अभिजीत बनर्जी और JNU: बीजेपी से पहले कांग्रेस-लेफ्ट थी 'दुश्मन'!
अभिजीत बनर्जी समेत करीब 700 छात्रों को पुलिस उठा ले गई थी. छात्रों पर बाकी आरोपों के साथ-साथ वीसी की हत्या की कोशिश के आरोप भी लगाए गए थे. इसके लिए छात्रों को 10 दिनों तक तिहाड़ जेल में भी रहना पड़ा था. जहां उनकी पिटाई भी खूब हुई थी.
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Abhijit Banerjee को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरुस्कार मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ट्विटर पर बधाई संदेश दिया, तो इसके बरअक्स कुछ राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आईं. कांग्रेस और वामपंथी समर्थक उन्हें याद दिलाने लगे अभिजीत JNU के पूर्व छात्र रहे हैं. ये जरूर सच है कि अभिजीत ने 1981 से 1983 के बीच JNU से इकोनॉमिक्स में एमए किया, लेकिन उस दौरान कांग्रेस और लेफ्ट के प्रति उनकी राय वैसी ही थी, जैसा आज JNU के वामपंथी बीजेपी के बारे में सोचते हैं.
यूं तो जेएनयू हमेशा ही छात्र राजनीति के लिए जाना जाता है, लेकिन जेएनयू से जब एक नोबल पुरस्कार विजेता निकले तो इसका फिर से सुर्खियों में बनना तो बनता है. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान अभिजीत के साथ कुछ ऐसा हुआ था जिसकी वजह से उन्हें 10 दिन तिहाड़ जेल में बिताने पड़े थे.
अभिजीत बनर्जी ने खोला JNU पर सत्ता का सच
हिंदुस्तान टाइम्स में 2016 में छपे एक लेख में अभिजीत बनर्जी ने इस वाकिए का जिक्र करते हुए बताया था कि पुलिस ने छात्रों के साथ जो कुछ भी किया था वो लेफ्ट के प्रति झुकाव रखने वाले फैकल्टी मेंबर्स और केंद्र में बैठी कांग्रेस की सरकार के दम पर किया था. उन्होंने कहा कि- आरोप थे कि छात्र संघ के प्रेसिडेंट को इसलिए निष्कासित कर दिया गया था क्योंकि वो विरोध प्रदर्शन को हवा दे रहे थे जिसका इस्तेमाल admission पॉलिसी को बदलने के लिए किया जा सकता था, जिसमें ग्रामीण इलाकों के छात्रों को महत्व दिया जाता था.
लेख में अभिजीत बनर्जी ने ये भी कहा, "निस्संदेह ये राज्य सरकार का वहां अधिकार रखने का प्रयास था. वो हमें बता रहे थे कि वो बॉस हैं इसलिए हमें चुप करा रहे थे और हमें हद में रहने की बात कर रहे थे''.
अभिजीत बनर्जी को 10 दिनों तक तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था
2016 में हुए जेएनयू देशद्रोह मामले पर बोलते हुए अभिजीत बनर्जी ने कहा कि इस बार भी सरकार ने मामले में फिर से हस्तक्षेप किया है और विश्वविद्यालय परिसर पर अधिकार स्थापित करना चाहती है. अभिजीत बनर्जी ने तर्क दिया कि दोनों ही मामलों में सरकार की कार्रवाई उस सुरक्षित स्थान को खतरे में डालती है जो विश्वविद्यालयों ने परंपरागत रूप से प्रदान किया है."
लेफ्ट संगठनों की हार के गुस्से का शिकार बने थे अभिजीत
जेएनयू को खांटी वामपंथियों का गढ़ माना जाता है, लेकिन 1982-83 के छात्र संघ चुनाव में यहां बड़ा फेरबदल हुआ. क्योंकि इस बार लेफ्ट (AISA) को हार का सामना करना पड़ा था. जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन भी इससे खुश नहीं था. उस वक्त स्थापित लेफ्ट संगठनों के बाहर से कोई छात्रनेता प्रेसिडेंट बना था. तब लेखक एनआर मोहंती छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर जीते थे. उन्हीं के संगठन ने जेएनयू में स्थापित वामपंथियों के मिथक को तोड़ा था. उस दौरान अभिजीत बनर्जी ने मोहंती का खुलकर सपोर्ट किया था. इसी साल जेएनयू में विरोध की आंधी चली थी.
लेखक एनआर मोहंती ने आजतक से बात करते हुए बताया कि- जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन ने एक स्टूडेंट को हॉस्टल से निकाल दिया था. जिसको लेकर छात्रों में नाराजगी थी. मैं उस वक्त स्टूडेंट यूनियन का प्रेसिडेंट था. इस मामले को लेकर हम VC से मिलने गए थे. उन्होंने कहा कि छात्र ने मिसबिहेव किया था इसलिए हॉस्टल से निकाला गया. वहीं, छात्रों की मांग थी कि जांच के बाद ही कोई एक्शन लिया जाए. हॉस्टल से निकाले गए छात्र ने एक टीचर की कंप्लेंट कर दी थी इसलिए छात्र टीचर को निष्कासित करने की भी मांग कर रहे थे. चूंकि एडमिनिस्ट्रेशन हमारे संगठन से खुश नहीं था, इसीलिए वो जांच के लिए तैयार नहीं हुआ और हम लोग भी अपनी मांग पर अड़े रहे.
ये मामला काफी आगे बढ़ गया था. जिसके चलते जेएनयू के प्रेसिडेंट एनआर मोहंती को कैंपस से निष्कासित कर दिया गया था, जिसका अभिजीत बनर्जी सहित कई स्टूडेंट्स ने पुरजोर विरोध किया था. छात्रों ने वीसी का घेराव किया था. इस बीच पुलिस आकर सैकड़ों छात्रों को उठाकर ले गई, करीब 700 छात्र थे जिसमें 250 लड़कियां भी थीं. छात्रों पर बाकी आरोपों के साथ-साथ वीसी की हत्या की कोशिश के आरोप भी लगाए गए थे. इसके लिए छात्रों को 10 दिनों तक तिहाड़ जेल में भी रहना पड़ा था. जहां उनकी पिटाई भी खूब हुई थी. हालांकि बाद में हत्या की कोशिश वाले आरोप खारिज हो गए थे. लेकिन 10 दिन तिहाड़ जेल की हवा तो खा ही ली गई थी. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि तब राजद्रोह जैसा मुकदमा नहीं होता था.
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