बीजेपी 2019 में कहां होगी - जब न पुराने साथी होंगे, न 2014 वाली सीटें
शिवसेना ने तो सिर्फ 2019 का चुनाव अलग लड़ने की बात कही है, टीडीपी ने तो तलाक ही ले लिया - और बीजेपी ने भी देर नहीं की. अगले साल जब मोदी के नेतृत्व में बीजेपी मैदान में होगी तो क्या परिस्थितियां होंगी? आइए समझते हैं.
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देश में मुक्ति की जो मुहिम बीजेपी चला रही है, वो खुद भी उन्हीं सवालों में उलझती हुई सी लग रही है. बीजेपी की ये मुहिम कांग्रेस मुक्त भारत और क्षेत्रीय दल मुक्त देश से होते हुए वाम दल मुक्त राज्य पर आ टिका है. त्रिपुरा के बाद केरल का ही नंबर है. अब तो लगने लगा है जैसे बीजेपी 'साथी मुक्त' एनडीए की भी राह पकड़ चुकी है.
ऐसे में सवाल ये बचता है कि 2019 में बीजेपी किसके साथ और कितने पानी में होगी? कुछ सच ऐसे भी हैं जिनसे बीजेपी भी वाकिफ है. मसलन - वो पूरी की पूरी वे सीटें तो जीतने से रही जो 2014 की मोदी लहर में उसके खाते में आयी थीं.
काउंटडाउन 2019
ये ठीक है कि जीतनराम मांझी के एनडीए छोड़ने से बीजेपी को बहुत फर्क नहीं पड़ता. बिहार के ही उपेंद्र कुशवाहा के आरजेडी नेताओं के साथ सड़क पर प्रदर्शन और एनडीए न छोड़ने के बयान से भी फर्क नहीं पड़ता. फर्क पड़े भी तो क्यों जब नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा बन चुके हों तो बिहार में बाकियों के हाथ पांव मारने से भला क्या बिगड़ जाएगा?
2019 में 350+ सीटों का लक्ष्य!
ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का फर्क नहीं समझती. ऐसा भी नहीं कि बीजेपी शिवसेना की गिदड़-भभकियों को नहीं समझती. इतनी भी नासमझ नहीं कि शिरोमणि अकाली दल और पीडीपी के साथ होने और न होने से क्या फर्क पड़ने वाला है बीजेपी को अहसास नहीं होता. हालांकि, कई बार बड़े लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते वक्त कई चीजें छूट जाती हैं. दिखने में ये फौरी तौर पर भले ही छोटी लगें, लेकिन लंबे अंतराल के लिए बहुत बड़ी होती हैं.
कहीं बीजेपी को ऐसा तो नहीं लगता कि जिस तरह शिवसेना अलग होकर चुनाव लड़ती है और फिर साथ हो जाती है. बारहों महीने आक्रामक बनी रहती है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में वही करती है जो बीजेपी चाहती है. शिवसेना ने अगला चुनाव बीजेपी से अलग होकर लड़ने का ऐलान कर दिया है. अब तक यही लगता रहा कि बीजेपी, टीडीपी को भी शिवसेना की ही तरह ले रही है, लेकिन आंध्र प्रदेश में बीजेपी के मंत्रियों नायडू सरकार से अलग होकर नया संकेत दे दिया है. पहला, बीजेपी की गाड़ी टीडीपी के बगैर भी चलती रहेगी. दूसरा, बीजेपी को टीडीपी की जगह नया साथी मिल चुका है इसलिए उसे पुराने की उतनी जरूरत नहीं रही. खबर आयी थी कि बीजेपी वाईआरएस कांग्रेस के नेता वाईएस जगनमोहन रेड्डी को साथ ले सकती है.
देखा जाये तो एनडीए में बीजेपी के बाद 282 के बाद शिवसेना के ही 18 और टीडीपी के 16 सांसद हैं, फिर भी बीजेपी को अगर किसी की परवाह नहीं तो जरूर खास वजह है.
देखा जाये तो मोदी-शाह की जोड़ी गठबंधन की बजाये संसद में अकेले बूते नंबर बढ़ाने में जुटे हुए हैं - लेकिन ठीक उसी वक्त उनकी कोशिश ये भी है कि देश के सभी राज्यों में बीजेपी नहीं तो कम से कम एनडीए की सरकार जरूर हो.
अमित शाह का टारगेट 2019
ट्विटर पर विजय चड्ढा के इस वक्त 75,129 फॉलोवर हैं और खास बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इनमें से एक हैं. विजय जिस मिशन में जुटे हैं उसमें पहली प्राथमिकता मोदी को 2019 में फिर से पीएम बनाना है, बाकी बातें बाद में आती हैं. विजय ने इसके लिए एक खास वेबसाइट भी बनायी है - #Mission360+. नाम से ही स्पष्ट है मोदी को 2019 में प्रधानमंत्री बनाने के साथ ही बीजेपी को 360 सीटों पर जिताना भी है. ये होगा कैसे? विजय इसी के लिए वॉलंटियर जुटा रहे हैं और वे जो भी कंट्रीब्यूट कर सकते हैं उनसे दिल खोल कर मांग रहे हैं.
