आपके घर में दिवाली की सफाई (Diwali house cleaning) शुरु हुई या नहीं? अब ईमानदारी से बताइए कि सफाई करने वाला कौन है? क्या घर के सभी सदस्य मिलकर सफाई करते हैं? क्या आप सफाई में घर की महिलाओं की मदद करवाते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि घर की साफ-सफाई से लेकर पकवान बनाने तक की जिम्मेदारी सिर्फ पत्नी, मां और बहन पर है?
अक्सर देखा जाता है कि महिलाओं का त्योहार घर के काम करने और रसोई में खाना पकाने में बीत जाता है. घर के सारे लोग त्योहार एंजॉय करते हैं और औरतें सज-धज कर रसोई में काम करती रहती हैं. क्या उनके लिए त्योहार का मतलब सिर्फ काम है? हैरान करने वाली बात यह है कि हमें इसमें कोई बड़ी बात नहीं लगती.
महिलाएं हमेशा कहती हैं कि, 'हम वो सब कर सकते हैं जो पुरुष कर सकते हैं. ऐसा पुरुषों को भी कहना चाहिए कि महिलाएं जो कर सकती हैं वो हम भी कर सकते हैं'.
आजकल दिवाली सफाई को लेकर चर्चे हो रहे हैं. तरह-तरह के मीम बनाए जा रहे हैं. कई तरह के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. मगर किसी का ध्यान घर की उस महिला पर नहीं जा रहा है जो लगातार दो-तीन दिनों से सफाई में जुटी है और आने वाले कुछ दिनों तक यही करने वाली है. हकीकत की क्या ही बात करें, इन तस्वीरों में भी पुरुष साफ-साफाई करते नहीं दिख रहे हैं. हो सकता है कि कुछ पुरुष घर के पंखें साफ कर देते हों मगर अधिकतर को त्योहार की जिम्मेदारियों से कोई लेना-देना नहीं रहता है.
हम महिला अधिकार और महिला समानता की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. मदर्स डे पर मां की फोटो शेयर करते हैं. दुनिया वालों के सामने कहते हैं कि हमने पत्नी को पूरी आजादी दी है मगर अपने ही घर की छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं. जैसे की घर के कामों गृहिणी की मदद करना...
किसी का ध्यान घर की उस महिला पर नहीं जा रहा है जो लगातार दो-तीन दिनों से सफाई में जुटी है
जो महिलाएं घरेलू हैं वे पति के लिए खाना बनाती हैं, बच्चों को स्कूल भेजती हैं और फिर दिनभर घर के कोने-कोने को साफ करती रहती हैं. फिर रात में परिवार के लिए खाना बनाती हैं. जो वर्किंग महिलाएं हैं उनके सिर पर दिवाली का सफाई का बोझ है. वे ऑफिस से लौटने के बाद थोड़ा-थोड़ा करके काम करती हैं. वे घर और बाहर के काम को एडजस्ट करने में लगी रहती हैं. वे दिवाली की सफाई के लिए अपने काम को मैनेज करती हैं. वे अपने वीक ऑफ पर घर की सफाई करती हैं. कई महिलाएं तो ऐसी हैं जो ऑफिस में काम तो कर रही हैं मगर उनके दिमाग में दिवाली की सफाई की टेंशन बनी हुई है.
वहीं घर के पुरुष सिर्फ धौंस जताते हैं कि ये साफ नहीं हुआ वो साफ नहीं हुआ...उनकी फरमाइश अलग रहती है कि दिवाली पर ये पकवान बनेगा वो बनेगा. घर की महिलाओं की दिवाली तो उनकी फरमाइशें पूरी करने में निकल जाती है. इतना करने के बाद भी अगर कहीं जरा भी कमी निकल जाती है तो पति अपनी पत्नी को बड़े अधिकार के साथ टोक देते हैं. वे कहते हैं अरे यार तुमसे एक काम ढंग से नहीं होता. मेहमानों के सामने बेइज्जती अलग करा दी. पत्नी कितना भी कर ले उसे कमी ही लगती है. यह नहीं कि वह पत्नी के काम की सराहना करें और मदद करें.
महिलाओं का त्योहार घर के काम करने और रसोई में खाना पकाने में बीत जाता है
एक तरफ लोग कहते हैं कि महिलाएं घर की लक्ष्मी होती हैं दूसरी तरफ उन्हें सिर काम का बोझ डालकर उन्हें अकेला छोड़ देते हैं. असल में महिलाओं को हमने महान होने की उपाधि देकर हमेशा के लिए ऑन ड्यूटी पर लगा दिया. वो ठहरी ममता की मूरत, तो अब वे यह कैसे कह सकती हैं कि आज उनका काम करने का मन नहीं कर रहा है. महिलाएं चाहकर भी किसी से काम में मदद नहीं मांगती हैं. वे अकेले सारा काम करती रहती हैं. बच्चा छोटे हो तो वे उसे संभालती है और जब वह सो जाता है तो घर का काम करती हैं.
महिलाओं की परवरिश इस तरह से होती है कि उन्होंने यह मान लिया है कि दिवाली की सफाई करना उनका ही काम है और फर्ज भी, जबकि एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए हम सभी को काम आना चाहिए. महिलाएं हमेशा कहती हैं कि, 'हम वो सब कर सकते हैं जो पुरुष कर सकते हैं. ऐसा पुरुषों को भी कहना चाहिए कि महिलाएं जो कर सकती हैं वो हम भी कर सकते हैं'.
अगर आपके घर भी ऐसा है कि महिलाएं ही सारा काम करती हैं तो इस बार उनकी दिवाली को स्पेशल बनाइए. घर के कामों में थोड़ा ही सही उनकी मदद कीजिए. इस बात का ध्यान रखिए कि दिवाली के दिन वे रसोई में अकेले ना पड़ें. इस बार त्योहार सच में उनके साथ मनाइए, आखिर उनका भी तो त्योहार है...
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