जोमेटो गर्ल बनकर विष्णुप्रिया ने इतिहास रच दिया है. इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए, क्योंकि कोई भी काम छोटा नहीं होता. आप इस जोमैटो गर्ल (zomato girl Vishnupriya) की कहानी जानकार शायद इसे बेचारी समझें और दया दिखाएं, लेकिन यकीन मानिए यह बात दुखी होने का नहीं बल्कि गर्व करने की है.
इस लड़की ने उन तमाम लड़कियों को हिम्मत दी है कि हालात जैसे भी हों, हमें हार नहीं माननी चाहिए. अगर इंसान अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहता है तो परिस्थियों का सामना कर अपने सपने को पूरा करना सीखें. ऐसा नहीं है कि मजबूरी के कारण आप कोशिश करना ही छोड़ दें. हमारे हिसाब से तो समाज में ऐसी कहानियां ज्यादा से ज्यादा सामने आनी चाहिए ताकी लोगों को एक-दूसरे से हिम्मत मिलती रहे.
किसी भी कामयाब इंसान से आप पूछ लेना कि कामयाबी पाने के पीछे उसका सफर कैसा था. हमारे देश में ऐसे तमाम लोग हैं जो पार्ट टाइम नौकरी करने के बाद अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं. इस लड़की ने यह बात बता दी है कि लड़कियां किसी भी मामले में कम नहीं हैं.
जरूरी नहीं है कि हर इंसान अपने काम से दुखी है कि यार मुझे साहब बनना था और मैं यहां दुकान चला रहा हूं. कई लोग हैं जो अपने काम से प्यार करते हैं. पूरी ईमारदारी के साथ अपनी ड्यूटी निभाते हैं. आपने अक्सर यह लाइन सुनी होगी कि किसी भी काम पूरे मन और इमानदारी से करना चाहिए.
दरअसल, कोरोना काल में कई लोगों की नौकरी चली गई लेकिन क्या उन्होंने हार मान लिया नहीं ना, पेट भरने के लिए जिसे जो काम मिला किया और अपनी जिम्मेदारी निभाई. इसी तरह यह बेटी भी ड्राइवर पिता की जॉब जाने के बाद...
जोमेटो गर्ल बनकर विष्णुप्रिया ने इतिहास रच दिया है. इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए, क्योंकि कोई भी काम छोटा नहीं होता. आप इस जोमैटो गर्ल (zomato girl Vishnupriya) की कहानी जानकार शायद इसे बेचारी समझें और दया दिखाएं, लेकिन यकीन मानिए यह बात दुखी होने का नहीं बल्कि गर्व करने की है.
इस लड़की ने उन तमाम लड़कियों को हिम्मत दी है कि हालात जैसे भी हों, हमें हार नहीं माननी चाहिए. अगर इंसान अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहता है तो परिस्थियों का सामना कर अपने सपने को पूरा करना सीखें. ऐसा नहीं है कि मजबूरी के कारण आप कोशिश करना ही छोड़ दें. हमारे हिसाब से तो समाज में ऐसी कहानियां ज्यादा से ज्यादा सामने आनी चाहिए ताकी लोगों को एक-दूसरे से हिम्मत मिलती रहे.
किसी भी कामयाब इंसान से आप पूछ लेना कि कामयाबी पाने के पीछे उसका सफर कैसा था. हमारे देश में ऐसे तमाम लोग हैं जो पार्ट टाइम नौकरी करने के बाद अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं. इस लड़की ने यह बात बता दी है कि लड़कियां किसी भी मामले में कम नहीं हैं.
जरूरी नहीं है कि हर इंसान अपने काम से दुखी है कि यार मुझे साहब बनना था और मैं यहां दुकान चला रहा हूं. कई लोग हैं जो अपने काम से प्यार करते हैं. पूरी ईमारदारी के साथ अपनी ड्यूटी निभाते हैं. आपने अक्सर यह लाइन सुनी होगी कि किसी भी काम पूरे मन और इमानदारी से करना चाहिए.