उत्तर से ज्यादा दक्षिण भारत पर भरोसा...
दिलचस्प बात ये है कि विजय जितनी सीटों के लिए मुहिम चला रहे हैं अमित शाह ने भी लगभग उतनी ही सीटों का लक्ष्य रखा है - 350+. अमित शाह पहले लक्ष्य निर्धारित करते हैं और फिर उसी के हिसाब से एक्शन प्लान बनाकर काम करते हैं. 2019 के लिए अमित शाह ने जो एक्शन प्लान तैयार किया है उनमें हैं तो बहुत सारी महत्वपूर्ण बातें लेकिन दो खास अहमियत रखती हैं. एक, समुद्र तटीय इलाकों वाले राज्यों की सीटें और दूसरी देश की वे सीटें जहां बीजेपी 2014 चुनाव तो हार गयी लेकिन दूसरे स्थान मजबूती से लड़ी.
अमित शाह को मालूम है कि जिन सीटों पर 2014 में जीत मिली वहां दोबारा वैसा ही नतीजा हासिल करना बहुत मुश्किल होगा. इसलिए वो तटीय इलाकों पर फोकस कर रहे हैं. शाह की नजर पश्चिम बंगाल की 42, ओडिशा की 21, केरल की 20 और तमिलनाडु-पुड्डुचेरी की 40 सीटों पर है. इन 123 सीटों में से शाह बीजेपी के लिए 110 सीटें जीतना चाहते हैं. इसी तरह यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की 75 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी के हाथ से जीत फिसल गयी. शाह इन्हीं सीटों से घाटे की भरपाई करना चाहते हैं.
क्या कहते हैं सर्वे
हाल ही में आये इंडिया टुडे सर्वे से मालूम हुआ कि अभी चुनाव होने पर एनडीए को 309 सीटें और यूपीए को 102 सीटें मिल सकती हैं. इस सर्वे में बाकियों के हिस्से में 132 सीटों की संभावना जतायी गयी. ऐसे ही एक सर्वे में पहले एनडीए को 349 और यूपीए के खाते में 75 सीटों पर जीत का आकलन रहा.
इसी तरह एबीपी न्यूज और सीएसडीएस-लोकनीति के एक सर्वे में एनडीए को 301, यूपीए को 127 और दूसरे दलों को 115 सीटों पर जीत के आसार पाये गये थे.
बीजेपी के कट्टर विरोधी अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी तरफ से 2019 को लेकर एक भविष्यवाणी ट्वीट की है. लोगों से बातचीत और उनका मूड समझने के बाद केजरीवाल का मानना है कि 2019 में बीजेपी को 215 से भी कम सीटें मिलेंगी.
Met several people in last few days.
Consensus amongst all - BJP getting less than 215 seats, unemployment biggest problem, youth worried abt its future, middle class very disenchanted wid BJP
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 5, 2018
राजेश जैन ने एक लेख में वक्त से पहले आम चुनाव कराये जाने की संभावना जतायी थी. अपने दावे के सपोर्ट में जैन ने दलील भी पेश की थी. राजेश जैन 2014 में बीजेपी के मिशन - 272 के सूत्रधारों में से एक माने जाते हैं.
राजेश जैन की ही थ्योरी को राजनीतिक अर्थशास्त्र के एक एक्सपर्ट प्रवीण चक्रवर्ती ने आंकड़ों के जरिये पैमाइश करने की कोशिश की. द क्विंट में प्रकाशित प्रवीण चक्रवर्ती के आर्टिकल से मालूम होता है कि बीजेपी का ग्राफ लगातार गिर रहा है.
त्रिपुरा में चुनाव जीतने के साथ ही मेघालय और नगालैंड में एनडीए की सरकार बनने से बीजेपी कार्यकर्ताओं के जोश में इजाफा जरूर हुआ है. जोश के उदाहरण सड़क पर नजर भी आ रहे हैं. हालांकि, नॉर्थ ईस्ट के उन इलाकों से लोक सभा की महज पांच सीटें आती हैं.
प्रवीण चक्रवर्ती 2014 के बाद 15 राज्यों में हुए हुए चुनावों का जिक्र करते हैं. उनके अनुसार 2014 में बीजेपी जिन 15 राज्यों की जिन 1171 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, बाद के चुनावों में महज 854 पर सिमट गयी. इस हिसाब से देखें तो 2014 की तुलना में 2019 में बीजेपी को 45 लोक सभा सीटों का नुकसान हो सकता है. इन्हीं 15 राज्यों में बीजेपी को 191 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
इस साल के आखिर तक जहां विधानसभा के चुनाव होने हैं वहां से बीजेपी को 79 सीटें मिली थीं - चुनाव बाद 2019 को लेकर भी अंदाजा लगाया जा सकेगा.
2019 में बीजेपी के लिए उतर और दक्षिण में क्या फर्क देखने को मिल सकता है इस बात का जवाब तो पिछले साल नवंबर में आये प्यू के सर्वे में ही मिल चुका है. अमेरिकी एजेंसी प्यू के सर्वे में प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा लोकप्रिय बताये गये. खास बात ये रही कि मोदी की लोकप्रियता उत्तर की तुलना में दक्षिण भारत में ज्यादा बतायी गयी.
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