2016 के युवा, जिनके इर्द गिर्द घूमती रही राष्ट्रीय राजनीति
जब कभी भी साल 2016 का जिक्र होगा कैनवास पर कुछ युवा चेहरे जरूर उभरेंगे. ऐसे चेहरे जिन्होंने सिस्टम के खिलाफ पूरे जोर से संघर्ष किया - और कई दिनों तक राष्ट्रीय राजनीति को नचाते रहे.
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जब कभी भी साल 2016 का जिक्र होगा कैनवास पर कुछ युवा चेहरे जरूर उभरेंगे. ऐसे चेहरे जिन्होंने सिस्टम के खिलाफ पूरे जोर से संघर्ष किया - और कई दिनों तक राष्ट्रीय राजनीति को नचाते रहे.
सपनों का मर जाना
हैदराबाद यूनिवर्सिटी के शोध छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. 17 जनवरी को रोहित ने हॉस्टल के एक कमरे में फांसी लगा ली. रोहित की खुदकुशी को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के दो मंत्रियों पर उंगली उठी. रोहित की मौत पर राजनीति भी जम कर हुई. शायद ही ऐसा कोई नेता न जिसने रोहित को इंसाफ दिलाने का दम न भरा हो. संसद में तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और बीएसपी नेता में इस मामले को लेकर तीखी झड़प भी हुई. यहां तक कि लखनऊ में कुछ छात्रों ने प्रधानमंत्री को काले झंडे भी दिखाये.
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रोहित ने एक सूईसाइट नोट भी छोड़ा था जिसमें उन्होंने अपनी बात रखी थी, "इस वक्त मैं आहत नहीं हूं… दुखी नहीं हूं, मैं बस खाली हो गया हूं. अपने लिए भी बेपरवाह. यह दुखद है और इसी वजह से मैं ऐसा कर रहा हूं. लोग मुझे कायर कह सकते हैं"
अधूरा रहा लेखक बनने का सपाना |
माना जाता है कि ईरानी का मंत्रालय बदले जाने के पीछे बड़ी वजह रोहित वेमुला केस भी रहा.
अपनी अपनी आजादी
गुजरात के ऊना में दलितों की पिटाई के मामले ने बड़ा तूल पकड़ा. उसे लेकर दलितों में इतना गुस्सा बढ़ा कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह को अपनी रैली रद्द करनी पड़ी. बाद में हालात को संभालने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत को मोर्चा संभालना पड़ा - और वो खुद कई दिन तक आगरा में जमे रहे.
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ऊना की घटना को लेकर गुजरात के कई हिस्सों ने निकल कर दलितों का जत्था अहमदाबाद पहुंचा और फिर ऊना मार्च का फैसला हुआ. इस आंदोलन के नेतृत्व के दौरान एक चेहरा सामने आया - जिग्नेश मेवाणी का.
आजादी के नये मायने |
गोरक्षकों के उत्पात के विरोध में जिग्नेश ने घूम घूम कर दलितों को शपथ दिलाई कि वे मरी हुई गायों को उठाना बंद कर दें. 15 अगस्त को दलितों ने ऊना में अपने हिसाब से आजादी का जश्न मनाया.
हर एक मांग जरूरी होती है
जिस तरह जिग्नेश गुजरात में दलितों की आवाज बन कर उभरे उसी तरह पाटीदार समाज में भी एक चेहरा सामने आया - हार्दिक पटेल. पाटीदार आंदोलन के जरिये अपने समाज के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल गुजरात में बीजेपी विरोध के प्रतीक के तौर पर देखे जाने लगे.
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हार्दिक के आंदोलन और जिग्नेश की दलित मुहिम का ऐसा असर हुआ कि मोदी की उत्तराधिकारी आनंदी बेन पटेल की कुर्सी ले बैठा. हार्दिक को हैंडल करने के मकसद से बीजेपी ने विजय रुपानी को कमान सौंपी है, जिन्हें अमित शाह का खास माना जाता है.
"लौट रहा हूं मैं..." |
अपने आंदोलन के चलते हार्दिक काफी दिनों तक जेल में रहे उन पर देशद्रोह का आरोप भी लगा. अदालत के आदेश पर छह महीने गुजरात से बाहर बिताने के बाद हार्दिक जनवरी में लौटने वाले हैं. हार्दिक का कहना है कि वो धमाकेदार वापसी करेंगे.
आजादी की आवाज
बिहार से तिहाड़ तक - कन्हैया कुमार की किताब इसी नाम से प्रकाशित हुई है. इसमें कन्हैया की जिंदगी से जुड़े बचपन से अब तक के वाकये हैं लेकिन खास जोर उन दिनों पर है जब दिल्ली पुलिस ने जेएनयू से गिरफ्तार कर उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया. कन्हैया पर देशद्रोह का इल्जाम लगा और अभी वो जमानत पर रिहा किये गये हैं.
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कन्हैया के जेल में होने के दिनों ऐसे लग रहा था जैसे देश राष्ट्रवादी और देशद्रोही दो खेमों में बंट गया हो. हद तो तब हो गई जब पेशी के लिए कोर्ट लाये गये कन्हैया पर पुलिस सुरक्षा में वकीलों के एक ग्रुप ने हमला बोल दिया. उस हमले के बाद कन्हैया की सुरक्षा दिल्ली पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई. कन्हैया ने अपनी किताब में इस बात का भी खुलासा किया है कि किस तरह उनकी सुरक्षा में एक खास समुदाय के पुलिसकर्मी ही उनकी सुरक्षा में तैनात किये जाते रहे.
जेल से छूटने के बाद जब कन्हैया मीडिया से मुखातिब हुए तो बताया कि वो किस तरह की आजादी की बात कर रहे हैं. कन्हैया ने कहा, "मैं भारत से आजादी नहीं, मैं भारत में आजादी चाहता हूं."
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