दंगल गर्ल जायरा वसीम ने इस्लाम की राह में अपना करियर कुर्बान कर दिया है. 'धार्मिक' बनने से पहले जायरा ने एक फेसबुक पोस्ट लिखा है. पोस्ट को यदि पढ़ा जाए तो मिल रहा है कि जैसे जायरा अब तक कितना बोझ अपने कंधों पर रखे हुए थीं. पोस्ट के अनुसार जायरा को अपनी सफलता काट रही है. उन्हें लग रहा है कि इस सफलता से उनका धर्म प्रभावित हुआ है और बरकत उठकर उनसे कहीं दूर चली गई है. अपनी पोस्ट में जायरा इमान और अल्लाह की बात कर रही हैं, कुरान का हवाला दे रही हैं और बता रही हैं कि कैसे बॉलीवुड के चलते वो अपने दीन से अलग हो गयीं हैं.
तकरीबन 1945 शब्दों का जायरा का ये पोस्ट सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है और उनके इस पोस्ट के बाद हमारा समाज दो वर्गों में बंट गया है जिसमें एक वर्ग जायरा के फैसले को आध्यात्मिक बता रहा है तो वहीं दूसरा वर्ग वो है जिसका मानना है कि जायरा कट्टरपंथ की आग में इस हद तक जल गईं हैं कि उन्होंने अपना अच्छा भला फिल्मीं करियर बर्बाद कर दिया.
जायरा मुस्लिम धर्म से आती हैं. मुस्लिम धर्म में लड़कियों/ महिलाओं की स्थिति कैसी है ये किसी से छुपा नहीं है. जायरा के इस फैसले के बाद, मुस्लिम समुदाय की कोई लड़की जिसकी आंखों में सपने थे, अगर आने वाले वक़्त में उसके सपनों का क़त्ल होता है तो इसकी जिम्मेदार जायरा रहेंगी. रूढ़ीवादी परिवार लड़कियों के करियर में रोड़ा अटकाने के लिए जायरा की मिसाल देंगे. खासतौर पर ऐसी लड़कियों के, जिनका सपना फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाने का है.
बात सीधी और एकदम साफ है. यदि जायरा को ये फैसला लेना ही था तो इसके लिए उन्हें 1945 शब्दों का फेसबुक पोस्ट लिखने की जरूरत हरगिज नहीं थी. वो...
दंगल गर्ल जायरा वसीम ने इस्लाम की राह में अपना करियर कुर्बान कर दिया है. 'धार्मिक' बनने से पहले जायरा ने एक फेसबुक पोस्ट लिखा है. पोस्ट को यदि पढ़ा जाए तो मिल रहा है कि जैसे जायरा अब तक कितना बोझ अपने कंधों पर रखे हुए थीं. पोस्ट के अनुसार जायरा को अपनी सफलता काट रही है. उन्हें लग रहा है कि इस सफलता से उनका धर्म प्रभावित हुआ है और बरकत उठकर उनसे कहीं दूर चली गई है. अपनी पोस्ट में जायरा इमान और अल्लाह की बात कर रही हैं, कुरान का हवाला दे रही हैं और बता रही हैं कि कैसे बॉलीवुड के चलते वो अपने दीन से अलग हो गयीं हैं.
तकरीबन 1945 शब्दों का जायरा का ये पोस्ट सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है और उनके इस पोस्ट के बाद हमारा समाज दो वर्गों में बंट गया है जिसमें एक वर्ग जायरा के फैसले को आध्यात्मिक बता रहा है तो वहीं दूसरा वर्ग वो है जिसका मानना है कि जायरा कट्टरपंथ की आग में इस हद तक जल गईं हैं कि उन्होंने अपना अच्छा भला फिल्मीं करियर बर्बाद कर दिया.
