ध्रुवीकरण की राजनीति के मास्टर योगी - बीजेपी के आंखों के तारे यूं ही नहीं बने !
बीजेपी के वोट बैंक को 'श्मशान' और 'कब्रिस्तान' का फर्क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाखूबी समझाते हैं, लेकिन जिस तेवर के साथ योगी आदित्यनाथ 'अली' और 'बजरंगबली' का अंतर बताते हैं वो बिलकुल अलग है.
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त्रिपुरा में बरसों से लाल रंग छाया हुआ था. बीजेपी ने एक झटके में उस पर भगवा पेंट कर दिया. त्रिपुरा की चुनावी मुहिम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लीड जरूर किया था, लेकिन योगी आदित्यनाथ का योगदान भी काफी रहा. नाथ संप्रदाय को मानने वाले लोगों की बड़ी जमात को देखते हुए बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को ड्यूटी पर लगाया और भरपूर फायदा मिला.
बीजेपी के चुनाव कैंपेन में योगी की अहमियत ऐसे समझनी चाहिये कि कई राज्यों में मोदी से भी ज्यादा उनके कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. त्रिपुरा के बाद जब कर्नाटक विधानसभा के लिए चुनाव हुए तो प्रधानमंत्री मोदी की करीब दो दर्जन चुनावी रैलियों के मुकाबले योगी आदित्यनाथ के लिए तीन दर्जन पब्लिक मीटिंग के कार्यक्रम तय किये गये. ये बात अलग है कि यूपी में उसी दौरान आंधी और तूफान से तबाही मचने के चलते योगी बीच में ही दौरा रद्द कर लौटना पड़ा.
योगी आदित्यनाथ की पहचान फायरब्रांड हिंदू नेता की रही है और उनके कई बयानों पर विवाद भी खूब हुआ है. बीजेपी के 'लव जिहाद' और 'घर वापसी' मुहिम के जरिये उनकी छवि और निखरती चली गयी - और इसी कारण वो मिशन 2019 की रणनीतिक राह के अहम किरदार के रूप में स्थापित होते गये.
चुनावी जंग के कामयाब जनरल हैं योगी आदित्यनाथ
बीजेपी के मुख्यमंत्रियों में रमन सिंह सबसे सीनियर हैं. वो 2003 से लगातार मुख्यमंत्री हैं - और योगी आदित्यनाथ सबसे जूनियर, 2017 से. सबसे सीनियर होने के बावजूद रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ में एक ही इवेंट में दो दो बार योगी आदित्यनाथ के पैर छुए - पहली बार उनका स्वागत करते हुए, दूसरी बार अपना पर्चा दाखिल करते हुए. रमन सिंह के बाद उनकी पत्नी और फिर पैर छूने वाले बीजेपी नेताओं की कतार लग गयी.
योगी के सामने हर कोई सीनियर नहीं होता
रमन सिंह की ही तरह योगी आदित्यनाथ राजनादगांव जिले के सभी छह बीजेपी उम्मीदवारों के नामांकन भी योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में ही भरे गए. असल में राजनादगांव के नजदीक ही कवर्धा में नाथ संप्रदाय के अनुयायियों की तादाद काफी है.
मोदी सहित बाकी नेताओं की ही तरह, योगी ने भी कवर्धा की एक सभा में कांग्रेस को टारगेट किया, 'भगवान राम का भव्य मंदिर अयोध्या में बने इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा कोई तो कांग्रेस है - क्योंकि कांग्रेस नहीं चाहती कि अयोध्या में राम मंदिर बने. जब कांग्रेस राम की नहीं हो सकती वह हमारे भी किसी काम की नहीं हो सकती...'
जब मुस्लिम वोटों को लेकर कांग्रेस नेता कमलनाथ का एक वीडियो वायरल हुआ तो उनके खिलाफ भी मोर्चे पर योगी लगाये गये. एक सभा में योगी ने कहा, 'कमलनाथ जी का एक बयान मैं पढ़ रहा था, उन्होंने कहा कि हमें एससी-एसटी का वोट नहीं चाहिए, कांग्रेस को केवल मुस्लिमों के वोट चाहिए. कमलनाथ जी आपको अली मुबारक, हमारे लिए बजरंग बली पर्याप्त होंगे.'
'अली' और 'बजरंगबली' - यही वो लाइन है जिसे समझाने में योगी आदित्यनाथ का कोई सानी नहीं है. ऐसी बातें वो सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि गुजरात, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा और कर्नाटक के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी समझाते रहे हैं.
बीजेपी के वोट बैंक को समझाने में सबसे बड़े माहिर तो प्रधानमंत्री मोदी खुद ही हैं. जिस तरह बीजेपी के वोट बैंक को मोदी श्मशान और कब्रिस्तान का फर्क समझाते हैं, योगी आदित्यनाथ उसी काम को नेक्स्ट लेवल पर ले जाते हैं. यही बात योगी को ध्रुवीकरण की राजनीति का मास्टर बनाती है और वो बीजेपी की आंखों के तारे बने रहते हैं.
