है जो रंगदारी, हत्या, लूट, अपहरण, डकैती, छिनैती में पुलिस के हत्थे चढ़ा है और जिसकी तस्वीर रिलीज कर पुलिस ये बता रही है कि उसने कितना बड़ा ऐतिहासिक काम किया है.
कभी ध्यान दीजियेगा उन 'बदमाशों' पर जो पेशेवर तारीखे से किसी की कब्जा दिलाने, मकान, दुकान, फ्लैट खाली कराने या और नहीं कुछ तो ठेकेदारी में टेंडर के वक़्त सफेदपोशों की मदद करते हैं. जब ये पकड़े जाते हैं और जब इनकी तस्वीरों को पुलिस रिलीज करती है तो वो भी कुछ इसी स्वैग में खड़े होते हैं. कुछ कुछ ऐसे ही मुस्कुराते हैं. उन बदमाशों की तस्वीरों में भी ठीक ऐसी ही बेशर्मी होती है.
बात सीधी और एकदम साफ है. हमनें यूं ही नहीं ओलंपियन सुशील को बदमाश कहा है. आरोपों से पहले सुशील से जितनी कुश्ती हो सकती थी हो गयी. किसी भी खिलाड़ी का सपना देश के लिए खेलना होता है तो सुशील ओलंपिक पदक भी हासिल कर ही चुके थे. बात खेलने की है तो कहना गलत नहीं है जो उम्र सुशील की है, बमुश्किल वो 2-3 साल और खेल पाते? फिर क्या ? जैसा देश में स्पोर्ट्स पर्सन का हाल है अपने रिटायरमेंट के बाद अगर बहुत होता तो सुशील भी अन्य खिलाड़ियों की देखा देखी रेस्टुरेंट खोलते. या फिर कुश्ती अकादमी चलाते लेकिन दोनों ही जगहों का हाल कैसा है वो न हमसे छुपा है न आपसे.
कभी नजर उठाकर खुद देखिए अपने आसपास. कितने खिलाड़ी हैं जिनके रेस्टुरेंट या अकादमी चल रही हैं? आदमी पैसा लगा भी दे तो नुकसान का रिस्क तो है ही. अच्छा चूंकि 'देश' के लिए खेलने वाले खिलाड़ी को नाम, शोहरत, पैसे और ग्लैमर की आदत हो जाती है क्या गारंटी है कि सुशील कुमार उसे पोस्ट रिटायरमेंट हासिल कर ही पाते? तस्वीर में मुस्कुराहट भले ही आज हमनें देखी मगर एक दिन यूं बेशर्मी से मुस्कुराया जाएगा इसकी स्क्रिप्ट ख़ुद सुशील कुमार द्वारा बहुत पहले लिख दी गई थी.
यानी भले ही तस्वीर के जरिये मुस्कुराहट हमनें आज देखी लेकिन इसकी रूपरेखा पहले या ये कहें कि शायद पिछले ओलंपिक के बाद ही लिख दी गई थी. गौरतलब है कि अब जबकि इस तस्वीर में सुशील मुस्कुरा ही दिए हैं तो उनके अंदाज से ये बात बिल्कुल शीशे की तरह साफ हो गयी है कि उन्होंने 'बदमाश' बनने की शुरुआत कर दी है. और हां ये बदमाश कोई छोटा मोटा नहीं है. ये ऐसा है जिसे लाइमलाइट चाहिए. मीडिया के कैमरे चाहिए और अखबारों में अपना नाम चाहिए. भरपूर ग्लैमर चाहिए.
अब इन बातों के मद्देनजर सुशील कुमार को देखिए. इसपर ध्यान दीजिए. इस पैमाने पर सुशील एकदम फिट बैठ रहे हैं. इस मुस्कान के बाद हम ये बिल्कुल नहीं कहेंगे कि सुशील की मुस्कान सिस्टम को चुनौती दे रही है या फिर इसने कानून के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है. इस तस्वीर को देखकर हम बस इतना कहेंगे कि इस बेशर्मी भरी मुस्कान के जरिये सुशील ने कुश्ती के बाद एक नए करियर का आगाज़ कर दिया है.
बाकी जेल किसी भी अपराधी का सर्टिफिकेट है. और अब क्योंकि सुशील तिहाड़ में है ये उनके लिए गोल्ड है या सिल्वर या फिर कांस्य इसका फैसला जनता ख़ुद करे. अंत में हम देश, देश जनता की जनता और हर उस व्यक्ति को कहेंगे जो खेल प्रेमी है.वो देखे इन तस्वीरों को बार बार देखे. लगातार देखे और निर्धारण करे इस बात का कि क्या जो सुशील ने किया उसे जायज ठहराया जा सकता है. क्या हक़ है उन्हें मुस्कुराने का.
हो सकता है कि इस तस्वीर के बाद आलोचकों के निशाने पर पुलिस भी आ जाए. हम पुलिस के लिए क्या ही कहें जब उसके सामने कोई बड़ा आदमी आता है तो दुनिया जानती है उस आदमी के सामने पुलिस का रवैया क्या रहता है.
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