जायरा मुस्लिम धर्म से आती हैं. मुस्लिम धर्म में लड़कियों/ महिलाओं की स्थिति कैसी है ये किसी से छुपा नहीं है. जायरा के इस फैसले के बाद, मुस्लिम समुदाय की कोई लड़की जिसकी आंखों में सपने थे, अगर आने वाले वक़्त में उसके सपनों का क़त्ल होता है तो इसकी जिम्मेदार जायरा रहेंगी. रूढ़ीवादी परिवार लड़कियों के करियर में रोड़ा अटकाने के लिए जायरा की मिसाल देंगे. खासतौर पर ऐसी लड़कियों के, जिनका सपना फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाने का है.
बात सीधी और एकदम साफ है. यदि जायरा को ये फैसला लेना ही था तो इसके लिए उन्हें 1945 शब्दों का फेसबुक पोस्ट लिखने की जरूरत हरगिज नहीं थी. वो चुपचाप उठती और चुपचाप चली जातीं. किसी को फर्क नहीं पड़ता मगर अब क्योंकि ये फैसला सार्वजनिक हो चुका है तो ये एकदम साफ है कि उन्होंने अपना करियर तो चौपट किया ही साथ में उन्होंने उन मुस्लिम लड़कियों को गफ़लत में डाल दिया है जो घरवालों के विरोध के बावजूद या फिर उनसे लड़ते हुए कुछ बड़ा करना चाहती थीं.
किसकी मुश्किल कर दी
इस बात का जवाब उपरोक्त पंक्तियों में है. समुदाय कि बात हो चुकी है समुदाय में लड़कियों की बात हो चुकी है. उनकी स्थिति और शिक्षा का स्तर कैसा है वो भी हमारे सामने हैं ऐसे में जायरा का कहना कि,'मैं अपनी आत्मा के साथ लगातार जूझ रही थी. मैं अपने विचारों और सहजता को समेटने के लिए अपने ईमान की स्थिर तस्वीर को ठीक करने में बुरी तरह से असफल रही और मैंने इसके लिए एक नहीं बल्कि कई बार प्रयास किये.' खुद बताता है कि इन्होंने उन मुस्लिम लड़कियों के पैरों में जंजीर डाल दी है जो तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए अपने पैरों पर खड़ी हुईं थीं.
सवाल ये है कि वो लड़कियां जिन्होंने जायरा को देखकर ये मान लिया था कि एक लड़की को ऐसा होना चाहिए और इतना ही सशक्त होना चाहिए था क्या अब अपनी नजरों से नजरें मिला पाएंगी? इसका सीधा जवाब है नहीं.
युवाओं के लिए
जायरा वसीम युवा हैं. इनकी उम्र सिर्फ 19 साल है. 19 साल का कोई व्यक्ति यदि इस छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी बड़ी बातें करें और बातें भी ऐसी जो साफ तौर पर कट्टरपंथ को बढ़ावा देती नजर आ रहीं हों तो सवाल उठने लाजमी है. यदि मुस्लिम धर्म को कुछ वक़्त के लिए छोड़ भी दें तो ऐसे तमाम युवा हैं जो जायरा में सफलता का अक्स देखते हैं. जायरा दो फ़िल्में (दंगल और सीक्रेट सुपरस्टार) कर चुकी हैं, और इनकी तीसरी फिल्म (The Sky Is Pink) जल्द ही हमारे सामने होगी.
सिर्फ तीन फिल्मों ने आज जायरा को जो मुकाम दिया है इंडस्ट्री के बड़े बड़े पुरोधा उसके लिए तरसते हैं. आज जायरा हिंदुस्तान के अलावा चीन और गल्फ तक में लोकप्रिय है. ऐसे में उनका ताजा फैसला न सिर्फ युवाओं को दिग्भ्रमित कर रहा है बल्कि उन्हें ये तक बता रहा है कि देश में करियर नहीं, बल्कि धर्म महत्वपूर्ण है. वह भी अजीबोगरीब तर्क के साथ.
लड़कियों के लिए
जायरा कश्मीर से हैं और लड़की हैं, और लड़की होना आसन तो बिल्कुल नहीं है. तमाम चुनौतियां हैं जिसका सामना एक लड़की करती है. धर्म कोई भी हो जैसी भारतीय समाज में लड़कियों की स्थिति है, एक मान्यता चली आ रही है कि लड़कियों को थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा दिया जाए, उसके बाद शादी हो जाएगी और वो 'अपने घर' चली जाएंगी.