ध्रुवीकरण का मास्टर यूं नहीं बनता कोई
जो बातें प्रधानमंत्री मोदी ऑडिएंस से सीधे कनेक्ट होकर लच्छेदार भाषा में करते हैं, योगी आदित्यनाथ सीधे सपाट शब्दों में ठांय-ठांय ठोक देते हैं. 2014 के चुनावों में योगी आदित्यनाथ से समाजवादी पार्टी नेता आजम खान को लेकर एक सवाल पूछा गया. बगैर किसी लाग लपेट के योगी आदित्यनाथ ने कह दिया कि आजम खान को गुजरात के मुसलमानों से सबक लेना चाहिए. लगभग धमाकाते हुए लहजे में पूरी तरह सख्त भाव भंगिमा के साथ योगी ने कहा कि आजम खां के पास भी गुजरात के मुसलमानों की तरह कोई और विकल्प नहीं बचेगा. योगी आदित्यनाथ का इशारा गुजरात में हुए 2002 के दंगों की ओर रहा जिसकी तोहमत लंबे अरसे तक मोदी पर हावी रहती थी. मौके-बेमौके मोदी के विरोधी अब भी उन्हें उस विवाद में घसीटते रहे हैं. अब भी एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है.
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ अपने तरीके से बीजेपी के वोटर तक संदेश पहुंचाते रहे. बहराइच की एक रैली में योगी ने समझाया कि किस तरह तब की अखिलेश सरकार लोगों को बिजली देने के मामले में भी भेदभाव करती रही - 'दरगाहों को 24 घंटे बिजली दी गई लेकिन मंदिरों में अंधेरा छाया रहा.' समझाते समझाते योगी ने अखिलेश यादव की तुलना औरंगजेब तक से कर डाली - 'पिता को सत्ता से बेदखल कर अखिलेश ने सत्ता हासिल की.'
यूपी के बाद हुए गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के मंदिर दर्शन की खूब चर्चा रही. इस बारे में योगी आदित्यनाथ की समझाइश रही, 'गुजरात के लोगों ने राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर घूमने पर मजबूर कर दिया... अब उन्हें मंदिर में कैसे बैठना चाहिए ये भी सीखना पड़ेगा. राहुल मंदिर में भी जिस तरह नमाज पढ़ते हैं, वैसे बैठते हैं. योगी का आशय उस विवाद से था जो राहुल गांधी के काशी विश्वनाथ दर्शन को लेकर हुआ था.
तमाम बातों के बीच योगी आदित्यनाथ अयोध्या और राम मंदिर निर्माण की चर्चा करना नहीं भूलते, 'राममंदिर का विवाद 1528 से चला आया है. कांग्रेस के कपिल सिब्बल 2019 तक सुनावाई टालने की बात करते हैं. कांग्रेस ये साफ करे कि वो क्या करना चाहती है. कांग्रेस ये साफ करे कि राममंदिर बनाएं या नहीं?'
उद्धव ठाकरे भले ही इस वक्त अयोध्या में छाये हुए हों - और प्रधानमंत्री मोदी बाकी बीजेपी नेताओं से अलग खामोशी अख्तियार किये हुए हों - योगी आदित्यनाथ जहां कहीं भी जाते हैं, ये कहना कभी नहीं भूलते - 'मंदिर वहीं बनाएंगे.' वैसे भी बीजेपी का मंदिर निर्माण और चुनाव एक दूसरे के पूरक तो बन ही चुके हैं. मंदिर जब बनेगा तब बनेगा योगी ने ये तो बता ही दिया है कि गुजरात की 182 मीटर ऊंची स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से भी बड़ी 221 मीटर वाली श्रीराम की मूर्ति वही बनवाएंगे. योगी आदित्यनाथ ने इस प्रस्ताव की घोषणा तो 2017 में ही कर डाली थी विस्तृत जानकारी अभी अभी सार्वजनिक की गयी है.
हाल के कर्नाटक चुनावों दौरान भी योगी आदित्यनाथ ने बार बार यही समझाने की कोशिश की कि लड़ाई संतों की पूजा करने वाले और टीपू सुल्तान को मानने वालों के बीच है. साथ में योगी ये भी बताते रहे कि किस तरह हनुमान से मिलने के बाद ही रामराज्य की स्थापना हो पायी थी - और 'मैं राम की अयोध्या वाले उत्तर प्रदेश से यहां हनुमान जी जन्म स्थली में आया हूं.'
ये भी सच है कि हर बार एक ही फॉर्मूला नहीं चलता. कर्नाटक चुनाव के बाद हुए कैराना उपचुनाव के लिए योगी ने जीत तोड़ कोशिश की. गोरखपुर और फूलपुर की हार के बाद योगी की साख भी तब दांव पर लगी थी. कैराना में चुनावी माहौल के गर्म होने से पहले से ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रास्ते जिन्ना विवाद को खूब हवा दी गयी - लेकिन एकजुट विपक्ष ने लड़ाई को जिन्ना बनाम गन्ना में उलझा दिया और योगी देखते रह गये.
2014 में योगी आदित्यनाथ का एक वीडियो वायरल हो रहा था. वीडियो में योगी को अपने समर्थकों से कहते सुना गया - 'हमने फैसला किया है कि अगर वे एक हिंदू लड़की का धर्म परिवर्तन करवाते हैं तो हम 100 मुस्लिम लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाएंगे.'
जब वीडियो में योगी आदित्यनाथ के बयान के बाबत उनका पक्ष जानने की कोशिश की गयी तो जवाब था - 'मैं इस मुद्दे पर कोई सफ़ाई नहीं देना चाहता.'
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