तरुण सागर जी पर माफी तो गांधी जी पर चुप्पी क्यों ?
आप नेता आशुतोष ने संदीप कुमार के किये कारनामे को सामान्य बताते हुए कई महान नेताओं के इस तरह सम्बन्ध होने की बात कही. आशुतोष ने महात्मा गांधी के संबंधो का भी सहारा लिया. क्या इसका संज्ञान लेने की आवश्कता पार्टी को नहीं महसूस हो रही है.
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राजनीति में सुचिता और मूल्यों की पुनर्स्थापना के उद्देश्य से जब आम आदमी पार्टी ने राजनीति में कदम रखा था तब एक उम्मीद जगी की भारतीय राजनीति में आई गन्दगी को शायद आम आदमी पार्टी की झाड़ू ही दूर कर सकती है. मगर हालिया दिनों में जिस तरह का चाल-चरित्र केजरीवाल की पार्टी ने दिखाया है, उससे एक बात तो तय हो गई है कि अब अपने को "खास" बताने वाली यह पार्टी अपने नाम के अनुरूप बिल्कुल आम हो गयी है, और तो और वोटबैंक के लिए पैतरों में तो आम आदमी पार्टी बाकि पार्टियों से मीलों आगे भी निकल गयी है.
अभी पिछले पंद्रह दिनों में हुई दो घटनाएं आम आदमी पार्टी के आदर्शों के खोखलेपन को दर्शाने के लिए काफी है.
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पहली घटना में जब विशाल ददलानी ने हरियाणा विधानसभा में हुए कार्यक्रम पर एक आपत्तिजनक ट्वीट कर दिया था, इसके बाद आनन फानन में अरविन्द केजरीवाल और उनके मंत्री डैमेज कंट्रोल में लग गए. जहाँ केजरीवाल ने खुद ट्वीट कर तरुण सागर और पूरे जैन समाज से माफ़ी मांगते हुए यह बताया कि वह और उनका परिवार खुद तरुण सागर के प्रवचन को सुनता आया है.
वहीं केजरीवाल के कई मंत्रियों ने भी अलग अलग ट्वीट कर जैन समुदाय से माफ़ी मांगी. बेशक यहाँ केजरीवाल या उनके मंत्रियों ने कुछ भी गलत नहीं किया मगर जब माफ़ी मांगने के आपके पैमाने अलग अलग हो तो सवाल उठना लाजिमी ही है.
आप की तरफ से संदीप कुमार को सही साबित करने के लिए गांधी पर विवादित बयान |
दूसरी घटना में आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष ने अपने बर्खास्त मित्र संदीप कुमार को सही साबित करने के लिए एक ब्लॉग लिखा. ब्लॉग में उन्होंने संदीप के किये कारनामे को सामान्य बताते हुए कई महान नेताओं के इस तरह सम्बन्ध की बात कही जिसमें उन्होंने गांधीजी के संबंधों का भी जिक्र किया. अब जिस आम आदमी पार्टी ने ददलानी के ट्वीट पर इतनी त्वरित कारवाई की उसी पार्टी ने आशुतोष के ब्लॉग को नजरअंदाज कर दिया.
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सवाल यह है कि जिस पार्टी के नेताओं ने जैन समाज से माफ़ी मांगने में जरा भी देरी नहीं की उन्हीं नेताओं ने आशुतोष के ब्लॉग पर कोई प्रतिक्रिया देना भी ठीक नहीं समझा. इसके पीछे कारण दो ही हो सकते हैं. या तो पार्टी संदीप कुमार की गांधीजी से तुलना को सामान्य बात मान रही हो या पार्टी को यह पता है कि इस ज़माने में गांधीजी की बुराई करने से भी उनके वोट बैंक में कोई अंतर नहीं आने वाला. जबकि जैन संत के मामले में ढिलाई पार्टी को मिलने वाले वोटों में कमी ला सकती थी.
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