वो लड़कियां जो इस मान्यता का शिकार थीं उन्हें जायरा से बहुत उम्मीदें थीं वो जायरा को एक रोल मॉडल की तरह देख रखीं थीं. जायरा की सफलता को देखकर इन लड़कियों को लग रहा था कि अब शायद उनके अच्छे दिन आ गए हैं मगर जिस तरह जायरा ने उन्हें धोखा दिया है स्थिति फिर वही ढाक के तीन पात वाली हो गई है.
जायरा का ये फैसला निजी बिल्कुल नहीं है
बॉलीवुड एक्टर जायरा वसीम के इस फैसले के बाद एक वर्ग वो भी है, जो इस बात का समर्थन कर रहा है कि ये जायरा का निजी फैसला है. लोग कह रहे हैं कि इस फैसले का सभी को सम्मान करना चाहिए. अब जब बात यहां तक आ ही गई है तो हम भी इस बात को ढंके की चोट पर कहेंगे कि जायरा के इस फैसले को निजी फैसला कहना कहीं से भी समझदारी के दायरे में नहीं आता.
सवाल होगा क्यों? तो जवाब इतना है कि जायरा हमारी आपकी तरह कोई आम व्यक्ति नहीं बल्कि एक सेलेब्रिटी हैं जिन्होंने अपने फैसले की जानकारी फेसबुक पर दी है. फेसबुक एकपब्लिक फोरम है और जब बात पब्लिक फोरम पर आती है तो न सिर्फ़ वाद विवाद की सम्भावना ज्यादा प्रबल रहती है बल्कि निजता का कॉन्सेप्ट खत्म हो जाता है.
जायरा कामयाब हैं, लेकिन उनका फैसला 'नाकामयाबी' है
ये बात सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है मगर सत्य यही है. जायरा सिर्फ 5 सालों के अंतराल में उस मुकाम पर हैं जहां अच्छे अच्छों को आने में लंबा वक़्त लगता है. मगर इन तमाम बातों और 'कामयाबी' के बावजूद वो नाकाम हैं. जायरा कश्मीर से हैं वो कश्मीर जहां आम कश्मीरियों के बीच कला की नहीं किसी और चीज की अहमियत हैं. वो कश्मीर जहां लोग बुरहान वानी और सबज़ार भट्ट जैसों को अपना रोल मॉडल मानते हैं.
इन पांच सालों में जायरा को इस बात का भली प्रकार एहसास हो गया था कि वो इंडस्ट्री में कितने ही झंडे क्यों न गाड़ लें मगर अपने लोगों के बीच उन्हें तब तक पहचान नहीं मिलेगी मगर तक वो कुछ बड़ा या तूफानी न कर लें. कह सकते हैं कि यदि जायरा ने 5 साल एक्टिंग न की होती और उसकी जगह भड़काऊ ट्वीट्स का सहारा लिया होता तो स्थिति कुछ और होती आज घाटी का बच्चा बच्चा उन्हें जानता. अब जबकि ऐसा नहीं हो पाया है तो कहीं न कहीं जायरा ने भी ये मान लिया है कि वो कामयाब होते हुए भी 'नाकामयाब' हैं.
बहरहाल अब जबकि सच खुलकर हमारे सामने आ गया है तो ये अपने आप ही साफ हो गया है कि जायरा ने अपने एक फैसले से जितना नुकसान अपना नहीं किया उससे कहीं ज्यादा नुकसान उन लोगों का किया है जो उसके जैसा बनना चाह रहे थे. बात बहुत साफ है. धार्मिक होना एक अलग बात है और कट्टर होना दूसरी बात है. जो अनुसरण जायरा ने किया है वो कहीं से भी धार्मिक नहीं है इसलिए उनके द्वारा किया गया कृत्य लोगों को ज्यादा आहत कर रहा है. कह सकते हैं कि जायरा को देख्कारे लोग कहीं न कहीं अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
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