दरअसल, कोरोना काल में कई लोगों की नौकरी चली गई लेकिन क्या उन्होंने हार मान लिया नहीं ना, पेट भरने के लिए जिसे जो काम मिला किया और अपनी जिम्मेदारी निभाई. इसी तरह यह बेटी भी ड्राइवर पिता की जॉब जाने के बाद फूड डिलीवरी कर, परिवार का खर्च चला रही है. इस बात से यह दुखी भी नहीं है, हां इसे अपनी पढ़ाई की चिंता जरूर है.
इस बेटी ने एक सबक उन लोगों को भी दे दी है जो बेटे और बेटी में अंतर करते हैं. जिन्हें लगता है कि बुढ़ापे का सहारा सिर्फ लड़के ही हो सकते हैं, लड़कियां नहीं. चलिए इस जोमैटो गर्ल की पूरी कहानी आपको बता रहे हैं जो मैटो ब्याव की याद दिलाती है. वह फूड डिलीवरी ब्याव भी अपनी नौकरी से बहुत खुश था और उसकी स्माइल ने पूरी दुनिया को अपना दिवाना बना लिया था.
असल में इस बेटी का नाम विष्णुप्रिया है जो ओड़िशा के कटक की रहने वाली है. विष्णुप्रिया वैसे तो अभी 18 साल की है लेकिन उसका जज्बा किसी से भी कम नहीं है. वह कोरोना से पहले स्कूल जाती थी. उसका सपना डॉक्टर बनने का है. पिता की नौकरी जाने के बाद वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण बच्चों ने आना बंद कर दिया.
इसके बाद भी विष्णुप्रिया ने हार नहीं मानी और फूड डिलीवरी ऐप जोमैटो में इंटरव्यू दिया. इस जॉब के लिए वह सेलेक्ट हो गई. अब वो उनके साथ काम करके परिवार का खर्च चलाती है. उसके घर में दो बच्चियां और भी हैं. एक बात और विष्णुप्रिया ने पिता से इस नौकरी के लिए बाइक चलाना भी सीखा. इस तरह अब वो ऐसी जॉब करने वाली कटक की पहली लड़की बन गई है.
विष्णुप्रिया ने का कहना है कि ‘मैं क्लास 12वीं में साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई कर रही थी. मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं और मानवता के काम करना चाहती हूं. पिता की नौकरी के बाद जीवन थोड़ा मुश्किल हो गया है लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी है.
विष्णुप्रिया की मां भले कहती हैं कि ‘हमारा कोई बेटा नहीं है, वो ही हमारा बेटा है’ लेकिन मेरा मानना यह है कि बेटियों को बेटा बोलकर आप उसकी महता कम कर देते हैं. बेटियां अपने आप में पूर्ण हैं. आप उन्हें बेटा बुलाकर उनकी तुलना करके उन्हें कम मत समझिए. बेटी को बेटी की बुलाइए क्योंकि वे किसी से कम नहीं हैं. बेटियां बेटा नहीं बल्कि बेटी ही हैं. जो हर काम करने में सक्षम हैं.
जिस तरह विष्णुप्रिया पार्ट टाइम नौकरी कर रही है, घर-घर ट्यूशन पढ़ाने जा रही है और अपनी पढ़ाई कर रही है एक दिन उसके सपने जरूर पूरे होंगे. इसलिए आप विष्णुप्रिया जैसी हर लड़की का हौसला बढ़ाइए ना की उन्हें तरसती नजरों से देखकर उन्हें कमजोर समझिए.
सिर्फ विष्णुप्रिया ही क्यों किसी भी इंसान के काम को छोटा मत समझिए क्योंकि ऐसा समझकर आप उसे छोटा महसूस करवा सकते हैं लेकिन शायद वह अपने काम को पूजता हो. वह खुशी-खुशी अपना काम करता हो और अपने लाइफ से खुश हो.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.